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शरीर की सबसे मजबूत हड्डी का नाम क्या है strongest bone in the human body in hindi मानव शरीर की सबसे मजबूत हड्डी कहां होती है
strongest bone in the human body in hindi शरीर की सबसे मजबूत हड्डी का नाम क्या है मानव शरीर की सबसे मजबूत हड्डी कहां होती है ?
उत्तर : फीमर सबसे लम्बी जबकि टिबिया सबसे मजबूत हड्डी होती है | कभी कभी फिमर को भी सबसे मजबूत हड्डी के रूप में जाना जाता है जो जांघ में पायी जाती है |
पाद अस्थियाँ (Limb bones) :
- अग्रपाद – प्रत्येक भुजा में 30 अस्थियाँ होती है | ऊपरी भुजा में – ह्यूमरस forearm में रेडियस और अलना , कलाई में 8 कार्पल हथेली में 5 मेटाकार्पल और अँगुलियों में 14 phalanges , ऊपरी भुजा में एक लम्बी अस्थि होती है जिसे ह्यूमरस कहते हैं | ह्यूमरस का शाफ्ट ऊपरी भाग में गोलाकार होता है और साइडो में निम्न सिरे तक चपटा हो जाता है | शाफ़्ट के पाशर्वों में खुरदरा प्रवर्ध मध्य भाग के ऊपर होता है जिसे डेल्टोइड ट्यूबरोसिटी कहते है | इसमें डेल्टोइड पेशियाँ जुडती है | ह्यूमरस के ऊपरी भाग में गोलाकार सिर होता है जो अंस मेखला की ग्लीनॉइड गुहा में फिट होता है | निम्न चाप फैला होता है और अग्र भुजा अस्थियों से जुड़ने के लिए दो प्रोजेक्शन धारण किये होता है | अग्रभुजा दो अस्थियों से बनी होते हैं | रेडियस और अलना पृथक लम्बी अस्थि है और इसमें एक शाफ़्ट और दो सिरे होते हैं | यह अग्रबाहु की मध्यम अस्थि है | यह रेडियम से लम्बी होती है | अल्ना का सिर निम्न सिरे पर होता है | जब हम हाथ को ऊपर की ओर गति कराते है तो अलना छोटी अंगुली की ओर स्थित होती है |
अल्ना की ऊपरी extremity मजबूत और मोटी होती है और कोहनी की संधि निर्माण में प्रवेश करती है | ओलेक्रोनन प्रवर्ध ऊपर की ओर होता है और जब कोहनी सीधी होती है , तब ह्यूमरस ओलिक्रोनन फासा में फिट होता है |
अलना का कोरोनाइड प्रवर्ध आगे की तरफ होता है | यह ओलिक्रोनन प्रवर्ध से छोटा होता है और जब कोहनी मुडती है तो यह ह्यूमरस के कोरोनॉइड खाँच में फिट हो जाता है |
अलना की ट्रौक्लियर खाँच दो प्रवर्धो से बनी होती है | यह कोहनी संधि के निर्माण में ह्यूमरस की ट्राक्लियर सतह से जुड़ता है | रेडियल खाँच अस्थि की ऊपरी extremity की पाशर्व aspect में कोरोनोइड प्रवर्ध के समीप होती है | रेडियस के सिर की साइड रेडियल नोच के साथ जुड़ती है जिससे रेडियस अलना के चारों तरफ घूर्णन करती है | इस प्रकार पाशर्व रेडियो अल्नर संयोजन बनता है | दूरस्थ सिरे से अल्ना और रेडियस आठ छोटी अस्थियों जिन्हें कार्पल कहते हैं , के साथ जुडती जो कि कलाई बनाती है | कार्पल पाँच लम्बी मेटाकार्पल के साथ जुड़ती है जो अन्त में phalanges के साथ जुडती है | अंगूठा दो अंगुलाअस्थियों में बनता है और अन्य अंगुलियों में तीन अंगुलास्थियाँ होती है |
- पश्च पाद (hind limbs) – प्रत्येक टांग में भी 30 हड्डियाँ होती है | नाम – जांघ में फीमर , घुटने में पटेला , नीचे टांग में टिबिया और फिबुला , घुटने में 7 टार्सल , सोल में 5 मेटाटार्सल , 14 पाद अस्थि toes में | जांघ को एक लम्बी अस्थि फीमर सहारा प्रदान करती है | पटैला सीसेमोइड अस्थि है |
फीमर सबसे लम्बी जब किटिबिया सबसे मजबूत हड्डी होती है | इसमें एक शाफ्ट अथवा बॉडी होती है | ऊपरी सिरा सिर के रूप फूला हुआ होता है जो श्रोणीमेखला की एसिटाबुलम में फिट होता है | सिर के नीचे गर्दन होती है जो कि लम्बी और चपटी होती है | महा शिखरक बाहर की ओर होता है और लघु शिखर पीछे और अन्दर की ओर होता है | महाशिखरक अस्थि का महत्वपूर्ण प्रवर्ध होता है जो विभिन्न पेशियों को जुड़ने के लिए सतह देता है | (gluteal muscles को भी |)
इसके ऊपरी सिरे पर एक बड़ा गोल सिर होता है जो श्रोणी मेखला की ऐसीटाबुलम के साथ जुड़ता है और कुल्हे (हिप) पर कन्दुक खल्लिका संधि बनाता है | फीमर के निम्न सिरे पर दो वक्रीय उत्तल सतह होती है जिन्हें कोंडाइल कहते हैं जो टिबिया के साथ जुड़ता है और घुटने पर hinge joint बनाता है | पटैला दो कोंडाइल को पृथक करती है | अस्थि का एक चपटा त्रिकोणीय टुकड़ा पटैला कहलाता है जो कि फीमर के दो प्रोजेक्शन के मध्य अवकाश में मिलता है | टिबिया जो आंतरिक सतह पर स्थित होती है | मोटी होती है | टिबिया के ऊपरी सिरे पर दो हल्के धंसाव घुटने की संधि पर आर्टिकुलर सतह प्रदान करते हैं |
टिबिया अथवा shin bone (आंतरिक और मजबूत) टांग का प्रमुख कंकाल बनाती है और फिबुला के बीच की तरफ स्थित होती है | यह एक शाफ्ट और दो सिरे युक्त लम्बी अस्थि है | फिबुला निचली टांग की अस्थि है | टखने (ankle)का भाग सात अस्थियों से बना होता है जिन्हें टार्सल कहते हैं | टार्सल दूरस्थ भाग में बड़ी मेटाटार्सल अस्थियों से जुड़कर foot का निर्माण करती है जबकि मेटाटार्सल आगे की अंगुलास्थि से बने डिजिट से जुड़ता है और toes का निर्माण करता है |
अस्थियों के प्रकार – अस्थियाँ उनके आकार और आकृति के आधार पर चार भागों में बांटी जाती हैं –
- लम्बी अस्थि , उदाहरण – ऊपरी भुजा की ह्यूमरस रेडियस और अल्ना , जांघ की फीमर |
- छोटी अस्थि , उदाहरण –palm की मेटाकार्पल पैर की मेटाटार्सल , अँगुलियों की अंगुलास्थि |
- चपटी अस्थि , कंधे की स्कैपुला , स्टर्नम , कपाल अस्थि |
- अनियमित अस्थि , कशेरूका , कलाई की कार्पल्स |
संधि – वह बिंदु जहाँ दो अस्थियां एक दूसरे से जुडती है संधि या जॉइंट कहलाता है |
संधि (joint)मुख्यतः तीन प्रकार की होती है –
- तंतुवत अथवा स्थिर अथवा अगतिशील |
- उपास्थिल अथवा हल्की गतिशील |
- सायनोवियल अथवा स्वतंत्र गतिशील |
- तंतुवत अथवा गतिहीन संधियाँ (synarthroses) – गतिहीन संधि क्रेनियम की अस्थियों के मध्य और दांत के सॉकेट में उपस्थित होती है | गति नहीं होती क्योंकि अस्थियाँ एक दूसरे से कोलेजन तंतुओं से जुड़ी होती है |
- उपास्थिल अथवा हल्की गतिशील संधियाँ (amphiarthroses) – यह गतिशील संधियाँ कशेरूका के सेंट्रा के मध्य प्यूबिक सिम्फाइसिस पर और पसलियों और स्टर्नम के मध्य पायी जाती है | यह जोड़ों में सिमित गति होने देती है |
- सायनोवियल अथवा मुक्त गतिशील जॉइंट : मुक्त रूप से गतिशील संधि , अधिकांशत: पाद अस्थियों के मध्य पायी जाती है | यह स्थान सायनोवियल गुहा , के साथ मुक्त गति होने देता है | यह गुहा तंतुनुमा सायनोवियल झिल्ली द्वारा स्तरित होती है | यह एक कठोर , गाढ़ा सायनोवियल द्रव स्त्रावित करती है | यह संधियों को चिकनी बनाये रखता है और अस्थियों में घर्षणरहित गति होने देता है | यह संधि स्त्रायुओं द्वारा जुड़ी होती है | लिगामेंट व्यायाम द्वारा स्ट्रेच हो सकते है | इस प्रकार यह संधियों में ढीलापन और मुक्त गति होने देता है | सायनोवियल संधि टेन्डेन और पेशियों द्वारा सहारात्मक होती है | जो संधि का कार्य करती है | यदि सायनोवियल द्रव का स्त्रावण कम होता है तो संधियों में सूजन आ जाती है और दर्द होता है | यह अवस्था osteoarthritis कहलाती है | यह वृद्ध लोगों में सामान्य है | यह “wear and tear” disease भी कहलाती है क्योंकि यह कई वर्षों तक संधि के सामान्य उपयोग न होने के कारण होती है |
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