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बीज का महत्व (significance of seeds in hindi) पौधे के बीज का लाभ क्या है उपयोग importance of seeds in plants

importance of seeds in plants बीज का महत्व (significance of seeds in hindi) पौधे के बीज का लाभ क्या है उपयोग ?

बीज अंकुरण के समय संचित पदार्थो का परिचालन (mobilization of nutrients during seed germination) : अनेक वनस्पतिशास्त्री बीज के विकास और इसके अंकुरण को एक निरंतर परिघटना मानते है। हालाँकि बीज प्रसुप्ति के दौरान कुछ समय के लिए सक्रीय उपापचयी प्रक्रियाएँ ठहर जाती है। इसका प्रमुख कारण यह है कि प्रसुप्तावस्था में जल की केवल 12 प्रतिशत या इससे भी कम मात्रा पायी जाती है। इसके विपरीत उपापचयी रूप से सक्रीय पादप भागों अथवा उत्तकों में कम से कम 90% जल की मात्रा उपस्थित होती है।

अंकुरण की प्रक्रिया हेतु मुख्य रूप से जल , उचित तापमान और प्रकाश की आवश्यकता होती है। बीजों द्वारा जल के अवशोषण के साथ ही इनके अंकुरण की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। बीज चोल भ्रूण अक्ष और बीज में पोषक संचय करने वाले ऊतक की प्रकृति पर बीजांकुरण प्रक्रिया प्रमुख रूप से निर्भर करती है। बीजचोल की बाहरी परतें प्राय: कार्बन डाइ ऑक्साइड और ऑक्सीजन के लिए पारगम्य होती है और इसकी भीतरी परतों में कम से कम एक सजीव परत अवश्य पायी जाती है। आसपास के परिवेश में नमी की मात्रा के बढ़ने के साथ साथ ही बीजचोल की पारगम्यता में भी वृद्धि होती है।
बीज द्वारा जल के अवशोषण के साथ ही इसमें उपस्थित अनेक एंजाइम सक्रीय हो जाते है। जैसे ही बीज के अंकुरण की प्रक्रिया आगे बढती है तो इसके विभिन्न भागों , जैसे बीजपत्र , परिभ्रूणपोष और भ्रूणपोष आदि में संचित पोषक पदार्थो जैसे कार्बोहाइड्रेट , प्रोटीन , वसा और कुछ बीजों में उपस्थित सेल्युलोज और हेमीसेल्युलोज का अपघटन होने लगता है आवश्यकतानुसार इनके जल अपघटन उत्पादों को विभिन्न स्थानों पर स्थानान्तरित कर दिया जाता है जहाँ इनका उपयोग विभिन्न घटकों और पदार्थों के संश्लेषण और ऊर्जा के लिए किया जाता है। बीज अंकुरण के बाद नवोद्भिद अंकुरों के मिट्टी के बाहर आ जाने और इनमें हरी पत्तियों के निकलने के पश्चात् पादप की बीज में संचित पोषक पदार्थों पर निर्भरता बहुत कम अथवा समाप्त हो जाती है। बीजों में उपस्थित विभिन्न संचित पोषक पदार्थो के परिचालन का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित प्रकार से है –
1. संचित कार्बोहाइड्रेट्स का परिचालन (mobilization of carbohydrates)
विभिन्न बीजों में कार्बोहाइड्रेट प्राय: बीजपत्रों और भ्रूणपोष में पाए जाते है। यहाँ ये एमाइलेस और एमाइलोपेक्टिन आदि स्टार्च कणों के रूप में मौजूद होते है। स्टार्च कणों का अपघटन कुछ विशेष एन्जाइमों जैसे एल्फा एमाइलेज और बीटा एमाइलेज द्वारा होता है। स्टार्च कणों के विघटन की प्रक्रिया निम्न प्रकार सम्पन्न होती है –
स्टार्च   →   जल में घुलनशील ओलीगोसेकेराइड्स →   माल्टोस  → ग्लूकोस
इस प्रकार एमाइलेस एन्जाइम की सक्रियता से एमाइलोस , माल्टोस और ग्लूकोस (शर्करा) का निर्माण होता है। यहाँ स्टार्च के अपघटन से पूर्व बीजों में मौजूद शर्करा का उपयोग होता है। इसके पश्चात् स्टार्च के अपघटन उत्पादों को प्रयुक्त किया जाता है। बीज के अंकुरण के दौरान स्टार्च अपघटन की प्रक्रिया प्रमुखत: अल्फा एमाइलेज एंजाइम की सक्रियता से संचालित होती है।
एकबीजपत्रियों में एल्फा एमाइलेज का निर्माण स्कूटैलम में होता है जहाँ से इसे भ्रूणपोष में स्त्रावित किया जाता है। जल अवशोषण के पश्चात् बीजांकुरण के दौरान भ्रूण सक्रीय हो जाता है और यहाँ एक वृद्धिकारी हार्मोन जिबरैलिन का स्त्राव होता है। ये जिबरेलिन्स बीज की एल्यूरोन परत में प्रविष्ट होते है और वहां a एमाइलेस और अन्य एन्जाइमो के निर्माण को अभिप्रेरित करते है। इसके साथ ही यहाँ पूर्व में उपस्थित श्वसन एंजाइम भी सक्रीय हो जाते है। एल्यूरोन स्तर की कोशिकाओं में उपस्थित अल्फ़ा ग्लूकोसाइडेस जिबरैलिन की मौजूदगी में सक्रीय हो जाता है और यह माल्टोस को ग्लूकोस में अपघटित करता है। स्कूटैलम में पहुँच कर माल्टोस और ग्लूकोस भ्रूण के अक्ष में मोनोसैकेराइड्स , डाइसैकेराइड्स अथवा पोलीसेकेराइड्स के रूप में स्थानान्तरित हो जाते है और इनका अंकुरण के दौरान उपयोग किया जाता है।
अभ्रूणपोषी बीजों में बीजों के अंकुरण के समय भ्रूण अक्ष में उपस्थित एल्फा और बीटा एमाइलेस की सक्रियता बढ़ जाती है और ये बीजपत्रों में उपस्थित स्टार्च का अपघटन करते है। ये अपघटन उत्पाद वृद्धिशील अक्ष (भ्रूण अक्ष) में स्थानांतरित हो जाते है , जहाँ इनका उपभोग होता है।
अधिकांश भ्रूणपोषी बीजों जैसे अरण्डी में कार्बोहाइड्रेट्स का संचय प्रमुख रूप से गैलेक्टोमैनन के रूप में होता है जो कि भ्रूणपोष में उपस्थित होते है। ये जल रागी यौगिक होते है और जल के प्रति अत्यधिक बन्धुता प्रदर्शित करता है। इन बीजों में बीजचोल और भ्रूण के बीज पत्रों के मध्य भ्रूणपोष उपस्थित होता है। सम्भवतः इन बीजों में गैलेक्टोमेनन भोज्य पदार्थ के रूप में प्रयुक्त नहीं किया जाकर भ्रूण के जल की मात्रा को पहले नियन्त्रित करता है क्योंकि इसकी जलरागी प्रकृति के कारण यह जल का अवशोषण करता है। वैसे बाद में आवश्यकतानुसार गैलेक्टोमैनन का उपयोग पोषण पदार्थ के रूप में भी किया जा सकता है।

2. बीजों में संचित प्रोटीन का परिचालन (mobilization of proteins)

प्राय: लेग्यूम पौधों के बीजों में प्रोटीन की अधिकांश मात्रा संचित भोजन के रूप में बीजपत्रों में पायी जाती है जबकि अनाज के पौधों में प्रोटीन प्राय: स्टार्चयुक्त भ्रूण पोष और अधिकांश मात्रा में एल्यूरोन परत के रूप में पाए जाते है। इसके अतिरिक्त कुछ एकबीजपत्री बीजों के स्कूटैलम और भ्रूण अक्ष में भी प्रोटीन पाए जाते है। बीज के अंकुरण के समय संचयी प्रोटीनों का जल अपघटन प्रोटीन विघटनकारी एन्जाइमों क्रमशः प्रोटियोस और पेप्टिडेज द्वारा होता है जिससे एमिनो एसिड्स और पेप्टाइड्स का निर्माण होता है। अपघटन के पश्चात् बनने वाले ये पदार्थ स्कूटैलम और भ्रूणपोष से होते हुए परिवर्धनशील भ्रूण में स्थानांतरित हो जाते है , जहाँ इनके द्वारा आवश्यक नयी प्रोटीनों को संश्लेषण होता है। लेग्यूम और अन्य द्विबीजपत्री पौधों के बीजों में अनेक प्रकार के प्रोटीन लयनकारी एंजाइम पाए जाते है। इनमें से कुछ एन्जाइमों का संश्लेषण बीजों के अंकुरण के दौरान होता है जबकि कुछ एंजाइम पहले से ही बीजों में मौजूद होते है। इन प्रोटीनलयी एन्जाइमों को दो वर्गों में बाँटा जा सकता है –
(a) प्रोटीनेस और (b) पेप्टाइडेस
प्रोटीनेस एंजाइम प्रमुख रूप से बड़े प्रोटीन अणुओं पर क्रिया करके उनको पोलीपेप्टाइड और पेप्टाइड के रूप में विघटित कर देते है। इसके बाद इन पोलीपेप्टाइडो पर पेप्टाइडेस एंजाइम क्रिया कर इनको छोटे पेप्टाइड अणुओं और अमाइड्स में परिवर्तित कर देते है।
प्रोटीन → पेप्टाइडेस → एमिनो अम्ल
बीजों के संचयी ऊतकों से नवांकुर पौधों के इच्छित भागों में नाइट्रोजनी पदार्थ का स्थानान्तरण अमाइड यौगिकों जैसे एस्पार्जिन ग्लूटेमिन और कुछ अन्य पदार्थो के रूप में होता है। यही कारण है कि लेग्यूम बीजों के बीजपत्रों में एस्पार्जिन सिन्थेटेस और ग्लूटेमिन सिन्थेटेस आदि एन्जाइमों की सक्रियता बढ़ जाती है परन्तु अनेक पौधों में बीज से नाइट्रोजनी पदार्थो का स्थानान्तरण नवोद्भिदो में अमीनो अम्लों के रूप में भी होता हुआ देखा गया है जैसे मटर के बीज में प्रोटीनों का परिचालन होमोसेरिन नामक एमिनो एसिड के रूप में होता है।

3. संचयी लिपिडों का परिचालन (mobilization of lipids during seed germination)

बीजों में वसा और लिपिड्स प्राय: भ्रूणपोष (जैसे अरण्डी में) अथवा बीजपत्रों में (जैसे सोयाबीन और सरसों में) संचित रहते है। ये लिपिड्स प्रमुखतया ट्राइग्लिसराइड के रूप में पाए जाते है , जिनका अपघटन लाइपेस एंजाइम द्वारा वसीय अम्ल और ग्लिसरोल में हो जाता है।
लिपिड →  वसीय अम्ल + ग्लिसरोल
कुछ पौधों जैसे अरंडी और मूंगफली के बीजों में उपस्थित वसीय अम्ल कार्बोहाइड्रेट्स में परिवर्तित हो जाते है। ग्लाइआक्सीसोम्स नामक कोशिकाओं में यह रूपांतरण प्रक्रिया संपन्न होती है।

बीज का महत्व (significance of seeds )

वनस्पतिशास्त्रियों के अनुसार संभवत: पौधे के अन्य भागों की तुलना में बीज सर्वाधिक महत्वपूर्ण और मूल्यवान संरचना होती है।
पौधों के द्वारा बीजों का निर्माण , अपनी वंशवृद्धि और नए नए स्थानों पर अपनी प्रजाति के प्रसार के प्रमुख उद्देश्य को लेकर होता है। अधिकांश एकवर्षीय पौधों के लिए , इनके निरंतर अस्तित्व और गुणन के लिए संभवत: बीजों की उत्पत्ति ही एकमात्र साधन होता है। एक वर्षीय पौधे अपना जीवन चक्र केवल कुछ महीने में समाप्त कर लेते है। (संभवत 3 अथवा माह में ) और वर्ष का शेष समय , इन पौधों के लिए प्रतिकूल और विषम परिस्थितियों वाला होता है। अत: इस समय तक वे समाप्त हो जाते है या इनकी मृत्यु हो जाती है लेकिन अपनी मृत्यु से पूर्व ये असंख्य बीजों का निर्माण कर लेते है। प्रत्येक बीज के चारों तरफ सुरक्षात्मक परत के रूप में बीज चोल होता है जिससे परिस्थितियाँ प्रतिकूल होने पर ये कई वर्षो तक प्रसुप्तावस्था में रह सकते है।
अनुकूल परिस्थितियाँ आने पर ये बीज अंकुरित होकर फिर से नए पौधे का निर्माण कर लेते है। सामान्यतया हम यह देखते है कि अनेक कृष्य पौधों के साथ साथ कई अपतृण प्रजातियाँ भी खेतों में पायी जाती है। ऐसा इन अपतृण के बीजों का अंकुरण कृष्य प्रजातियों के बीजों के साथ हो जाने से होता है। इने बीज , विगत वर्ष में ही खेतों में फसल की कटाई अथवा उससे भी पहले बिखर गए होते है और अनुकूल वातावरण और जल की उपलब्धता के कारण इनका पुनः अंकुरण हो जाता है।
मनुष्य के दैनिक जीवन के भोजन का प्रमुख भाग अनाजों के द्वारा निर्धारित होता है। विभिन्न प्रकार के अन्न जैसे गेहूं , चावल , मक्का और बाजरा आदि इन पौधों के बीज ही है जो हमारे भोजन के प्रमुख अंश का निर्माण करते है। इनके भ्रूणपोष में कार्बोहाइड्रेट , खनिज , विटामिन्स और अल्प मात्रा में वसा पायी जाती है। इन बीजों अथवा अनाज के दानों का एक और लाभ यह भी है कि इनके शुष्क और सुसंहत होने के कारण इनको बिना ख़राब हुए लम्बे समय तक रखा जा सकता है।
मनुष्य के लिए अन्य कई प्रकार की उपयोगी वस्तुओं का प्रमुख स्रोत भी बीज ही है , जैसे रेशे , तेल , पेय पदार्थ , दालें तथा और भी अनेक उपयोगी वस्तुएँ बीजों से प्राप्त होती है। प्रमुख खाद्य तेल जैसे मूंगफली , नारियल , तिल , सरसों और सोयाबीन आदि के बीजों से प्राप्त किये जाते है। इसी प्रकार कपास के बीज के रेशों से , सूती वस्त्र बनाये जाते है। संक्षेप में आवृतबीजी पौधों के बीजों की महत्ता और कुछ प्रमुख उपयोग मानव जीवन का एक अविभाज्य अंग है।
बीज : पुनः आपूर्ति संसाधन उपस्कर के रूप में (seed : as a source of replenishment device) : उच्चवर्षीय पौधों में उपस्थित बीज वह महत्वपूर्ण पादप भाग है जो कि पौधे के महत्वपूर्ण लक्षणों को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में संचारित करता है। पौधे को बिना किसी प्रकार की क्षति पहुँचाये हुए बीजों के माध्यम से इसके जीनों को सुरक्षित रखा जा सकता है। यही नहीं , विभिन्न प्रकार के बीजधारी पौधों को केवल बीजों के माध्यम से ही आसानी से एक स्थान से दुसरे स्थान पर स्थानान्तरित और आसानी से स्थापित भी किया जा सकता है। केवल बीजों के माध्यम से ही पौधों में आनुवांशिक विविधताओं को बरक़रार रखते हुए इनकी संख्या में वृद्धि हो सकती है।
इस प्रकार आनुवांशिक लक्षणों के आगामी पीढ़ी में संचरण के अतिरिक्त बीज का एक अन्य प्रमुख कार्य संचित भोज्य पदार्थो के संग्रहण का भी होता है। इसके परिणामस्वरूप बीज में निहित भ्रूण के रूप में उपस्थित सूक्ष्म पादप को अंकुरण के समय आवश्यक पोषक पदार्थो की निरंतर आपूर्ति होती रहती है और आगे चलकर नवोदभिद पौधे की सफलतापूर्वक स्थापना , बिना किसी विशेष अड़चन के हो सकती है। विभिन्न प्रकार के पुष्टिकरण संचित भोज्य पदार्थो के संग्रहण के कारण अनेक पादप प्रजातियों के बीज विश्व की सम्पूर्ण मानव जनसंख्या के लिए भोज्य के प्रमुख स्रोत कहे जाते है। इनमें अनाज , दालें आदि वर्गों के नाम उल्लेखनीय है। इन बीजों में अनेक प्रकार के पोषक पदार्थ जैसे कार्बोहाइड्रेट , प्रोटीन , वसा और खनिज लवण आदि उपस्थित होते है। यहाँ सूखे और ठोस होने के कारण अनाजों के बीजों का भण्डारण आसानी से लम्बे समय तक के लिए किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त विभिन्न प्रकार के पादप बीजों से मसाले , रेशे (कपास के बीजों से) और उत्तेजक पेय पदार्थ चाय और कॉफ़ी आदि उपयोगी पदार्थ भी प्राप्त होते है।
बीज जीन – पुनर्संयोजन की इकाई (seed : unit of genetic recombination) : क्योंकि बीजों का निर्माण पौधे में निषेचन प्रक्रिया के परिणामस्वरूप होता है , अत: यहाँ कहा जा सकता है कि यह नर और मादा युग्मकों के संलयन की अंतिम परिणति है। युग्मकों के निर्माण और संयोजन के अंतर्गत यहाँ आनुवांशिक पदार्थो का का परस्पर आदान प्रदान होता है अथवा दुसरे शब्दों में जीन विनिमय होता है। इसके परिणामस्वरूप नयी पीढ़ी में नवीन गुणों का प्रादुर्भाव होता है। विशेषकर परनिषेचन के परिणामस्वरूप तो ये नए गुण आवश्यक रूप से परिलक्षित होते है। इनमें जीवनी क्षमता भी अधिक पायी जाती है। गहन पर्यवेक्षण के परिणामस्वरूप यह भी देखा गया है कि ऐसे बीजों से प्राप्त पौधे अधिक स्वस्थ , मजबूत और उच्च गुणवत्ता वाले होते है।
बहुविकल्पात्मक प्रश्न और उत्तर
प्रश्न 1 : एक आवृतबीजी बीज प्रतिनिधित्व करता है –
(अ) तीन
(ब) दो
(स) चार
(द) अनेक पीढियों का
उत्तर :  (अ) तीन
प्रश्न 2 : बीजावरण का निर्माण होता है –
(अ) अण्डाशय भित्ति से
(ब) बीजाण्ड अध्यावरण से
(स) गुरुबीजाणु
(द) भ्रूणपोष से
उत्तर : (ब) बीजाण्ड अध्यावरण से
प्रश्न 3 : भ्रूण को पोषण प्रदान करने वाली संरचना है –
(अ)भ्रूणकोष
(ब) भ्रूणपोष
(स) बीजाण्डद्वार
(द) निभाग
उत्तर : (ब) भ्रूणपोष
प्रश्न 4 : टेस्टा है –
(अ) अतिरिक्त बीजावरण
(ब) बाह्य बीजचोल
(स) अन्त: बीजचोल
(द) बीजाणुवृंत
उत्तर : (ब) बाह्य बीजचोल
प्रश्न 5 : पेरिस्पर्म का निर्माण पाया जाता है –
(अ) अंड से
(ब) प्रतिलोमी कोशिका से
(स) अध्यावरण से
(द) बीजाण्डकाय से
उत्तर : (द) बीजाण्डकाय से
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