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तापीय विद्युत संयंत्र , जल विद्युत संयंत्र , ताप विधुत की प्रकिया , टरबाइन , अम्लीय वर्षा thermal power in hindi

अम्लीय वर्षा
जीवाश्मी ईंधन को जलाने से मुक्त होने वाले कार्बन, नाइट्रोजन तथा सल्फर के ऑक्साइड वर्षा के जल के साथ अभिक्रिया कर अम्ल बनाते है तथा यह अम्ल वर्षा के जल के साथ हमारे तक पहुचते है जिसे अम्लीय वर्षा कहते है।
अम्लीय वर्षा के कारण होने वाली हानिया
1. अम्लीय वर्षा जल तथा मृदा के संसाधनों को प्रभावित करती है।
2. अम्लीय वर्षा पेड़ , पोधो को नुकसान पहुचता है जिसके कारन पेड़ पोधो की पतियाँ सुख जाती है।
जीवाश्मी ईंधन से उत्पन्न प्रदूषको के कम करने के उपाय
1.जीवाश्मी ईंधन के जलाने के कारण उत्पन्न होने वाले प्रदूषण को कुछ सीमाओं तक दहन प्रक्रम की दक्षता में वृद्धि करके कम किया जा सकता है।
2.दहन के फलस्वरूप निकलने वाली हानिकारक गैसों तथा राखों के वातावरण में पलायन को कम करने वाली विविध तकनीको द्वारा घटाया जा सकता है।
3. हमे जीवाश्म ईंधन का उपयोग कम से कम करना
जीवाश्मी ईंधन का गैस स्टोवों (चूल्हों) तथा वाहनों में प्रत्यक्ष रूप से उपयोग होने के अतिरिक्त विद्युत उत्पन्न करने के लिए भी प्रमुख ईंधन के रूप में उपयोग होता है। विधुत उत्पन्न करने के लिए विधुत संयंत्र में एक उपकरण टरबाइन लगी होती है जो की यांत्रिक उर्जा को विधुत उर्जा में परिवर्तित करने के लिए जिम्मेदार होती है।
टरबाइन
जीवाश्मी ईंधन के दहन से प्राप्त यांत्रिक उर्जा का उपयोग टरबाइन को धुमाने में किया जाता है। टरबाइन के रोटर ब्लेड को धुमाने के लिए उससे एक गति देनी होती है जो इससे गतिशील प्रदाथ जैसे की भाप आदि से प्राप्त होती है जिसे यह जनित्र के रोटर को उर्जा प्रदान करता है। टरबाइन यांत्रिक उर्जा को विधुत उर्जा में जनित्र के शाफ़्ट को धूमा कर करता है।
(thermal power in hindi) ताप विधुत की प्रकिया
ताप विधुत की प्रकिया की प्रकिया में उर्जा के अलग अलग स्रोतों का उपयोग किया जाता है जो की स्रोतों की उपलब्धता पर निर्भर करता है। यह स्रोत कई प्रकार के होते है बांध बनाकर पानी को उचाई से टरबाइन पर घिराना , पवन के दवारा, सूर्य की उर्जा के दवारा आदि
इस प्रकिया में उर्जा के अलग अलग स्रोतों का उपयोग करके इसे यांत्रिक उर्जा में परिवर्तित किया जाता है इस यांत्रिक उर्जा का उपयोग टरबाइन की ब्लेड को धुमने में किया जाता है जो की विधुत जनित्र की शाफ़्ट से जुडी हुई होती है जब टरबाइन की ब्लेड को धुमाया जाता है तो उसके साथ रोटर(rotor) भी धूमता है जो की यांत्रिक उर्जा को विधुत उर्जा में परिवर्तित कर देता है
तापीय विद्युत संयंत्र
1.विद्युत संयंत्र में प्रतिदिन विशाल मात्र में जीवाश्मी ईंधन का दहन करके इससे उत्पन्न होने वाली ऊष्मा से जल को उबालकर भाप बनाई जाती है जो टरबाइनों को घुमाकर विद्युत उत्पन्न करती है।
2. जिन संयंत्र में ईंधन के दहन द्वारा ऊष्मीय ऊर्जा उत्पन्न की जाती है जिसे विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित किया है तापीय विद्युत संयंत्र कहलाता है
3. बहुत से तापीय विद्युत संयंत्र कोयले तथा पेट्रोलियम के पास लगाए जाते है ताकि समान दूरियों तक कोयले तथा पेट्रोलियम के परिवहन की तुलना में विद्युत संचरण अधिक दक्ष होता है।
जल विद्युत संयंत्र
उर्जा के बहुत स्रोत है जिनमे से ऊर्जा का एक अन्य पारंपरिक स्रोत बहते जल की गतिज ऊर्जा अथवा किसी ऊँचाई पर स्थित जल की स्थितिज ऊर्जा है। जल विद्युत संयंत्र में बहते जल की गतिज ऊर्जा या गिरते जल की स्थितिज ऊर्जा को विद्युत में रूपांतरित किया जाता है। चूँकि इस प्रकर के जल-प्रपातों की संख्या बहुत कम है जिनका उपयोग स्थितिज ऊर्जा के स्रोत के रूप में किया जा सके अतः कृत्रिम जल विद्युत संयंत्रें का निर्माण किया जाता है जिसमे जल के बहाव को रोककर एक बड़े जलाश्य में एकत्र किया जाता है जिसे बाँध कहा जाता है
भारत में ऊर्जा की माँग का चौथाई भाग की पूर्ति जल विद्युत संयंत्र द्वारा होती है। जल से विद्युत उत्पन्न करने के लिए नदियों के बहाव को रोककर बड़े जलाशयोंमें जल एकत्र करने के लिए ऊँचे-ऊँचे बाँध बनाए जाते हैं। इन जलाशयों में जल संचित होता रहता है जिसके फलस्वरूप इन जलाशय में भरे जल का तल ऊँचा हो जाता है। बाँध के ऊपरी भाग से पाइपों द्वारा जल, बाँध के आधार के पास स्थापित टरबाइन के ब्लेडों पर मुक्त रूप से गिराया जाता है इसके फलस्वरूप टरबाइन के ब्लेड घूर्णन गति करते हैं और जनित्र द्वारा विद्युत उत्पादन होता है।
हर बार जब भी वर्षा होती है यह जलाशय पुनः जल से भर जाते हैं इसीलिए जल विद्युत ऊर्जा एक नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत है जिसे गैरपरम्परागत स्रोत भी कहते है अतः जीवाश्मी ईंधन की भाँति जो किसी न किसी दिन अवश्य समाप्त हो जाएँगे की तुलना में हम जल विद्युत स्रोतो का उपयोग बहुत ज्यदा कर सकते है।
बडे़-बड़े बाँधों के निर्माण के साथ कुछ समस्याएँ
1.बाँधों का केवल कुछ सीमित क्षेत्र में ही निर्माण किया जा सकता है तथा इनके लिए पर्वतीय क्षेत्र अच्छे माने जाते हैं। बाँधों के निर्माण से बहुत-सी कृषि योग्य भूमि तथा मानव आवास डूबने के कारण नष्ट हो जाते हैं।
2.बाँध के जल में डूबने के कारण बड़े-बड़े पारिस्थितिक तंत्र नष्ट हो जाते हैं। जो पेड़-पौधे, वनस्पति आदि जल में डूब जाते हैं वे अवायवीय परिस्थितियों में सड़ने लगते हैं और विघटित होकर विशाल मात्रा में मेथैन गैस उत्पन्न करते हैं जो कि एक ग्रीन हाउस गैस है।
3.बाँधों के निर्माण से विस्थापित लोगों के संतोषजनक पुनर्वास व क्षतिपूर्ति की समस्या भी उत्पन्न हो जाती है।
गंगा नदी पर टिहरी बाँध के निर्माण तथा नर्मदा नदी पर सरदार सरोवर बाँध के निर्माण पर कुछ इस तरह की समस्या उत्पन्न होती है।
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