हिंदी माध्यम नोट्स
Class 6
Hindi social science science maths English
Class 7
Hindi social science science maths English
Class 8
Hindi social science science maths English
Class 9
Hindi social science science Maths English
Class 10
Hindi Social science science Maths English
Class 11
Hindi sociology physics physical education maths english economics geography History
chemistry business studies biology accountancy political science
Class 12
Hindi physics physical education maths english economics
chemistry business studies biology accountancy Political science History sociology
English medium Notes
Class 6
Hindi social science science maths English
Class 7
Hindi social science science maths English
Class 8
Hindi social science science maths English
Class 9
Hindi social science science Maths English
Class 10
Hindi Social science science Maths English
Class 11
Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics
chemistry business studies biology accountancy
Class 12
Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics
chemistry business studies biology accountancy
Complexity of geomorphic evolution is more common than simplicity & Thornbury स्थलरूपों के विकास में सरलीकरण की अपेक्षा जटिलतायें अधिक होती हैं
1. स्थलरूपों के विकास में सरलीकरण की अपेक्षा जटिलतायें अधिक होती हैं
(Complexity of geomorphic evolution is more common than simplicity & Thornbury)
इस संकल्पना की तरफ प्रो० थार्नबरी ने इंगित किया था। सामान्य रूप से माना जाता है- एक विशेष प्रकार के प्रक्रम द्वारा एक विशेष प्रकार की स्थलाकृति का निर्माण होता है, जिस पर प्रक्रम प्रतिम्बम्बित होता है। उपर्युक्त तथ्य से स्थलरूप की रचना सरल होनी चाहिए, परन्तु वास्तविकता में ऐसा होता नहीं है, क्योंकि किसी स्थलखण्ड पर केवल एक ही प्रक्रम सक्रिय नहीं होता है, वरन् एक से अधिक प्रक्रम कार्यरत होते हैं, परन्तु इनमें एक प्रक्रम होता है, जिसका प्रभुत्व सभी पर होता है। ये प्रक्रम स्थलरूपों के विकास में अपनी विशिष्ट छाप छोड़ जाते हैं। स्थलरूप किसी एक अपरदन-चक्र का प्रतिफल नहीं होता है, बल्कि इसमें कई अपरदन-चक्र कार्य करते हैं। यह भी हो सकता है कि वर्तमान चक्र पूरा हो जाय और द्वितीय चक्र प्रारम्भ हो जाय। फलस्वरूप स्थलरूपों में जटिलतायें आ जाती हैं। यह सत्य है कि कई वर्तमान स्थलरूप वर्तमान प्रक्रम के प्रतिफल होते हैं, परन्तु उनमें अतीत के प्रक्रम द्वारा निर्मित स्थलरूप मिलते हैं, जिससे उसमें जटिलतायें आ जाती हैं। इन तथ्यों को उदाहरणों द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है –
जटिलतायें एक ही स्थलखण्ड पर चक्र के दौरान प्रक्रमों के एक साथ कार्य करने से आती हैं- जैसे – मरुस्थलीय भागों में यद्यपि पवन मुख्य कारक अथवा साधन है, परन्तु थोड़ी सी वर्षा होने पर बहते हुए जल का भी कार्य सक्रिय हो जाता है। परिणामस्वरूप, पवन के द्वारा बनाये गये स्थलरूपों (बालकास्तूप, इन्सेलबर्ग आदि) के साथ जल के द्वारा निर्मित स्थलरूप (पेडीमेण्ट, प्लेया, बजाडा) का निर्माण है, परन्तु इनमें प्रधानता पवन की रहती है। इस लिये पवन को ही मरुस्थलीय भागों का प्रकम माना जाता है। इस तरह इनके निर्माण में तमाम जटिलतायें आ जाती हैं। इसी प्रकार हिमानी द्वारा निर्मित स्थलकृतिया उतनी सामान्य नहीं होती जितनी देखने में स्पष्ट होती हैं! हिमनद के क्षेत्रों में हिमानी के द्वारा बनी स्थलकृतिया में मुख्य प्रक्रम हिमनद होता है, परन्तु इसकी स्थलाकृतियों में जल का भी महत्व कम नहीं होता है। हिमोढ़ के बाद झील आदि का निर्माण जल के द्वारा ही होता है। जव हिम पिघलती है तो सरिता प्रवाह के द्वारा मलवा का जमाव कभी-कभी पार्श्ववर्ती भागों में तथा कभी-कभी मध्यवर्ती भागों में होता है जिसे मोरेन की संज्ञा दी जाती है। अतः स्पष्ट है कि हिमनद द्वारा निर्मित स्थलाकृतियों में जल का भी महत्व होता है, परन्तु हिमनद का महत्त्व अधिक होता है, इसलिये इसको प्रधान माना जाता है। इनके द्वारा बनी स्थलाकृतियों में इन्हीं प्रक्रमों द्वारा तमाम स्थलाकृतियों का निर्माण हो जाता है। कास्र्ट स्थलाकृतियों में भूमिगत जल का विशेष महत्व होता है, परन्तु सतह पर जल का प्रवाह भी महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि यदि जल की मात्रा अधिक होती है, तो वही जल धरातल के ऊपर कार्य करना प्रारम्भ कर देता है। परन्तु इसमें भूमिगत जल की प्रधानता रहती है. जिस कारण प्रमुख प्रक्रम भूमिगत जल माना जाता है। इस प्रकार कास्र्ट प्रदेशों में कई प्रक्रमों के कार्यरत होने से इसमें जटिलतायें उत्पन्न हो जाती हैं। उपर्युक्त उदाहरणों से स्पष्ट होता है कि स्थलखण्ड पर एक समय में कई प्रक्रम कार्य करते हैं तो उस स्थलरूप में तमाम जटिलतायें उत्पन्न हो जाती हैं।
प्रत्येक प्रक्रम जलवायु का प्रतिफल होता है अर्थात् जिस प्रकार की जलवायु होगी, उसी प्रकार का प्रक्रम कार्य करेगा। उदारणार्थ – यदि उष्ण जलवायु है तो पवन, आर्द्र है तो बाही जल, उष्णार्द्र है तो बाही जल, यदि हिमानी जलवायु है तो हिमनद प्रक्रम कार्य करते हैं। जलवायु द्वारा प्रक्रम निर्धारित होते हैं। अमुक प्रकार की जलवायु है, तो अमुक प्रकार का प्रक्रम कार्य करता है अथवा अमुक प्रकार का प्रक्रम अमुक प्रकार की जलवायु में कार्य करता है। वर्तमान समय में किस प्रकार की जलवायु है, तो कौन सा प्रक्रम कार्य करता है तथा इसके द्वारा बनी स्थलाकृतियाँ कैसी हैं। यदि छोटा नागपुर के उड़ीसा में स्थिति तालचीर कोयले की खान का अध्ययन करें, तो ज्ञात होता है कि इसमें हिमानी-गोलाश्य हैं, अर्थात् यहाँ पर कभी हिमानी प्रकार की जलवायु रही होगी। साथ-ही-साथ कोयले का जमाव भी यह स्पष्ट करता है कि यहाँ पर कभी उष्णार्द्ध प्रकार की जलवायु रही होगी, जिसमें जल-प्रक्रम सक्रिय रहा होगा। शीतकाल की जलवायु में हिमानी-प्रक्रम कार्यरत रहा होगा। अर्थात स्पष्ट होता है कि जलवायु की भिन्नता के कारण एक ही स्थान पर भिन्न-भिन्न प्रक्रम कार्य किये हैं। इंग्लैण्ड के डार्टमूर के टार्स का उदाहरण प्रस्तुत कर सकते हैं – यदि इसका विश्लेषण करें, तो स्पष्ट होता है कि यह वर्तमान जलवायु का प्रतिफल नहीं है, बल्कि इसका निर्माण परिहिमानी जलवायु में हुआ था, जो आज भी अवशेष रूप में विद्यमान है। अतः स्पष्ट होता है कि जलवायु के परिवर्तन के कारण जटिलतायें आती हैं।
कहीं-कहीं पर भूगर्मिक संरचना भी स्थलरूपों में जटिलतायें उत्पन्न करती हैं। उदाहरणार्थ- छोटा नागपुर के पठार में धारवाड़ चट्टान सबसे प्राचीन चट्टान है। पर्वतीकरण के समय धारवाड़ चट्टान का बलन हो गया, जिससे गुम्बदों का निर्माण हुआ। परिणामस्वरूप कई अपनतियों तथा अभिनतियों का निर्माण हो गया। अपरदन के कारण अपनतियाँ अभिनतियों में तथा अभिनतियाँ अपनितयों में बदल गई। आज अपनति में अभिनति का तथा अभिनति में अपनति के गुण पाये जाते हैं। अतः स्पष्ट है कि भूगर्भिक संरचना स्थलरूपों में जटिलतायें उत्पन्न कर देती हैं।
विवर्तनी कारणों से स्थलरूपों में जटिलतायें उत्पन्न होती है। भ्रंशन, वलन तथा उत्थान की क्रियायें स्थलरूपों में विसंगतियाँ उत्पन्न कर देती हैं। यदि एक समतल भाग है तथा उसमें भ्रंशन की क्रिया होती है, तो कुछ भाग ऊपर तथा कुछ भाग नीचे चला जायेगा। जिससे थ्ळड की दशा होगी। इसमें ।स् कगार का निर्माण होगा। यदि हम इसका अध्ययन करें तो स्पष्ट होता है कि ।थ् तथा स्ळ प्राचीन तथा ।स् पर नवीन चट्टानें दिखाई पड़ती हैं। ।थ् कगार पर अपरदन के द्वारा नवीन स्थलाकृतियों का निर्माण होगा, जबकि थ्। तथा स्ळ पर प्राचीन स्थलाकृतियों के अधिकांश भाग विद्यमान रहते हैं। अतः स्पष्ट है कि ग्रंशन के द्वारा स्थलरूपों में जटिलतायें उत्पन्न होती हैं।
रौंची पठार के दक्षिणी-पूर्वी भाग का 1,000 फीट उत्थान हुआ, जिस कारण स्कामिन्ट का निर्माण हो गया। अपरदन के कारण स्कार्पमेन्ट पर नवीन स्थलाकृतियों का निर्माण हुआ, जबकि ऊपर तथा नीचे प्राचीन स्थलाकृतियाँ विद्यमान हैं। इस प्रकार उत्थान के द्वारा स्थलाकृतियों में जटिलतायें देखने को मिलती हैं। बलन की क्रिया भी स्थलरूपों की जटिलता पर काफी प्रभाव डालती है। हिमालय के क्षेत्र का अध्ययन करने के बाद वाडिया ने बताया कि – हिमालय की पहाड़ियों में कहीं कहीं पर वलन इतना तीव्र हुआ है कि चट्टानें गुम्बद के रूप में ऊपर उठ गयी हैं तथा कहीं पर वलन इतना अधिक है कि चट्टानें उठाकर दूर फेंक दी गयीं, जिस कारण पुरानी चट्टानें ऊपर तथा नवीन चट्टानें नीचे चली गई हैं। साथ-ही-साथ इनके पास नवीन चट्टानें भी दिखाई पड़ती हैं। इस तरह वलन के द्वारा भी स्थलाकृतियों में जटिलतायें देखने को मिलती हैं।
अपरदन-चक्र के द्वारा भी स्थलरूपों में जटिलतायें देखने को मिलती हैं। जटिलतायें तीन दशाओं में होती हैं – (क) यदि किसी क्षेत्र का उत्थान हो जाय, तो सागर-तल में परिवर्तन हो जाता है, जिस कारण जटिलतायें आ जाती हैं, (ख) नदी के आधार-तल में यदि परिवर्तन आ जाय, तब स्थलरूपों में जटिलतायें आ जाती हैं, तथा (ग) चक्र के बीच में यदि किसी भी स्थान पर उत्थान हो जाय, तो स्थलरूपों में परिवर्तन हो जाता है। उदाहरणार्थ – किसी स्थलखण्ड में अपरदन-चक्र अपनी बृद्धावस्था में पहुंच चुका है, तो नदियाँ चैड़ी-चैड़ी घाटी का निर्माण करती हैं। मान लीजिए यदि सागर-तल 100 फीट नीचे चला जाय, तो नदियों में नवोन्मेष हो जायेगा। नदियाँ तरुणावास्था में पहुँच जाती हैं। नदियाँ अपना निम्नवर्ती कटाव प्रारम्भ करती हैं, जिस कारण सँकरी घाटी का निर्माण होगा। ऊपर प्राचीन घाटी तथा नीचे नवीन घाटी का जन्म होगा। अर्थात् ऊपर प्राचीन रचनायें होगी तथा नीचे नवीन रचनायें होगी। इस प्रकार स्थलरूपों में जटिलतायें देखने को मिलती हैं। राँची पठार के दक्षिण-पूर्वी भाग का 1,000 फीट उत्थान हो गया था तो नदियों में नवोन्मेय उत्पन्न हुआ, परिणामस्वरूप नदियों ने प्राचीन घाटियों में नवीन घाटियों का निर्माण किया। जब पुनः सम्पूर्ण धरातल को 100 फीट उत्थान हुआ, तो पुनः नदियों ने गहरी-गहरी घाटी का निर्माण किये। इस प्रकार स्थलरूपों में जटिलतायें देखने को मिलती हैं। उपर्युक्त तथ्यों के आधार पर स्थलरूपों को कई भागों में बाँटा जा सकता है। हारवर्ग (1952) ने स्थलरूपों के विकास के आधार इनकों पाँच भागों में विभक्त किया है –
क. साधारण भू-दृश्य (Simple landscapes),
ख. मिश्रित भू-दृश्य (Compound landscapes),
ग. एक चक्रीय भू-दृश्य (Monocyclic landscapes)
घ. बहुचक्रीय भू-दृश्य (Multi-cyclic landscapes), तथा
ड. पुनर्जीवित भू-दृश्य (Resurrected landscapes)
कुछ समय बाद अपरदन के कारकों द्वारा पुनः अनावरण कर दिया जाता है, तो पूर्व निर्मित स्थलरूप दिखाई पड़ने लगते हैं,जिन्हें पुनर्जीवित स्थलरूप की संज्ञा दी जाती है।
Recent Posts
द्वितीय कोटि के अवकल समीकरण तथा विशिष्ट फलन क्या हैं differential equations of second order and special functions in hindi
अध्याय - द्वितीय कोटि के अवकल समीकरण तथा विशिष्ट फलन (Differential Equations of Second Order…
नियत वेग से गतिशील बिन्दुवत आवेश का विद्युत क्षेत्र ELECTRIC FIELD OF A POINT CHARGE MOVING WITH CONSTANT VELOCITY in hindi
ELECTRIC FIELD OF A POINT CHARGE MOVING WITH CONSTANT VELOCITY in hindi नियत वेग से…
four potential in hindi 4-potential electrodynamics चतुर्विम विभव किसे कहते हैं
चतुर्विम विभव (Four-Potential) हम जानते हैं कि एक निर्देश तंत्र में विद्युत क्षेत्र इसके सापेक्ष…
Relativistic Electrodynamics in hindi आपेक्षिकीय विद्युतगतिकी नोट्स क्या है परिभाषा
आपेक्षिकीय विद्युतगतिकी नोट्स क्या है परिभाषा Relativistic Electrodynamics in hindi ? अध्याय : आपेक्षिकीय विद्युतगतिकी…
pair production in hindi formula definition युग्म उत्पादन किसे कहते हैं परिभाषा सूत्र क्या है लिखिए
युग्म उत्पादन किसे कहते हैं परिभाषा सूत्र क्या है लिखिए pair production in hindi formula…
THRESHOLD REACTION ENERGY in hindi देहली अभिक्रिया ऊर्जा किसे कहते हैं सूत्र क्या है परिभाषा
देहली अभिक्रिया ऊर्जा किसे कहते हैं सूत्र क्या है परिभाषा THRESHOLD REACTION ENERGY in hindi…