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तेरहताली नृत्य कहां का है | तेरहताली नृत्य की प्रसिद्ध नृत्यांगना का नाम क्या है terah taali dance in hindi
terah taali dance in hindi of rajasthan तेरहताली नृत्य कहां का है | तेरहताली नृत्य की प्रसिद्ध नृत्यांगना का नाम क्या है ?
लघूत्तरात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न: हवेली संगीत [RAS Main’s 2003]
उत्तर: राजस्थान में बल्लभ (अष्टछाप, पुष्टिमार्गीय) सम्प्रदाय के मंदिरों में शास्त्रीय संगीत में वीणा, पखावज जैसे वाद्यों का वादा परम्परा और ध्रूपद धमार, कीर्तन की सुंदर गायन शैली का संगीत चलता रहता है। इस सम्प्रदाय के मंदिर ‘हवेली‘ और उनमें प्रचलित यह संगीत ‘हवेली संगीत‘ कहलाता है। जिसने इस शास्त्रीय संगीत की शैलियों के विकास में महत्त्वपर्ण योगदान दिया है। राजस्थान में विकसित इस परम्परा ने देश को कई उच्च कोटि के गायक व वादक प्रदान किये हैं।
प्रश्न: राजस्थान में विकसित संगीत घराने
उत्तर: घराने विशिष्ट गुरु-शिष्य परम्परा की विशिष्ट गायन, वादन तथा नृत्य शैली का सूचक होता है। राजस्थान में ध्रूपद धमार गायन शैली डागर घराने का विकास बहरम खां ने किया तथा ख्याल शैली घराने का प्रवर्तक मनरंग था। शास्त्रीय नृत्य की कत्थक शैली के आदिम जयपुर घराने का विकास भानूजी ने किया। वादन शैली के प्रसिद्ध सेनिया घराने का प्रवर्तक सूरतसेन व विलास खां तथा बीकानेर (जयपुर) घराने का प्रवर्तक रज्जब अली था।
प्रश्न: राजस्थानी लोक संगीत की मुख्य विशिष्टताओं की व्याख्या कीजिए। [RAS Main’s 1997]
उत्तर: लोक संगीत में भाषा की अपेक्षा भाव का महत्त्वपूर्ण होना मुख्य विशेषता है। मानवीय भावनाओं का सजीव वर्णन, मौखिक होने पर भी लयबद्ध होना तथा ये जनमानस के स्वाभाविक उद्गारों का प्रस्फुटन होता है। इसकी मॉड, तालबंदी, लंगा आदि गायन शैलियां हैं। जनसाधारण के व्यावसायिक जातियों के मरुप्रदेशीय, पर्वतीय प्रदेशीय के विविध रूप प्रचलित हैं। ये हमारे जीवन का वास्तविक इतिहास, सामाजिक तथा नैतिक आदर्श एवं संस्कृति के विभिन्न पहलूओं को सुरक्षित रखे हुए है। आदिवासियों, घूमन्तु जातियों आदि के लोक संगीतों ने राजस्थान की प्राचीन परम्परा एवं संस्कृति की सुरक्षित बनाए रखा है।
प्रश्न: राजस्थान के लोकगीतों का महत्व (विशिष्टताएँ)
उत्तर: लोक गीत किसी विशिष्ट क्षेत्र के जनमानस के स्वभाविक उदगारों का प्रस्फुटन होता है जिसमें उल्लास, प्रेम, करुणा, दुरूख की अभिव्यक्ति होती है। इनके रचयिता के बारे में पता न होना, भाषा की अपेक्षा भावपूर्ण होना, संस्कृति, रहन-सहन तथा मानवीय भावनाओं का सजीव वर्णन, मौखिक होने पर भी लयबद्ध होना आदि मुख्य विशिष्ताएं है। ये हमारी संस्कृति को साकार करते हैं तथा परम्पराओं को अक्षुण्ण बनाएं रखते हैं एवं आदिम संस्कृति के प्रवाहमान है।
प्रश्न: कच्छी घोड़ी नृत्य [RAS Main’s 1999]
उत्तर: यह राजस्थान के शेखावाटी क्षेत्र का प्रसिद्ध व्यावसायिक लोक नृत्य है जो पुरुषो द्वारा बांस की खपच्ची के लाल घोड़ो को धारण कर सामूहिक रूप से कमल के फूल की पंखुड़ियों के समान पैटर्न बनाते हुए किया जाता है। इसमें ढोल, बाँकिया आदि वाद्ययंत्रों का प्रयोग होता है। नृत्यकार सफेद चूडीदार पायजामा, रेशमी पीली शेरवानी एवं सिर पर लाल साफा धारण कर पैरों में घुघरू बांधते हैं। आज इसने व्यावसायिक रूप धारण कर लिया है।
प्रश्न: गैर नृत्य [RAS Main’s 2000,2010]
उत्तर: यह मेवाड़ व मारवाड़ का प्रसिद्ध लोक नृत्य है जो पुरुषों द्वारा सामूहिक रूप से गोल घेरा बनाकर ढोल, बाकिया, थाली आदि वाद्ययंत्रों के साथ में डंडा लेकर किया जाता है। मेवाड के गैरिए (नृत्यकार) सफेद अंगरखी, धोती व सिर पर केसरिया पगडी धारण करते हैं जबकि मारवाड़ के गैरिए सफेद ओंगी, लम्बी फॉक और तलवार के लिए चमडे का पट्टा धारण करते हैं। इसमें पुरुष एक साथ मिलकर वृताकार रूप में नृत्य करते करते अलग अलग प्रकार का मण्डल बनाते हैं। यह बहुत ही मनोहारी नृत्य है।
प्रश्न: जसनाथी सिद्धों का अग्नि नृत्य [RAS Main’s 1994]
उत्तर: बीकानेर के कतियासर ग्राम में जसनाथी सिद्धों द्वारा रात्रि जागरण के समय धधकते अंगारों के ढेर (धूणा) पर किया जाने वाला नृत्य अग्नि नृत्य कहलाता है। इसमें नगाड़े वाद्य यंत्र की धुन पर जसनाथी सिद्ध एक रात्रि में तीन-चार बार अंगारों से मतीरा फोडना, हल जोतना आदि क्रियायें इतने सुदंर ढंग से करते हैं जैसे होली पर फाग खेल रहे हो। धधकती आग के साथ राग और फाग का ऐसा अनोखा खेल नृत्य जसनाथियों के अलावा अन्यत्र देखने को नहीं मिलता।
प्रश्न: तेरहताली नृत्य
उत्तर: यह कामड जाति की महिलाओं द्वारा बाबा रामदेव की अराधना में तेरह मंजिरों की सहायता से किया जाने वाला प्रसिद्ध व्यावसायकि लोक नृत्य है। यह पुरुषों के साथ मंजीरा, तानपुरा व चैतारा वाद्य यंत्रों के प्रयोग की संगत में किया जाता है। नृत्य के समय स्त्रियां हाथ-पैरो में बंधे इन मंजीरों पर प्रहार कर मधुर ध्वनि उत्पन्न कर लय बनाती हैं जिसमें स्त्रियों की चंचलता और उनका लचकदार नृत्य दर्शनीय होता है। मांगीबाई और लक्ष्मणदास कामड इस नृत्य के प्रमुख नृत्यकार हैं। .
प्रश्न: भवई नृत्य
उत्तर: राजस्थान के पेशेवर लोक नृत्यों में भवाई नृत्य अपनी अदायगी, शारीरिक क्रियाओं के अद्भुत चमत्कार एवं लयकारी विविधता के लिए प्रसिद्ध है। यह स्त्री-पुरुषों का मूलतः पुरुषों का नृत्य है जिसमें नृत्य करते हुए पगड़ियों को हवा में फैलाकर कमल का फल बनाना, सिर पर अनेक मटके रखकर नत्य करना तेज तलवार की धार पर, बोतल, गिलास व थाली के किनारों पर नृत्य करना आदि इसके विविध रूप हैं। रूपसिंह शेखावत प्रसिद्ध भवाई नृत्यकार हैं जिसने देश विदेश में इसे प्रसिद्ध कर दिया है।
प्रश्न: घूमर नृत्य [RAS Main’s 2003]
उत्तर: घूमर नृत्य मांगलिक आदि अवसरों पर महिलाओं द्वारा सामूहिक रूप से किया जाने वाला प्रसिद्ध लोक नृत्य है। यह घेरदार लहंगे को पहनकर वृत्ताकार रूप से घूमते हुए किया जाता है। इसमें ढोल, नगाड़ा, शहनाई आदि वाद्ययंत्रों की धुन पर चक्कर लेते समय झुकते हुए हाथ को नीचे ले जाकर चक्कर पूरा होने के साथ-साथ बदन भी ऊपर आता है। इस नृत्य का गीत ‘म्हारी घूमर छ नखराली‘ जनमानस में छाया हुआ है। घूमर नृत्य राजस्थान का प्रतीक बनकर उभरा है जो आज के मंच प्रदर्शन का अनिवार्य अंग बन गया है।
प्रश्न: कथौड़ी जनजाति का ‘‘होली नृत्य‘‘
उत्तर: कथौड़ी जनजाति मूलतः महाराष्ट्र से आकर राजस्थान में उदयपुर की झाड़ोल व कोटड़ा तहसीलों में बसी हुई है। यह खैर वृक्ष से कत्था तैयार करते थे इसलिए इनका नाम ‘कथौड़ी‘ पड़ा। होली के अवसर पर कथौड़ी महिलाओं द्वारा किया जाने वाला नृत्य है। होली पर 5 दिन तक 10-12 महिलाओं द्वारा समूह बनाकर एक दूसरे का हाथ पकड़कर गीत गाते हुए गोले में किया जाने वाला नृत्य, जिसमें पुरुष ढोलक, पावरी, धोरिया एवं बांसली पर संगत करते हैं। महिलाएं नृत्य के दौरान एक दूसरे के कंधे पर चढ़कर पिरामिड़ भी बनाती है।
प्रश्न: कालबेलियों के नृत्य
उत्तर: इण्डोणी नृत्य: कालबेलियों के स्त्री-पुरुषों द्वारा पूंगी व खंजरी पर किया जाने वाला नृत्य है। नर्तक युगल कामुकता का प्रदर्शन करने वाले कपड़े पहनते हैं।
शंकरिया: यह कालबेलियों का सर्वाधिक आकर्षक प्रेमाख्यान आधारित युगल नृत्य है। इस समय पणिहारी गीत गाये जाते हैं।
पणिहारी: यह कालबेलियों का युगल नृत्य है। इसमें स्त्री एवं पुरुष दोनों मिलकर नृत्य करते हैं। इस समय पणिहारी गीत गाये जाते हैं। बागड़िया: यह कालबेलिया स्त्रियों द्वारा भीख मांगते समय किया जाने वाला नृत्य है। इसमें साथ में चंग बजाया जाता है।
नोट: किसी भी नृत्य से संबंधित उत्तर देते समय उसके उत्तर में निम्नलिखित बिन्दुओं का समावेश होना चाहिए। नृत्य का नाम, क्षेत्र, पुरुषों, स्त्रियों का या युगल, समय, प्रयुक्त वाद्य यंत्र, परिधान, प्रकार आदि तथ्य समाहित करें। राजस्थानी लोक नृत्यों की एक सारणी नीचे इन्हीं तथ्यों को समाहित करते हुए नीचे दी जा रही है।
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