हिंदी माध्यम नोट्स
साधारण अमीबा क्या है ? पाचन क्रिया संरचना कहा पाए जाते है simple amoeba definition in hindi
simple amoeba definition in hindi साधारण अमीबा क्या है ? पाचन क्रिया संरचना कहा पाए जाते है ?
४. साधारण अमीबा
अमीबा एककोशिकीय प्राणी अमीबा (आकृति ५) गरमियों में अच्छी तरह गरम हुए तालाबों और पोखरों में और आम तौर पर उथले, बंधे हुए पानी में पाये जाते हैं। अमीबा में जीवद्रव्य और एक अंडाकृति नाभिक होता है। पैरामीशियम की तरह यह भी एक एककोशिकीय प्राणी है पर इसकी संरचना और भी सरल हैं।
जब पानी सूख जाता है तो इनफसोरिया की तरह अमीबा के शरीर पर एक ठोस झिल्ली का प्रावरण उत्पन्न होता है एक पुटी तैयार होती है। पुटी की अवस्था में यह प्राणी सूखे , निम्न तापमान और अन्य प्रतिकूल स्थितियों के बावजूद प्रामानी में जिंदा रह सकता है। जब हवा पुटी को पानी में उड़ा देती है, अमीबा उससे बाहर निकलता है।
गति अमीवा कूटपादों – उसके शरीर पर बने हुए जीवद्रव्य के उभारों-के सहारे चलता है। ये कूटपाद गति की दिशा में क्रमशः बाहर निकल आते हैं। प्राणी का शरीर धीरे से रेंगता हुआ आगे बढ़ता है – मानो कुटपादों में घस रहा हो। इसी बीच कुछ कूटपाद अदृश्य हो जाते हैं और दूसरे नये से निकल आते हैं। प्राणी का बाह्य रूप बराबर बदलता रहता है। इसी कारण इस प्राणी को अमीबा कहा जाता है। यूनानी भाषा में इस शब्द का अर्थ है परिवर्तनशील।
पोषण और पचन-क्रिया पैरामीशियम की तरह अमीबा भी कारबनीय भोजन और मुख्यतया एककोशिकीय जल-मोथे खाते हैं। अमीबा धीरे पचन-क्रिया धीरे जल-मोथे को चारों ओर से ढंक देता है और फिर उसे अपने शरीर में खींच लेता है (आकृति ६)। यहां भोजन जीवद्रव्य से स्रवित पाचक रस से घिरा हुआ है। इस प्रकार एक कोष या भोजन रसधानी तैयार होती है (आकृति ५,६) जिसमें भोजन-कण विलेय द्रव्यों में परिवर्तित होते हैं । ये द्रव्य सारे शरीर में बंट जाते हैं। इन्हीं के कारण अमीबा बड़ा होता है। भोजन के अनपचे शेषांश शरीर से बाहर फेंके जाते हैं और फिर भोजन रसधानी अदृश्य हो जाती है।
पैरामीशियम से अलग अमीबा के शरीर के किसी भी हिस्से में अन्तर्ग्रहण और अनपचे शेषांश का उत्सर्जन हो सकता है।
श्वसन और उत्सर्जन अमीबा श्वसन करता है। वह ऑक्सीजन का अवशोषण श्वसन और कर लेता है और कार्बन डाइ-आक्साइड को छोड़ देता है। उत्सर्जन पैरामीशियम की तरह यह भी अपने शरीर की पूरी सतह से श्वसन करता है। ठीक पैरामीशियम की तरह अमीबा के शरीर में भी तरल उत्सर्जन तैयार होते हैं और संकुचनशील रसधानी से बाहर कर दिये जाते हैं।
संकुचनशील रसधानी पारदर्शी तरल द्रव्य सहित एक कोष देती है। हानिकर द्रव्यों के प्रवेश के कारण रसधानी धीरे धीरे फैलती जाती है। एक विशिष्ट मात्रा तक के फैलाव के बाद रसधानी संकुचित हो जाती है और उसमें संचित द्रव शरीर से बाहर फेंका जाता है।
उद्यीपन और उत्तेजन यदि अमीबा सहित पानी की आधी बूंद माइक्रोस्कोप के नीचे प्रकाशित की जाये तो प्राणी रेंगकर बूंद के अप्रकाशित हिस्से की ओर जायेंगे। इससे स्पष्ट होता है कि अमीबा प्रकाश-उद्दीपन से प्रभावित होते हैं। यदि अमीबा सहित पानी की बूंद में नमक का एक केलास डाल दिया जाये तो अमीबा की गति मन्द हो जाती है, शरीर ज्यादा गोल हो जाते हैं और कूटपाद अधिक मोटे तथा छोटे। इससे स्पष्ट होता है कि अमीबा रासायनिक उद्दीपन से भी प्रभावित होते हैं।
प्रकाशोत्पन्न और रासायनिक उद्दीपनों के कारण अमीबा का जीवद्रव्य उत्तेजित होता है। परिणामतः अमीवा में ऐसी गतियां उत्पन्न होती हैं जो अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं। प्रखर प्रकाश इन प्राणियों को शीघ्र ही मार डालता है। जो प्राणी रेंगते हुए छांव में चले जाते हैं वे बचते हैं । घोल में नमक की अधिकता भी अमीबा के लिए प्राणघातक होती है। अपने कूटपादों को अंदर खींचकर और गेंद का सा रूप धारण कर यह प्राणी अपने शरीर की सतह कम कर लेता है ताकि वह हानिकर घोल के प्रभाव से बच सके ।
जनन अमीबा के लिए भोजन, ऑक्सीजन और उष्णता आवश्यक हैं। यदि ये चीजें उसे पर्याप्त मात्रा में मिल जाती हैं तो वह बड़ा होता है और जनता है।
जनन की क्रिया विभाजन द्वारा होती है। शरीर लम्बाई में फैलता है और दीर्घ आकार धारण कर लेता है। नाभिक भी फैलता है और कुछ देर बाद दो हिस्सों में बंट जाता है। ये हिस्से एक दूसरे से दूर हटने लगते हैं । जीवद्रव्य में एक सिकुड़न पैदा होती है जो गहरी होती जाती है और जीवद्रव्य को दो बराबर हिस्सों में बांट देती है। इस प्रकार एक पुराने अमीबा से दो नये अमीबा उत्पन्न होते हैं।
आमातिसारकारी अमीबा जब वैज्ञानिकों ने रक्त तथा उत्सर्जन का और रोगियों के शरीर पर निकले हुए विभिन्न फोड़ों में तैयार होनेवाले द्रवों का माइक्रोस्कोप से परीक्षण प्रारंभ किया तो उन्हें बहुत-से रोगजनक प्रोटोजोआ का पता लगा।
सन् १८७५ की बात है। पीटर्सबर्ग में रूसी चिकित्सक प्रोफेसर लेश के पास रक्तातिसार से पीड़ित एक रोगी आ पहुंचा। डॉक्टर लेश ने माइक्रोस्कोप की सहायता से रोगी के तरल उत्सर्जन की एक बूंद का परीक्षण किया तो उन्हें उसमें अत्यन्त गतिशील सूक्ष्म अमीबा नजर आये। यह निश्चित रूप से जानने के लिए कि कहीं ये प्राणी ही तो रोगी की पीड़ा के कारण नहीं हैं, लेश ने रोगी का तरल उत्सर्जन रबड़ की पिचकारी के जरिये एक कुत्ते की प्रांत में डाल दिया। शीघ्र ही वह कुत्ता भी रक्तातिसार से बीमार पड़ा।
इस प्रकार लेश ने अमीबा द्वारा उत्पन्न होनेवाले एक विशेष प्रकार के अतिसार का अस्तित्व सिद्ध कर दिया। मनुष्य को किसी प्रकार की हानि न पहुंचानेवाले साधारण अमीबा के अलावा आमातिसारकारी अमीबा का भी अस्तित्व है। यह रोगजनक प्राणी आंत की भित्ति में फोड़े पैदा कर देता है।
अमीबा जनित अतिसार एक महाभयंकर रोग है। आज भी इससे पीड़ित हर दस रोगियों में से औसत चार की मृत्यु हो जाती है। यह रोग विशेषकर मिस्र, भारत , ब्रह्मा, इंडोनेशिया, चीन इत्यादि उष्ण जलवायुवाले देशों में फैला हुआ है।
उक्त रोग से पीड़ित रोगी के उत्सर्जन में हर रोज रोगजनक अमीवा की हजारों पुटियां बाहर पड़ती हैं और जमीन , पानी और निवासों में फैल जाती हैं। अतः यह रोग अक्सर ऐसी जगहों में उत्पन्न होता है जहां पाखानों का कोई बंदोवस्त नहीं है और लोग अपने घरों के इर्द-गिर्द ही मल-मूत्र विसर्जन करते हैं। एक और बुरी आदत यह है कि कुछ लोग सीधे पानी में मल-मूत्र विसर्जन करते हैं।
अतिसार की रोक-थाम के अत्यन्त महत्त्वपूर्ण उपाय ये हैं – पाखानों का बंदोबस्त, जलाशयों का गंदगी से बचाव और हाथों को सदा साफ रखने की आदत । अग्नि प्राचीन काल से मानव का एक शक्तिशाली सहायक बनी हुई है। पानी को उबालने से अमीबा की पुटियां मर जाती हैं। पकाये और तले-भूने भोजन में भी इनका अस्तित्व नहीं होता।
आमातिसारकारी अमीबा की खोज हुए कई वर्ष बीत चुके हैं। इस अवधि में चिकित्सकों ने अतिसार की न केवल रोक-थाम के बल्कि समाप्ति के भी उपाय सीख लिये हैं। उन्होंने ऐसी दवाएं खोज निकाली हैं जो अमीबा को मनुष्य की प्रांत के अंदर ही नष्ट कर देती हैं।
प्रश्न – १. अमीबा को अपने जीवन के लिए क्या क्या आवश्यक है ? २. अमीबा और पैरामीशियम के शरीरों में कौनसी समानता है और कौनसी भिन्नता? ३. अमीबा किस प्रकार गति प्राप्त करता है ? ४. अमीबा किस प्रकार भोजन और श्वसन करता है ? ५. अमीबा में उत्सर्जन-क्रिया कैसे होती है ? ६. अमीबा पर उद्दीपन का प्रभाव कैसे पड़ता है ? ७. अमीबा का जनन कैसे होता है ? ८. आमातिसारकारी अमीबा क्यों भयंकर होता है और उसकी रोकथाम कैसे की जा सकती है ?
व्यावहारिक अभ्यास – स्मरण से अमीबा का चित्र बनायो।
Recent Posts
मालकाना का युद्ध malkhana ka yudh kab hua tha in hindi
malkhana ka yudh kab hua tha in hindi मालकाना का युद्ध ? मालकाना के युद्ध…
कान्हड़देव तथा अलाउद्दीन खिलजी के संबंधों पर प्रकाश डालिए
राणा रतन सिंह चित्तौड़ ( 1302 ई. - 1303 ) राजस्थान के इतिहास में गुहिलवंशी…
हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ? hammir dev chauhan history in hindi explained
hammir dev chauhan history in hindi explained हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ?…
तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच हुआ द्वितीय युद्ध Tarain battle in hindi first and second
Tarain battle in hindi first and second तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच…
चौहानों की उत्पत्ति कैसे हुई थी ? chahamana dynasty ki utpatti kahan se hui in hindi
chahamana dynasty ki utpatti kahan se hui in hindi चौहानों की उत्पत्ति कैसे हुई थी…
भारत पर पहला तुर्क आक्रमण किसने किया कब हुआ first turk invaders who attacked india in hindi
first turk invaders who attacked india in hindi भारत पर पहला तुर्क आक्रमण किसने किया…