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Categories: BiologyBiology

transgenic plants in hindi meaning definition ट्रांसजीनी पादप क्या है ट्रांसजेनिक पौधों की परिभाषा

ट्रांसजीनी पादप क्या है ट्रांसजेनिक पौधों की परिभाषा transgenic plants in hindi meaning definition किसे कहते है अर्थ ?

ट्रांसजीनी पादप
(Transgenic Plants)
परिचय (Introduction)
अदि किसी जीन के स्वयं के जीनोम में किसी बाहरी आनुवंशिकी पदार्थ के सम्मिलित किया गया हो तो ऐसा जीव पारजीनीध्ट्रांसजीन (transgenic organism) कहलाता है। यदि बाहरी आनुवंशिकी पदार्थ को किसी पादप जाति विशेष के जीनोम के भीतर प्रविष्ट करवाया गया हो तो ऐसा पादप ट्रांसजीनी पदार्थ कहलायेगा। इसका अर्थ है स्वयं के अतिरिक्त दूसरों के जीनों युक्त पादप। इन्हें उत्पादित करने के लिए पुनर्योगज डीएनए तकनीक (recombinant DNA technology) काम में ली जाती है। यह स्थानान्तरण जिसमें नर युग्मक द्वारा मादक युग्मक में आनुवंशिक पदार्थ का स्थानान्तरण होता है उसके अतिरिक्त होता है।
यह डीएनए स्थानान्तरण अलैंगिक प्रक्रियाओं द्वारा समान जाति, विभिन्न पादप अथवा जन्तु पोकेरियोटिक जीव द्वारा भी हो सकता है। ऐसे परिजीनी पादप मानवोपयोगी होते हैं तथा अनुभवी वैज्ञानिकों द्वारा ट्रांसजीनी पादप तथा जन्तु दोनों ही अभियांत्रिकी इंजीनियरी द्वारा तैयार किये जाते हैं। इस कार्य को करने हेतु उच्च स्तर की जीन स्थानान्तरण तकनीक तैयार की गयी है जिसके द्वारा लाभदायक बाह्य जीन (foreign gene) का पादप जाति अथवा ऊतकों में स्थानान्तरण किया जा सके। वर्तमान में एकबीजपत्री तथा द्विबीजपत्री दोनों प्रकार के पादपों में जीन स्थानान्तरण द्वारा ट्रांसजीनी पादप तैयार किये जा रहे हैं। लगभग 15 वर्षों के अथक प्रयास फलस्वरूप आज अनेक फसलों के ट्रांसजीनी पादप विकसित किये जा चुके हैं।
ट्रांसजीनी पादपों को आनुवंशिकी रूपान्तरित पादप (genetically modified plants) भी कहा जाता है जिसे संक्षेप में जी. एम पादप (GM plants) कहते हैं।
ट्रांसजीनी पादपों के संवर्धन से पूर्व पादप प्रजनन (plant breeding) हेतु सदियों से पारम्परिक विधियों का इस्तेमाल किया जाता रहा है। इसमें सबसे ज्यादा उत्साहजनक बदलाव एग्रोबैक्टीरियम ट्यूमीफेसिन्स नामक मृदा बैक्टीरिया की खोज के पश्चात हुआ। यह विशिट प्रकार का मृदा में पाया जाने वाला जीवाणु है जिसकी विशेषता पादप को संक्रमित करके अपने डीएनए का खण्ड द्विबीजपत्री पादप कोशिकाओं में स्थानान्तरण कर देना है। ऐसा करने के पश्चात् स्वस्थ पादप में श्क्राउन गाली (crown galls) उत्पन्न होने लगती है। इसे अन्तर्गत अबुर्द (gall) बनने लगती है।
इस क्राउन गाल को उत्पन्न करने वाले जीवाणु की खोज के पश्चात् यह माना जाने लगा की जीन का एक जीव से दूसरे जीव में स्थानान्तरण संभव है तथा इसके लिए सबसे उपयुक्त माध्यम जीवाणु “एग्रोबैक्टीरियम ट्यूमीफेसेन्स‘‘ है जो अपना जीन सरलता से दूसरे पादप में स्थानान्तरित कर देता है। वैज्ञानिकों ने इसी बैक्टीरिया के अबुर्द (हंसस) उत्पन्न कर सकने वाले जीन को निकाल का इसके स्थान पर लाभदायक जीन को जीवाणु में प्रविष्ट करवा कर देखा, तो पाया कि जिस तरह अबुर्द (gall) उत्पन्न करने वाला जीन दूसरे पादप में प्रविष्ट हो जाता था उसी तरह ‘फायदेमंद जीन” भी इसी जीवाणु द्वारा दूसरे पादप में प्रविष्ट हो गया। उपर्युक्त प्रयोग के बाद एग्रोबैक्टीरियम ट्यूमीफेसेन्स जीवाणु महत्व होकर इंजीनियरिंग के क्षेत्र में मील का पत्थर साबित हुआ।
ट्रांसजीनी पादपों का इतिहास (History of Transgenic Plants)
पुनर्योगज जीवाणु सर्वप्रथम 1973 में तैयार किया गया जिसमें ई.कोलाई में सालमोनेला के जीनों की अभिव्यक्ति (expressed) की गयी। हर्बट बोयर (Herbert Boyer) ऐसी प्रथम कम्पनी थी जिसने पुनर्योगज डीएनए तकनीक का प्रयोग किया तत्पश्चात् अमेरिका की जीनटेक (Genetech) कम्पनी द्वारा. 1978 में मानव इन्सुलिन ई.कोलाई जीवाणु से तैयार की गयी जो डायबिटिक रोग में निदान हेत रोगी को दी जाती है। तत्पश्चात् इसे हमूलिन (humulin) का नाम दिया गया जो बाजार में  US फूड तथा ड्रग कम्पनी एली लिलि (Eli Lilly) ने 1982 में उतारी थी।
बैल्जियम की एक कम्पनी ष्पादप आनुवंशिकी तंत्रष् (Plant genetic systems) ने 1987 में सर्वप्रथम (निकोटिआना का ट्रांसजीनी पादप उत्पन्न किया। इसके लिए इन्होंने बेसिलस थूरिनजीनेसिस (Bacillne thuringiensis) नामक जीवाणु का जीन निकाल कर निकोटिआना में प्रविष्ट करवाया जिससे इसके अन्दर कीट अवरोधी श्एन्डोटोक्सिन उत्पन्न होने लगे। मन्डूका सक्टा लार्वा (Mandua sexta larvae) की पत्तियों के सम्पर्क में आने के तीन दिन के अन्दर ही मरने लगे। यह सम्पूर्ण रिसर्च वेइक व इनके साथियों ने (Vaecket-al.) 1987 में की थी।
मोसान्टो कम्पनी द्वारा दूसरे ही महीने में 1987 में टमाटर पर सफल प्रयोग किये गये।
प्रथम आनुवंशिकी अभियांत्रिकी से तैयार बाजार में फ्लेवर सेव्र (Flavr savr) नाम से रूपान्तरित टमाटर 1993 में बिके। इनमें फल भित्ति को अधिक पकने व पिलपिले बनने से रोकने के जीन उपस्थित हैं। इसके पश्चात् 1996 से जन्तुओं के क्लोन एक के बाद एक जीवों में सफलतापूर्वक क्लोन द्वारा निर्मित किये गये। जिनमें चूहे, बन्दर, भेड़ प्रमुख हैं। प्रथम भेड़ ष्डॉलीष् (Dolly) स्काटलैण्ड में तैयार की गयी।
मानव जीनोम प्रोजेक्ट के अन्तर्गत मनुष्य के जीनोम का मानचित्र तैयार किया गया। यह प्रोजेक्ट 2003 में पूरा हुआ। सन् 2002 में डिजाइनर बेबी का जन्म इसकी बड़ी बहन की जन्मजात आनुवंशिक बीमारी को दूर करने हेतु हुआ। फ्रांस की क्लोनड सोसाइटी के द्वारा श्ईवश् (Eve) नामक मानव क्लोन तैयार करने की बात कही। तत्पश्चात् 2005 में इस पर रोक लगाने की मांग की जाने लगी।
स्टेम कोशिकाओं (stem cells) के महत्व को जानने के पश्चात् इसके क्लोन हेतु दक्षिण कोरिया के वैज्ञानिकों थेरेप्यूटिक क्लोनिंग (therepeutic cloning) का प्रयोग किया। आज अनेक बिमारियों से लड़ने के लिए विभिन्न प्रकार के खाद्य टीके, प्रतिजन प्रोटीन, इन्टरफरोन नामक दवा इत्यादि का । उत्पादन ट्रांसजीन पादपों के माध्यम से सफलता पूर्वक हो रहा है।
खाद्य की कमी व बढ़ती जनसंख्या की आपूर्ति के लिए इस क्षेत्र में भी ट्रांसजीन पादपों का प्रयोग हो रहा है। पोषक तत्व भरपूर फसलें जैसे ट्रांसजीन टमाटर, सुनरहा चावल, गाजर, आलू इत्यादि उत्पादित हो रहे हैं।

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