सोलेनेसी – कुल क्या है (solanaceae family in hindi) सोलेनेसी कुल के पौधों के नाम का वर्णन पौधा

(solanaceae family in hindi) plants name सोलेनेसी – कुल क्या है सोलेनेसी कुल के पौधों के नाम का वर्णन पौधा कीजिये का वानस्पतिक नाम और का पुष्प सूत्र आर्थिक महत्व बताइये ?

सोलेनेसी – कुल (solanaceae family) : 

वर्गीकृत स्थिति – बेन्थम और हुकर के अनुसार –

प्रभाग – एन्जियोस्पर्मी

उप प्रभाग – डाइकोटीलिडनी

वर्ग – गेमोपेटेली

श्रेणी – बाइकारपेलेटी

गण – पोलीमोनियेल्स

कुल – सोलेनेसी

कुल सोलेनेसी के विशिष्ट लक्षण (salient features of solanaceae)

  1. कुल के अधिकांश सदस्य शाक या क्षुप अथवा वल्लरी , वृक्ष बहुत कम।
  2. पर्ण एकान्तरित अथवा सम्मुख , अननुपर्णी।
  3. पुष्पक्रम एकशाखी अथवा द्विशाखी ससीमाक्षी।
  4. पुष्प पंचतयी , उभयलिंगी , नियमित और जायांगधर।
  5. बाह्यदल और दलपुंज संयुक्त , बाह्यदल चिरलग्न।
  6. पुंकेसर सामान्यतया 5 , दललग्न।
  7. जायांग द्विअंडपी , युक्तांडपी , अंडाशय तिरछा , बीजांडसन फूला हुआ।

प्राप्तिस्थान और वितरण (occurrence and distribution)

सोलेनेसी द्विबीजपत्री पादपों का एक महत्वपूर्ण कुल है जिसमें लगभग 90 वंश और 2250 जाटियाँ सम्मिलित है। इस कुल के सदस्य अधिकांशत: विश्व के उष्णकटिबंधीय और शीतोष्ण क्षेत्रों में पाए जाते है। मध्य और दक्षिण अमेरिका , विश्व में इस कुल के प्रमुख वितरण केंद्र है। भारत में इस कुल के लगभग 15 वंश और 88 पादप जातियाँ मुख्यतः हिमालय और दक्षिणी पूर्वी क्षेत्र में पायी जाती है। इस कुल का सबसे बड़ा पादप वंश सोलेनम है , जिसमें लगभग 1500 जातियाँ सम्मिलित है। इस कुल के लगभग 38 पादप वंश मध्य और दक्षिणी अमेरिका और केरीबियन द्वीप समूह में सिमित क्षेत्रीयता प्रदर्शित करते है।

कायिक लक्षणों का विस्तार (range of vegetative characters)

प्रकृति और आवास : इस कुल के अधिकांश सदस्य एकवर्षीय या बहुवर्षीय शाक जैसे मकोय (सोलेनम नाइग्रम) और तम्बाकू (निकोटियाना टेबेकम) है। अश्वगंध (विथानिया सोम्नीफेरा ) एक उपक्षुप अथवा बहुवर्षीय शाक है। कुछ पौधे क्षुप जैसे सोलेनम टोरवम और छोटे वृक्ष , जैसे – सोलेनम वर्बेसीफोलियम , सिफोमेन्ड्रा बिटेसिया तथा सोलेनम जाइजेन्टिया के रूप में पाए जाते है , जबकि कुछ अन्य सदस्य जैसे सोलेनम जेस्मीनोइडिस वल्लरी अथवा बेलों के रूप में मिलते है।

मूल : शाखित मूसला जड़।

स्तम्भ : अधिकांश सदस्यों में स्तम्भ शाखित और अरोमिल होता है लेकिन कुछ पौधों जैसे लाइसियम में यह शूलमय होता है , ये शूल रूपान्तरित शाखाएँ होती है। स्तम्भ शाकीय जैसे सोलेनम नाइग्रम में अथवा काष्ठीय जैसे सेस्ट्रम में हो सकता है। कुछ जातियों जैसे आलू अथवा सोलेनम ट्यूबेरोसम में तना भूमिगत संचय के कारण फूलकर कंदिल हो जाता है।

पर्ण : सरल , एकान्तरित , अननुपर्णी , अच्छिन्नकोर जैसे – पिटूनिया और सेस्ट्रम में अथवा कटे फटे उपांत वाली जैसे सोलेनम जैन्थोकारपम में हो सकती है। लाइकोपरसिकोन और सोलेनम ट्यूबेरोसम में पर्ण पिच्छकी रूप से संयुक्त होती है। पुष्पक्रम क्षेत्र में पत्तियाँ कभी कभी सम्मुख रूप से विन्यासित पाई जाती है। शिराविन्यास जालिकावत होता है।

पुष्पीय लक्षणों का विस्तार (range of floral characters)

पुष्पक्रम : सामान्यतया ससीमाक्ष। द्विशाखित ससीमाक्ष जैसे – धतूरा में , कुण्डलिनी ससीमाक्ष , जैसे – सोलेनम नाइग्रम अथवा कुटिल ससीमाक्ष जैसे – एट्रोपा बेलेडोना में हो सकता है। विथानिया में पुष्प कक्षीय गुच्छों में विन्यासित होते है।

पुष्प : सवृन्त , सहपत्री अथवा सहपत्र रहित , पूर्ण , त्रिज्यासममित , चक्रिक , उभयलिंगी लेकिन विथानिया कोऐग्यूलेन्स में एकलिंगी , पंचतयी और जायांगधर। शइजेंथस और हायोसाइमस में पुष्प एकव्याससममित होते है।

बाह्यदलपुंज : बाह्यदलपत्र-5 , संयुक्त बाह्यदली , चिरलग्न , विन्यास सामान्यतया कोरस्पर्शी , कभी कभी कोरछादी। फाइसेलिस में बाह्यदल उत्तरवर्धी होते है अर्थात ये बड़े होकर फल को पूरी तरह ढक लेते है जबकि बैंगन अथवा सोलेनम मेलोन्जिना में बाह्यदल माँसल और शूलमय अथवा आपातजीर्णी होते है।

दलपुंज : दलपुंज-5 , संयुक्तदलीय , दलपुंज विन्यास कोरस्पर्शी जैसे – सोलेनम नाइग्रम में अथवा व्यावर्तित जैसे – धतूरा में या कोरछादी जैसे – निकेन्ड्रा में हो सकता है। दलपुंज कीपाकार जैसे – फाइसेलिस में चक्राकार जैसे – सोलेनम तुरही या बिगुलाकार जैसे धतूरा में नलिकाकार जैसे – सेस्ट्रम में या द्विओष्ठी जैसे – शाइजेंथस में हो सकता है।

पुमंग : पुंकेसर सामान्यतया 5 , पृथक पुंकेसरी , दललग्न होते है। पुंतन्तु असमान छोटे और परागकोष अग्रस्पर्शी होते है। एकव्याससममित पुष्पों में जैसे सेल्पिग्लोसस में पुंकेसरों की संख्या 4 या दो (जैसे – शाइजेंथस में) हो सकती है। इनमें शेष पुंकेसर बन्ध्य होते है। परागकोष द्विकोष्ठी , आधारलग्न सहजात और अंतर्मुखी होते है।

जायांग : द्विअंडपी और युक्तांडपी होता है लेकिन कुछ पौधों जैसे निकेन्ड्रा में जायांग चार अथवा पाँच अंडपी पाया जाता है। अंडाशय उधर्ववर्ती और द्विकोष्ठी होता है , लेकिन कुछ प्रजातियों जैसे धतूरा में आभासी पट बनने के कारण अंडाशय चतुर्कोष्ठीय अथवा बहुकोष्ठीय जैसे – कैप्सिकम में हो जाता है। साथ ही लाइसियम और कैप्सिकम में ऊपरी भाग में अंडाशय एककोष्ठीय होता है। बीजांडन्यास स्तम्भीय , जायांग में तिर्यक पट और फूला हुआ बीजांडासन इस कुल के विशिष्ट लक्षण है। वर्तिका सरल और वर्तिकाग्र द्विपालित अथवा समुंड पाई जाती है।

सोलेनेसी कुल के अधिकांश सदस्यों में जायांग के दोनों अंडप अपनी सामान्य , मध्यवर्ती स्थिति से लगभग 45 डिग्री के कोण पर दक्षिणावर्त घूर्णन अथवा घुमाव प्रदर्शित करते है।

जायांग के नीचे एक मकरंद चक्रिका पायी जाती है।

फल और बीज : सामान्यतया सरसफल अथवा बेरी पाया जाता है। धतूरा में पटविदारक केप्सूल और हायोसाइमस में पिक्सीडियम पाया जाता है।

बीजों का प्रकीर्णन सामान्यतया पशु और पक्षियों द्वारा होता है। एट्रोपा और हायोसाइमस की जातियों में जल के द्वारा भी बीजों का प्रकीर्णन होता है।

पुष्प सूत्र :

जातिवृतीय सम्बन्ध और बंधुता : कुल सोलेनेसी एक तरफ कानवाल्वुलेसी और दूसरी तरफ कुल स्क्रोफुलेरियेसी से समानता प्रदर्शित करता है। कानवाल्वुलेसी से इसके अनेक लक्षण मिलते है लेकिन इसके कुछ सदस्य जैसे सेल्पीग्लोसस और ब्रुनफेल्सिया अनियमित और एकव्यासममित पुष्पों के कारण स्क्रोफुलारियेल्स से भी समानता प्रदर्शित करते है। संभवतः इसलिए तख्ताजन द्वारा इस कुल को गण स्क्रोफुलारियेल्स में रखा गया है। यद्यपि सोलेनेसी और स्क्रोफुलारियेसी एक दूसरे के निकट है लेकिन कुछ लक्षणों जैसे उभयफ्लोयमी अथवा समद्विपाशर्विय संवहन बंडलों की उपस्थिति और त्रिज्या सममित दलपुंज , ये इन दोनों कुलों की भिन्नता को परिलक्षित करते है। सेल्पीग्लोसस वंश , कुछ पादप वर्गीकरण विज्ञानियों के अनुसार सोलेनेसी और स्क्रोफुलारियेसी के मध्य योजक कड़ी कही जा सकती है। तिरछे अंडाशय की उपस्थिति सोलेनेसी की एक ऐसी विशेषता है जिसके आधार पर इसे सरलता से अन्य कुलों से पृथक किया जा सकता है।

हालाँकि सोनेनेसी और कॉनवॉल्वुलेसी में अनेक लक्षण समान है फिर भी निम्न विविधताओं के कारण दोनों कुलों को अलग किया जा सकता है –

सोलेनेसी और कॉनवॉल्वुलेसी में असमानताएँ (difference between solanaceae and convolvulaceae)

 सोलेनेसी

 कॉनवॉल्वुलेसी

 1. बाह्यदल-5 , संयुक्त और चिरलग्न। रसभरी में बाह्यदलपुंज बड़ा होकर पूरे फल को ढक लेता है। 

 बाह्यदल-5 , स्वतंत्र अथवा पृथक होते है। 

 2. अंडाशय तिरछा स्थित होता है। 

 अंडाशय सीधा होता है। 

 3. अंडाशय 2 से 4 कोष्ठीय प्रत्येक कोष्ठ में अनेक बीजांड। 

 अंडाशय 2 से 4 कोष्ठीय , प्रत्येक कोष्ठ में प्राय: 1 अथवा 2 बीजांड। 

आर्थिक महत्व (economic importance)

  1. खाद्य पदार्थ:
  1. सोलेनम ट्यूबेरोसम – आलू।
  2. सोलेनम मेलोन्जिना – बैंगन।
  3. फाइसेलिस पेरूविआना – रसभरी।
  4. लाइकोपरसिकोन एसक्यूलेंटम – टमाटर।
  5. कैप्सिकम एनुअम – मिर्च।
  6. केप्सिकम फ्रूटेसेन्स – शिमला मिर्च।
  1. औषधिय पादप:
  2. हायोसाइमस नाइगर (hyoscyamus niger henbane )– खुरसनी अजवाइन की सुखी पत्तियों और पुष्पों से हेनबेन नामक दवा प्राप्त होती है जो तंत्रिका तंत्र व्याधियों में शामक के रूप में और दमा और काली खाँसी में प्रयुक्त होती है।
  3. विथानिया सोम्नीफेरा (withania somnifera in hindi)– अश्वगंध की जड़ों से प्राप्त औषधि बलवर्धक और कमजोरी दूर करने वाली होती है। इसके अतिरिक्त यह खाँसी और गठिया रोग के उपचार में काम आती है , इसकी छाल को पीसकर फोड़े , फुंसियों पर लगाने से लाभ होता है।
  4. सोलेनम नाइग्रम (solanum nigrum)– मकोय , इसकी पत्तियों को सब्जी के रूप में प्रयुक्त करने से यकृत सम्बन्धी रोगों में शीघ्र लाभ होता है।
  5. एट्रोपा बैलाडोना(atropa belladonna) – इसकी जड़ों में एट्रोपिन नामक अल्कलॉयड मिलता है जो बैलाडोना औषधि बनाने के काम आता है। यह औषधि शांतिकर और दर्द निवारक , प्लास्टर के रूप में और पुतली विस्तारण के लिए प्रयुक्त होती है।
  6. इटूरा इनोक्सिया (datura innoxia)– धतूरा और डटूरा मेटल – काला धतूरा और इस वंश की अन्य जातियों से स्ट्रेमोनियम नामक औषधि प्राप्त की जाती है। इसमें मुख्यतः एट्रोपिन , हायोसाइमीन और हायोसीन नामक एल्केलॉयड होते है। यह औषधि दमा में विशेष रूप से प्रभावी है। धतूरे के फल और पुष्प भगवान शिव की पूजा में प्रयुक्त होते है। इसके फलों के रस का उपयोग बाल झड़ने के उपचार में किया जाता है। इसके बीज अत्यन्त विषैले होते है।

III. शोभाकारी पौधे (ornamental plants) :

  1. पिटुनिया हाइब्रिडा
  2. पिटुनिया निक्टेजिनीफ्लोरा और पिटूनिया की अन्य जातियाँ।
  3. पिटुनिया वायोलेसिया।
  4. सेस्ट्रम नोक्टर्नक – रात की रानी
  5. सोलेनम जेस्मीनोइडिस।
  6. सोलेनम डल्कामेरा।
  7. सेस्ट्रम डायरनम – दिन का राजा।
  8. ब्रूनफेल्सिया होपियाना – yesterday – today – tomorrow plant
  9. शाइजेंथस – poor man’s orchid
  10. सोलेनम ग्रांडीफ्लोरम।
  1. तम्बाकू: इसकी अनेक जातियों जैसे निकोटियाना टोबेकम और निकोटियाना रस्टिका की सुखी और परिशोधित पत्तियों से तम्बाकू मिलती है। इसका प्रयोग खाने , सूंघने और बीडी , सिगरेट और सिगार में किया जाता है। इन पत्तियों में निकोटीन और एनाबैसिन नामक एल्केलॉयड प्रचुर मात्रा में होते है जो नशीले और मनुष्य के केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र पर शिथिलकारी प्रभाव डालने वाले होते है। औषधि के रूप में तम्बाकू का उपयोग शामक , कृमिहर और कीटनाशी प्रभाव के लिए किया जाता है। इसके बीजों से प्राप्त तेल पेंट और रंग रोगन बनाने में काम आता है।

कुल सोलेनेसी के प्रारूपिक पादपों का वानस्पतिक वर्णन (botanical description of typical plants from solanaceae)

  1. सोलेनम नाइग्रम लिन. (solanum nigrum linn.):

स्थानीय नाम – मकोय , चिरपोटी।

प्रकृति और आवास – एकवर्षीय , छोटी , जंगली शाक।

मूल – शाखित मूसला जड़।

स्तम्भ – शाकीय , उधर्व , बेलनाकार , ठोस , शाखित , हरा और अरोमिल।

पर्ण : स्तम्भीय और शाखीय , सरल , एकान्तरित , सवृंत , अननुपर्णी , अंडाकार , दाँतेदार , चिकनी और चमकीली , निशिताग्र , शिराविन्यास एकशिरिय जालिकावत।

पुष्पक्रम : ससीमाक्षी , अतिरिक्त कक्षस्थ अथवा उपछत्रक ससीमाक्ष। इसे रीपिडिया भी कहते है।

पुष्प : सवृंत , असहपत्री , नियमित , त्रिज्यासममित , पंचतयी , उभयलिंगी , चक्रिक और जायांगधर।

बाह्यदलपुंज : बाह्यदल – 5 , संयुक्त बाह्यदली , पाँच छोटी पालियों युक्त , हरे , चिरलग्न , विन्यास कोरस्पर्शी।

दलपुंज : दलपत्र-5 , संयुक्त , सफ़ेद अथवा हल्के पीले , चक्रिक , विन्यास कोरस्पर्शी।

पुमंग : पुंकेसर-5 , दल एकान्तरित , पृथक पुन्केसरी , दललग्न , पुंतन्तु छोटे , परागकोष अग्रस्पर्शी शंक्वाकार रूप में , द्विकोष्ठी , आधारलग्न , अंतर्मुखी।

जायांग : द्विअंडपी , युक्तांडपी , अंडाशय पुष्पासन पर तिरछे , दक्षिणावर्त 45 डिग्री के कोण पर अवस्थित , द्विकोष्ठीय , उधर्ववर्ती , बीजांडन्यास स्तम्भीय , बीजांडसन फूला हुआ , वर्तिका सरल , आधारीय भाग पर रोमिल , वर्तिकाग्र द्विपालित।

फल : सरस फल बेरी , चिरलग्न बाह्यदलपुंज युक्त।

पुष्पसूत्र :

2. पिटूनिया निक्टजेनीफोलिया जुस. (petunia nyctaginifolia juss.)

स्थानीय नाम : पिटुनिया।

प्रकृति और आवास : उद्यानों में उगाया जाने वाला एकवर्षीय शाक।

मूल : शाखित मूसला जड़।

स्तम्भ : उधर्व , शाखित , शाकीय , हरा और रोमिल , ठोस और बेलनाकार।

पर्ण : अवृंत , सरल , स्तम्भीय और शाखीय , सम्मुख और क्रॉसित , अननुपर्णी , अंडाकार , अच्छिन्नकोर , निशिताग्र , शिराविन्यास जालिकावत।

पुष्पक्रम : कक्षीय ससीमाक्ष जो एकल कक्षस्थ प्रतीत होता है।

पुष्प : सहपत्री , सवृंत , उभयलिंगी , त्रिज्यासममित , नियमित , पूर्ण और जायांगधर।

बाह्य दलपुंज : बाह्यदल-5 , हरे , संयुक्त , चिरलग्न , विन्यास कोरस्पर्शी।

बाह्य दलपुंज : दल-5 , संयुक्त दलीय , विन्यास व्यावर्तित अथवा अन्तर्नत कोरस्पर्शी , आकर्षक रंगीन और कीपाकार।

पुमंग : पुंकेसर-5 , पृथक पुंकेसरी , दल एकान्तरित दललग्न , पुंतन्तु लम्बे , आधारलग्न , द्विकोष्ठी , अंतर्मुखी।

जायांग : जायांग द्विअंडपी , युक्तांडपी , अंडाशय तिर्यक , द्विकोष्ठीय , उधर्ववर्ती , स्तम्भीय बीजांडन्यास , बीजांडासन फूला हुआ। वर्तिका सरल और लम्बी , वर्तिकाग्र द्विपालित।

फल : केप्सूल

पुष्पसूत्र :

प्रश्न और उत्तर

प्रश्न 1 : तिर्यक अंडाशय किस कुल का लक्षण है –

(अ) ऐस्ट्रेसी

(ब) क्रुसीफेरी

(स) सोलेनेसी

(द) एपीऐसी

उत्तर : (स) सोलेनेसी

प्रश्न 2 : फूला हुआ बीजाण्डासन किस कुल का लक्षण है –

(अ) रेननकुलेसी

(ब) सोलेनेसी

(स) ऐस्ट्रेसी

(द) एपीऐसी

उत्तर : (ब) सोलेनेसी

प्रश्न 3 : सोलेनेसी कुल में बीजाण्डन्यास पाया जाता है –

(अ) स्तम्भीय

(ब) सीमान्त

(स) मुक्त स्तम्भीय

(द) आधारी

उत्तर : (अ) स्तम्भीय

प्रश्न 4 : निम्नलिखित में से किस में बीजाण्डन्यास पाया जाता है –

(अ) स्तम्भीय

(ब) सीमान्त

(स) मुक्त स्तम्भीय

(द) आधारी

उत्तर : (अ) स्तम्भीय

प्रश्न 5 : शिमला मिर्च का वानस्पतिक नाम क्या है –

(अ) कैप्सिकम एनम

(ब) कैप्सेला वर्सापेस्टोरिस

(स) कैप्सिकम फ्रूटेसेन्स

(द) लाइकोर्पसिकम एस्कुलेंटम

उत्तर : (स) कैप्सिकम फ्रूटेसेन्स