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थाट कितने होते हैं , हिंदुस्तानी संगीत में कुल कितने थाट होते हैं की संख्या कितनी होती है thaat in music in hindi
how many thaat in music in hindi definition थाट कितने होते हैं , हिंदुस्तानी संगीत में कुल कितने थाट होते हैं की संख्या कितनी होती है ?
थाट
थाट अलग-अलग समूहों में रागों के वर्गीकरण की प्रणाली है। वर्तमान में, हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत में, 10-थाट वर्गीकरण को अपनाया गया है। उत्तर भारतीय शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में सबसे महत्वपूर्ण संगीतविदों में से एक वी. एन. भातखंडे के अनुसार प्रत्येक राग 10 आधारभूत थाटों या संगीतात्मक पैमानों या प्रारूप पर आधारित हैं। थाट कवल आरोह में गाया जा सकता है क्योंकि स्वर आरोही क्रम में संगठित होते हैं।
थाट में 12 स्वरों में से सात स्वर होने चाहिए और इन्हें अनिवार्य रूप से आरोही क्रम में रखा जाना चाहिए। 10 थाट हैं-बिलावल, खमज, कैफी, असावन, भैरवी, भैरव, कल्याण, मारवा, पूर्वी और टोडी।
ताल
धुनों का लयबद्ध समूह ताल कहलाता है। यह लयबद्ध चक्र तीन से लेकर 108 धुनों का होता है। ताल की अवधारणा के अनुसार, संगीत का समय सरल और जटिल छन्दों में विभाजित होता है। समय की माप का यह सिद्धांत हिंदुस्तानी और कर्नाटक संगीत में एकसमान नहीं है। ताल की अवधारणा के विषय में अनूठी बात यह है कि यह उस संगीत से स्वतंत्र होता है जो इसकी संगत करता है और इसका अपना विभाजन होता है। ताल की गति जो समयावधि की समरूपता बनाए रहती है, उसे लय कहा जाता है।
कई संगीतविदों ने तर्क दिया है कि सौ से भी अधिक ताल हैं लेकिन वर्तमान में केवल तीस ताल ज्ञात हैं और उनमें से भी केवल 10 से 12 ताल वास्तव में उपयोग किए जाते हैं। विभिन्न प्रकार के मान्यता प्राप्त और उपयोग किए जाने वाले ताल दादरा. रूपक. एकताल, झपताल, तीन-ताल और आधा-चैताल हैं। इन में भी संगीतकार सामान्यतः सोलह धुनों वाले तीन-ताल का उपयोग करते हैं।
हिंदुस्तानी संगीत के विपरीत, कर्नाटक संगीत की संरचना बहुत अधिक कठोर है। ताल तीन घटकों लघु. तीव्र और अनु तीव्र से बने होते हैं। 35 मूल ताल हैं और प्रत्येक ताल को 5 ‘घाटिस‘ में विभाजित किया जा सकता है। इसलिए, कर्नाटक संगीत में 175 (35’ 5) ताल हैं।
रस
रागों की रचना के पीछे कारण कलाकार और श्रोताओं में भावनात्मक प्रतिक्रियाओं का आह्वान करना होता है। गायन और वाद्य यंत्र बजाने के माध्यम से पैदा की जाने वाली इन भावनाओं को रस कहा जाता है। रसों को ‘सौंदर्यानन्दम‘ भी कहा जाता है क्योंकि ये किसी और कला के माध्यम से भावना का अनुभव कराते हैं, भले ही ये व्यक्तिगत अनुभूतियों की सीमाओं से क्यों ना मुक्त हों। प्रारंभ में, आठ रस थे, लेकिन आगे चलकर इन्हें ‘नौ रस या नौरस‘ बनाने के लिए एक और ‘शांत रस‘ जोड़ दिया गया। ये हैं:
रस का प्रकार मनोभाव जिसे यह जगाता है
श्रृंगार प्रेम
हास्य हास्य/हंसी
करुणा करुणा
रूद्र क्रोध
भयंकर आतंक
वीर वीरता
अद्भुत विस्मय
वीभत्स घृणा
शांत शांतिपूर्ण या शांत
हालांकि, 15वीं सदी के बाद, भक्ति या ईश्वर के प्रति समर्पण का रस भी नौ रसों के प्रारंभिक कोष में व्यापक रूप से स्वीकृत हो गया। कुछ संगीतविदों का तर्क है कि भक्ति और शांत रस एक समान ही है। नाट्यशास्त्र में अलग-अलग स्वरों द्वारा पैदा किए जाने वाले मनोभावों में एक और मनोभाव को जोड़ा गया। भरत का तर्क है कि स्वरों द्वारा पैदा किए जाने वाले अलग अलग मनोभाव हैंय मध्यम विनोदी प्रवृत्ति को पैदा करता है, पंचम कामक भावनाओं का आह्वान करता है, सदजा स्वर वीरता पूर्ण भावनाओं को तथा ऋषभ स्वर कुपित भावनाओं को उजागर करता है।
समय
समय प्रत्येक राग का एक विशिष्ट समय होता है जब वह गाया जाता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि इन स्वरों से विशेष समय पर अधिक प्रभावी होने की अपेक्षा की जाती है। दिन के 24 घंटे दो भागों में बांटे जा सकते हैंः
ऽ 12 बजे दोपहर से लेकर 12 बजे रात तकः इसे पूर्वा भाग कहा जाता है और इस समयावधि में गाए जाने वाले रागों को पूर्वा राग कहा जाता है।
ऽ 12 बजे रात से लेकर 12 बजे दोपहर तकः इसे उत्तर भाग कहा जाता है और इस समय सीमा में गाए जाने वाले रागों को उत्तर राग कहा
जाता है।
इसके अतिरिक्त, दिन की अवधि के अनुसार सप्तक में भी परिवर्तन होता है। उदाहरण के लिए, पूर्वांग अवधि में, सप्तक सा से लेकर मा (सा, रे, गा, मा) तक होता है। इसके विपरीत, उत्तरांग अवधि में, सप्तक पा से लेकर सा (पा, ध, नी, सा) तक होता है।
राग के अन्य घटक
धीमी गति से वादी, सम्वादी और राग की अन्य मूक विशेषताओं पर बल देने वाले राग का क्रमिक उद्घाटन आलाप कहलाता है। इसे प्रदर्शन के समय राग के प्रारंभ में गाया जाता है। इसे सामान्यतः आकार यानी किसी अक्षर का उच्चारण किए बिना, केवल स्वर की ‘अअ‘ ध्वनि का उपयोग करके गाया जाता है।
रचना को तीन भागों में बांटा जा सकता हैः
स्थाई रचना का पहला भाग
टंतरा रचना का दूसरा भाग
तृतीय, तेज गति में आधारभूत स्वर तान कहलाते हैं। ये बहुत तकनीकी होते हैं और लय में विभिन्नता के साथ स्वरों के जटिल पैटर्न की रचना में प्रशिक्षण, अभ्यास और कौशल दिखलाते हैं। तान के गायन में गति एक महत्वपूर्ण कारक है।
कुछ विशेष तान आकार स्वर में गाए जाते हैं। तान के कोष के भीतर, 3 या 4 स्वरों की छोटी तान ‘मुर्की‘ कहलाती है। इन्हें बहुत ही तेज गति से गाया जाता है और इसके लिए गायक से संगीत कौशल की मांग की जाती हैं।
अन्त में, संगीत के खण्ड की रचना के दौरान, ‘अलंकार‘ के रूप में अलंकरण की आवश्यकता होती है। यह क्रमबद्ध रूप में विशिष्ट मधुर प्रस्तुति है जिसमें एक पैटर्न का अनुसरण किया जाता है। उदाहरण के लिए, स्वरों ‘सा रे गा‘, ‘गा मा पा‘, ‘मा पा ध‘ आदि का संयोजन। इन संयोजनों में हमें अलंकार दिखाई देता है जिसमें क्रमबद्ध रूप में 3 स्वरों का प्रत्येक बार उपयोग किया जाता है।
भेद के बिंदु थाट राग
उत्पत्ति ये 7 स्वर (स्वरों) से बनाए जाने वाले पैमाने हैं। राग थाट की शैली से संबंधित होते है।
स्वरों की संख्या थाट में 7 स्वर होने चाहिए। राग में कम-से-कम 5 स्वर होने चाहिए।
स्वरों के प्रकार थाट में केवल आरोह या आरोही स्वर होते हैं। राग में आरोह और अवरोह दोनों स्वर होने चाहिए।
स्वरमाधुर्य थाट के लिए मधुर होना आवश्यक नहीं है क्योंकि इन्हें गाया नहीं जाता है। राग गाए जाते हैं और इसलिए उन्हें मधुर होना चाहिए।
महत्वपूर्ण स्वर थाट में वादी और सम्वादी नहीं होते है। रागों में वादी और सम्वादी होते हैं।
नामकरण थाट का नामकरण लोकप्रिय रागों के नाम पर होता है। रागों का नामकरण उन भावनाओं के नाम पर होता है जिनका वे आह्वान करते हैं।
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