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ट्रोब्रियांड द्वीप वासियों में खेती बाड़ी क्या है | ट्रोब्रेंड द्वीप केनो निर्माण Trobriand Islands in hindi
Trobriand Islands in hindi meaning definition ट्रोब्रियांड द्वीप वासियों में खेती बाड़ी क्या है | ट्रोब्रेंड द्वीप केनो निर्माण ?
ट्रॉब्रिएंड द्वीपवासियों में खेती-बाड़ी का प्रचलन
ट्रॉब्रिएंड द्वीपवासियों का भरण-पोषण मुख्य रूप से खेतों की उपज से होता है। वे मछली पकड़ने का काम करते हैं और अपने यहां तैयार किए गए माल का व्यापार करते हैं। खेती-बाड़ी में जमीन खोदने के लिए वे नोकदार लकड़ी के डंडे और छोटी कुदाली जैसे औजारों का इस्तेमाल करते हैं। इनके द्वारा वे इतनी खेती कर लेते हैं कि उनकी सारी जनसंख्या खा-पी सके। वे अपनी जरूरत से ज्यादा उपज भी पैदा कर लेते हैं। विभिन्न प्रकार की मिट्टी, पौधों और उनकी अन्योन्यक्रिया के व्यापक ज्ञान के कारण उन्हें खेती में खूब सफलता मिली है। इसके साथ ही, वे बहुत मेहनती हैं और उन्हें खेती के लिए सही स्थान और समय की भी जानकारी है। वे अपने ज्ञान का इस्तेमाल मिट्टी और पौधों के चयन के लिए करते हैं। यह ज्ञान उन्होंने पर्यवक्षण और अनुभव के द्वारा प्राप्त किया है। उनमें जमीन को साफ करने, झाड़ियों को जलाने, पौधे लगाने, खर-पतवार निकालने और रतालू की बेलों को ऊपर व्यवस्थित करके रखने में खूब मेहनत करने और सही समय और स्थान पर अपने श्रम को लगाने की आवश्यक योग्यता है। मौसम और ऋतुओं, विभिन्न प्रकार के पौधों और कीटों (pests) के अच्छे आवश्यक ज्ञान के साथ ही उन्हें उस ज्ञान पर पूरा भरोसा भी होना चाहिए। तभी वे सफलतापूर्वक और समय के नियत अंतराल पर खेती-बाड़ी का काम कर सकते हैं। इन सारे प्रमाणों के आधार पर मलिनॉस्की ने यह दिखाने का प्रयास किया कि आदिवासियों का अपने आसपास के वातावरण के प्रति दृष्टिकोण तर्क पर आधारित होता हैं। यही कारण है कि वे अपने और आश्रितों के भरण-पोषण के लिए पर्याप्त तथा अतिरिक्त उपज भी पैदा कर सकते हैं।
इस प्रकार, अपनी बात का प्रमाण देने के बाद मलिनॉस्की ने खेती-बाड़ी के व्यावहारिक कार्यों और खेती-बाड़ी से जुड़े वार्षिक अनुष्ठानों के बीच घनिष्ठ संबंधों के बारे में चर्चा की। यहां उसने चेतावनी देते हुए कहा कि ये एक-दूसरे के साथ घनिष्ठ रूप से सम्बद्ध तो हो सकते हैं, लेकिन वे एक-दूसरे के पर्यायवाची नहीं है। वे दोनों एक रूप नहीं हैं, क्योंकि उनके परिणामों को आदिवासी स्पष्ट रूप से अलग करके देखते हैं। उनके लिए खेती-बाड़ी करने के लिए जादू-टोने के वार्षिक अनुष्ठानों को करना नितांत आवश्यक है और कई दशाब्दियों के यूरोपीय प्रभाव के बावजूद ट्रॉब्रिएंड द्वीपवासियों ने अपने परंपरागत आचरण को नहीं बदला है। इंग्लैंड के ग्रैनेडा टेलिविजन (जी.डी. 1990ः 8) ने इस बात की पुष्टि की है कि 1989 में रतालू (yam) की खेती से संबंधित बहुत-से अनुष्ठान आज भी लगभग वैसे ही हैं जैसे कि मलिनॉस्की ने 1915 में देखे थे। ट्रॉब्रिएंड द्वीपवासियों की यह धारणा है कि यदि वे इन जाद-टोने वाले अनुष्ठानों की उपेक्षा करेंगे तो उनकी खेती को अंगमारी (blight), सूखा, बाढ़, हानिकारक कीटों और जंगली जानवरों आदि की समस्याओं का सामना करना पड़ेगा।
मलिनॉस्की का मत है कि अपनी खेती की सुरक्षा के लिए जादू-टोने के अनुष्ठानों को करने का यह अभिप्राय नहीं है कि ट्रॉब्रिएंड द्वीपवासी खेती की सफलता का पूरा श्रेय जादू-टोने को देते हैं। उसके अनुसार “यदि आप किसी द्वीपवासी को ऐसा सुझा दे कि वह अपनी खेती को जादू-टोने के भरोसे छोड़ दे और खेती-बाड़ी में लापरवाही बरते तो वह आपकी सरलता पर मुस्कुरा देगा। इस बात को वह जानता है और आपको भी मालूम है कि कुछ ऐसी प्राकृतिक स्थितियां और कारण होते हैं, जिन्हें वह अपने पर्यवेक्षण से जानता है कि इन प्राकृतिक शक्तियों को वह मानसिक युक्तियों और शारीरिक प्रयास से नियंत्रित कर सकता है। इसमें संदेह नहीं कि उसका ज्ञान सीमित है लेकिन उसे जो भी ज्ञान है वह पक्का ज्ञान है और उसमें कोई रहस्यात्मकता नहीं है। अगर खेत की बाड़ टूट जाए, सूख जाए या बह जाए तो वह जादू-टोने के बजाय समस्या सुलझाने के लिए वे सारे जरूरी उपाय करेगा जो उसके पूर्व ज्ञान और तर्क पर आधारित होंगे।‘‘
निष्कर्षतः मलिनॉस्की ने लिखा है कि सारे द्वीपवासी जानते हैं कि कभी-कभी कड़ी मेहनत के बावजूद भी उनकी फसल खराब हो जाती है। कभी-कभी ठीक समय पर वर्षा नहीं होती या धूप नहीं निकलती या टिड्डी दल फसल को खा जाता है। इस प्रकार के हानिकारक प्रभावों को रोकने के लिए ट्रॉब्रिएंड द्वीपवासी जादू-टोने का आश्रय लेते हैं। दूसरे शब्दों में ऐसा कहा जा सकता है कि जहां एक ओर मौसम, मिट्टी, पौधा, कीटों, बुआई, खर-पतवार को निकालने और बाढ़ आदि ज्ञात स्थितियों को द्वीपवासी अपने वातावरण के तार्किक ज्ञान के आधार पर नियंत्रित करते हैं वहीं दूसरी ओर, वे अज्ञात या असमय समस्या पैदा हो जाने वाली स्थितियों पर नियंत्रण करने के लिए जादू-टोने का सहारा लेते हैं।
इसके अलावा, मलिनॉस्की ने यह भी बताया कि वे कामकाज के क्षेत्र को अनुष्ठान के क्षेत्र से अलग रखते हैं। खेती-बाड़ी से संबंधित हर जादू-टोने के अनुष्ठान के लिए एक अलग विशेष नाम है। उसे करने का समय और स्थान स्पष्ट रूप से निर्धारित होता है और वह खेती-बाड़ी के रोजमर्रा के कार्य की योजना से अलग होता है। जादू-टोने के अनुष्ठान के समय खेती-बाड़ी के काम काज पर रोक लगी रहती है। जादू-टोने के सभी अनुष्ठान लोगों की पूरी जानकारी में होते है और उनमें प्रायरू सभी लोग शामिल होते हैं।
हालांकि जो ओझा जादू-टोने के अनुष्ठान कराता है, वही कृषि संबंधी कार्य भी करता है, उसकी ये दोनों भूमिकाएं पूरी तरह अलग-अलग रहती हैं। वे परस्पर एक-दूसरे को व्याप्त नहीं करती और न ही उन्हें एक-दूसरे के क्षेत्र में दखल देने दिया जाता है। खेती-बाड़ी के क्रियाकलापों के अगुआ की भूमिका में वह खेती-बाड़ी का काम शुरू करने की तारीख निर्धारित करता है। वह सुस्त और लापरवाह किसान को डांटता है। लेकिन वह कभी भी इस भूमिका को ओझा की भूमिका में मिलाता नहीं है। खेती-बाड़ी की इस चर्चा के बाद अब हमने केनो-निर्माण से संबंधित उदाहरण को लिया है।
ट्रॉब्रिएंड द्वीपवासियों द्वारा केनो-निर्माण
केनो एक लंबी, हल्की और संकरी नाव होती है, जिसके दोनों सिरे नुकीले होते हैं। इसके दोनों पार्श्व (sides) अंदर की ओर मुड़े होते हैं। इसे सामान्य रूप से हस्तचालित पैडलों से चलाया जाता है। ट्रॉब्रिएंड द्वीपवासी केनो बनाते समय केनो-निर्माण के क्रियाकलापों को जादू-टोने से संबंधित क्रिया-व्यापारों से अलग रखते हैं। केनो के निर्माण में उसके निर्माताओं को उसकी लकड़ी के टिकाऊपन और द्रव गतिकी (hydro&dynamics) के सिद्धांत को पूरी जानकारी होनी चाहिए। इसके अलावा, उन्हें यह भी मालूम होता है कि पानी में संतुलन बनाए रखने के लिए पार्श्व वर्ध (outrigger) की विस्तृति (पाद) को चैड़ा करना चाहिए। वे यह भी जानते हैं कि ऐसा करने से तनाव के विरुद्ध कम प्रतिरोध होगा। केनो की चैड़ाई इतनी क्यों रखी है इसका कारण भी वे बता सकते हैं। यह वे केनो की लंबाई के अनुपात द्वारा बता सकते हैं। वे नौका निर्माण की पूरी रचना प्रक्रिया (यांत्रिकी) से अच्छी तरह से परिचित हैं। तूफान आने पर क्या करना चाहिए और उन्हें क्यों पार्श्व वर्ध (outrigger) को हवा के रुख की ओर रखना चाहिए- इसे जानते हैं। मलिनॉस्की (1948ः 30) ने हमें बताया है कि ट्रॉब्रिएंड द्वीपवासियों के पास नौचालन से संबंधित शब्दावली का प्रचुर भण्डार है और वह उतना ही जटिल है, जितना आजकल के नौचालक इस्तेमाल करते हैं। ऐसा होना आवश्यक भी है क्योंकि यदि ऐसा न हो तो वे अपनी हल्की कमजोर नौका में समुद्र की भयावह स्थितियों का सामना नहीं कर सकते।
रतालू की खेती की भांति ही केनो-निर्माण से संबंधित क्रियाकलापों से यह पता चलता है कि उन्हें सफलतापूर्वक नौचालन की भी वैसी ही अच्छी जानकारी है। परंतु यहां भी मलिनॉस्की ने इस बात की ओर ध्यान आकृष्ट किया कि ट्रॉब्रिएंड द्वीपवासियों को आकस्मिक झंझा और शक्तिशाली लहरों जैसी बेशुमार स्थितियों का सामना करना पड़ता है और ऐसी स्थिति में उन्हें जादू-टोने की जरूरत होती है। जादू-टोने के अनुष्ठानों का आयोजन केनो-निर्माण के समय तथा समुद्री अभियान के आरंभ में और उसके दौरान किया जाता है। ट्रॉब्रिएंड द्वीपवासियों की आधुनिक नाविकों से तुलना करते हुए मलिनॉस्की (1948ः 30) ने लिखा,
यदि आधुनिक नाविक, जिसे विज्ञान और तर्क की अच्छी समझ है और जिसके पास सभी तरह के सुरक्षा के उपाय हैं, यानी जो स्टील के स्टीमरों में नौचालन करता है, और तब भी अंधविश्वासों को मानता है, तो इसमें आश्चर्य की क्या बात है कि उसके वहशी (ेंअंहम) साथी उससे भी कहीं अधिक कठिन परिस्थितियों में अपनी सुरक्षा के लिए जादू-टोने का सहारा लेते हों।
इससे आपको स्पष्ट हो चुका होगा कि मलिनॉस्की ने (प) परिस्थितियों के प्रति तर्कपरक दृष्टिकोण, और (पप) प्रकृति की रहस्यमय और अदृश्य शक्तियों के नियंत्रण के लिए जादू-टोने के अनुष्ठान — दोनों को मान्यता प्रदान की है। उसने अपने निंबध ‘जादू-टोना, विज्ञान और धम‘ में मछली पकड़ने, युद्ध, स्वास्थ्य और मृत्यु आदि से संबंधित क्रियाकलापों के अन्य उदाहरण प्रस्तुत किए हैं। इनमें से प्रत्येक में उसने यह दिखाने का प्रयास किया कि आदिम लोग व्यवस्थित रूप से पर्यवेक्षण करते हैं और उनके पास तर्क पर आधारित ज्ञान होता है। उसने द्वीपवासियों की इस योग्यता का भी उल्लेख किया है कि वे रेत या मिट्टी में आरेख-युक्त नक्शे बना सकते है। इससे पता चलता है कि उनमें ज्ञान को सुव्यवस्थित रूप में प्रस्तुत करने की भी समझ है। उदाहरणार्थ उन्हें विभिन्न ऋतुओं की जानकारी होती है। वे तारों की गति और चांद्र पंचांग (lunar calendar) से परिचित हैं और इनके आधार पर समुद्री अभियान या युद्ध की योजना बनाते हैं। इसके अलावा, अपनी योजनाओं को समझाने के लिए आरेख भी बना सकते हैं। अगले अनुभाग में यह चर्चा होगी कि इन उदाहरणों से क्या निष्कर्ष निकलता है। परंतु उससे पहले आप बोध प्रश्न 2 हल कीजिए।
बोध प्रश्न 2
प) ट्रॉब्रिएंड द्वीपवासी दैनिक कामकाज के क्षेत्र को अनुष्ठान के क्षेत्र से अलग क्यों रखते है? अपना उत्तर चार पंक्तियों में लिखिए।
पप) क्या अपने वातावरण के प्रति तर्कसंगत दृष्टिकोण का मतलब यह है कि ट्रॉब्रिएंड द्वीपवासियों में जादू-टोने के प्रति विश्वास का अभाव है? इसके पक्ष अथवा विपक्ष में, तीन पंक्तियों में, अपना उत्तर लिखिए।
बोध प्रश्न 2 उत्तर
प) इसमें बताया गया है कि ट्रॉब्रिएंड द्वीपवासी अपने दैनिक कामकाज के लौकिक क्रियाकलापों को जादू-टोने के अनुष्ठानों के साथ नहीं मिलाते हैं। इनमें पहला क्षेत्र अपने आसपास के वातावरण के प्रति तर्कपरक दृष्टिकोण का प्रतिनिधित्व करता है, जबकि दूसरा क्षेत्र प्रकृति की रहस्यमय और अज्ञात घटनाओं के प्रति उनकी बेबसी को दर्शाता है।
पप) अपने आसपास के वातावरण के प्रति तर्कपरक दृष्टिकोण का मतलब यह नहीं है कि उनका जाद-टोने में विश्वास नहीं है। जादू-टोने का प्रकार्य जीवन की अज्ञात परिस्थितियों के लिए है, जबकि तर्कपरक चिंतन और लौकिक कार्य लोगों को अपने वातावरण को वास्तव में नियंत्रित करने में सहायक होते हैं।
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