प्रकाश के प्रकीर्णन के सन्दर्भ में रैले का नियम कार्य करता है जिसमें उन्होंने बताया था की प्रकिर्णित प्रकाश की तीव्रता का मान तरंग दैर्ध्य के चार घात के व्युत्क्रमानुपाती होती है।
अर्थात जिस रंग की तरंग दैर्ध्य कम होती है उस रंग का प्रकीर्णन बहुत अधिक होता है तथा जिस रंग की तरंग दैर्ध्य अधिक होती है उस रंग का प्रकीर्णन बहुत कम होता है।
हम जानते है की सूर्य का प्रकाश सात रंगों से मिलकर बना होता है , उन सातो रंगों में से लाल रंग की तरंग दैर्ध्य सबसे अधिक होती है अत: लाल रंग का प्रकीर्णन सबसे कम होगा।
चूँकि सूर्य पृथ्वी से बहुत अधिक दूरी पर स्थित है अत: पृथ्वी तक पहुंचने के लिए सूर्य के प्रकाश को बहुत अधिक दूरी तय करना पड़ता है।
इस लम्बी दूरी के दरम्यान सब रंग का प्रकीर्णन पहले ही हो जाता है लेकिन लाल रंग का प्रकीर्णन सबसे कम होता है अत: यह पृथ्वी तक पहुच पाता है।
दुसरे शब्दों में कहे तो रैले के नियम के अनुसार लाल रंग की तरंग दैर्ध्य सबसे अधिक होती है अत: इसका प्रकीर्णन सबसे कम होता है और यह सूर्य से चलकर पृथ्वी तक पहुच पाता है अर्थात सिर्फ लाल रंग ही हमारे तक पहुच पाता है बाकी अन्य सभी रंग रास्ते में ही प्रकिर्णित हो जाते है।
जिससे हमें उगता हुआ सूरज और छिपता हुआ सूरज लाल दिखाई देता है।
लाल संकेत (Red signals)
लाल रंग के संकेत उपयोग करने का कारण प्रकाश के प्रकीर्णन से स्पष्ट किया जा सकता है।
श्वेत बादल (white clouds)
क्या आप जानते है की बादलों का रंग सफेद क्यों दिखाई देता है ?
हम जानते है की सूर्य का प्रकाश सात रंगों से मिलकर बना होता है , जब यह प्रकाश किसी बादल से होकर गुजरता है तो इसमें पानी की बंदें होती है जिनकी तरंग दैर्ध्य प्रकाश की तरंग दैर्ध्य से अधिक होती है।
जिससे सभी रंगों का प्रकीर्णन होता है , कुछ रंगों का प्रकीर्णन अधिक होता है और कुछ रंगों का प्रकीर्णन कम होता है और यह प्रकीर्णन अव्यवस्थित रूप से होता है जिससे हमारी आँखे किसी एक रंग को प्रधान नहीं मानती है और हमारी आँखों को बादल सफेद (स्वेत) दिखाई देते है।