पृष्ठ ऊर्जा या सतह उर्जा क्या है , परिभाषा , उदाहरण , सूत्र , कार्य (Surface energy in hindi)

(Surface energy in hindi) पृष्ठ ऊर्जा या सतह उर्जा क्या है , परिभाषा , उदाहरण , सूत्र : जैसा की हम जानते है कि किसी द्रव के अन्दर किसी अणु पर अन्य अणु चारों तरफ से आकर्षण बल लगाते है जबकि जो अणु द्रव की पृष्ठ पर उपस्थित होते है उन पर अन्दर उपस्थित कण बल लगाते है अर्थात पृष्ठ पर उपस्थित अणुओं पर अन्दर की तरफ एक बल कार्य करता है जो इनको अन्दर की तरफ आकर्षित करते है।
अत: जब किसी कण को अन्दर से पृष्ठ पर लाया जाता है तो हमें अन्तराण्विक बल के विरुद्ध कार्य करना पड़ता है अर्थात जो कण द्रव के पूर्ण रूप से भीतर होते है वे अन्य अणुओं द्वारा आकर्षित बल द्वारा बंधे हुए रहते है यदि हमे इन अणुओं को भीतर से पृष्ठ पर लाना पड़े तो हमें इस आकर्षण बल के विरूद्ध कार्य करना पड़ता है और यह किया गया कार्य अणुओं में स्थितिज ऊर्जा के रूप में संचित हो जाता है।
पृष्ठ ऊर्जा की परिभाषा : किसी द्रव के पृष्ठ के प्रति एकांक क्षेत्रफल पर अणुओं में उपस्थित इस अतिरिक्त स्थितिज ऊर्जा के मान को उस द्रव की पृष्ठ ऊर्जा कहते है।
अर्थात प्रति एकांक क्षेत्रफल पर अणुओं को अन्दर से पृष्ठ तक लाने में किया गया कार्य , जो अणुओं में स्थितिज ऊर्जा के रूप में संचित हो जाता है , इस अतिरिक्त स्थितिज ऊर्जा के मान को उस द्रव की पृष्ठ उर्जा कहते है।
पृष्ट ऊर्जा का SI मात्रकजूल/मीटर2” होता है तथा इसकी विमा [MT-2] होती है।

किसी द्रव के पृष्ठ क्षेत्रफल वृद्धि में किया गया कार्य का मान या सूत्र

माना चित्रानुसार एक ABCD आकृति है जिसकी लम्बाई भुजा CD की लम्बाई l है और CD भुजा को ढीला रखा जाता है और इसकी अन्य भुजाएँ फिक्स कर दी जाती है। अब इस ABCD आकृति को किसी द्रव में डुबोकर निकाल लिया जाता है जिससे इसमें द्रव भर जाता है , यह द्रव पृष्ठ तनाव के कारण AB भुजा की तरफ कार्यरत होता है क्यूंकि तनाव बल के कारण द्रव न्यूनतम आकृति ग्रहण करने की कोशिश करता है जिसके कारण AB भुजा की तरफ एक बल कार्य करता है जिसे तनाव बल कहते है।
इस तनाव बल का मान निम्न सूत्र द्वारा दिया जाता है –
T = F/2l
अत:
F = T.2l
अब मान लीजिये की CD पर इस तनाव बल के विपरीत दिशा में एक बल F आरोपित किया जाता है जिससे CD भुजा खिसकर C’D’ स्थिति पर चली जाती है , यहाँ तनाव बल T और इस बल F का परिमाण समान है।
इस बल F के कारण CD भुजा में हल्की सी स्थिति परिवर्तन से dx दूरी होती है , अर्थात CD में dx दूरी परिवर्तन से इसकी स्थिति C’D’ हो जाती है।
अत: इस dx विस्थापन के लिए बल F द्वारा किया गया कार्य निम्न होगा –
W = Fdx
यहाँ F का मान ऊपर के समीकरण से रखने पर
W = (T.2l)dx
यहाँ 2l.dx = dA
यहाँ dA = क्षेत्रफल में परिवर्तन है।
अत: dA क्षेत्रफल में परिवर्तन में किया गया कार्य
W = T.dA
इसी सूत्र के आधार पर पृष्ठ तनाव की निम्न परिभाषा भी दी जाती है –
द्रव के पृष्ठ क्षेत्रफल में एकांक वृद्धि करने के लिए किया गया कार्य उस द्रव का पृष्ठ तनाव कहलाता है , जबकि ताप को स्थित रखा जाए।