snell’s law in hindi or refraction first and second law in hindi , स्नेल का नियम या अपवर्तन का प्रथम नियम :-
(refraction explain huygens law in hindi) हाइगेन के तरंग सिद्धांत के आधार पर अपवर्तन की व्याख्या : माना xy तल विरल माध्यम को सघन माध्यम से पृथक करता है। विरल माध्यम तथा सघन माध्यम का अपवर्तनांक क्रमशः n1 व n2 है। विरल माध्यम व सघन माध्यम में प्रकाश का वेग क्रमशः V1 व V2 है एवं प्रकाश का निर्वात में वेग V है।
प्रकाश का निर्वात में वेग तथा प्रकाश का माध्यम में वेग के अनुपात को अपवर्तनांक कहते है तथा इसे n या μ (म्यु) से व्यक्त करते है।
अर्थात
μ या n = प्रकाश का निर्वात में वेग/प्रकाश का माध्यम में वेग
यदि विरल माध्यम का अपवर्तनांक n1 हो तो
n1 = V/V1 समीकरण-1
इसी प्रकार ,
सघन माध्यम का अपवर्तनांक n2 हो तो –
n2 = V/V2 समीकरण-2
विरल माध्यम के सापेक्ष सघन माध्यम का अपवर्तनांक n21 हो तो –
n21 = सघन माध्यम का अपवर्तनांक/विरल माध्यम का अपवर्तनांक
n21 = n2/n1 समीकरण-3
समीकरण 1 , 2 व 3 से –
n21 = V1 /V2 समीकरण-4
माना XY तल पर एक समतल तरंगाग्र AB आपतित है। समतल तरंगाग्र AB का प्रत्येक कण द्वितीयक तरंगिकाओं की भांति व्यवहार करता है , समतल तरंगाग्र AB पर 1 , 2 व 3 आपतित प्रकाश किरणें होती है जो अभिलम्ब से आपतन कोण i बनाती है , आपतित तरंगाग्र AB के बिन्दु B से उत्सर्जित द्वितीयक तरंगिका को बिंदु A’ तक पहुँचने में t समय लगता है अत: इसके द्वारा तय दूरी BA’ = V1t होगी अत: इतने समय में ही बिन्दु A से अपवर्तित द्वितीयक तरंगिका सघन माध्यम में V2t दूरी तय कर लेती है अत: तरंगाग्र की स्थिति ज्ञात करने के लिए बिंदु A को केंद्र मानकर V2t दूरी के एक चाप की रचना करते है ,इस चाप पर बिंदु A’ से स्पर्श रेखा A’B’ खींचते है जिसे अपवर्तित समतल तरंगाग्र कहते है।
इसके संगत 1′ , 2′ व 3′ को अपवर्तित प्रकाश किरणें कहा जाता है , अपवर्तित प्रकाश किरण अभिलम्ब से अपवर्तन कोण r बनाती है।
ΔABA’ से –
Sin I = BA’/AA’
चूँकि BA’ = V1t
Sin I = V1t/AA’
V1t = AA’Sin I समीकरण-5
ΔA’B’A से –
Sin r = AB’/AA’
चूँकि AB’ = V2t
Sin r = V2t/AA’
V2t = AA’Sin r समीकरण-6
समीकरण-5 में समीकरण-6 का भाग देना पर –
V1t/ V2t = AA’Sin i/ AA’Sin r
V1/V2 = Sin i/Sin r समीकरण-7
समीकरण-4 में –
n21 = Sin i/Sin r समीकरण-8
जो कि स्नेल के नियम का गणितीय रूप है।
व्यापक रूप से –
n21 = V1/V2 = n2/n1 = sin i/sin r
समीकरण 8 से स्पष्ट है कि आपतन कोण की ज्या व अपवर्तन कोण की ज्या का अनुपात अपवर्तनांक के तुल्य होता है। जिसे स्नेल का नियम या अपवर्तन का प्रथम नियम कहते है।
आपतित किरण , अपवर्तित किरण एवं अभिलम्ब तीनो एक ही तल में विद्यमान होते है , इसे अपवर्तन का द्वितीय नियम कहते है।
अध्यारोपण का सिद्धांत
अध्यारोपण के सिद्धान्त के अनुसार जब दो या दो से अधिक तरंगे माध्यम में संचरित होती हुई एक दूसरे पर अध्यारोपित होती है तो अध्यारोपण के पश्चात् बनने वाली परिणामी तरंग का विस्थापन अलग अलग तरंगो के विस्थापनों के बिजगणितीय योग के बराबर होता है , इसे ही अध्यारोपण का सिद्धान्त कहते है।
माना प्रथम , द्वितीय , तृतीय , ……… तरंगों के विस्थापन क्रमशः y1 , y2 , y3 ………. है।
यह तरंगे माध्यम में संचरित होती हुई एक दूसरे पर अध्यारोपित होती है।
अध्यारोपण के पश्चात् बनने वाली परिणामी तरंग का विस्थापन y हो तो –
अध्यारोपण के सिद्धांत से –
जो कि अध्यारोपण के सिद्धांत का गणितीय रूप है।