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Categories: Biology

transgenic animals in hindi , ट्रांसजेनिक जंतु किस विधि द्वारा प्राप्त होते हैं , परिभाषा , प्रथम प्राणी की खोज का नाम

पढो transgenic animals in hindi , ट्रांसजेनिक जंतु किस विधि द्वारा प्राप्त होते हैं , परिभाषा , प्रथम प्राणी की खोज का नाम ?

 ट्रान्सजेनिक प्राणी एवं जैव प्रौद्योगिकी (Transgenic animals and Biotechnology)

1980 से 1990 में मध्य जैव प्रोद्योगिकी द्वारा अच्छे लक्षणों वाले प्राणियों को जीन स्थानान्तरण द्वारा प्राप्त किये जाने में सफलता मिली है। इससे पूर्व प्राणियों के नस्ल सुधार के कार्यक्रमों हेतु लगभग समान जाति के उच्च लक्षणों वाले नर व मादा का चयन कर इनमें समागम कराया जाता था। इस क्रिया हेतु अनेक पीढ़ियों में यह समागम कराया जाता था। इस विधि में समय भी अधिक लगता था व सफलता मिलने में बाधाएं भी अनेक आती थीं। जैवप्रोद्योगिकी द्वारा किन्हीं भी भिन्न जातियों के प्राणियों के मध्य किसी विशिष्ट जीन को दूसरे प्राणी की जनन कोशिकाओं में देह के बाहर (in vitro) प्रवेशित कराया जा सकता है। बाह्य जीन्स का पशुओं एवं अन्य जन्तुओं में स्थानान्तरण ट्रान्सफेक्शन (transfection) कहलाता है। यह क्रिया कोशिकीय स्तर पर कराई जाती है तो ट्रान्सफेक्टेड कोशिकाएं प्राप्त होती हैं। इनका उपयोग रसायनों या औषधियों के उत्पादन हेतु. किया जाता है। जीन्स की आधारभूत प्रकृति को समझने हेतु भी ये अनुसंधान किये जाते हैं। यह क्रिया ट्रान्सजेनेसिस (transgenesis) कहलाती है। इस विधि से प्राप्त जीव ट्रान्सजेनिक पादप या ट्रान्सजेनिक जन्तु कहलाते हैं।

इस आधुनिक तकनीक के अन्तर्गत पुनर्योगज डी.एन.ए. का उपयोग किया जाता है एवं स्थानान्तरित किये जाने वाला जीन या डी. एन.ए खण्ड उच्च पादपों या प्राणियों में स्थानान्तरित किया जा सकता है। इस प्रकार कृषि में उपयोग आने वाले प्राणियों, पादपों आदि की नस्ल इच्छानुसार लक्षणों वाली प्राप्त की जा सकती है। चिकित्सा विज्ञान हेतु औषधि उत्पादन करने वाले प्राणियों या जटिल जैव क्रियाओं को सम्पन्न करने वाले प्राणियों की लम्बी कतार खड़ी की जा सकती है।

गोरडन व रडल (Gordon and Ruddle) ने 1981 में ट्रान्सजेनिक शब्द का प्रयोग निषेचित भ्रूण में एक बाह्य जीन को निवेशित करा कर ट्रान्सजेनिक चूहे को प्राप्त कर किया। ट्रान्सजेनिक शब्द से हमारा आशय पूर्व की अपेक्षा रूपान्तरित जन्तु से है। इस प्रकार यह सम्भावनाएं बन गयीं कि हम अपनी कल्पना के अनुसार मॉडल के रूप में ट्रान्सजेनिक पादप या प्राणी प्राप्त कर सकते हैं जो विशिष्ट लाक्षणिक (target) जीन युक्त हो एवं इनकी अभिव्यक्ति (expression) ठीक वैसी हो जहाँ से इन्हें प्राप्त किया गया है।

जीन स्थानान्तरण विधियाँ जिनमें पुनर्योगज डी एन ए तकनीक का उपयोग किया जाता है, पादपों व प्राणियों में भिन्न काम में लायी जाती है। प्राणियों में डी.एन.ए. को भ्रूणीय कोशिका के प्राकेन्द्रक या निषेचित अण्ड में या भ्रूण स्तम्भ (embryo stem) ES कोशिका में प्रवेशित किया जाता है। जबकि पादपों में प्रोटोप्लास्ट या विभाजनशील भ्रूणीय ऊत्तक को चुना जाता है। प्राणियों में पाने निषेचन (in vitro fertilization) (IVF) एवं भ्रूण स्थानान्तरण (ET) सम्भव है, पादपों में नहीं। पादप में भ्रूण संवर्धन की क्रिया सम्भव है। एक कोशिका को संवर्धित कर पूर्ण पादप प्राप्त किया जा सकता है, इनमें पूर्णशक्तता (totipotency) पायी जाती है अतः पुनरुद्भवन द्वारा भी यह सम्भव है पर प्राणियों में ऐसा नहीं होता। अतः पादपों व प्राणियों में इन क्रियाओं किया जाता है।

प्राणियों में ट्रान्सजेनिक तकनीकें (Transgenic methods in animals)

ट्रान्सजेनिक प्राणी प्राप्त करने हेतु दो प्रमुख विधियाँ काम में लायी जाती हैं-

  1. भ्रूणों के प्राकेन्द्रक में डी एन ए के माइक्रो इन्जेक्शन द्वारा (By micro injection of DNA in pronuclei of embryo) : इस विधि में भ्रूणीय कोशिकाएं, निषेचित अण्ड या भ्रूण लिया जाता है। निषेचित अण्ड का सम्पूर्ण केन्द्रक ही बदल दिया जाता है अथवा पूर्ण गुणसूत्र या इनके खण्ड अथवा डी एन ए खण्ड बदल दिये जाते हैं।
  2. (i) पूर्ण केन्द्रक को बदलने हेतु अनिषेचित अण्ड कोशिका को साइटोकेलेसीन –

B (Cytochalasin-B) से उपचारित करते हैं।

(ii) इस प्रकार उपचारित अण्डों का अपकेन्द्रण (centrifugation) किया जाता है जिससे इनके केन्द्रक परखनली के पेंदे में बैठ जाते हैं। अर्थात् इन कोशिकाओं को अकेन्द्रित (enucleated) अवस्था में प्राप्त कर लिया जाता है। इस प्रकार दाता भ्रूण से केरियोप्लास्ट (karyoplast) को प्राप्त कर लिया जाता है।

(iii).केरियोप्लास्ट को पॉली इथाईलीन ग्लाइकॉल (poly ethylene glycol) PEG की उपस्थिति में पूर्ण केन्द्रक का रोपण किया जाता है। इस तकनीक का उपयोग 1977 में डॉली नामक भेड़ क्लोनिंग द्वारा प्राप्त करने हेतु किया गया है। इस तकनीक में कायिक केन्द्रक का केरियोप्लास्ट में रोपण किया गया था।

(iv) इन अण्डों को अब मादाओं के गर्भाश्य में प्रतिरोपित कर दिया जाता है एवं गर्भ समाप्त पर ट्रांसजेनिक प्राणी प्राप्त होता है।

  1. सम्पूर्ण गुणसूत्रों में बदलने हेतु मेटाफेज अवस्था में स्थित कोशिकाओं का अल्परासरी विलयन में रख कर लयन कराया जाता है एवं इन कोशिकाओं का अपकेन्द्रण करके अथवा फ्लो फोटोमेट्री (flow photometry) विधि से गुणसूत्रों का पृथक कर लिया जाता है एकल गुणसूत्र या इनके खण्डों को पृथकतः छाँट लिया जाता है या अण्ड कोशिकाओं के साथ ऊष्मायन (incubate) किया जाता है ताकि अण्ड के केन्द्रक के भीतर इनका निवेशन कराया जा सके।
  2. माइक्रोइंजेक्शन तकनीक के अन्तर्गत डी एन ए खण्डों को माइक्रोइंजेक्शन द्वारा अर्थात ★ माइक्रोपिपेट (micropipette) द्वारा निषेचित अण्डे या भूण में अन्तक्षेपित कर दिया जाता है। इस प्रकार जीन्स को अन्तक्षेपित किया जाने से पूर्व अण्डे की बाह्य झिल्ली को प्रोटीन लयनकारी एन्जाइम्स द्वारा घोल दिया जाता है। जीन की स्पष्ट अभिव्यक्ति हेतु इसे सीधे ही केन्द्रक में अन्तःक्षेपित किया जाता है। इस तकनीक द्वारा चूहे की कोशिकाओं के जीनोम में हर्पीज विषाणु का जीन थायमिडीनकाइनेज (thymidinekinase) सफलतापूर्वक अन्तक्षेपित किया गया है। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि अन्तक्षेपित जीन यथास्थान स्थापित न होकर अनावश्यक स्थल पर जुड़ जाता है जिससे प्रमुख कार्यकारी जीन अक्रिय अवस्था में आ जाता है व गुणसूत्री विरूपण (chromosomal aberrations) उत्पन्न हो जाते हैं।

माइक्रोइन्जेक्शन तकनीक (Microinjection technique): इस तकनीक द्वारा बाह्य (foreign) डी.एन.ए. का सजीव कोशिका (किसी कोशिका, अण्ड कोशिका, भ्रूण) में काँच के सूक्ष्म पिपेट (micropipette) द्वारा अन्तःक्षेपित किया जाता है। यह क्रिया उच्च आवर्धन शक्ति वाले सूक्ष्मदर्शी के नीचे रख कर की जाती है। जिस कोशिका में यह क्रिया की जाती है उसे एक पात्र में रखते हैं। एक पकड़ने वाले पिपेट (holding pipette) को इस कोशिका को थामा जाता है। इसके लिये अण्ड को पहले अचल (immobile) बनाया जाता है। यह क्रिया हल्के चूषण (suction) उत्पन्न कर की जाती है जो चूषण पिपेट द्वारा की जाती है। माइक्रोपिपेट के शीर्ष द्वारा जो कि लगभग 0.5mna व्यास का होता है के अन्तः प्रवेशित डी. एन.ए. अण्ड कोशिका के केन्द्रकीय डी एन ए से समाकलित हो जाता है। यह क्रिया माइक्रोइंजेक्शन कहलाती है। यह अपना प्रभाव उसी परिस्थिति में अभिव्यक्त करता है जब यह उपयुक्त प्रोन्नत अनुक्रम (suitable promoter sequence) से जुड़ जाता है। रूबिन एवं स्प्रेडलिंग (Rubin and Spradling) ने 1982 में ड्रोसोफिला (Drosophila) में जेन्थिन ही हाइड्रोजेनेस का जीन भ्रूण में प्रवेशित कराने में सफलता प्राप्त की। मूसे में भी यह क्रिया सफलतापूर्वक की जा चुकी है। ट्रान्सजेनिक मूसे प्राप्त करने हेतु

निम्नलिखित प्रक्रिया अपनाई जाती है-

  1. मादा मूसे को गर्भित घोड़ी के सीरम का इन्जेक्शन लगाया जाता है। इसके 2 दिन बाद ह्यूमन कोरियोनिक गोनेडोट्रोपिन (human chorionic gonadotropin) HCG का इंजेक्शन देते हैं। इस प्रकार उपचारित करने में मादा मूसे द्वारा लगभग 35 अण्डे दिये जाते हैं यह क्रिया सुपर ओव्यूलेशन (super ovulation) कहलाती है।
  2. इस मादा का नर से समागम कराया जाता है ताकि निषेचन हो जाये। मादा मूसे का विच्छेदन कर अण्डवाहिनी से निषेचित अण्डे प्राप्त कर लिये जाते हैं।
  3. निषेचित अण्डे को एक पात्र में रखकर डी. एन. ए. या ट्रान्सजीन को माइक्रोइंजेक्शन द्वारा प्रवेशित कराया जाता है।

इस युग्मनज (zygote) को अन्य मूसे फोस्टर मादा के गर्भाशय में रोपित कर दिया जाता है। इस प्रकार ट्रान्सजेनिक संतति प्राप्त होती है।

1982 में वाशिंगटन विश्वविद्यालय के आर. डी. पामिटर (R.D. Palmitter) एवं पेनीस्लाविया विश्वविद्यालय के आर. एल. ब्रिन्टर (R.L. Brinter) ने खरहे से वृद्धि हार्मोन जीन (B-ग्लोबिन जीन). पृथक की इसके साथ मानव वृद्धि हार्मोन जीन (B-ग्लोबिन) एवं थाइमिडीन काइनेज जीन को संयोजित कर दिया एवं इसे मूसे के I- जीन जो धात्विक बन्धनकारी जीन है के साथ जोड़ दिया। इस अंश को pBR322 प्लाज्मिड के साथ जोड़कर पुनर्योजित कर दिया।

परिपक्व मादा मूसे से विच्छेदन कर परिपक्व अण्डे प्राप्त कर लिये। उनका पात्रे निषेचन शुक्राणुओं से कराया गया। निषेचित अण्डों में उपरोक्त पुनर्योजित प्लाज्मिड को माइक्रोइंजेक्शन तकनीक से शुक्राणु के केन्द्रक व मादा के केन्द्रक से पूर्व ही प्रवेशित करा दिया। युग्मनज (zygote) में प्लाज्मिड में उपस्थित डी. एन.ए. यादृच्छिक तौर पर संयोजित हो जाता है।

युग्मनजों को पोषक मादा मूसे के गर्भाशय में रोपित किया गया। गर्भकाल पूरा होने के उपरान्त ट्रान्सजेनिक मूसे प्राप्त हुए। इस प्रकार इनमें बाह्य जीन (foreign gene) प्रवेशित कराया गया था, इन मूसों का आमाप (size) सामान्य मूसों में बड़ा था।

एक अन्य प्रयोग में पामिटर एवं इनके साथियों ने 1982 में मूसे के भ्रूण में बाह्य ही एन ए खण्ड जो चूहे के वृद्धि हार्मोन के जीन युक्त था को धात्विक प्रोन्नतकारी I जीन के साथ जोड़कर माइक्रोइंजेक्शन द्वारा निवेशित करा दिया। इसमें रेखीय (linear) प्रकार का डी एन ए प्रयुक्त किया गया था (प्लाज्मिड का नहीं)। ये डी.एन.ए. अंश अधिक सक्रिय रूप से मूसे के गुणसूत्रो से समाकलित हो गये थे। इन युग्मनजों को मादा में रोपित किया गया। इस प्रकार 21 मूसे प्राप्त हुए जिनमें से 7 में युग्मित जीन था। 6 मूसे अन्य की अपेक्षा दो गुना अधिक बड़े थे इनका भार भी अधिक था।

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