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Categories: Biology

sexual reproduction in bacteria in hindi , जीवाणुओं में लैंगिक जनन की विधियों का वर्णन

जान पाए कि sexual reproduction in bacteria in hindi , जीवाणुओं में लैंगिक जनन की विधियों का वर्णन ?

लैंगिक जनन (Sexual reproduction)

जीवाणुओं में उच्च वर्ग के जन्तुओं या पौधों की भाँति लैंगिक जनन की क्रियाएँ नहीं होती क्योंकि इसमें कोई प्रजनन अंग नहीं पाये जाते । युग्मक एवं युग्मनज भी नहीं बनते, युग्मकों का संलयन नहीं होता। जीवाणुओं में लैंगिक जनन का मुख्य लक्षण आनुवंशिक पुनर्योजन (genetic récombination) का होना या विनिमय (exchange of nuclear material) है। मेरोमिक्सिस (meromixis) नामक प्रक्रिया के अन्तर्गत आनुवंशिक पदार्थ का एक दिशा में स्थानान्तरण होता है। यह क्रिया तीन विधियों द्वारा सम्पन्न होती है-

(I) संयुग्मन (Conjugation) : यह क्रिया एशेरिकिआ कोलाई जीवाणु में जो कि मनुष्य की आन्त्र में रहता है, सामान्य रूप में होती है। संयुग्मन क्रिया दात्री ( donor) कोशिका तथा ग्राहिता (recipient) कोशिका के मध्य होती है जो अगुणित (haploid) कोशिकाएँ होती हैं। संयुग्मन क्रिया के दौरान इन दोनों कोशिकाओं के मध्य एक सेतु (bridge) बन जाता है जिसके भीतर होकर आनुवंशिक पदार्थ दाता कोशिका से ग्राहिता कोशिका हो जाता है। आनुवंशिक पदार्थ की कितनी मात्रा इस क्रिया में एक कोशिका से दूसरी कोशिका को जाती है। यह इस पर निर्भर करता है कि यह सेतु कितने अधिक समय तक बना रहता है। सामान्यतः दाता कोशिका से आनुवंशिक पदार्थ का एक छोटा सा अंश ग्राहिता कोशिका को दिया जाता है। इस प्रकार ग्राहिता कोशिका में द्विगुणित जीन्स हो जाते हैं, जो कुछ लक्षणों का निर्धारण करने में सक्षम हो सकते हैं, किन्तु वास्तव में इसमें • उत्पन्न होने वाली संतति अगुणित ही होती हैं जिसमें दाता व ग्राहिता कोशिका के लक्षण देखे जा सकते हैं। (चित्र 10.9, 10.12)

(i) F+ नर बंन्ध्य प्रभेद व F-मादा प्रभेद के मध्य संयुग्मन ( conjugation between F+ male sterile cell and F- female cell) : इसकी खोज का श्रेय जे. लेडरबर्ग (J. Lederberg, 1946) एवं ई. एल. टैटुम (E.L. Tatum, 1964) नामक दो अमेरिकी वैज्ञानिकों को है जिन्होंने सर्वप्रथम जीवाणुओं में लैंगिकता का प्रदर्शन किया। एफ. जेकब (F. Jacob, 1956) एवं ई. एल. वालमेन (E.L. Wollman) ने इस संबंध में विवरण प्रस्तुत किया।

कोशिकाओं के दाता (donor) प्रभेद को F + व ग्राहिता (recipient ) प्रभेद को F कहते हैं क्योंकि उनके गुण एक लिंग कारक (sex factor) F कारक की उपस्थिति अथवा अनुपस्थिति पर निर्भर करते हैं अर्थात् एशेरिकिआ कोलाई के दो प्रभेदों के बीच संयुग्मन होता है जो निम्नलिखित प्रकार के होते हैं-

F+ = F कारक सहित दाता प्रभेद F- = F कारक विहीन ग्राहिता प्रभेद

F कारक DNA के एक अणु का बना- होता है जिसका अणुभार 2,50,000 होता है, एवं जीवाण्वीय गुणसूत्र का लगभ 1/40वां भाग होता है। सामान्यतः प्रति कोशिका में चित्र 10.10 : वृत्ताकार DNA एवं F कारक युक्त एक ही F कारक पाया जाता है। यह कोशिका एक जीवाणु कोशिका के प्रत्येक विभाजन पर प्रतिकृत (replicate) हो जाता है। चित्र 10.10 में एक जीवाणु कोशिका को दिखाया गया है जिसमें वृत्तकार DNA तथा F कारक को प्रदर्शित किया गया है।

संयुग्मन के दौरान F+ कोशिका से F- कोशिकाओं में F कारक का पारगमन (transmission) होता है व ग्रहिता कोशिकाएँ भी दाता कोशिकाएँ अर्थात् F+ प्रकार ही बन जाती है। इस क्रिया में जीवाण्वीय गुणसूत्र का पारगमन नहीं होता, स्पष्ट है कि F कारक का पारगमन गुणसूत्री जीनों पर निर्भर न होकर स्वतंत्र रूप से होता है।

जब ई. कोलाई की उपरोक्त दो प्रभेदों F+ व F-की दो कोशिकाएँ सम्पर्क करती हैं तो F+प्रभेद जिसे नर प्रभेद (male cell) भी कहते हैं, की कोशिका से लैंगिक पिलि ( sex pili) F- प्रभेद की कोशिका या मादा कोशिका (female cell) से जुड़ जाती है तथा संयुग्मन नलिका (conjugation tube) बनाती है। इस बीच F कारक जो कि वृत्ताकार दोहरे तन्तुरूपी DNA से बना होता है और कोशिकाद्रव्य में मुक्त रूप से पाया जाता है, एक स्थान से टूट कर रेखीय (linear) प्रकार का बन जाता है। यह स्वयं की प्रतिकृति (replica) बनाता है। यह प्रतिकृति संयुग्मन नलिका से होकर F प्रभेद अर्थात् मादा कोशिका के कोशिकाद्रव्य में चली जाती है। इस प्रकार अब मादा या ग्रहिता कोशिका भी इस F+ कारक की उपस्थिति के कारण F+ प्रकार की अर्थात् नर प्रकार की बन जाती है। F+ प्रकार के विभेद बन्ध्य (sterile) प्रकार के होते हैं। अतः इस प्रकार के संयुग्मन में बन्ध्य प्रकार के (F) नर व मादा (F) कोशिकाएँ भाग लेती हैं जिनके फलस्वरूप बन्ध्य प्रकार के नर (F+ ) प्रभेद प्राप्त होते हैं, जो दाता (donor) बन जाते हैं।

उच्च बारंबारता पुनर्योगज (High frequency recombinants) Hfr: जैसा कि पूर्व में वर्णित किया गया है F कारक का पारगमन जीवाण्विक गुणसूत्र पर निर्भर न होकर स्वतंत्र रूप से होता है। इसलिये अधिकांश परिस्थितियों में F कारक का पारगमन एक बड़ी संख्या में हो सकता है जबकि गुणसूत्री जीनों का पारगमन अति निम्न बारंबारता (लगभग दस लाख में से एक) में होता है। अतः F+ प्रभेदों में से ऐसे दाता प्रभेदों को पृथक किया जा सकता है जिनमें गुणसूत्री जीनों का पारगमन उच्च बारंबारता से करने की क्षमता पायी जाती है इन्हें उच्च बारंबारता पुनर्योगज (higher frequency recombinants) Hfr विभेद (stains) कहते हैं। कारक के समाकलन (integration) एवं पृथक्करण के कारण F+ तथा Hfr प्रभेदों का रूपान्तरण (interconversion) सम्भव होता है (चित्र 10.11 )

(ii) ई. कोलाई के उच्च बारंबारता पुनर्योगज विभेव कोशिकाओं (Hir) एवं मादा विभेव की कोशिकाओं (F) के मध्य संयुग्मन (Conjugation between high frequency recombinants and female strains) : Hfr विभेदों को उच्च जननक्षम क्षमता युक्त (high fertility containing) नर कोशिकाएँ मानते हैं क्योंकि इनमें F कारक के साथ कोशिकीय गुणसूत्र का कुछ अंश भी मादा कोशिकाओं में पारगमन की क्रिया करता है।

जब दो कोशिकाएं Hfr व F-विभेदों की सम्पर्क करती हैं तो इनके मध्य संयुग्मन नलिका बनती है। वृत्ताकार DNA अणु एक स्थान से टूट जाता है व रेखीय (linear) प्रकृति का हो जाता है एवं F कारक इसके पीछे वाले सिरे से जुड़ जाता है। DNA अणु की प्रतिकृति बनने की क्रिया संयुग्मन नलिका के निकट होती है तथा नवसंश्लेषित DNA तन्तु संयुग्मन नलिका से होकर मादा कोशिका में स्थानान्तरण की क्रिया करता है। प्रकृति में संयुग्मन की क्रिया कुछ ही क्षणों के लिये होती है। इसमें अंतरायन (interruption) उत्पन्न हो जाता है। अतः स्थानान्तरण के दौरान DNA अणु का कुछ ही अंश मादा कोशिका में प्रवेश करता है, चूंकि F कारक DNA अणु के पश्य सिरे पर जुड़ा रहता है अतः बिरले ही मादा कोशिका में प्रवेश कर पाता है। नये DNA प्रवेश किये हुए अणु के जीन्स जो इस DNA के अंश पर स्थित होते हैं मादा अणु पर स्थित समजात जीन्स (homologous genes) को प्रतिस्थापित (replace) करते हैं। परिणामस्वरूप पुनर्योगज आनुवंशिक पदार्थ (recombinant genetic material) बनता है। यह पुनर्योगज आनुवंशिक पदार्थ वह नर लक्षण भी रखता है, जो पारगमनित DNA अंश के साथ स्थानान्तरित होकर Hfr विभेद से प्राप्त हुए हैं। (चित्र 10.12)

यहाँ यह स्पष्ट किया जाना आवश्यक है कि जीवाण्विक DNA पर अनेकों जीन्स होते हैं तथा F कारक वृत्ताकार DNA के टूटने पर कहीं भी जुड़ सकता है, अर्थात् अनेकों संभावनाएँ विभिन्न स्थानों पर जुड़ने की बनती हैं। चूंकि विभिन्न स्थानों पर जीन्स भी भिन्न-भिन्न प्रकार के होते हैं । अतः प्रतिकृति बनने के बाद मादा कोशिका में स्थानान्तरित अणु भी भिन्न-भिन्न प्रकार के जीन्स युक्त हो सकते हैं। पारगमन के द्वारा लिये गये समय पर निर्भर करता है कि कितने जीन्स का स्थानान्तरण नर कोशिका से मादा कोशिका में हुआ है। संयुग्मन क्रिया के आरम्भ होने में 8 मिनट का समय लिया जात है। ई. कोलाई के पूर्ण गूणसूत्र के प्रतिकृति बनाने में 89 मिनट का समय लगता है अतः इसके गुणसूत्र की लम्बाई 90 समय इकाई मानते हैं। F-पाइलस जो कि संयुग्मन नलिका बनाती है, में संख्या में 2 या तीन काफी लम्बी खोखली रचनाएं होती है, ये पिलि विशिष्टताओं युक्त होती हैं एवं संयुग्मन हेतु प्रभेद को पहचानने की क्षमता युक्त होती हैं, नर व मादा कोशिकाओं के मध्य सेतु (bridge) बनाती है। संयुग्मन क्रिया के दौरान यह संयुग्मन नलिका शीघ्र ही टूट जाती है, अत: प्रतिकृत DNA अणु का जीन युक्त कुछ अंश ही मादा कोशिका में प्रवेश कर पाता है और नर कोशिका के कुछ आनुवंशिक पदार्थ का स्थानान्तरण मादा में हो पाता है जिससे पुनर्योगज प्रकार का आनुवंशिक पदार्थ बनता है।

(ii) F+ प्राइम प्रकार की नर कोशिकाओं एवं F- मादा कोशिकाओं के मध्य संयुग्मन (Conjugation between F+ prime male cells and female F- cells) : इस क्रिया को सेक्स-डक्शन (sexduction) भी कहते हैं। अनेकों बार Hfr कोशिकाओं में F कारक कोशिकीय गुणसूत्र से पृथक् हो जाता है तथा कोशिकाद्रव्य में मुक्त रूप से पाया जाता है, इस प्रकार HFr कोशिका पहले की भाँति Fकारक के साथ अतिरिक्त DNA खण्ड को ‘F’ अथवा “F” प्राइम” कारक कहते हैं। जब F+ कारक संयुग्मन के दौरान स्थानान्तरितं होता है, तो ग्राहिता जीवाणु कोशिका में दाता कोशिका से गुणसूत्री जीन्स भी स्थानान्तरित हो जाते हैं। जेकब एवं ऐडलबर्ग (Jacob and Adleberg, 1950) के द्वारा इस प्रकार के जीन पुनर्योजन की क्रिया को सेक्सडक्शन का नाम दिया गया है। इस प्रकार ग्राहिता कोशिका में स्वयं के जीन्स के अतिरिक्त कुछ जीन्स दाता कोशिका के भी किन्हीं विशिष्ट लक्षणों हेतु पाये जाते हैं। स्पष्ट है कि ग्राही कोशिका में किन्ही विशिष्ट लक्षणों या कार्यों हेतु दो प्रकार की जीन्स उपलब्ध हैं अर्थात् यह आंशिक रूप से द्विगुणित होते हैं। इस प्रकार की क्रियाएँ शिगैला, सालमोनेला, सेरेशिया व एशरेकिया जैसे ग्रैम अग्राही जीवाणुओं में पायी जाती है। इस प्रकार प्रतिजैविक औषधियों हेतु प्रतिरोधकता प्लैज्मिड्स के साथ जीन्स द्वारा स्थानान्तरित . जाती है। ग्रैम ग्राही प्रकार के जीवाणु जैसे स्ट्रेस्टोकॉकस म्यूटेन्स (Streptococcus mutans) में भी इस प्रकार संयुग्मन पाया जाता है।

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