JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

हिंदी माध्यम नोट्स

Categories: BiologyBiology

पूर्णशक्तता क्या होता है ? totipotency in hindi meaning कोशिकीय पूर्णशक्तता Cellular Totipotency in hindi

totipotency in hindi meaning कोशिकीय पूर्णशक्तता Cellular Totipotency in hindi पूर्णशक्तता क्या होता है ?

कोशिकीय पूर्णशक्तता
(Cellular Totipotency)
परिचय (Introduction)
पूर्णशक्तता (totipotency) शब्द की उत्पत्ति टोटीपोटेन्ट = द्विलिंगी से हुई है। प्रकृति में काशित जनन के दौरान प्रकृति में किसी भी पादप के छोटे भाग से नवीन पादप का निर्माण हो जाता है जो दर्शाता है कि पादप की प्रत्येक कोशिका में वह सभी जीन्स मौजूद होते हैं जो पूर्ण पादप के विकास के लिए उत्तरदायी होते हैं।
पूर्णशक्तता की संकल्पना सर्वप्रथम श्लीडन व स्वॉन ने 1838 में प्रतिपादित की थी जिस पर 1990 में हेबरलैंड ने कार्य करते हुए यह बताया कि प्रत्येक वियुक्त कोशिका को अगर सही पोषण व पर्यावरण दिया जाये तो वह पूर्ण पादप बनाने की क्षमता रखती है। इस अवस्था को उन्होंने टाइट्टोबिट (Titauitebt) कहा जिसे आज हम टोटीपोटेन्सी (totipotency) के नाम से जानते हैं। परिभाषा (Definition)
पूर्णशक्तता की अभिव्यक्तिरू सजीवों की प्रत्येक कोशिका में उसी जीव के सभी लक्षणों को उत्पन्न करने की क्षमता पूर्णशक्तता कहलाती है।
पादप की कोई भी निजर्मित अवस्था में प्राप्त कोशिका को जब संवर्धन माध्यम (culture medium) पर उपयुक्त पोष.पदार्थ प्रदान करते हैं तब पादप बनने से पूर्व सामान्यतः कैलस निर्मित होता है इसकी भी प्रत्येक कोशिका पूर्णशक्तता प्रदर्शित करती है व सामान्य पादप में पुनर्जनित हो सकती है। पोष पदार्थ में कायनेटिन की अधिकता (ऑक्सिन कम) होने पर स्तंभ (ेजमउ) उत्पन्न हो जाता है यह स्तंभ विकास (canlogenesis) कहलाता है जबकि पोष पदार्थ में कायनेटिन की मात्रा कम होने पर (ऑक्सिन अधिक) जड़े उत्पन्न होती हैं वह यह मूल विकास (rhçogenesis) कहलाता है।
पूर्णशक्तता का एक महत्वपूर्ण उदाहरण स्टीवर्ड ने प्रस्तुत किया था। इन्होंने डॉकस केरोटा के द्वितीयक फ्लोएम की कोशिकाओं को कर्तोतक के रूप में इस्तेमाल किया। इन्हें निर्जर्मित अवस्था में नारियल दूध पर संवर्धित किया जिससे यह ऊतक सक्रिय रूप से वृद्धि करने लगा। कुछ समय पश्चात् इस कैलस से कुछ कोशिकाओं का छोटा पुंज अलग करके जब नये पोष पदार्थ पर संवर्धित किया गया तब यह कायिक भ्रूण में परिवर्धित हो गया।
कुछ वैज्ञानिकों ने यह भी रिपोर्ट किया कि कुछ कोशिकायें विभेदित होकर जायलम तथा फ्लोएम निर्मित करने की क्षमता रखती हैं। यह प्रक्रिया ऊतकजनन (histogenesis) कहलाती है। सभी पादप जातियों के कर्तोतक अलग-अलग प्रकार का संवर्धन माध्यम में व्यवहार प्रदर्शित करते हैं। कई बार कोशिकाओं का व्यवहार सवंर्धन माध्यम में उपस्थित पोषक तत्वों पर तथा इस माध्यम के सक्ष्म पर्यावरण पर भी आधारित होता है। कई बार जैसी संवर्धन माध्यम व पर्यावरण की अवस्था होती है उस पर निर्भर करके कैलस कोशिकायें मेरीस्टीमॉइड बना लेती हैं। इनमें या तो ऊतक विभेदन हो जाता है अथवा यह आद्य प्राइर्मोडिया बनाती हैं जो तने व जड़ को उत्पन्न करती है। इस प्रक्रिया के अलावा कभी-कभी कैलस की पूर्णशक्त कोशिकायें भ्रूण परिवर्धन की विभिन्न अवस्थायें जैसे गोलाभ, हृदयाकार आदि निर्मित करके भू्रण बनाती है अतः उपरोक्त उदाहरण से यह ज्ञात होता है कि विभिन्न पादप जातियों की पूर्णशक्त कोशिकायें संवर्धन माध्यम में किस प्रकार स्वयं को अभिव्यक्त करेंगी।
कोशिका की पूर्णशक्तता
प्रायोगिक तौर पर यह देखा गया है कि कैलस में परिवर्धित हो रही सभी कोशिकायें पूर्णशक्त नहीं होती हैं। हालांकि सैद्धान्तिक रूप से हर सभी कोशिका पूर्णशक्त होनी चाहिए अतः यह विचारणीय प्रश्न है कि क्या कारण हैं सभी कोशिकायें पूर्णशक्त नहीं होती वैज्ञानिकों का मानना है कि पूर्णशक्तता की अभिव्यक्ति सीमित होती है जो हर पादप जाति के लिए अलग-अलग होती है तथा यह कुछ हद तक निम्न कारणों पर निर्भर देखी गयी है।
1. कैलस ऊतक की कोशिकाओं में गुणसूत्रों की संख्या में अन्तर बहुगुणसूत्रता या सगुणसत्रता होने से मिश्रित गुणसूत्र युक्त
कैलस बनता हैं एवं यह पाया गया है कि जो भी कैलस की कोशिकायें द्विगुणित होती हैं केवल वही पूर्णशक्तता दर्शाने में सक्षम होती हैं । गुणसूत्रों की विभिन्नता कर्तोतक की कायिक कोशिकाओं में पहले से उपस्थित हो सकती हैं अथवा संवर्धन माध्यम में वृद्धि करते समय उत्पन्न हो सकती हैं।
2. कोशिकाओं में उपस्थित अन्तर्जात हॉर्मोन स्तर एवं बाहर से संवर्धन माध्यम में मिश्रित हार्मोन स्तर भी माध्यम में
कोशिकाओं की पूर्णशक्तता को प्रभावित करता है।
3. कैलस का संगठन भी कोशिकाओं की पूर्णशक्तता पर असर डालता है जैसे किसी विषमांगी (heterogenous) कैलस की
सभी कोशिकायें पूर्णशक्तता प्रदर्शित नहीं करेगी इसके विपरी समांगी (homogenous) कैलस की सभी कोशिकायें पूर्णशक्तता प्रदर्शित करने में सक्षम हो।
पूर्णशक्तता का उपयोग
1. पूर्णशक्त कोशिकाओं का सबसे महत्वपूर्ण उपयोग उनके द्वारा पादप का पुनर्निर्माण है।
2. पूर्णशक्त कोशिकाओं के उपयोग से दुलर्भ, आर्थिक महत्व व औषधिय महत्व के पादपों का पुनर्निर्माण किया जा सकता है।
3. संवर्धन माध्यम पर पूर्णशक्त कोशिकाओं के परिवर्धन से अगुणित पादपों का निर्माण, द्विगुणित संमागी पादप उत्पादन, कायिक संकरण तथा उत्परिवर्तन (mutation) द्वारा आनुवंशिक रूपसे रूपान्तरित पादपों का कम समय में अधिक संख्या में उत्पादन किया जा सकता है।
4. पूर्णशक्त कोशिकाओं में लुप्तप्रायः जातियों का कैलस निर्मित करके उसके छोटे जर्मप्लाज्म करके उन्हें तरल नाइट्रोजन पर संरक्षित करा जाता है।
विभेदन (ffDierentiation)
पादपों में कोशिकाओं के विभेदन की अवस्था एक कोशिकीय युग्मनज के कोशिका विभाजन से आरम्भ होती है। कर्तोतक जिसे संवर्धन माध्यम पर रखा है वह चूंकि पादप का ही कोई भाग होता है अतः उसकी कोशिकायें विभेदन अवस्था में होती है। संवर्धन माध्यम पर कर्तोतक अविभेदित कोशिकाओं का समूह या कैलस निर्मित कर लेती हैं। यह निर्विभेदन (dedffierentiation) अवस्था कहलाती है। इस कैलस को जब पुनर्जनन हेतु पोषक तत्वों से युक्त उपयुक्त पोष पदार्थ पर संवर्धन के लिए रखा जाता है तब यह कोशिकायें पादपक या पादप अंगों का निर्माण करने लगती हैं। पादप की सभी कोशिकायें यह कार्य करने में सक्षम होती हैं व वह पूर्णशक्त (totipotent) कहलाती हैं। पुनर्विभेदन प्रक्रिया के दौरान कुछ कोशिकायें नव संवर्धन माध्यम में कोशिका जीर्णता या कोशिकाशीलता (cytosensescence or cytogeniescence) दर्शाती है। यह कोशिका विभेदन से सम्बन्धित होता है तथा यह जायलम, फ्लोएम निर्मित करते हैं।
कोशिका विभेदन
पादप ऊतक संवर्धन के दौरान कैलस अथवा निलंबित संवर्धन में मुक्त कोशिकाओं के परिवर्धन के समय कुछ निर्विभेदित कोशिकायें जीर्णता दिखाती हैं जो संवाहक ऊतक से सम्बन्धित होता है व यह प्रक्रिया कोशिका विभेदन (cydffierentiation) कहलाती है।
कोशिका विभेदन के समय प्रत्येक कोशिका अलग प्रकार से व्यवहार कर सकती है। कोशिका पुंज अथवा निलबिंत संवर्धन में युक्त कोशिकाओं में से कुछ कोशिकायें कोशिका विभेदन में सक्षम होती है पर आरम्भ में पहचाना नहीं जा सकता है।
कोशिका विभेदन या तो पादप जाति के अनुरूप स्वतः हो सकता है अथवा पोष पदार्थ में विशिष्ट तत्व व हार्मोन मिलाने के कारण हो सकता है। कोशिका विभेदन के आरम्भ में ऊतकीय तथा जैवरासायनिक परिवर्तन होते हैं जो निम्न हो सकते हैं-
(प) कैलस ऊतक में कुछ छोटी गोल कोशिकायें होती हैं जिनका जीवद्रव्य सघन होता है ।
(पप) उपसंवर्धन करने पर कोशिका दीर्धीकृत होती हैं व इनकी भित्ति मोटी होने लगती है।
(पपप) उपसंवर्धन पुनः करने पर संवाहक ऊतक निर्मित होने लग जाते हैं अतः निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि समसूत्री विभाजन के समाप्त होने पर सघन कोशिकाओं के जीवद्रव्य से हरितलवक, म्ण्त्ए माइटकॉण्ड्यिा, राइबोसोम तथा अन्य कोशिकांगों का विघटन होने लगता है अन्ततः सम्पूर्ण जीवद्रव्य नष्ट हो जाता है व कोशिका मृत हो जाती है। कोशिकांगों का झिल्ली विघटन कोशिका जीर्णता उत्पन्न हो जाती है तथा एसिड फॉस्फेट विकर (eæyme) के कारण लिग्निन संश्लेषित हो जाता है जो जायलम कोशिकाओं पर द्वितीयक भित्ति के रूप में निक्षेपित हो जाता है।
कोशिका विभेदन प्रभावित करने वाले कारक
कोशिका विभेदन को कई कारक प्रभावित करते हैं यह सभी कोशिका के गुणात्मक तथा मात्रात्मक विभेदन को प्रभावित करने में सक्षम होते हैं। कुछ मुख्य भौतिक व रासायनिक कारक निम्न हैं-
1. भौतिक कारक
अभी तक भौतिक कारकों के बारे में बहुत अधिक ज्ञात नहीं है। कुछ विशिष्ट पादपों पर अध्ययन के दौरान निम्न तथ्य ज्ञात हुए हैं-
(ं) प्रकाश संवाहक ऊतक जायलमजनन की वृद्धि को अवरूद्ध करता है हालांकि डॉकस केरोटा इसका अपवाद है उसमें
प्रकाश में भी जायलमजनन होता है।
(इ) लैक्ट्यू का में जल के अभाव में जायलम जनन होता है।
(ब) तापक्रम अगर 35°C हो तो देखा गया है कि जायलम जनन बेहतर होता है।
2. रासायनिक कारक
पादप हार्मोन जैसे ऑक्सिन, सायटोकाइनिन व जिबरेलिन तथा शर्करा आदि कोशिका विभेदन को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं।
1. जिबरेलिन : यह हार्मोन कोशिका विभेदन पर कोई प्रभाव नहीं डाल सकता जब तक कि इसके साथ पोष पदार्थ में
ऑक्सिन नहीं मिश्रित किया जाता है। ऑक्सिन की उपस्थिति में यह कोशिका विभेदन व दीर्धीकरण में सहायता करती
है।
2. ऑक्सिन : ऑक्सिन की कम सान्द्रता जायलम विभेदन में वृद्धि करती है।
3. सायटोकाइनिन रू यह हार्मोन कोशिका विभेदन में सहायक होता है। ऑक्सिन व साइटोकाइनिन मिलकर जायलमजनन को उद्दीपित करते हैं।
4. शर्करा : कोशिका विभेदन में शर्करा को उचित अनुपात का बहुत महत्व है। 1.5 से 2.5% की सान्द्रता पर जायलमजनन तथा 4% सान्द्रता से ऊपर की सान्द्रता पर फ्लोएम तत्व निर्मित होते हैं। सुक्रोज, माल्टोज तथा घुलनशील मंड की 2% सान्द्रता पर जायलम फ्लोएम बना सकते हैं।

Sbistudy

Recent Posts

सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke rachnakar kaun hai in hindi , सती रासो के लेखक कौन है

सती रासो के लेखक कौन है सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke…

14 hours ago

मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी रचना है , marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the

marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी…

14 hours ago

राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए sources of rajasthan history in hindi

sources of rajasthan history in hindi राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए…

2 days ago

गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है ? gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi

gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है…

2 days ago

Weston Standard Cell in hindi वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन

वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन Weston Standard Cell in…

3 months ago

polity notes pdf in hindi for upsc prelims and mains exam , SSC , RAS political science hindi medium handwritten

get all types and chapters polity notes pdf in hindi for upsc , SSC ,…

3 months ago
All Rights ReservedView Non-AMP Version
X

Headline

You can control the ways in which we improve and personalize your experience. Please choose whether you wish to allow the following:

Privacy Settings
JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now