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वाष्पीकरण और वाष्पोत्सर्जन में क्या अंतर है , transpiration and evaporation difference in hindi

transpiration and evaporation difference in hindi वाष्पीकरण और वाष्पोत्सर्जन में क्या अंतर है ?

वाष्पोत्सर्जन (Transpiration)

पादपों द्वारा मृदा से अवशोषित जल मुख्यतः पत्तियों एवं स्तम्भ द्वारा जल वाष्प के रूप में निकल जाता है। अवशोषित जल का कुछ भाग ( 5% से कम) ही पादपों द्वारा उनके विकास एवं उपापचयी क्रियाओं में प्रयुक्त होता है। पादपों के वायवीय भाग के जीवित ऊत्तकों द्वारा जल का जलवाष्प के रूप में ह्रास (loss) वाष्पोत्सर्जन (transpiration) कहलाता है। मेयर (Mayer, 1956) के अनुसार एक मक्के के पौधे से लगभग 54 गैलन जल उसके एक वर्धन काल (growing season) में वाष्पीकृत हो जाता है जोकि उसके भार का 100 गुना है। वाष्पोत्सर्जन वाष्पीकरण से निम्न प्रकार से भिन्न होता है:-

तालिका-1: वाष्पोत्सर्जन एवं वाष्पीकरण के मध्य अन्तर

वाष्पोत्सर्जन (Transpiration)

 

वाष्पीकरण (Evaporation)

 

1. यह एक जैविक क्रिया है जो सभी पादपों में सम्पन्न होती है।

 

यह एक भौतिक क्रिया है जो किसी भी मुक्त सतह पर हो सकती है।

 

2. . यहां जल क्यूटिकल युक्त अधिचर्म अथवा रन्ध्र से होता हुआ निकलता है।

 

कोई भी द्रव वाष्पीकृत हो सकता है इसमें अधिचर्म की आवश्यकता नहीं होती हैं।
3. यह जीवित कोशिकाओं में होता है ।

 

यह जीवित अथवा निर्जीव सतह पर हो सकता है।
4. इसमें जीवित कोशिकाओं में उत्पन्न बल कार्य करते हैं अधिक बलों की आवश्यकता नहीं होती है।
5. इसमें पत्तियों तथा तरूण स्तम्भ की सतह नम हो जाती है जो इन्हें सूर्य के प्रकाश से जलने से बचाती है।

 

इससे सतह शुष्क हो जाती है।

 

 

वाष्पोत्सर्जन की प्रक्रिया (Process of transpiration)

अंतर्कोशिकीय स्थलों (intercellular spaces) से लगी हुई कोशिकाओं की भित्ति आर्द्र होती है अतः इन स्थलों में उपस्थित वायु जल वाष्प से लगभग संतृप्त होती हैं। इन स्थानों पर जल विभव (water potential) बाहर के वायुमंडल की अपेक्षा अधिक होता है इसीलिए जलवाष्प अणु बाहरी वायुमंडल में विसरित हो जाते हैं। इस जलवाष्प हानि से अन्तराकोशिकी स्थलों में वायु थोड़ी शुष्क हो जाती है। कोशिका जीवद्रव्य, कोशिका भित्ति, अन्तराकोशिकी अवकाश तथा पत्ती को घेरे हुए बाहरी वायुमंडल में जल की विसरण प्रवणता उत्पन्न हो जाती है। कोशिका जीवद्रव्य में जलापूर्ति परासरण द्वारा उनसे संलग्न कोशिकाओं तथा अन्ततः जायलम तत्वों से बनी रहती है।

वाष्पोत्सर्जन अनुपात (Transpiration ratio)

वाष्पीकृत जल की कुल मात्रा तथा पादप के शुष्क भार के अनुपात को वाष्पोत्सर्जन अनुपात कहते हैं । वाष्पोत्सर्जन अनुपात जल ह्रास एवं उत्पन्न शुष्क भार दोनों पर निर्भर करता है।

वाष्पोत्सर्जन के प्रकार (Types of transpiration)

  1. उपचमी वाष्पोत्सर्जन (Cuticular transpiration)

सम्पूर्ण पौधे से वाष्पोत्सर्जन द्वारा कुल जल के ह्रास में से 5-10% उपचर्म से होता है। क्यूटिकल (उपचर्म) क्यूटिन (cutin) से बनी मोमी परत होती है जो पत्तियों की सतह एवं शाकीय स्तम्भों पर पायी जाती है। मोटी उपचर्म से वाष्पोत्सर्जन कम होता है।

  1. वातरन्ध्री वाष्पोत्सर्जन (Lenticular transpiration)

जल वाष्प हास (1% से कम) फलों एवं काष्ठीय स्तम्भ के वातरन्ध्रों से होता है। वातरन्ध्र बहुत ही छोटे छिद्र होते हैं। 3. रन्ध्री वाष्पोज्सर्जन (Stomatal transpiration)

दिन के समय पादपों से मुख्यतः जल वाष्प का ह्रास रन्ध्रों (stomata) द्वारा होता है। वे रन्ध्र पत्तियों की एक अथवा दोनों सतह पर पाये जाते हैं। रन्ध्रों से लगभग 90% वाष्पोत्सर्जन होता है।

पत्तियों की संरचना एवं रन्ध्री वाष्पोत्सर्जन (Leaf structure and stomatal transpiration)

पत्ती एक चौड़ी, फैली हुई बड़ी सतह है जो कि वायु एवं सूर्य के प्रकाश के सम्पर्क में होती है। पत्ती की एक अथवा दोनों सतहों पर रन्ध्र बिखरे रहते हैं। पत्तियों के स्पंजी मृदुतक एवं खंभ ऊतक कोशिकीय स्थलों के एवं बाहरी वायु से रन्ध द्वारा सम्पर्क में होते हैं। इससे तीव्र गैसीय विनिमय होता है (चित्र -19)

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