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stability of colloids in hindi कोलॉइडों का स्थायित्व क्या है किसे कहते हैं कोलाइड का स्थायित्व

By   September 10, 2022

जानिये stability of colloids in hindi कोलॉइडों का स्थायित्व क्या है किसे कहते हैं कोलाइड का स्थायित्व ?

कोलॉइडों का स्थायित्व (Stability of colloids) कोलॉइडों के स्थायित्व के प्रमुख रूप से दो कारण होते हैं

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(i) कोलॉइडी कणों पर समान आवेश का पाया जाना। कोलॉइडी कणों पर कोई एक विद्युत आवेश होता है और समान विद्युत् आवेश होने के कारण ये कोलॉइडी कण एक-दूसरे को प्रतिकर्षित करते रहते हैं। अतः वे एक-दूसरे से दूर-दूर रहते हैं जिससे कोलॉइडी अवस्था बनी रहती है। यदि किसी विधि से हम इन कोलॉइडी कणों के विद्युत् आवेश को उदासीन कर दें, तो इन कणों के मध्य का प्रतिकर्षण बल समाप्त हो जाएगा, जिस कारण वे एक-दूसरे से निश्चित दूरी बनाए हुए थे। इस प्रतिकर्षण के समाप्त होते ही कोलॉइडी कण एक-दूसरे के नजदीक आ जाते हैं और संयुक्त होकर बड़े-बड़े कण बना लेते हैं, जिससे वे अवक्षेपित हो जाते हैं। कोलॉइडी कणों के इस प्रकार से अवक्षेपित होने की प्रक्रिया को स्कंदन (Coagulation) कहते हैं।

(ii) विलायकन द्वारा इन समान आवेशित आयनों का स्थायीकरण होना। इन समान आवेशित आयनों के चारों तरफ विलायक अणुओं की एक परत द्वारा विलायकन हो जाता है। इस रक्षी परत के कारण कोलॉइडी कण स्थायी बने रहते हैं। यदि किसी विधि द्वारा इनकी विलायक सतह को दूर कर दिया जाए उदाहरणार्थ एथेनॉल द्वारा निर्जलन करवा दिया जाए तो भी सॉल का स्कंदन हो जाता है।

(विद्युत कण संचलन) (Electrophoresis) — जैसी कि हमने -11 ऊपर व्याख्या की है कि कोलॉइडी कण विद्युत् आवेशित कण। होते हैं। ये धनावेशित भी हो सकते हैं और ऋणावेशित भी। अतः यदि इन विलयनों को विद्युत् परिपथ में रखा जाए (चित्र 6.10) तो किसी एक इलेक्ट्रोड के क्षेत्र में ये कण एकत्रित होने लगते हैं। उदाहरणार्थ, As2S3 के ऋणावेशित सॉल में विद्युत् प्रवाह से कोलॉइडी कण ऐनोड की ओर एकत्रित होते कोलॉइडी विलयन हैं तो Fe(OH), के धनावेशित सॉल में विद्युत प्रवाह से कोलॉइडी (b) कण कैथोड की ओर एकत्रित होने लगते हैं। विद्युत्-धारा के विद्युत् प्रवाह से विद्युत् प्रवाह के प्रभाव से धनावेशित कणों का कैथोड की ओर संचलन धन कण बाद संचलन (Cataphorasis) और किसी भी विद्युत् आवेशित कोलॉइडी कणों का किसी इलेक्ट्रोड की ओर गमन वैद्युत कण संचलन (electrophoresis) कहलाता है।

रक्षात्मक क्रिया (Protective action) : यदि किसी द्रव विरोधी कोलॉइड में किसी द्रव स्नेही कोलॉइड की सुक्ष्म सी मात्रा मिला दी जाए तो वह द्रव विरोधी कोलॉइडी कणों पर एक रक्षक परत (Protective layer) सी बना देते हैं जिससे उस द्रव विरोधी कोलॉइड का स्थायित्व बढ़ जाता है। इस प्रकार एक द्रवस्नेही कोलॉइड दारा द्रव विरोधी कोलॉइड के स्थायित्व को बढ़ाने की क्रिया को उसकी रक्षात्मक क्रिया कहते हैं।