भ्रूणकोष का परिवर्धन और संरचना क्या है (structure and development of embryo sac in hindi)

(structure and development of embryo sac in hindi) भ्रूणकोष का परिवर्धन और संरचना क्या है ?

प्रारूपिक भ्रूणकोष का परिवर्धन और संरचना (structure and development of typical embryo sac) :

परिवर्धन : भ्रूणकोष परिवर्धन से पूर्व कार्यशील गुरुबीजाणु अथवा भ्रूणकोष मातृ कोशिका आकार में वृद्धि करती है। इसमें रिक्तिकाएँ बन जाती है। केन्द्रक समसूत्री विभाजन द्वारा दो पुत्री केन्द्रक बनाता है जो भ्रूणकोष के दो विपरीत ध्रुवो की तरफ अभिगमित हो जाते है। अधिकांश कोशिका द्रव्य इन दोनों केन्द्रकों के चारों तरफ वितरित रहता है और भ्रूणकोष के मध्य भाग में रिक्तिका और परिधीय कोशिकाद्रव्य का पतला स्तर होता है।
दोनों केन्द्रक सूत्री विभाजन द्वारा ध्रुवों पर दो दो पुत्री केन्द्रक बनाते है। यह भ्रूणकोष की चार केन्द्रकी अवस्था कहलाती है। एक और सूत्री विभाजन से आठ केन्द्रकी भ्रूणकोष बनता है जिसमें चार केन्द्रक एक ध्रुव पर और अन्य चार विपरीत ध्रुव पर होते है। प्रत्येक ध्रुव से एक एक केन्द्रक भ्रूणकोष के मध्य भाग की तरफ अभिगमन करता है। इन दोनों केन्द्रकों को ध्रुवीय केन्द्रक कहते है। दोनों ध्रुवीय केन्द्रक भ्रूणकोष के मध्य भाग में अंड समुच्चय के कुछ निकट आकर , परस्पर संयोजित हो जाते है तथा एक द्वितीयक केन्द्रक बनाते है।
दोनों ध्रुवों पर अब तीन केन्द्रक रह जाते है। बीजाण्डद्वारी ध्रुव के तीन केन्द्रक तीन केन्द्रक तीन कोशिकाओं में परिवर्धित हो , अंड समुच्चय अथवा अंड उपकरण बनाते है। निभागीय ध्रुव के तीनों केन्द्रक भी तीन प्रतिमुखी कोशिकाओं में परिवर्धित हो जाते है। इस प्रकार परिवर्धित हुए परिपक्व भ्रूणकोष में केवल सात कोशिकाएँ , एक अंडकोशिका , दो सहायक और तीन प्रतिमुखी कोशिकाएँ और भ्रूणकोष के मध्य में एक द्विगुणित कोशिका (द्वितीयक केन्द्रक) होती है।

संरचना (structure of embryo sac)

प्रारूपिक भ्रूणकोष में 3+2+3 प्रकार का भ्रूणकोष संगठन पाया जाता है अर्थात बीजाण्डद्वारीय सिरे पर तीन कोशिकीय और अगुणित अंड समुच्चय होता है जिसमें एक अंड कोशिका जो मादा युग्मक को निरुपित करती है और दो सहायक कोशिकाएँ होती है। मध्य भाग में दो अगुणित ध्रुवीय केन्द्रक पाए जाते है जो संलयित होकर आगे एक द्विगुणित द्वितीयक केन्द्रक बनाते है , जबकि निभागीय सिरे पर प्रतिमुखी कोशिकाएँ पाई जाती है , जो अगुणित होती है।
1. अंड समुच्चय (egg apparatus) : इसमें एक अंड कोशिका और दो सहायक कोशिकाएँ होती है।
सहायक कोशिकाएँ (synergids) : सहायक कोशिका की भित्ति में बीजाण्डद्वार की तरफ एक खाँच जैसी संरचना निर्मित होती है , जिसे तंतुरूपी उपकरण कहते है। सहायक कोशिकाओं में विशेष रूप से ऊपर की तरफ अर्थात तन्तुरूपी उपकरण के ठीक निचे केन्द्रक पाया जाता है जबकि इन कोशिकाओं के निचले हिस्से में एक बड़ी सुस्पष्ट रिक्तिका होती है।
सहायक कोशिका अल्पजीवी होती है और यह निषेचन के तुरंत बाद विघटित हो जाती है। बीजाण्डद्वारीय निषेचन अर्थात निषेचन की वह प्रक्रिया जिसमे नर युग्मकों को धारण करने वाली पराग नलिका बीजांड द्वार के माध्यम से प्रविष्ट होती है , में पराग नलिका का भ्रूणकोष में प्रवेश अंड कोशिका और सहायक कोशिका के बिच से अथवा सहायक कोशिका और भ्रूणकोष की भित्ति के मध्य में से या फिर सहायक कोशिका को भेदते हुए होता है। अंतिम उदाहरण में यह सहायक कोशिका तो तुरंत नष्ट हो जाती है और दूसरी सहायक कोशिका निषेचन के तुरंत बाद नष्ट हो जाती है।
ऐस्ट्रेसी कुल में सहायक कोशिकाएँ भ्रूणकोष से बाहर बीजाण्डद्वार तक विस्तृत होती है और चुषकांग का कार्य करती है। सैंटेलेसी कुल में सहायक कोशिकाएँ शाखित चुषकांग बनाती है।
अंड कोशिका (egg cell) : अंड समुच्चय में अंड कोशिका दोनों सहायक कोशिकाओं के मध्य में उपस्थित होती है लेकिन इसकी लम्बाई सहायक कोशिकाओं की तुलना में अधिक होती है। यह अण्डाकार अथवा नाशपाती के आकार की हो सकती है और इसका निचला हिस्सा अपेक्षाकृत चौड़ा होता है। इसके चौड़े भाग में केन्द्रक और कोशिका द्रव्य रहता है जबकि ऊपरी हिस्से में रिक्तिका पायी जाती है।
2. द्वितीयक केन्द्रक (secondary nucleus) : भ्रूणकोष के मध्य भाग में दो विपरीत ध्रुवों से स्थानांतरित ध्रुवीय केन्द्रक पाए जाते है जो आगे चलकर संलयित होते है और द्वितीयक केन्द्रक या भ्रूणपोष मातृकोशिका का निर्माण करते है। ये दोनों ध्रुवीय केन्द्रक सामान्यतया एक समान होते है फिर भी कुछ पौधों में बीजाण्डद्वारीय सिरे से आया ध्रुवीय केन्द्रक अपेक्षाकृत बड़ी आमाप अथवा साइज़ का होता है लेकिन फ्रिटिलेरिया में निभागीय सिरे का केन्द्रक अपेक्षाकृत बड़ा होता है। दोनों ध्रुवीय केन्द्रकों का संलयन या तो निषेचन के पूर्व अथवा निषेचन के दौरान अथवा कभी कभी निषेचन के बाद भी हो सकता है। संयोजन के बाद बना द्वितीयक केन्द्रक अंड कोशिका के ठीक निचे स्थित रहता है और प्रतिमुखी कोशिकाओं से एक बड़ी रिक्तिका द्वारा पृथक रहता है। कई पौधों में इसकी स्थिति थोडा नीचे की तरफ रहती है। ऐसी अवस्था में एक विशेष कोशिकाद्रव्यीय तन्तु द्वारा यह अंड कोशिका के सम्पर्क में बना रहता है।
3. प्रतिमुखी कोशिकाएँ (antipodal cells) : भ्रूणकोष के निभागीय सिरे पर तीन प्रतिमुखी कोशिकाएं पायी जाती है जो कि अल्पजीवी होती है और निषेचन के दौरान अथवा इसके बाद में ये विघटित हो जाती है। प्रारूपिक भ्रूणकोष में तो इनकी संख्या अपरिवर्तनशील होती है लेकिन अन्य में अलग अलग होती है। जैसे ओइनोथीरा में ये अनुपस्थित होती है , प्लम्बैजेला में एक होती है और पेपरोमिया में 6 होती है।

भ्रूणकोषी चूषकांग (embryo sac haustoria)

अधिकांश आवृतबीजी पौधों में भ्रूणकोष आवश्यकतानुसार अपना पोषण बीजाण्ड से अर्थात आसपास के ऊतकों से अपनी सतह के द्वारा अवशोषित करता है लेकिन जैसे जैसे भ्रूणकोष का विकास होता जाता है तो बीजाण्डकाय की वे कोशिकाएँ जो भ्रूणकोष के आस पास पायी जाती है , वे विघटित होकर भ्रूणकोष को पोषण देती है। कुछ उदाहरणों में बीजांडकाय के पूर्णतया विघटित हो जाने पर भ्रूणकोष को पोषण की प्राप्ति आंतरिक अध्यावरण की भीतरी कोशिका परतों से होती है।
लेकिन कुछ पौधों में भ्रूणकोष का बीजाण्डद्वारीय सिरा सक्रीय रूप से वृद्धि करता है और अतिवृद्धि के रूप में विकसित होकर पोषण प्राप्ति हेतु चुषकांग का कार्य करता है। इस संरचना को बीजाण्डद्वारीय भ्रूणकोष चूषकांग कहते है। उदाहरण फेसिओलस और टोरेनिया।
इसके विपरीत कुछ पौधों के भ्रूणकोष के निभागीय सिरे पर एक अतिवृद्धि विकसित होती है जो बीजाण्डकाय ऊतकों का चूषण करती हुई नलिकाकार चूषकांग के रूप में बीजाण्डासन के अग्र भाग में पहुँच जाती है। इसे निभागीय भ्रूणकोष चूषकांग कहते है। जैसे – एलियम में।
इसके विपरीत कुछ पौधों जैसे – वरनोनिया में भ्रूणकोष का बीजाण्डद्वारीय और निभागीय सिरा दोनों ही सक्रीय रूप से वृद्धि करते है लेकिन इनके द्वारा पोषण प्राप्ति केवल निभागीय सिरे से होती है अत: इस प्रकार के चूषकांग को भी निभागीय चूषकांग कहते है।

भ्रूणकोष का पोषण (nutrition of embryo sac)

सामान्यतया अधिकांश जातियों में भ्रूणकोष में पर्याप्त मात्रा में विशिष्ट खाद्य का संचय नहीं पाया जाता है। कुछ पौधों जैसे मूंगफली , तिल और बबूल में भ्रूणकोष में सघन स्टार्च कण पाए जाते है। कई अन्य पौधों में भी स्टार्च के रूप में खाद्य संचय उल्लेखित है। पश्च निषेचन अवस्था में यह खाद्य घटता जाता है। मेंग्रोव पादप सोनिरेसिया के भ्रूणकोष में तैलीय बुँदे होती है। एस्पिडिएस्ट्रा के भ्रूणकोष में रेफाइड मिलते है। कई कुलों जैसे केक्टेसी , पोर्टूलेकेसी , टिलीएसी , एसक्लिपिएडेसी आदि के सदस्यों में भ्रूणकोष में स्टार्च पाया गया है। इन पौधों में स्टार्च प्राय: भ्रूणकोष के कोशिका द्रव्य में निहित रहता है। कुछ पौधों जैसे मेडिकागो सेटाइवा , जीया मेज और पोर्टूलेकेसी ऑलिरेसिया में अंड कोशिका में भी स्टार्च पाया गया है।
बीजाण्ड की संरचना के अनुसार यह ज्ञात है कि भ्रूणकोष चारों तरफ से बीजाण्डकाय की कोशिकाओं से घिरा रहता है। अत: यह सहज ही अनुमान किया जा सकता है कि भ्रूणकोष में किसी भी प्रकार के पोषक पदार्थ की आपूर्ति बीजाण्डकाय की कोशिकाओं से होते हुए ही संभव है। भ्रूणकोष स्वयं के पोषण के लिए बीजांड के विभिन्न भागों जैसे निभागी , बीजाण्डकायी और अध्यावर्णी उत्तकों पर निर्भर होता है। बीजाण्ड की आकारिकीय संरचना से यह संकेत मिलता है कि भ्रूणकोष का मुख्य पोषक मार्ग निभागी छोर होता है क्योंकि यह छोर बीजाण्ड वृंत से सीधे जुड़ा रहता है , जिसमें कुछ लम्बाई तक संवहन शिरा फैली रहती है। बीजाण्ड वृंत के आधार अथवा थोडा ऊपर तक पोषकों की आपूर्ति संवहन शिरा द्वारा होती है। इसके आगे भ्रूणकोष तक पोषक पदार्थ बीजाण्डकाय के द्वारा ही पहुँचते है। कई पादपों में बीजाण्ड के आधार पर स्थित संवहन पुलों और निभागी छोर के मध्य विशेष प्रकार की लिग्नीकृत और मोटी भित्तियों वाली कोशिकाओं का समूह उपस्थित होता है जिसे हाइपोस्टेस कहते है।
भ्रूणकोष के पोषण के सम्बन्ध में यह तथ्य सुस्थापित है कि इस कार्य में निभागीय छोर पर स्थित ऊतक विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। कई पादपों जैसे मक्का और अफीम में प्रतिमुखी कोशिकाओं की भित्ति प्रवर्धो में अभिवृद्धि ही पोषण के कार्य को करती है। इसके अतिरिक्त भ्रूणकोष स्वयं भी निभागी और बीजाण्डद्वारी सिरों पर चुषकांग विकसित कर लेता है। कई पादपों में भ्रूणकोष को सामान्य सतह ही अवशोषी होती है।