JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

हिंदी माध्यम नोट्स

Categories: BiologyBiology

स्थानान्तरित डीएनए /टी-डीएनए क्या होता है (Transferred DNA in hindi) स्थानांतरित डीएनए किसे कहते है

स्थानांतरित डीएनए किसे कहते है स्थानान्तरित डीएनए /टी-डीएनए क्या होता है (Transferred DNA in hindi) ?

स्थानान्तरित डीएनए/टी-डीएनए (Transferred DNA)
एग्रोबैक्टीरियम ट्यूमिफेशेन्स नामक जीवाणु जब पादपों में संक्रमण द्वारा प्रवेश करता है तब इसमें मौजूद प्लाज्मिड ज्प (ट्यूमर प्रेरक प्लाज्मिड) के एक खण्ड की कॉपी द्विबीजपत्री पादप कोशिका के जीनोम के साथ समाकलित हो जाती है। प्लाज्मिड के डीएनए खण्ड के जो अनुक्रम द्विबीजपत्री पादप (पोषी) के जीनोम के साथ जुड़ता है उसे स्थानान्तरित डीएनए (transferred DNA) कहते हैं। टी-डीएनए के जुड़ने के साथ ही संक्रमण प्रारम्भ हो जाता है जिसके बैक्टीरिया के गुणसूत्रीय जीन गुणसूत्रीय उग्रता -बीअ (chromosomal virulence) उत्पन्न करते हैं तथा इसके साथ ही ट्यूमर उत्पन्न होना प्रारम्भ होकर वृद्धि करने लगता है।
पादपों में जीवाणु एग्रोबैक्टीरियम द्वारा उत्पन्न संक्रमण
जीवाणु प्लाज्मिड पादप रोग
एग्रोबैक्टीरियम ट्यूमीफेशेन्स
(Agrobacterium tumefasciens) Ti द्विबीजपत्री ट्यूमर (गांठ)
ए. राइजोजीन (A- rhçogene) Ri द्विबीजपत्री रोमिल जड़ें
द्विबीजपत्री पादपों में ए.ट्यूमिफेशेन्स के गुणसूत्र में उपस्थित जीन बीअ।ए ठए क् तथा म्ए सेल (cel) जीन, एक्सो स्थल (Exo site) तथा एक्सो c के कारण होता है जिनमें बीअ D तथा E महत्वपूर्ण हैं।
एग्रोबैक्टीरियम दो विभेदों द्वारा उत्पादित विशिष्ट प्रोटीन
ए. ट्यूमीफेशेन्स (A tumefascens) ए. राइजोजीन (A.k~ rhçogene)
1. ऑक्टोपीन (Octopine)
2. नोपेलीन (Nopaline) 1. एग्रोपीन (Agropine)
2. मैनोपीन (Manopine)

पादपों में खास तौर से मृदा में उपस्थित जीवाणु एग्रोबैक्टीरियम ट्यूमीफेशेन्स पादपों में प्राकृतिक रूप से आनुवंशिकी अभियांत्रिकी द्वारा पादप में परिवर्तन करके क्राउनगाल नामक रोग उत्पन्न करता है। मृदा में उपस्थित जीवाणु, पादप में लगे घाव स्वरूप निर्मित फीनोल के सिग्नल प्राप्त होते ही अन्दर प्रवेश करते हैं। इसके पश्चात् अन्ततः जीवाणु अपनी कोशिका में उपस्थित ज्प प्लाज्मिड का ज्-क्छ। पादप कोशिका के केन्द्रक में स्थानान्तरण कर देता है। पादप कोशिका के डीएनए के साथ T-DNA समाकलित हो जाता है तथा पादप जीनोम शामिल हो जाता है। इसके साथ ही T-DNA पर उपस्थित जीन प्रदर्शित (expressed) हो जाते हैं। इस ज्-डीएनए में पादप हार्मोन उत्पन्न करने वाले जीन उपरि रहते हैं जिसके फलस्वरूप यह पादप कोशिकाओं को बड़े आकार में वृद्धि करने के लिए प्रेरित क है। इसके साथ ही पादप कोशिका ओपीन (opine) का निर्माण करने लगती है जिसके जीन T.डी पर स्थित रहते हैं। यह ओपीन निर्माण जीवाणु ए. ट्यूमीफेशेन्स का ही गुण है पादप का नहीं। यह को तथा नाइट्रोजन का स्रोत होता है जो जीवाणु अपनी वृद्धि के लिए उपयोग करता है।
एग्रोबैक्टीरियम -Ti प्लाज्मिड तंत्र (Agrobacterium-Tiplasmid system)
बैक्टीरिया एग्रोबैक्टीरियम ट्यूमीफेशेन्स के प्लाज्मिड ज्-डीएनए में कुछ परिवर्तन करके इसे तौर पर द्विबीजपत्री पादपों में बाह्य वांछित जीन को स्थानान्तरण करने के लिए अनुकूल बनाया जिस प्रकार T-डीएनए प्राकृतिक रूप से द्विबीजपत्री पादपों में प्रवेश करके पादप कोशिका को प्राक रूप से T-डीएनए का स्थानान्तरण करके इसे ओपीन निर्माण करने को प्रेरित करके क्राउन गॉलर उत्पन्न करता है ठीस उसी प्रकार प्लाज्मिड में उपस्थित रोगकारक T-डीएनए काट कर इसके सश पर यदि वांछित जीन जोड़ दिया जाये तो यह भी पादप कोशिका में स्थानान्तरित हो जायेगा परन्त j रोग उत्पन्न नहीं करेगा वरन् वांछित जीन के समाकलन से वांछित जीन के गुणों को प्रदर्शित करेगा इसके लिए T-डीएनए क्षेत्र से पादप हार्मोन तथा ओपीन उपापचय (opine metabolism) जीन को हटाकर रूपान्तरित T-डीएनए अनुक्रम को प्लाज्मिड के साथ क्लोन करके ई.कोलाई में स्थिर किया जाता है।
द्विबीजपत्री पादपों में वाहक के रूप में इस ए.ट्यूमीफेशेन्स का प्रयोग किया जाता है।
Ti – प्लाज्मिड निर्मित वाहक तंत्र (Ti-plasmid derived vector system)
प्राकृतिक Ti प्लाज्मिड में निम्नलिखत परिवर्तन करके इसे जीन स्थानान्तरण योग्य बनाया जाता है। प्राकृतिक Ti प्लाज्मिड में निम्नलिखित तथ्य इसको वाहक की तरह प्रयोग करने हेतु आवश्यक है
1. पादप की रूपान्तरित कोशिकायें जो कल्चर में वृद्धि करती हैं वे पुनः विकसित पादपों में पुनर्जनन (regenerate) नहीं कर सकतीं। इसके लिए हार्मोन ऑक्सिन व साइटोकाइनिन उत्पन्न करने वाले जीन को Ti प्लाज्मिड निर्मित वाहक तंत्र से हटाना जरूरी है।
2. ओपीन निर्माण के लिए जिम्मेदार जीन ट्रांसजीन पादप के लिए उपयोगी नहीं है अतः इन्हें भी हटा देते हैं।
3. ज्प प्लाज्मिड बड़े आकार के 200-800 kb के होते हैं जिन्हें कतर कर छोटा किया जाना आवश्यक होता है।
4. Ti प्लाज्मिड ई.कोलाई के पुनरावृत (replicate) नहीं होता अतः Ti प्लाज्मिड-आधारित वाहको में पुनरावृत्ति उद्गम स्थल (ORI) जिसे ई.कोलाई में उपयोग किया जा सके, जोड़ा जाता है।
इन दोनों में ही जीन अनुपस्थित है। ई.कोलाई में क्लोनिंग के सभी चरण पूर्ण कर लिये जाते हैं। यह र्का वाहक के ए.ट्यूमीफेशेस में प्रवेश करने से पहले किया जाता है। ए. ट्यूमीफेशेन्स ग्राइनी कोशिका है जिसमें ज्-डीएनए तो हटा दिया गया है परन्तु इसमें अपत जीन उपस्थित हैं जो स्थानान्तरण के लिए जिम्मेदार होता है। T-डीएनए का एक बाजू रहित (dis armed) अथवा कैसा भी भाग स्थानान्तरण नहीं कर सकता। परन्तु यह अपत जीन द्विवाहक क्लोनिंग वाहक तंत्र में उपस्थित T-डीएनए भाग को आसानी से स्थानान्तरित कर देता है। विरूलेन्ट (vir) जीन जो प्रोटीन कोडित (encode) करते हैं वे विरूपित (defective Ti Plasmid) में उपस्थित रहते है। जो सहायक प्लाज्मिड का कार्य करते हैं तथा यह टी-डीएनए को द्विवाहक से पादप कोशिका में स्थानान्तरित करता है। यह स्थानान्तरण दायें बोर्डर से प्रारम्भ होता है। वास्तव में यह डीएनए का स्थानान्तरण हुआ है या नहीं यह चिन्हक तय करता है जो बायें बोर्डर से पहले स्थित रहता है।
Ti प्लाज्मिड निर्मित वाहक तंत्र की संरचना
(Structure of Ti-plasmid derived vector system)
Ti प्लाज्मिड से पूर्णतः विकसित वाहक तंत्र में निम्न उपयोगी खण्ड उपस्थित रहते हैं
1. डीएनए पुनरावृत्ति हेतु उद्गम स्थल वतप यह प्लाज्मिड को ई.कोलाई में पुनरावृत्ति (replication) में मदद करता है।
2. Ti डीएनए के दायें बार्डर अनुक्रम।
3. पॉलि लिंकर द्वारा उत्पन्न बहुक्लोनिंग स्थल । इन स्थलों पर क्लोन्ड जीन को T-डीएनए बोर्डर अनुक्रमों के मध्य से प्रवेश करवाते हैं।
4. चिन्हक जीनध्मार्कर जो रूपान्तरित कोशिका की पहचान में मदद करते हैं। इनमें अधिकतर एन्टीबायोटिक प्रतिरोधी जैसे केनामाइसिन फॉस्फोट्रांसफरेज जीन का उपयोग किया जाता है।
इन Ti प्लाज्मिड आधारित क्लोनिंग वाहक में रोगकारक भाग अपत जीन अनुपस्थित होता है। अतः यह अपने आप जीवाणु से द्विबीजपत्री पादप में स्थानान्तरित नहीं होता है। इसके लिए द्विवाहक तंत्र (binary vector system) का प्रयोग करते है। एक तरफ ए़. ट्यूमीफेशन्स तथा दूसरी तरफ ई. कोलाई कोशिका होती है।
(2) जीवाणु भोजी वाहक (Bacteriophage vectors)
ऐसे विषाणुओं को जो जीवाणुओं को संक्रमित करके इनकी कोशिकाओं को भी संक्रमित करके लयन ;सलेपे) द्वारा नष्ट करते हैं, जीवाणुभोजी कहते हैं।
जीवाणुभोजी जीवाणुओं की कोशिकाओं के गुणसूत्रों के साथ समाकलित होकर प्रतिकृतिक होते हैं। यह एक जीवाणु के जीन को दूसरे जीवाणु के गुणसूत्र तक पहुंचा कर वाहक की तरह कार्य करते हैं। नाटक के रूप में प्रयोग किये जाने वाले प्रमुख फॉज रूप में 𝛌 . (लेम्डा) तथा M13 है ।
जीवाणभोजी वाहक में प्लाज्मिड वाहकों की तुलना में अपेक्षाकृत बड़े आकार के डीएनए खण्डों का लोनन हो सकता है। इनका साइज 24 kb तक हो सकता है।
बैक्टीरियोफाज 𝛌 (लेम्डा) वाहक (Bacteriophage 𝛌 – vectors)
यह वाहक डीएनए के अधिक बड़े आकर के खण्डों को क्लोन करने में सक्षम है। लाइब्रेरी के लिए यह अधिक उपयोगी है क्योंकि प्लाज्मिड आधारित वाहक जैसे pBR 332 मात्र 10 kb लम्बे डीएनए ही पेक कर पाते हैं। ई. कोलाई के वायरस बेक्टीरियोफाज से लेम्दा 2. वाहक को अभियांत्रिक प्रक्रिया द्वारा तैयार किया गया है।
बैक्टीरियोफॉज जब जीवाणु की कोशिका को संक्रमित करता है तब निम्न दो परिस्थितियां हो सकती है-
(1) यह लायटिक चक (Ivtic cycle) द्वारा 20 मिनट में जीवाणु काशिका का लायसिस (सलेपे)द्वारा नष्ट कर देता है तथा अनगि
नत फॉज निर्मित करता है।
(2) दूसरी स्थिति में यह जीवाणु के डीएनए के साथ संलग्न हो जाता है तथा समाकलित प्रोफाज कहलाता है। ऐसी स्थिति में कई
विभाजन तक यह बाह्य डीएनए (benign guest DNA) के रूप में विचरित करता है। इसे लायजोजेनी (lysogeny) कहते
हैं।
किन्हीं पोषक माध्यम में अथवा वातावरणीय स्ट्रेस (stress) की स्थिति में समाकलित बैक्टीरियोफाज 𝛌 डीएनए जीवाणु के डीएनए से अलग होकर लायटिक चक्र द्वारा जीवाणु कोशिका को लायसिस नष्ट करके अनगिनत फॉज निर्मित कर देता है।
लेम्डा (𝛌) डीएनए लगभग 50 ाइ लम्बा होता है। लगभग 20 kb समाकलन-कर्तन (integrat excision I/E) के लिए आवश्यक होता है। अतः यह 20 kb तक डीएनए के स्थान पर अन्य क्लो डीएनए को प्रतिस्थापित किया जा सकता है।
बैक्टीरियोफॉज लेम्डा में डीएनए गोलाकार व दो सूत्री होता है। इसमें नलिकाकार पूंछ व 50kb डीएनए युक्त प्रोटीन सिर (head) होता है। प्रोटीन सिर के अन्दर रैखिक (linear) डीएनए होता है जो 12 क्षारक 5′ सिरे पर एक सूत्री होता है व इसके अन्तिम सिरे ससंजक सिरे -cos (cohesive endan) कहलाते हैं। इनके अतिरिक्त सिरे एक दूसरे के पूरक होते हैं यह जैसे ही जीवाणु कोशिका में प्रवेश करते हैं यह cos सिरे आपस में पूरक होने के कारण जुड़ कर गोलाकार दो सूत्री डीएनए में परिवर्तित हो जाते हैं।
लेम्डा के हेड में 50kb से कम लम्बा डीएनए यदि होगा तो यह जीवाणु कोशिका को संक्रमित करने में असमर्थ होता है। अधिक लम्बा होने से यह सिर (head) में पैक नहीं हो सकता।

Sbistudy

Recent Posts

सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke rachnakar kaun hai in hindi , सती रासो के लेखक कौन है

सती रासो के लेखक कौन है सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke…

22 hours ago

मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी रचना है , marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the

marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी…

23 hours ago

राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए sources of rajasthan history in hindi

sources of rajasthan history in hindi राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए…

3 days ago

गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है ? gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi

gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है…

3 days ago

Weston Standard Cell in hindi वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन

वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन Weston Standard Cell in…

3 months ago

polity notes pdf in hindi for upsc prelims and mains exam , SSC , RAS political science hindi medium handwritten

get all types and chapters polity notes pdf in hindi for upsc , SSC ,…

3 months ago
All Rights ReservedView Non-AMP Version
X

Headline

You can control the ways in which we improve and personalize your experience. Please choose whether you wish to allow the following:

Privacy Settings
JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now