सरल आवर्त गति का समीकरण क्या है , दोलक का वेग , स्थितिज गतिज ऊर्जा The equation of SHM in hindi

The equation of SHM in hindi सरल आवर्त गति का समीकरण क्या है , दोलक का वेग , स्थितिज गतिज ऊर्जा ?

सरल आवर्त गति (Simple Harmonic Motion)

जब कोई कण परवलयिक विभव कूप में दोलन गति करता है तो कण की दोलन गति को सरल आवर्त गति कहते हैं और सरल आवर्त गति करने वाले कण या निकाय को सरल आवर्ती दोलक या दोलित्र (harmonic oscillator) कहते हैं। सरल आवर्ती दोलक की स्थितिज ऊर्जा को निम्न समीकरण से व्यक्त करते हैं

U= 1/2 kx2 ……………………..(1)

परन्तु   F = – δU /δx

दोलक पर कार्यरत बल F =- kx ………………(2)

यहाँ नियतांक k बल नियतांक (force constant) कहलाता है। समीकरण (2) के ऋण चिन्ह से यह प्रकट होता है कि जब कण सन्तुलन बिन्दु से दूर हटता है तो दोलक पर लगे बल की दिशा सन्तुलन बिन्दु की ओर होती है। इस बल को प्रत्यानयन बल (restoring force) भी कहते हैं। अतः सरल आवर्त गति साम्यावस्था के इधर-उधर किसी कण की वह दोलनी गति है जिसमें प्रत्यानयन बल विस्थापन के अनुक्रमानुपाती है और दिशा सदैव साम्यावस्था की ओर होती है।

 

 (i) सरल आवर्त गति का समीकरण (The equation of SHM)

माना m द्रव्यमान का एक कण अपने सन्तुलन बिन्दु के अधर-उधर दोलन करता है। किसी समय । पर कण का विस्थापन x तथा त्वरण d2x/d t2 है तो कण पर कार्यरत बल

F = m d2x/d t2

F = – kx

M d2x/dt2 = – kx

दोलन का त्वरण  d2 x/dt2 = – k/m x  ………………………………..(3)

यदि    ωo2 = k/m    मान लें तो

d2x/dt2 + ωo2 x = 0

समीकरण (4) सरल आवर्त गति का अवकल समीकरण कहलाता है। इस समीकरण को करके किसी क्षण t पर कण का विस्थापन x ज्ञात कर सकते हैं।

(ii) दोलक का वेग (Velocity of an oscillator)

समीकरण (4) को  dx/dt से गुणा करने पर

(dx/dt) (d2x/dt2) = – ωo2 x dx/dt

माना दोलक का वेग  v = dx/dt

V dv/dt = – ω02 x dx/dt

Vdv = – ωo2 x dx

इस समीकरण का समाकल करने पर

Vdv = – ωo2 xdx

V2/2 = – ωo2 x2/2 + c

यहाँ C समाकल नियतांक है। हम जानते हैं कि दोलक के महत्तम विस्थापन या आयाम (amplitude) की स्थिति पर दोलक का वेग शून्य होता है। अर्थात् यदि दोलन का आयाम a हो तो x = a पर  dx/dt  = v = 0 होता है। ये मान उपरोक्त समीकरणों में रखने पर

0 = – ωo2 a2/2 = + C

C = ωo2  a2/2

अब C का मान रखने पर

V2/2 = – ωo2  x2/2 + ωo2  a2/2

V = ωo a2 – x2

(iii) दोलक का विस्थापन (Displacement of an oscillator)

समीकरण (5) से

V = dx/dt = ωo a2 – x2

या   dx/a2 – x2  = ωodt

समाकलन करन पर

Sin-1 x/a = ωot + φ

X = a sin (ωot + φ) …………………….(6)

समीकरण (6) दोलक के विस्थापन x के समीकरण को व्यक्त करता है। इससें φ दोलक की प्रारम्भिक कला (initial phase) है। और (ωot + φ) समय t पर दोलक की परिणामी कला है।

(iv) दोलक का आवर्त काल (Time period of an oscillator) किसी क्षण । पर दोलक का विस्थापन है,

x = a sin (ωot + φ)

sine फलन में कोण 2π या इसके पूर्ण गुणजों (integral multiples) से परिवर्तित करने पर sine के मान में कोई परिवर्तन नहीं होता है, अर्थात्

sin θ = sin (2π + θ) = sin (4π + 0)= ……

x = a sin (ωot + 2π + φ)

x = a sin {ωo (t + 2π/ ωo) + φ}

माना  t + 2π/ ωo  = t

x = a sin (ωot + φ)

चँकि t ‘समय पर भी दोलक का विस्थापन पुनः x के बराबर आता है अर्थात् गति की इस अवस्था की पुनरावृत्ति होती है। अतः समयान्तराल (t’ – t) आवर्तकाल को परिभाषित करता है।

.:. दोलक का आवर्तकाल

T = (t’- t)

T = t + 2π/ωo – t

T = 2π/ωo

दोलक का कोणीय वेग = 2π/T = ωo

अब क्योंकि   ω= k/m

दोलक का आवर्त काल  T = 2πm/k   ……………………………..(7)

(v)  दोलक की स्थितिज ऊर्जा (potential energy of an oscillator)

दोलक को अपनी माध्य स्थिति से x दूरी तक प्रत्यानयन बल के विरुद्ध विस्थापित करने में किया कार्य दोलक की स्थितिज ऊर्जा में वृद्धि के बराबर होता है |

चूँकि दोलक को dx विस्थापन करने में बल F द्वारा किया गया कार्य –

dW = Fdx

अत: दोलक को साम्यावस्था से x दूरी तक विस्थापन में बल F के विरुद्ध किया गया कुल कार्य –

W = 0x (-F) dx = U – U0

यदि साम्यावस्था में स्थितिज ऊर्जा को शून्य माना जाए अर्थात साम्यावस्था के सापेक्ष स्थितिज ऊर्जा ज्ञात की जाए तो U0 = 0

U = –0x Fdx

लेकिन दोलक पर कार्यरत बल

F = -kx

अत: U = k 0x xdx

अत: U = ½ kx2  …………………………….समीकरण-8

लेकिन विस्थापन x = a sin(ω0t + Φ)

चूँकि U = ½ ka2 sin20t + Φ)

अत: k = m ω02

अत: U = ½ m ω02  a2 sin20t + Φ)  …………………………….समीकरण-9

समीकरण-8 और समीकरण 9 दोलक के स्थितिज ऊर्जा के अभीष्ट व्यंजक है | स्पष्टत: दोलक की स्थितिज ऊर्जा के अधिकतम और न्यूनतम मान होंगे |

Umin = 0   जब ω0t + Φ = 0 , π

Umax = ½ m ω02a2  जब ω0t + Φ = π/2

अत: समय के सापेक्ष एक चक्कर में दोलक की स्थितिज ऊर्जा का मान शून्य से ½ m ω02a2  तक परिवर्तित होता है इसलिए एक आवर्त्तकाल के लिए

समय के सापेक्ष माध्य स्थितिज ऊर्जा

<U> = 1/T 0T  Udt

= 1/T 0T  ½ m ω02a2 sin20t + Φ) dt

<U> = ¼ m ω02a…………………………….समीकरण-10

अत: हम जानते है कि 0T  sin20t + Φ) dt  = T/2

जहाँ <> चिन्ह माध्य के लिए उपयोग किया गया है |

(vi) दोलक की गतिज ऊर्जा (kinetic energy of an oscillator) :

अत: दोलक की गतिज ऊर्जा K = ½ mv2

समीकरण 5 से v का मान रखने पर

K = ½ m ω02 (a2 – x2)  …………………………….समीकरण-11

लेकिन x = a sin (ω0t – Φ)

अत: K = ½ m ω02 a2 cos20t + Φ)  …………………………….समीकरण-12

समीकरण 11 और समीकरण 12 दोलक की गतिज ऊर्जा के अभीष्ट व्यंजक है | इन समीकरणों से ज्ञात होता है कि

Kmax = ½ m ω02 a2  जब ω0t + Φ = 0 , π

Kmin = 0   जब ω0t + Φ = π/2

अत: समय के सापेक्ष एक चक्कर में दोलक की गतिज ऊर्जा भी शून्य से ½ m ω02 a2  तक परिवर्तित होती है इसलिए एक आवर्त काल के लिए माध्य गतिज ऊर्जा

<K> = 1/T 0T ½ m ω02 a2 cos2 0t + Φ) dt

<K> = ¼ m ω02 a2 …………………………….समीकरण-13

जहाँ समाकलन 0T cos2 0t + Φ) dt = T/2

(vii) दोलक की कुल ऊर्जा (total energy of an oscillator)

समीकरण 9 और 12 का योग करने पर

कुल ऊर्जा = U + K

= ½ m ω02  a2 sin20t + Φ)  + ½ m ω02 a2 cos20t + Φ)

= ½ m ω02  a2 …………………………….समीकरण-14

स्पष्ट है कि सरल आवृत्ती दोलक की कुल ऊर्जा समय के सापेक्ष नियत रहती है अत: सरल आवर्ती दोलक , यांत्रिक ऊर्जा के संरक्षण के नियम का पालन करता है तथा इसकी ऊर्जा द्रव्यमान m , आयाम के वर्ग a2 और कोणीय आवृत्ति के वर्ग ω02 के अनुक्रमानुपाती होती है |