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Categories: BiologyBiology

पोषण स्तर किसे कहते हैं | पोषण स्तर की परिभाषा क्या है परिभाषित कीजिए trophic level in hindi

trophic level in hindi meaning पोषण स्तर किसे कहते हैं | पोषण स्तर की परिभाषा क्या है परिभाषित कीजिए ?

पारितंत्र में ऊर्जा-प्रवाह (Energy-Flow in Ecosystem)
जैविक समुदाय में एक जीव से दूसरे जीव में ऊर्जा के प्रवाह को खाद्य श्रृंखला (food chain) कहते हैं। इस प्रक्रिया में एक जीव दूसरे जीव को खाता है और फिर स्वयं भी किसी अन्य के द्वारा खा लिया जाता है। उदाहरणतः कीट पीड़क पौधों को खाते हैं, परजीवी परभक्षी पीड़कों को खाते हैं और अधिपरजीवी (hyperparsaites) परजीवियों को खाते हैं। कुछ सामान्य खाद्य श्रृंखलाएं इस प्रकार हैं (चित्र 7.1) –

इस प्रकार खाद्य श्रृंखलाओं को समुदाय के भीतर के रैखिक अशन क्रम (linear feeding sequence) कहा जा सकता है। जैविक समुदाय के प्राणी अपने भोजन के लिए सीधे ही अथवा परोक्ष रूप में पौधों पर निर्भर करते हैं। और पौधे अपने नम्बर पर प्रकाश संश्लेषण द्वारा सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में स्वयं अपना भोजन बनाते हैं। इस प्रकार पृथ्वी के समस्त जीवों के लिए उनका अंतिम ऊर्जा-स्रोत सूर्य ही होता है।

पौधों को स्वपोषी (autotroph) (अथवा उत्पादक, producers) कहा जाता है। जैविक समुदाय के अन्य समस्त जीव (प्रधानतरू प्राणी) विषमपोषी (heterotroph) (अथवा उपभोक्ता, consumers) कहलाते हैं। विषमपोषी अपना भोजन नहीं बना सकते और इसलिए उन्हें अन्य जंतुओं से ही भोजन प्राप्त करना होता है। विषमपोषियों में शाकभक्षी (पादपभक्षी, phytophagous) तथा मांसभक्षी (carnivores) दोनों ही प्रकार आते हैं। शाकभक्षी वे प्राणी होते है जो पौधो को खाते हैं। शाकभक्षी जीवों के उदाहरण हैं – कीट फसल पीड़क, शाकभक्षी वरूथियां (mites), उच्चतर प्राणी जैसे गाय, बकरी, भेड़, खरगोश, तथा तोता जैसे पक्षी आदि। मांसभक्षी प्राणी वे होते हैं जो अन्य प्राणियों को खाते हैं। मांसभक्षियों के चार प्रकार हो सकते हैं — प्राथमिक (primary), द्वितीयक (secondary), तृतीयक (tertiary) तथा चतुर्थक (quaternary)। प्राथमिक मांसभक्षी वे होते हैं जो शाकभक्षियों को खाते हैं। द्वितीयक मांसभक्षी वे होते हैं जो प्राथमिक मांसभक्षियों को खाते हैं, तृतीयक द्वितीयकों को खाते हैं और चतुर्थक तृतीयकों को खाते हैं, इत्यादि । प्राथमिक मांसभक्षियों के उदाहरण हैं कीट पीड़कों परभक्षी एवं परजीवी। ये लाभकारी जीव हैं क्योंकि उनके द्वारा हानिकर जीवों के नियंत्रण में सहायता मिलती है। द्वितीयक मांसभक्षी प्राथमिक मांसभक्षियों को खाते हैं। इन्हें अधिपरजीवी भी कहते हैं क्योंकि ये परजीवियों पर परजीवी होते हैं। पीड़क प्रबंधन की दृष्टि से द्वितीयक मांसभक्षी हानिकारक होते हैं क्योंकि वे लाभकारी मांसभक्षियों को खा जाते हैं। इस प्रकार तृतीयक मांसभक्षी उपयोगी होंगे क्योंकि वे उन द्वितीयक मांसभक्षियों की संख्या कम करते हैं जो लाभकारी परभक्षियों एवं परजीवियों को हानि पहुँचाते हैं। कुछ जीव शाकभक्षी तथा मांसभक्षी दोनों प्रकार के कार्य कर सकते हैं जैसे कौआ।

इन्हें सर्वभक्षी (omnivorous) कहते हैं। हम मानव पौधों तथा अन्य प्राणियों पर भी भोजन कर सकते हैं।

 पोषण स्तर (Trophic levels)
पारितंत्र के भीतर एक निश्चित पोषण संरचना पायी जाती है। समुदाय के भीतर विभिन्न प्रकार के जीवों के अशन स्थानों को पोषण स्तर कहते हैं। पोषण स्तर का अर्थ है कि कोई जीव सूर्य से कितने चरणों की दूरी पर है, ऐसा इसलिए क्योंकि सूर्य ही ऊर्जा का अंतिम स्रोत होता है, इस प्रकार पौधे (स्वपोषी) प्रथम पोषण स्तर पर होते हैं क्योंकि वे सीधे ही सूर्य की ऊर्जा का उपयोग करके अपना भोजन बनाते हैं (चित्र 7.2) शाकभक्षियों को दूसरे पोषण स्तर पर, प्राथमिक मांसभक्षियों को तीसरे पर, द्वितीयक मांसभक्षियों को चौथे पर रखा जाता है, तृतीयक मांसभक्षियों को पांचवें पर तथा चतुर्थक मांसभक्षियों को छठे

पोषण स्तर पर रखा जाता है। कुछ जीव आहार श्रृंखला में एक से अधिक पोषण स्तरों पर हो सकते हैं। मानव सर्वभक्षी है और शाकाहारी के रूप में वह दूसरे पोषण स्तर पर होता है तथा मांसभक्षी के रूप में तीसरे पोषण स्तर पर। इसी प्रकार चावल पारितंत्र में मकड़ी कीट पीड़क का आहार करने के तौर पर तीसरे पोषण स्तर पर कार्य करती हो सकती है मगर जब वह ड्रैगन-फ्लाई जैसे लाभकारी कीटों को खाती है तब उसका पोषण स्तर चौथा हो जाता है।

 निकेत (Niche)
समुदाय के भीतर जीव की कार्यात्मक भूमिका उसका पारिस्थितिकीय निच कहलाती है। दूसरे शब्दों में, इसका संदर्भ यह है कि कोई जीव उत्पादक है, शाकभक्षी है अथवा मांसभक्षी है। पारिस्थितिक निच मानव के व्यवसाय सरीखा होता है।

प्रकाश-संश्लेषण के दौरान पौधे अपने ऊपर पड़ने वाले सूर्य-विकिरण का केवल 1-2 अंश ही उपयोग में ला सकते हैं। तदनन्तर प्रत्येक पोषण स्तर पर 90% ऊर्जा छितरा जाती है और केवल 10% भाग अगले पोषण स्तर में पहुंच पाता है। इस प्रकार जैसे-जैसे ऊर्जा खाद्य श्रृंखला में आगे-आगे चलती जाती है वैसे-वैसे ऊर्जा की उपलब्धता घटती जाती है। इसके परिणामस्वरूप विभिन्न पोषण स्तरों पर जीवों की जैवसंहति (biomsa) में भी साथ-साथ कमी आती है। अतरू समुदाय के भीतर पौधों (स्वपोषियों) की जैवसंहति सर्वाधिक होती है। विषमपोषियों में कीट पीड़कों की संख्या सबसे ज्यादा होती है तथा परभक्षियों एवं परजीवियों की संख्या अपेक्षाकृत कम होती है। अधिपरजीवी समष्टियां बहुत ही थोड़ी-थोड़ी होती हैं।

पारितंत्र में ऊर्जा का प्रवाह एकदिशीय (unidirectional) होता है। ऊर्जा सूर्य से स्वपोषियो में प्रवाहित होती है और फिर उसके आगे विषमपोषियों में परंतु उसका वापिस उल्टा चक्र नहीं चल सकता। मगर इसका भंडारण तो हो ही सकता है। उदाहरणतः कृषि उत्पाद को भण्डारित किया जा सकता है और फिर बाद में उपयोग करने में उसका इस्तेमाल किया जा सकता है। पारितंत्र के सजीव तथा निर्जीव घटकों के बीच पदार्थो का चक्र चलता रहता है। पौधे मिट्टी से पोषकों को सोखते और पनपते-बढ़ते हैं। पौधे के सूखे भाग जैसे पत्तियाँ, टहनियाँ और दूंठ आदि मिट्टी में समा जाते हैं। तदनंतर सूक्ष्मजीवों द्वारा इनका अपघटन हो जाता है और पोषक बाहर आ जाते हैं। इसी प्रकार विषमपोषकों के मृत शरीर भी अपघटित हो जाते हैं और खनिजों को मिट्टी में छोड़ देते हैं। इस प्रकार पदार्थों का चक्रण चलता रहता है।

 खाद्य श्रृंखलाओं के प्रकार (Types fo Food Chains)
खाद्य श्रृंखलाओं को मोटे तौर पर दो वर्गों में बांटा जा सकता है रू
प) चारण खाद्य श्रृंखलाएं, तथा
पप) अपरद खाद्य श्रृंखलाएं

प) चारण खाद्य श्रृंखलाएं (Grazing food chains) – चारण खाद्य श्रृंखला का आरंभ हरे पौधों (उत्पादकों) से होता है और शाकभक्षियों में से गुजरते हुए मांसभक्षियों के विभिन्न प्रकारों में आगे चलती जाती है जैसा कि ऊपर वर्णन किया जा चुका है।
पप) अपरद खाद्य श्रृंखला (Detritus food chain) – अपरद खाद्य श्रृंखला का आरम्भ मत जैव पदार्थ से होता है और अपरद भक्षियों में से होता हुआ परभक्षियों में जाता है। अपरदभक्षी सूक्ष्मजीव होते हैं। जैसे बैक्टीरिया (जीवाणु) तथा कवक (फजाई) जो मृत पादप एवं प्राणी पदार्थ पर आहार करते हैं। उसके बाद अपरद भक्षियों को परभक्षी खाते हैं।

चारण एवं अपरद खाद्य श्रृंखलाएं पारितंत्र के भीतर अलग-अलग कार्य नहीं करती वरन् परस्पर संयोजित होती हैं। मगर किन्हीं दो
खाद्य श्रृंखलाओं के भीतर प्रवाहशील ऊर्जा अलग-अलग पारितंत्र में अलग-अलग होती हैं। घास-स्थल में जहाँ जानवर चरते हैं वहाँ ऊर्जा का प्रवाह चारण खाद्य श्रृंखला में होता है। कृषि पारितंत्र (agroecosystem) में भी मानव द्वारा फसल-एकत्रण चारण
खाद्य श्रृंखला से ही होता है और ऊर्जा का बहुत ही मामूली सा अनुपात अपरद पथमार्ग में को जाता है। उधर दूसरी ओर अपरद
खाद्य श्रृंखला में अधिकतर ऊर्जा स्थानातंरित हो जाती है और चारण रीति में बहुत ही कम ऊर्जा चलती है।

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