सिंधी भाषा का आधुनिक साहित्य क्या हैं ? sindhi language modern litrature history in hindi

sindhi language modern litrature history in hindi सिंधी भाषा का आधुनिक साहित्य क्या हैं ?

सिंधी भाषा का आधुनिक साहित्य
संस्कत भाषा का आधार और अरबी-फारसी का प्रभाव लिए हुए सिंधी भाषा, विभिन्न स्त्रोतों से प्रेरणा पाकर और माध्य युग के रहस्यवाद तथा संगीतमय साहित्यिक विरासत और परंपरा की सजीवता तथा नए क्षितिजों की आशाएं लिए हुए आधुनिक दौर में प्रविष्ट हुई। 18वीं और 19वीं शताब्दियों के दौरान सिंधी के तीन महानतम कवियों-शाह, सरमस्त और सामी ने सूफी विचारों और उदारतावदी रवैये के माध्यम से कविता का क्षेत्र व्यापक सिंधी साहित्य की अमल्य सेवा की। सिंधी कविता गहरी भावनाओं से ओतप्रोत थी, इसमें कली और सौद्रर्य, मुस्कान और आंसू दोनों ही थे।
अंग्रेजों ने 1843 ई. में सिंध पर विजय प्राप्त की। तब से साहित्यिक क्षेत्रों में धीरे-धीरे परिवर्तन होना अनिवार्य हो गया। सिंधी साहित्य जैसी संस्थाओं ने लेखकों को प्रोत्साहन दिया।
कविता के क्षेत्र में किशन चंद बेबस ने नई शैली के प्रयोग बड़ी सफलता से किए। बेबस के गीत और कविताएं सहज-साधारण होने के कारण बहुत आकर्षक थीं। उनकी ‘शीरीन शायर‘ और ‘गंगा जूं लहरू‘ बहुत उल्लेखनीय सफलताएं थीं। उनकी सफलताओं ने कई अन्य कवियों को भी प्रेरणा दी। इनमें हरि दिलगीर, हूंदराज दुखायल, राम पंजवानी और गोबिन्द भाटिश के नाम उल्लेखनीय हैं। दिलगीर का ‘कोड‘ यानी ‘सीपिया‘ और दुखायल का का ‘संगीत फूल‘, ‘सुंदर नई कविता का शानदार नमूना थे। सिंहधी कविता धर्मनिरपेक्ष और यथार्थनता के गीत (1947)। डेवण दास आजाद की प्रसिद्ध कविता ‘पूरब संदेश‘ जो 1937 ई. में लिखी गई थी, नई शैली का एक और उदाहरण है। दयाराम गिद्मल (1857-1927) ने अपनी कविताओं में बड़ी सफलता के साथा मुक्त छंद के प्रयोग किए और उनकी प्रसिद्ध कति ‘मन जा चाहबुक‘ यानी ‘मन के कोड़े‘ के सृजन से सिंधी साहित्य और संपन्न हुआ। भारत के विभाजन और सिंध के भारतीय संस्कृति की मुख्य धारा से अलग होने के कारण देशभक्त कवियों के मन में गहरा दुख समा गया था। इसी पीडा की प्रतिध्वनि खयालदास फानी की कविता ‘ओ मेरी धरती‘ में सुनाई पड़ी।
सिंधी में आधुनिक गद्य शैली 19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध के दौरान विकसित हुई। 1877 ई. में मिर्जा कलीच बेग ने बेकन के निबंधों और अन्य लेखों का अनुवाद शुरू किया। लगभग उन्हीं दिनों में कौरोमल चंदनमल ने ‘कोलम्बस का इतिहास‘ (हिस्ट्री आफ कोलम्बस) जैसे जनोपयोगी लेखों के अनुवाद किए। गुलाम हुसैन, केवलराम सलामत राय और अखंड लुत्फुल्लाह जैसे अन्य व्यक्तियों ने अलिफ लैला (अरेबियन नाइट्स) जैसी पुस्तकों की नकल की और सिंधी गदा में कहानियां बना कर लिखा। धीरे-धीरे जनता की भाषा में कुछ मौलिक लेखन का कार्य शुरू हुआ। मिर्जा साहिब ने 1800 ई. में अपना प्रसिद्ध उपन्यास ‘जीनत‘ प्रकाशित किया, जो सिंधी में अपनी किस्म का पहला था प्रीतम दास ने भी काल्पनिक कथा ‘अजीब भेटा‘ में वास्तविक चरित्रों को प्रस्तुत किया। यह पुस्तक 1892 ई. में छपी। 20 वीं शताब्दी के प्रथम दो या तीन दशकों में निर्मलदास फतह चंद्र, हरू सदारंगानी और फतह मोहम्मद सेहवणी जैसे लेखकों ने सिंधी गटा शैली की अमूल्य सेवा की। बाद के वर्षों में जेठमल परम राम, भेरूमल मेहर चंद, और लाल चंद अमरडिनोमल ने गद्य लेखन को और विकसित किया। युवा पीढ़ी पर उनका गहरा प्रभाव पड़ा।
नाटक के क्षेत्र में सिंधी लेखकों ने कोई उल्लेखनीय प्रगति नहीं की। आम लोगों में लोकनृत्य तो मौजूद थे, लेकिन इन्हें यात्रा या नाटक के रूप में विकसित नहीं किया गया। 20वीं शताब्दी में पाश्चात्य रंगमंच का प्रभाव स्पष्ट दिखाई दिया। शेक्सपियर के नाटकों का अनवाद करके उन्हें रंगमंच पर प्रस्तुत किया गया। मिजो कलीच बेग का ‘शाह इलिया‘ या ‘किंगलियर‘, सफल सिद्ध हुआ। साथ ही महाकाव्यों और पौराणिक कथाओं से प्रेरणाएं लेकर नाटर लिखे गए। इस तरह की कुछ नाटय कतियां थींः लीलाराम सिंह की ‘रामायण‘, ‘द्रौपदी‘ और ‘हरीश्चन्द्र‘। कालांतर में नाटकों की विषयवस्तु सामाजिक घटनाएं बनीं। इस क्षेत्र के अगुआ थे मंघाराम मलकानी। लीलाराम फेरवानी की ‘हिक रात‘ 1936 ई. में लिखी गई कृति थी जिसका नाटक की दृष्टि से काफी महत्व था।