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प्रजाति किसे कहते हैं | प्रजाति की परिभाषा क्या है परिभाषित कीजिए का अर्थ species in hindi definition meaning

what is species in hindi definition meaning प्रजाति किसे कहते हैं | प्रजाति की परिभाषा क्या है परिभाषित कीजिए का अर्थ या मतलब बताइए ?

प्रजाति की संकल्पना (concept of species) : यद्यपि आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण पौधों की उपयोगिता और उनकी पहचान के आधार पर मनुष्य को पादप प्रजातियों के बारे में जानकारी अति प्राचीन काल से ही प्राप्त है लेकिन सर्वप्रथम प्रजाति की अवधारणा को तर्कसम्मत और वैज्ञानिक प्रमाणिकता प्रदान करने का श्रेय पादप वर्गीकरण विज्ञान के पुरोधा केरोलस लिनियस (1753) को दिया जाता है जिसने मूल आकारिकीय विविधताओं के आधार पर विभिन्न पादप प्रजातियों का गठन किया था।

डार्लिंगटन (1928) के अनुसार प्राकृतिक रूप से पायी जाने वाली पादप व्यष्टि अथवा आबादी के स्थायी रूप से पृथक और आनुवांशिक आधार पर स्थिर लक्षण प्रदर्शित करने वाले समूह जो अंत: प्रजनन प्रदर्शित करते है , प्रजाति कहलाते है।
क्लाऊसन और सहयोगियों (1945) के अनुसार , समान लक्षणी प्राकृतिक रूप से संगठित पौधों का वह समूह जिसके सदस्य जीनों का आदान प्रदान बिना किसी हानिकारक प्रभाव के करते है , प्रजाति कहलाता है।
उपरोक्त दोनों परिभाषाओं में निम्नलिखित तथ्य उभर कर सामने आते है –
1. एक पादप प्रजाति के सदस्य महत्वपूर्ण आकारिकी , शारीरिकी और अन्य लक्षणों में लगभग पूर्णतया समान होते है। 2. एक प्रजाति के सदस्यों में अंतर्प्रजनन अथवा लैंगिक प्रजनन होता है , सन्तति पीढ़ी का उद्भव होता है और वंशवृद्धि होती है।
3. एक प्रजाति के सदस्यों के मध्य आनुवांशिक अवरोध नहीं होता।
4. एक प्रजाति के सदस्य , सामान्यतया दूसरी प्रजाति के पौधों से लैंगिक जनन प्रदर्शित नहीं करते , अर्थात इनमें आनुवांशिक पदार्थो का विनिमय नहीं होता।
उपरोक्त तथ्यों के आधार पर यह कहा जा सकता है – बाह्य और आंतरिक लक्षणों में समान पौधों का वह समूह जिसके सदस्य जननक्षम और मुक्त रूप से अंतर्प्रजनन करते है , प्रजाति कहलाता है।

अंतराप्रजातीय वर्गक (intraspecific categories)

सामान्यतया एक ही प्रजाति के विभिन्न सदस्य बाह्य और प्रमुख आंतरिक लक्षणों में एकरूपता प्रदर्शित करते है लेकिन प्राय: यह भी देखा गया है कि वातावरण और भौगोलिक परिस्थितियों में परिवर्तनशील के कारण एक ही प्रजाति के कुछ सदस्य बाह्य और आन्तरिक और जैव रासायनिक यहाँ तक कि कभी कभी आनुवांशिकी लक्षणों में कुछ भिन्नता दर्शाते है। लाक्षणिक विविधताएँ अथवा भिन्नताएँ परिलक्षित करने वाले एक ही प्रजाति के ऐसे पादप समूहों को “अवजाति वर्ग” अथवा अंतराप्रजाति वर्गक कहा जाता है। पादप जगत विशेषकर आवृतबीजी पौधों में पाए जाने वाले कुछ प्रमुख अवजाति वर्ग निम्नलिखित प्रकार से है –
1. जैव प्रारूप : प्राकृतिक रूप से एक ही अथवा अलग स्थानों पर पाए जाने वाले एक ही प्रजाति के पादप समूह , जिनके सदस्य आनुवांशिक रूप से पूर्णतया समान लेकिन आकारिकी अथवा शारीरिकी लक्षणों में कुछ असमानताएँ प्रदर्शित करते है , जैव प्रारूप कहलाते है।
यहाँ ध्यान देने योग्य प्रमुख तथ्य यह है कि जैव प्रारूप अथवा बायोटाइप पादप चाहे एक ही स्थान पर उगे अथवा अलग अलग स्थानों पर लेकिन उनका एक जैसी वातावरणीय परिस्थितियों में उगना आवश्यक है। ऐसे पौधे समान वातावरण में उगते हुए भी एक दुसरे से कुछ भिन्न होते है तभी उनको जैव प्रारूप अथवा बायोटाइप कहा जाता है। ये स्थानीय परिवर्ती अथवा भिन्नतामूलक पौधों के रूप में पाए जाते है।
2. पारिस्थितिकी प्रारूप अथवा परिप्रारूप : एक ही प्रजाति के वे पादप सदस्य जो एक दुसरे से कुछ बाह्य आकारिकी अथवा कार्यिकी लक्षणों में भिन्नता अपने वातावरण की असमानता के कारण प्रदर्शित करते है , परिप्रारूप कहलाते है।
हालाँकि परिप्रारूपों का विकास अर्थात इनके सदस्यों में भिन्नता , वातावरण के परिवर्तन के कारण उत्पन्न होती है लेकिन आगे चलकर विभिन्न इकोटाइप्स को यदि एक स्थान पर अथवा एक जैसे वातावरण में रखा जाए तो भी इनमें आकारिकी लक्षणों की भिन्न्नता बराबर स्थायी रूप से बनी रहती है। इससे स्पष्ट है कि इकोटाइप्स में विकसित आकारिकीय भिन्नताएँ आगे चलकर आनुवांशिक रूप से स्थिर होती है और आगे आने वाली पीढियों में भी दृष्टिगोचर होती है।
3. पारिज : पारिज एक ही पादप प्रजाति के ऐसे समूह है जो अलग अलग वातावरण में उगने के कारण सूक्ष्म अथवा गौण अन्तर प्रदर्शित करते है लेकिन इन पौधों को यदि एकसमान वातावरण में उगाया जाए तो इनकी भिन्नताएँ विलोपित हो जाती है और ये पूर्णतया समान लक्षण प्रदर्शित करते है।
उपरोक्त परिभाषा से यह स्पष्ट होता है कि हालाँकि ये एक ही प्रजाति के सदस्य है लेकिन इनमें लाक्षणिक असमानताएँ दृष्टिगोचर होती है और इनकी असमानतायें स्थायी अथवा आनुवांशिक न होकर पूर्णतया अस्थायी और परिस्थितिजन्य होती है। यह भी कहा जा सकता है कि इन पौधों को यदि एक सी परिस्थितियों में उगाया जाए तो कुछ पीढियों के बाद ये फिर से मूल प्रजाति के लाक्षणिक गुण और समानता प्रदर्शित करते है।
4. किस्म : इस वर्गक की पहचान और स्थापना का श्रेय लिनियस को है।
एक प्रजाति में उत्पन्न पादप समूह जो बाह्य लक्षणों अथवा लक्षण प्रारूपों में विविधता प्रदर्शित करते है और इनकी विभेदनशीलता आनुवांशिक स्तर पर निर्धारित होती हो तो इनको किस्म कहा जाता है (क्रोसं 1970 के अनुसार) |
इस वर्गक को विभिन्न वनस्पति शास्त्रियों द्वारा अनेक संदर्भो में भी प्रस्तुत किया गया है जैसे उपजाति अथवा अर्धजाति आदि।
पादप नामकरण की अन्तर्राष्ट्रीय संहिता international code of botanical nomenclature (ICBN ) के अनुसार उपजाति अथवा किस्म के नामकरण की प्रक्रिया सुस्थापित की गयी है। इनका नामकरण त्रिपद नाम पद्धति द्वारा किया जाता है जैसे –
(1) पीली सरसों – ब्रेसिका केंप्रेस्ट्रिस वेरा , सरसों।
(2) काली सरसों – ब्रेसिका केंप्रेस्ट्रिस वेरा , डाइकोटोमा।
(3) फूलगोभी – ब्रेसिका ओलेरेसिया वेरा , बोट्राइटिस।
(4) पत्तागोभी – ब्रेसिका ओलेरेसिया वेरा , केपिटेटा।
5. अन्य : पादप वर्गिकी में पादप नामकरण के अंतर्गत उपरोक्त वर्गकों के अतिरिक्त कुछ अन्य पदों का गठन भी किया जाता है जिनकी सहायता से अनेक प्रकार के अंतराजातीय प्रभेदों को अभिव्यक्त किया जाता है ; हालाँकि इन पदों अथवा वर्गकों की स्थापना अभी तक पूर्णतया सुस्पष्ट नहीं है फिर भी अनेक वैज्ञानिक और शोधकर्ता इनका समय समय पर उपयोग करते है जैसे प्रारूप भेद।
कृषिज उपजातियाँ और क्लाइंस आदि।
उपरोक्त तथ्यों के पर्यवेक्षण से यह प्रकट होता है कि हालाँकि प्रजाति अथवा जाति नामक वर्गक एक पूर्णतया प्राकृतिक इकाई है। इसे परिभाषित करना हालाँकि कठिन हो सकता है परन्तु किसी भी पादप समूह को देखकर यह पहचान करने में कोई कठिनाई नहीं होती कि इस समूह में उपस्थित पौधे एक ही प्रजाति से सम्बन्धित है या नहीं।
लेकिन प्रजाति से उच्चतर स्तर के प्राय: सभी वर्गक जैसे वंश , कुल और गण कमोबेश कृत्रिम प्रतीत होते है।
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