प्रतिपालनीय कृषि (sustainable agriculture in hindi) , जैविक खेती (organic agriculture) , राइजोबियम जीवाणु

प्रतिपालनीय कृषि (sustainable agriculture in hindi) :

प्रश्न 1 : प्रतिपालनीय कृषि किसे कहते है ?

उत्तर : कृषि का ऐसा प्रक्रम जिसके अंतर्गत कृषि पादप तथा पालतू जन्तुओं का इस प्रकार से संवर्धन करवाया जाए की संवर्धन वाले स्थान को किसी प्रकार की हानि न पहुचे तथा उत्पादन दीर्घ काल तक जारी रहे ताकि मानव की आवश्यकताओं की पूर्ती होती रहे , प्रतिपालनीय कृषि कहलाती है।

प्रश्न 2 : प्रतिपालनीय कृषि की आवश्यकता वर्तमान समय में अधिक है क्यों ?

उत्तर : निम्न कारणों के कारण प्रतिपालनीय कृषि की वर्तमान समय में अत्यधिक आवश्यकता है क्योंकि –

i. पिछले कुछ वर्षो से अपनाई जाने वाली विभिन्न प्रकार की कृषि पद्धतियों में अत्यधिक मात्रा में कीटनाशी , पिडकनाशी तथा रासायनिक उर्वरको का अत्यधिक उपयोग किया जा रहा है।

ii. सिंचाई हेतु भूमिगत जल का अत्यधिक दोहन किया जा रहा है।

iii. पेट्रोलियम पदार्थो की अत्यधिक उपयोगिता के कारण।

उपरोक्त सभी कारणों के फलस्वरूप वातावरणीय प्रदुषण में वृद्धि हुई है तथा अनवीनीकृत स्रोतों में कमी आई है अत: प्रदुषण को कम करने हेतु तथा अनवीनीकृत स्रोतों को बनाये रखने हेतु प्रतिपालनीय कृषि एक उपयोगी प्रक्रम है इसलिए इस प्रक्रम को अत्यधिक तेजी से अपनाया जा रहा है।

प्रतिपालनीय कृषि की विधियाँ

(1) जैविक खेती (organic agriculture) :

प्रश्न : जैविक खेती किसे कहते है ?

उत्तर : कृषि का ऐसा प्रक्रम जिसके अंतर्गत एक साथ एक से अधिक प्रक्रम अपनाए जाते है तथा एक प्रक्रम का अपशिष्ट दुसरे प्रक्रम हेतु उपयोगी पदार्थ की तरह उपयोग किया जाता है।

इस प्रक्रम के अंतर्गत किसी प्रकार के रासायनिक पदार्थ का उपयोग नहीं किया जाता है , इस प्रक्रम को शून्य अपशिष्ट प्रक्रम के नाम से भी जाना जाता है।

प्रश्न : जैविक खेती के प्रमुख उद्देश्य स्पष्ट कीजिये।

उत्तर : जैविक खेती के प्रमुख उद्देश्य निम्न प्रकार से है –

i. जैविक खेती की सहायता से भूमि की गुणवत्ता में वृद्धि का प्रयास किया जा रहा है तथा इसे चिर स्थायी बनाये रखने का भी प्रयास किया जा रहा है।

ii. सूक्ष्म जीवो , मृदा में पाए जाने वाले जीवो , पादप तथा जीवों से सम्बन्धित कृषि प्रणाली के अंतर्गत संपन्न होने वाली जैविक क्रियाओ को बढ़ावा देना।

iii. कृषि तंत्रों को ज़माने की बजाय उनका मित्रवत उपयोग करना।

iv. स्थानीय कृषि की विधियों को तथा ऊर्जा के नवीनीकृत स्रोतों का उपयोग करना।

v. उच्च खाद्य गुणवत्ता वाले खाद्य पदार्थो के उत्पादन में वृद्धि करना।

vi. नवीन कृषि तकनीको के उपयोग से उत्पन्न होने वाले प्रदुषण को समाप्त करना।

प्रश्न : जैविक उर्वरक या जैव उर्वरक किसे कहते है ?

उत्तर : Biofertilizer : वे सूक्ष्म जीव जो मृदा की पोषकता को बढाने में सहायक होते है , जैव उर्वरक कहलाते है।

यह सूक्ष्म जीव मुख्यतः जीवाणु तथा निल हरित शैवाल होते है।

जीवाणु तथा निल -हरित शैवाल की उपरोक्त उपयोगिता के कारण वैज्ञानिको के द्वारा इन सूक्ष्म जीवो का औद्योगिक स्तर पर संवर्धन किया जा रहा है ताकि मृदा की उर्वरकता को बढाया जा सके व उत्पादन में वृद्धि की जा सके।

जैव उर्वरक के रूप में उपयोग किये जाने वाले कुछ प्रमुख सूक्ष्मजीव निम्न प्रकार से है –

1. राइजोबियम जीवाणु :

  • राइजोबियम जीवाणु एक प्रकार का सहजीवी जीवाणु है जो दलहनी पादपों की मूल से सहजीवी सम्बन्ध स्थापित करता है जिसके फलस्वरूप इस जीवाणु के द्वारा पादपो की मूल में गाँठो के रूप में वायुमंडलीय नाइट्रोजन को स्थिरीकृत करता है , इस क्रिया के अंतर्गत यह जीवाणु वायुमंडलिय नाइट्रोजन को प्राप्त कर उसे अमोनिया में परिवर्तित करता है तथा निर्मित NH3 (अमोनिया) को अपनी कोशिकाओ से बाहर स्त्रावित करता है जिसे प्राप्त करके पादप नाइट्रोजन की पूर्ती कर लेते है।
  • राइजोबियम के साथ सहजीवी सम्बन्ध स्थापित होने से प्रतिवर्ष प्रति हेक्टेयर 50 से 150 kg नाइट्रोजन का यौगिकीकरण किया जाता है , जिसके फलस्वरूप एक निश्चित कृषि उत्पाद में 15 से 20% तक वृद्धि की जा सकती है।
  • निश्चित कृषि उत्पाद प्राप्त करने के पश्चात् ऐसे स्थान पर अन्य फसल का उत्पाद भी बढ़ जाता है क्योंकि मृदा में नाइट्रोजन की पर्याप्त मात्रा उपस्थित रहती है।
2. असहजीवी जीवाणु :
  • कुछ प्रमुख असहजीवी जीवाणु Azatobacter , Azospirullum तथा Clostridium है।
  • उपरोक्त जीवाणुओं के द्वारा स्वतंत्र रूप से मृदा में वायुमंडलीय नाइट्रोजन को स्थारिकृत किया जाता है इसके अतिरिक्त इनके द्वारा मृदा में पाए जाने वाली मुक्त नाइट्रोजन को कार्बनिक नाइट्रोजन पदार्थो में परिवर्तित किया जाता है जिन्हें पादपो के द्वारा अवशोषित करके अपनी मांग की पूर्ती की जाती है।
  • नाइट्रोजन युक्त जीवाणु की मृत्यु होने पर अन्य जीवाणुओं के द्वारा उसका अपघटन किया जाता है जिसके फलस्वरूप विमुख अमोनिया को नाइट्राइड तत्पश्चात नाइट्रेट में परिवर्तित किया जाता है जिसका अवशोषण पादपो के द्वारा किया जाता है।
Azotobacter नामक जीवाणु को चावल या कपास की खेती के साथ उगाये जाने पर उत्पन्न होने वाले उत्पादों में 20% तक वृद्धि हो सकती है।
3. नील हरित शैवाल (BGA) : सामान्यत: जैव उर्वरक के रूप  Nostoc anabaena , Plectonema आदि नील रहित शैवाल असहजीवी जैव उर्वरक की तरह कार्य करते है।
नील हरित शैवालों के द्वारा मुख्यतः नाइट्रोजन यौगिकीकरण का कार्य किया जाता है , इस हेतु नील हरित शैवालो में विशेष प्रकार की कोशिकाएँ पायी जाती है जिन्हें Heterocyst के नाम से जाना जाता है तथा इन कोशिकाओ में नाइट्रोजन यौगिकीकरण हेतु एक विशिष्ट जीन पाया जाता है जिसे Nif जीन या नाइट्रोजन initiating fuctor geue के नाम से जाना जाता है।
निल हरित शैवालों को मुख्यतः चावल की खेती या धान की खेती के उत्पादन में वृद्धि हेतु उपयोग किया जाता है।
 प्रश्न : वर्तमान समय में एक विशिष्ट नील हरित शैवाल को विशेष प्रकार से उपयोग किया जा रहा है , बताइये।
उत्तर : कुछ क्षेत्र जैसे दक्षिणी तथा दक्षिणी पूर्वी एशिया में नील हरित शैवाल के साथ एक जलीय टैरिडोफाइट उगाया जा रहा है जिसे Azolla के नाम से जाना जाता है।
उपरोक्त टेरिडोफाइट एक जलीय फन है जिसकी पत्तियों पर एक विशिष्ट नील हरित शैवाल पाया जाता है जिसे एनामिना Azolli के नाम से जाना जाता है।
इस निल हरित शैवाल के द्वारा वायुमंडल में पायी जाने वाली नाइट्रोजन को स्थरीकृत किया जाता है , इसके फलस्वरूप कृषि उत्पादन में वृद्धि होती है।
उपरोक्त निल हरित हरित शैवाल के अतिरिक्त एक अन्य निल हरित शैवाल Anabina Pinnata का उपयोग किया जाता है जिसे azolla के साथ उपयोग किये जाने पर चावल की खेती में 50% तक वृद्धि की जा सकती है।
उपरोक्त उपयोगो को देखते हुए केन्द्रीय चावल अनुसन्धान केंद्र , खटक के द्वारा Anabina azolli का व्यापक सवर्धन किया जा रहा है।
4. माइकोराइजा : कवक तथा उच्च वर्गीय पादपों की मूल के मध्य पाया जाने वाला सहजीवी सम्बन्ध माइकोराइजा कहलाता है , इस सम्बन्ध के अंतर्गत कवको के द्वारा उच्च वर्गीय पादपों को अनउपलब्ध पोषण तत्व उपलब्ध करवाए जाते है तथा कवक के द्वारा पादपो की मूल से संश्लेषित भोजन अवशोषित किया जाता है।
5. फास्फेट वियनकारी जीवाणु : कुछ जीवाणुओं के समूह के द्वारा भूमि में पाए जाने वाले अपर्याप्त फास्फेट को पादपो हेतु फास्फेट के पर्याप्त रूप में परिवर्तित किया जाता है जिसके फलस्वरूप पादप अपने फास्फेट की कमी को आसानी से पूर्ण कर सकते है , इस कार्य में उपयोगी जीवाणु Pseudomons तथा mycobacterium baeillus है।