लिंग निर्धारण पर टिप्पणी लिखिए , लिंग निर्धारण का गुणसूत्र सिद्धांत किसे कहते है , sex determination in hindi

sex determination in hindi लिंग निर्धारण पर टिप्पणी लिखिए , लिंग निर्धारण का गुणसूत्र सिद्धांत किसे कहते है ?

 (B) वैकल्पिक हैटरोक्रोमेटिन (Facultative heterochromatin)

वैकल्पिक हैटरोक्रोमेटिन का आवश्यकतानुसार यूक्रोमेटिन अवस्था में परिवर्तन हो सकता है। यद्यपि इसमें सक्रिय जीन्स पाये जाते हैं, किन्तु कार्यिकीय (physiological) तथा परिवर्धन ( development) की अवस्थाओं जैसे- भ्रूण परिवर्धन ( embryo development) में यह आनुवांशिक रूप से निष्क्रिय रहता है। भ्रूण परिवर्धन की पूर्व अवस्थाओं में वैकल्पिक हैटरोक्रोमेटिन लिंग क्रोमेटिन काय (sex chromatin body) का निर्माण करता है। उदाहरण- स्तनधारियों की मादा कोशिका के X गुणसूत्र में । गुणसूत्रों का आणविक संगठन (Molecular Organization of Chromosomes) :

जैसा कि पूर्व में बताया जा चुका है कि गुणसूत्र जटिल संरचनाएँ होती हैं जो कि न्यूक्लिओप्रोटीन द्वारा बनी होती हैं, जिसे क्रोमेटिन कहते हैं । क्रोमेटिन का मुख्य भाग द्विरज्जुकी DNA (जिसकी दोनों रज्जुक H–बंध द्वारा जुड़ी रहती हैं) से बना होता है जिस पर अधिक मात्रा में हिस्टोन व नॉनहिस्टोन प्रोटीन्स तथा कम मात्रा में RNA जुड़े रहते हैं । क्रोमेटिन में RNA तथा हिस्टोन प्रोटीन्स का अनुपात सदैव 1 : 1 रहता है ।

कोशिका चक्र में अन्तरावस्था में क्रोमेटिन पदार्थ पतले, कुण्डलित सूत्र से बने जाल के रूप में दिखाई देता है। किन्तु मध्यावस्था में गुणसूत्र दो स्पष्ट क्रोमेटिड्स ( Chromatids ) द्वारा बने हुए दिखाई देते हैं, जिनके दोनों क्रोमेटिड्स सेन्ट्रोमीयर पर जुड़े रहते हैं । पूर्व-पश्चावस्था ( Early Anaphase) में दोनों क्रोमेटिड्स एक-दूसरे से अलग हो जाते हैं। इन संरचनाओं के विस्तृत अध्ययन हेतु विभिन्न प्रकार की तकनीकें एवं इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी की आवश्यकता पड़ती है । इन तकनीकों का प्रयोग करके आणविक जैव-वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन के आधार पर गुणसूत्रों की आणविक संरचना हेतु कई धारणाएँ प्रतिपादित की हैं –

(a) बहुसूत्रीय धारणा ( Multistranded or Multineme View) :

इस मत के अनुसार प्रत्येक गुणसूत्र बहुत सारे सूक्ष्म सूत्रों से मिलकर बनी संरचना है जिसमें सबसे पतला सूत्र (इकाई सूत्र) एक न्यूक्लिओप्रोटीन अणु होता है। सन् 1961 में रिस ( Ris) नामक वैज्ञानिक ने बताया कि DNA अणु 20A व्यास का होता है, जो कि हिस्टोन प्रोटीन + RNA से सम्बद्ध होकर लगभग 40À व्यास वाला न्यूक्लिओप्रोटीन तन्तुक बनाता है। इस प्रकार के दो न्यूक्लिओप्रोटीन तंतुक आपस में सम्बद्ध होकर लगभग 100A मोटाई का एलीमेन्ट्री गुणसूत्र तंतुक बनाता है। करीब 16-32 ऐसे तन्तुक जोड़ों (Pairs) में व्यवस्थित होकर एक क्रोमेटिड बनाते हैं। लेकिन यह बहुसूत्रीय धारणा अन्य वैज्ञानिकों द्वारा प्रमाणित नहीं की जा सकी (चित्र 3.9 ) ।

(b) एकसूत्रीय धारणा (Single stranded or Unineme View) :

इस मत के अनुसार यूकैरियोटिक गुणसूत्र एकलसूत्रीय संरचना है जो कि न्यूक्लिओप्रोटीन्स से बनी होती है। डुप्रॉव (Dupraw, 1965) ने इस मत को माना तथा गुणसूत्र की आणविक संरचना हेतु वलित-तन्तु-मॉडल (Folded-Fibre-Model) प्रतिपादित किया। इसके अनुसार यूकैरियोटिक गुणसूत्र की इकाई क्रोमेटिड एक अत्यधिक लम्बे, अत्यन्त वलित (Folded) DNA एकल सूत्र तथा कुछ RNA का बना होता है जिसके चारों ओर प्रोटीन आवरण के रूप में पाया जाता है ( चित्र 3.10 ) । न्यूक्लिोप्रोटीन से बने इस सूत्र की मोटाई लगभग 1000 होती है। इस सूत्र के स्वयं पर बारम्बार, लम्बवत् एवं अनुप्रस्थ दोनों तरह से वलित होने से 250-3000 मोटा सूत्र बनता है। यह और अधिक वलित होकर क्रोमेटिड बनाता है। इस प्रकार बने दो क्रोमेटिड आपस में सेन्ट्रोमीयर द्वारा जुड़े रहते हैं तथा गुणसूत्र कहलाते हैं । क्रोमेटिड्स की लम्बाई भिन्न-भिन्न हो सकती है, जैसे- ड्रोसोफिला के सबसे लम्बे गुणसूत्र में DNA की लम्बाई 4.0 सेमी. होती है तथा इसका अणुभार 80 × 10° डाल्टन होता है । यह प्रारूप अन्तरावस्था व मध्यावस्था में प्रदर्शित होने वाले गुणसूत्रों की संरचना को समझाता है । इस प्रारूप को विभिन्न तकनीकों द्वारा प्रमाणित किया जा चुका है।

चित्र 3.10 : गुणसूत्र परासंरचना हेतु Folded Fibre Model

यह वाटसन व क्रिक्क ( Watson & Crick ) द्वारा बताये गये DNA अणु समान ही है। इसमें इकाई क्रोमेटिड का एकल DNA सूत्र हिस्टोन प्रोटीन की श्रृंखला द्वारा घिरा रहता है जिसमें लाइसिन (Lysine) अमीनो अम्ल अधिक मात्रा में होता है। अधिक वलित होने से बनने वाले 250-300Å मोटे सूत्र में आरजिनिन (Arginine) युक्त हिन्टोन्स होते हैं। हिस्टोन प्रोटीन पाँच प्रकार के होते हैं । इनमें से चार H2A, H2B, H,तथा H की मात्रा लगभग सभी प्रजातियों में समान होती है । पाँचवाँ हिस्टोन प्रोटीन H, विशिष्ट प्रोटीन है जो 200 क्षारीय युग्मों में एक बार पाया जाता है।

हिस्टोन प्रोटीन के अणु द्विकुण्डलित DNA अणु की गहरी खाँच में व्यवस्थित रहते हैं। हिस्टोन के धनात्मक (+) सिरे DNA के फॉस्फेट के ऋणात्मक (-) आवेशित (negatively charged) समूहों से वैद्युत स्थैतिक सम्बन्ध (Electrostatic associations) बनाते हैं तथा DNA को प्रत्यास्थता (flexibility) स्थिरता (stability) प्रदान करते हैं। हिस्टोन आवृत DNA की प्रतिकृति नहीं हो सकती, इसलिए कुछ आणविक संकेतों (molecular signals) द्वारा हिस्टोन्स को हटाकर DNA अनावृत किया जाता है उस खण्ड में ट्रांसक्रिप्शन सम्भव हो पाता है।

(C) गुणसूत्र की परासंरचना के लिए न्यूक्लिओसोम – सोलेनॉइड मॉडल

(Nucleosome solenoid model for ultrastructure of chromosomes)

तब कोशिका विभाजन चक्र की अन्तरावस्था ( Interphase) में केन्द्रक में एक लम्बे DNA अणु तथा हिस्टोन प्रोटीन का जटिल होता है जिसे क्रोमेटिन (Chromatin) सूत्र कहते हैं। इस सूत्र का व्यास का व्यास 300 A तक होता है। किन्तु कोशिका विभाजन की मध्यावस्था (metaphase) में गुणसूत्रों 7000 A तक हो जाता है। इस मोटाई का गुणसूत्रीय संगठन प्राप्त करने के लिए क्रोमेटिन सूत्र को अत्यधिक संकुचित व कई स्तर का कुण्डलन करना पड़ता है जिससे मध्यावस्था में दिखायी देने वाले गुणसूत्र की संरचना प्राप्त होती है। क्रोमेटिन के प्रथम स्तर के संगठन अथवा पैकिंग में हिस्टोन प्रोटीन द्वारा निर्मित कोर के चारों ओर DNA कुण्डलित होकर एक संरचना बनाता है। जिसे न्यूक्लिओसोम (Nucleosome) अथवा न्यू बांडी (New body) अथवा PS कण कहते हैं । इस संरचना में चार प्रकार के हिस्टोन्स के जोड़े मिलकर एक कोर बनाते हैं जिसके चारों ओर लगभग 140 क्षार युग्मों वाला DNA कुण्डलित हो जाता है। उच्च स्तर का कुण्डलन प्राप्त न्यूक्लिओसोम सूत्र सोलेनॉइड कहलाता है। इसका व्यास 200 Ä होता है । यह जटिल एक सूत्र अथवा न्यूक्लिओफिलामेन्ट (Nucleofilament) के रूप में दिखायी देता है जिसका व्यास लगभग 10nm होता है। यदि न्यूक्लिओफिलामेन्ट पूर्णरूप से अकुण्डलित कर दिया जाये तो यह क्रोमेटिन सूत्र मोती से बनी माला जैसा दिखाई देता है, जिसमें न्यूक्लिओसोम मोती की तरह तथा पतले सूत्र जो मोतियों को जोड़ते हैं वे नग्न ( naked) DNA के सूत्र होते हैं, जिन्हें लिंकर (linker) DNA कहते हैं (चित्र 3.11 A & A2 ) ।

सर्वप्रथम सन् 1970 में तीन वैज्ञानिकों ए. ओलिन्स, डी. ओलिन्स तथा सी.एल. एफ. बुडकॉक (A. Onlins, D. Olins & C. L.F. Woodcook) ने न्यूक्लिओसोम का वर्णन किया। उनके अनुसार न्यूक्लिओसोम वह संरचना है जिसका व्यास 10 nm होता है । ये संरचनाएँ चपटे गोले होते हैं जिनमें DNA, हिस्टोन प्रोटीन्स से बनी कोर से जुड़ा रहता है । प्रत्येक न्यूक्लिओसोम को अलग निकाला जा सकता है यदि दो न्यूक्लिओसोम को जोड़ने वाले लिंकर DNA को एन्जाइम एन्डोन्यूक्लिऐज (endonuclease) द्वारा पाचन कर दिया जाये । विलगित न्यूक्लिओसोम्स के अध्ययन द्वारा ज्ञात होता है कि ये चपटे बेलनाकार कण होते हैं जिनका परिमाप (dimensions) 11 x 11 × 5.7 nm होता है। न्यूक्लिओसोम कोर हिस्टोन ऑक्टामर (Octamer) से बनी होती है, जिसमें प्रत्येक हिस्टोन (H2a, H♭b, H, तथा Hg) के दो-दो अणु पाये जाते हैं । इस हिस्टोन ऑक्टामर के चारों ओर DNA अणु के 146 क्षार युग्मन 1» चक्र (Coils) बनाते हैं। DNA का हिस्टोन ऑक्टामर के साथ जुड़ाव इतना अधिक कसकर होता है कि DNA एन्डोन्यूक्लिएज एन्जाइम की क्रिया से सुरक्षित रहता है। अतः यह एन्जाइम DNA का पाचन नहीं कर पाता है। लिंकर DNA का आकार विभिन्न जातियों में बदलता रहता है। 114 क्षार युग्मों से मिलकर बना होता है। H हिस्टोन प्रोटीन लिंकर DNA पर बँधा रहता है तथा यह 166 क्षार युग्म वाले लम्बे DNA को स्थिर रखता है। H, अणु हिस्टोन ऑक्टामर के चारों ।

यह 8 ओर DNA के दो चक्रों को सील करता है (चित्र 3.12 ) ।

न्युक्तिओसीम तथा 100 A व्यास वाले न्यूक्लिओफिलामेन्ट स्तर से दूसरे कैंने स्तर को पंकि 300 A व्यास वाले क्रोमेटिन सूत्र बनाती है जिसे सोलेनाइड कहते हैं। यह कोमेटिन को द्वितीयक संरचन

का रूप होता है। इसके पुन: कुण्डलित होने पर तृतीयक व चतुष्क संरचनाएँ प्राप्त होती हैं जो गुणसूत्र की संरचना बनाती है। (चित्र 3.13 )

गुणसूत्र की रासायनिक संरचना (Chemical structure of chromosomes)

गुणसूत्र की रासायनिक संरचना के प्रमुख घटक DNA, RNA हिस्टोन व नॉन हिस्टोन प्रोटीन्स हैं। इनके अतिरिक्त गुणसूत्रों में कैल्सियम (Calcium) पाया जाता है जो कि DNA से सम्बद्ध रहता है। गुणसूत्रों में कैल्सियम एक महत्त्वपूर्ण पदार्थ है जो कि गुणसूत्रों के बाँधने वाले हिस्सों में पाया जाता है ।

DNA की मात्रा लगभग 35% होती है। यह हिस्टोन प्रोटीन्स के साथ पाया जाता है जिनकी मात्रा 55% होती है। इस प्रकार गुणसूत्रों में 90% डीऑक्सीराइबोन्यूक्लिओ प्रोटीन पाया जाता है। शेष 10% भाग में RNA 12 से 14%, DNA 2 से 3% तथा नॉनहिस्टोन प्रोटीन्स 83 से 86% होते हैं ।

गुणसूत्र में पाये जाने वाले हिस्टोन प्रोटीन्स क्षारीय होते हैं, जिनमें आर्जीनीन (Arginine) एवम् लाइसिन (lysine) अमीनों  अम्ल पाये जाते हैं। जबकि नॉन हिस्टोन प्रोटीन्स अम्लीय प्रकृति के होते हैं जिनमें ट्रिप्टोफान एवम् टाइरोसिन (Tryptophan & Tyrosine) अमीनों अम्ल पाये जाते हैं। गुणसूत्र में पाये जाने वाले प्रोटीन्स जैसे- फॉस्फो-प्रोटीन्स, DNA पॉलीमरेज, RNA पॉलीमरेज, DPN पाइरोफोस्फोराइलेज तथा न्यूक्लिओसाइड ट्राइफोस्फेटेजेज नॉन हिस्टोन प्रोटीन्स हैं। इनके अतिरिक्त एक अन्य प्रकार का प्रोटीन जिसमें ट्रिप्टोफान अमीनों अम्ल की अधिक मात्रा होती है, पाया जाता है जिसे क्रोमोसोमिन (Chromosomin) कहते हैं (स्टेडमेन एवम् स्टेडमेन, 1943)।

” DNA तथा प्रोटीन्स के बीच आयनिक ( ionic) प्रकृति के बन्ध पाये जाते हैं जिन्हें सॉल्ट लिंकेज (salt linkage) कहते हैं। मुख्यतः Cat+ व Ma+ आयन्स पाये जाते हैं जो कि DNA व प्रोटीन या DNA समूहों के बीच अतिरिक्त बंध की तरह कार्य करते हैं।

गुणसूत्रों के कार्य (Functions of Chromosomes)

  1. सामान्यतः सभी जीवों की जाति विशेष में गुणसूत्रों की संरचना (structure) तथा संख्या (number) निश्चित होती है जिससे उस जाति के विशिष्ट लक्षण बने रहते हैं, किन्तु गुणसूत्रों की संख्या व संरचना में परिवर्तन उत्परिवर्तन (mutations) उत्पन्न करते हैं जिसके कारण उस जाति में अनेक अलग-अलग प्रकार के लक्षण दृष्टिगोचर होते हैं अतः विभिन्नताएँ उत्पन्न होती हैं तथा इस प्रकार जाति के विकास में मदद मिलती है। 2. चूँकि गुणसूत्रों को आनुवंशिकी का भौतिक आधार (Physical basis of heredity) माना गया है अतः ये ही आनुवांशिक लक्षणों को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में ले जाते हैं । ये जीन्स के वाहक के रूप में कार्य करते हैं, तथा कोशिका में होने वाली समस्त क्रियाओं को नियन्त्रित करते हैं । जीवों में यही वे भौतिक संरचनाएँ हैं जो कि युग्मक निर्माण के समय आनुवंशिक पदार्थ के आदान-प्रदान हेतु सक्रिय रूप से भाग लेती हैं । क्याज्मेटा का बनना तथा क्रोसिंग ओवर होना इन्हीं पर निर्भर है। अतः गुणसूत्र आनुवंशिकता के साथ-साथ विभिन्नताओं के लिए भी उत्तरदायी होते हैं ।
  2. गुणसूत्रों का हेटरोक्रोमेटिन (Heterochromatin) वाला भाग केन्द्रिका (nucleolus) बनाता है ।
  3. गुणसूत्र एक जनन इकाई के रूप में कार्य करते हैं। इनमें द्विगुणन की क्षमता होती है जिससे . कोशिका विभाजन के समय गुणसूत्रों का द्विगुणन (duplication) एवम् संतति कोशिकाओं (daughter cells) में पृथक्कीकरण (segregation) होता है। इनके द्वारा ही आनुवंशिक लक्षणों का स्थानान्तरण सम्भव हो पाता है ।
  4. केन्द्रिक संगठक गुणसूत्र (Nucleolar organizer chromosome ), न्यूक्लिओप्रोटीन के उपापचय में भाग लेते हैं तथा केन्द्रिक (nucleolus) का संश्लेषण करते हैं ।

विशिष्ट प्रकार के गुणसूत्र (Specialized types of Chromosomes) :

(1) लिंग गुणसूत्र (Sex Chromosomes)

(2) लैम्पब्रश गुणसूत्र (Lampbrush Chromosomes) (3) पॉलीटीन गुणसूत्र (Polytene Chre:nosomes)

(1) लिंग गुणसूत्र (Sex-chromosome)

सर्वप्रथम हैंकिंग (Henking, 1891 ) ने पाइरोकोरिस एपटेरस (Pyrrhocoris apterus) कीट के शुक्राणुओं में गहरी अभिरंजित होने वाली क्रोमेटिन संरचनाओं को देखा तथा उन्हें X-पिंड नाम दिया।

सी.ई. मैकलंग (C. E. McClung, 1902) ने भी अन्य कीटों में इन पिण्डों की उपस्थिति की पुष्टि की तथा इन्हें नर लिंगों से जोड़ा। उन्होंने यह भी बताया कि ये पिण्ड लिंग निर्धारित करते हैं । इसके बाद मिस स्टीवेन्स (Miss Stevens, 1908) ने भी कई अन्य कीटों में इस प्रकार के प्रेक्षण प्राप्त किये। बाद में ये पिण्ड X- गुणसूत्र या लिंग गुणसूत्र कहलाये। जैसा कि हम जानते हैं कि लैंगिक जनन में नर तथा मादा युग्मक (gametes) निषेचित होकर युग्मनज (zygote) का निर्माण करते हैं। प्रत्येक युग्मक एक विशिष्ट कोशिका होती है जिसमें गुणसूत्रों की संख्या निश्चित व अगुणित (n) होती है। युग्मरेज में यह संख्या द्विगुणित (2n) हो जाती है। विशिष्ट रूप से, लैंगिक जनन करने वाली जातियों में गुणसूत्र युगलों में से एक ऐसा गुणसूत्र युगल पाया जाता है जो अन्य युगलों से भिन्न होता है।

मादा में इस युगल के दोनों सदस्य समान (XX-Homomorphic) होते हैं, तथा कुल दूसरे लिंग (नर) में इनकी आकृति में भिन्नता पायी जाती है। नर में पाये जाने वाले असमान गुणसूत्रों का युगल (XY. है, तथा दूसरा गुणसूत्र (Y) असमान (odd) होता है जिसे वाई गुणसूत्र कहते हैं (Wilsom 1901 ) । अतः Heteromorphic) का एक गुणसूत्र (X) मादा में पाये जाने वाले समान (XX) गुणसूत्रों से समानता रखता

इस प्रकार मादा में पाया जाने वाला समान गुणसूत्रों का जोड़ा (XX) व नर में पाया जाने वाला असमानः गुणसूत्रों का जोड़ा (XY) लिंग गुणसूत्र कहलाते हैं । इन्हें Heterosomes अथवा Allosomes अथवा Odd Chromosomes अथवा Idiosomes के नाम से जाना जाता है। ये गुणसूत्र लिंग निर्धारण से सम्बन्धित होते हैं । इनके अतिरिक्त वे गुणसूत्र, जिनमें प्राणियों के दैहिक लक्षणों के लिए जीन (genes) होते हैं, अलिंग गुणसूत्र (Autosomes) कहलाते हैं। ये जीव के अन्य गुणों को निर्धारित करते हैं। fein frettur ant fanfafer (Mechanism of Sex-determination)

पौधों तथा जन्तुओं में लिंग निर्धारण की क्रियाविधि एक समान होती है, जिसे निम्न उदाहरणों द्वारा स्पष्ट किया जा सकता I पौधों में लिंग निर्धारण की क्रियाविधि (Mechanism of Sex determination in plants)— पौधों में लिंग निर्धारण की क्रिया विधि को तीन वर्गों में बाँटा गया है-

(a) वातावरणीय लिंग निर्धारण ( Environmental Sex determination) (b) गुणसूत्रीय लिंग निर्धारण (Chromosomal sex determination) (c) जीनीय लिंग निर्धारण ( Genic sex determination)

(a) वातावरणीय लिंग निर्धारण

पौधों में विभिन्न प्रकार के वातावरणीय कारक, , जैसे- -ताप (temperature), प्रकाश (light), दिन की अवधि (day length) तथा विभिन्न रासायनिक पदार्थ जैसे – इथाइलीन (ethylene), कैल्शियम (Cat) और मैग्नीशियम (Mg++) आयन्स, हार्मोन्स (जिब्रेलिक अम्ल) आदि लिंग निर्धारण को प्रभावित करते हैं। उदाहरणार्थ-इक्वीसिटम के पादपों को यदि अनुकूल (favourable) वातावरण में उगाया जाये तो मादा लक्षण वाले पौधे प्राप्त होते हैं, जबकि प्रतिकूल (unfavourable) वातावरण में उगने पर नर पौधे प्राप्त होते हैं। इसी प्रकार तरबूज, खीरा तथा भाँग (Cannabis) के पुष्पों को इथाइलीन (ethylene) अथवा जिब्रेलिक अम्ल (GAz) द्वारा उपचारित करने पर केवल मादा पुष्प (Female flowers) उत्पन्न होते हैं। इस प्रकार हम देखते हैं कि मादा लिंग की तुलना में नर लिंग पर विभिन्न वातावरणीय कारकों का अधिक प्रभाव पड़ता है ।

(b) गुणसूत्रीय लिंग निर्धारण (Chromosomal sex determination)

पादपों में गुणसूत्रीय लिंग निर्धारण निम्न विधियों द्वारा होता है-

  1. XX मादा (Female), XY नर (Male) – कुछ पादप जातियाँ जैसे- कोकसिनिया (Coccinia)

एवम् मैलेण्ड्रियम (Malandrium) एक लिंगाश्रयी (Dioecious) होती हैं, जिनमें मादा व नर पुष्प अलग-अलग पादपों पर उत्पन्न होते हैं। इन जातियों के मादा पौधों में XX तथा नर पौधों में XY गुणसूत्र होते हैं। अतः सभी अण्ड कोशिकाएँ (Egg cells) X गुणसूत्र वाली होती हैं। नर युग्मक X तथा Y गुणसूत्र वाले होते हैं ।

नर के X गुणसूत्र वाले परागकणों (Pollen grains) से मादा के X गुणसूत्रों वाले अण्ड को निषेचित कराने पर XX प्रकार का युग्मनज (Zygote) प्राप्त होता है । यह युग्मनज मादा पौधे को जन्म देगा, लेकिन यदि नर के Y गुणसूत्र वाले परागकणों से X गुणसूत्र वाले मादा अण्ड को निषेचित किया जाता है तो XY प्रकार का युग्मनज बनता है जिससे नर पौधे उत्पन्न होते हैं। इस प्रकार का लिंग निर्धारण मनुष्य (Homosapiens) में भी मिलता हैं। इन पादप जातियों में नर लिंग विषमयुग्मकी (heterogametic) होता है।

मैलेण्ड्रियम में X गुणसूत्र की अपेक्षा Y गुणसूत्र अधिक लम्बा होता है, जिसमें चार खण्ड पाये जाते हैं (चित्र 3.14 ) ।

(1) प्रथम खण्ड – इस खण्ड में स्त्रीत्व निरोधक (Femaleness suppressor) जीन पाये जाते हैं अत: इस खण्ड की कमी ( deletion) हो जाने पर उभयलिंगी (hermaphrodite) पुष्प विकसित होते हैं ।

(2) द्वितीय खण्ड – इस खण्ड में परागकोषों का परिवर्धन करने वाले जीन स्थित होते हैं ।

(3) तृतीय खण्ड – इस खण्ड पर उपस्थित जीन परागकोषों के परिपक्वन (Maturity) व उर्वरता (fertility) को नियन्त्रित करते हैं ।

(4) चतुर्थ खण्ड – यह खण्ड X गुणसूत्र का समजात (homologous) होता है जिससे X तथा Y गुणसूत्रों में युग्मन (Pairing) होता है और प्रथम एनाफेज (Anaphas I) में इन गुणसूत्रों का विलगन (separation) होता है किन्तु X गुणसूत्र का अधिकतर भाग (पाँचवा खण्ड) Y गुणसूत्र से असमजात (non homologous) होता है, जिस पर मादा लिंग धारण करने वाले जींस पाए जाते हैं ।

चित्र 3.14 : मैलेण्ड्रियम के लिंग गुणसूत्र

आर.पी. रॉय (R.P. Roy) ने कोकसिनिया इण्डिका (Coccinia indica) व एच.ई. वार्मके (H.E. Warmke) ने मैलेण्ड्रियम एलबम (Melandrium album) में लिंग निर्धारण की क्रियाविधि का अध्ययन किया । इन्होंने इन पादप जातियों के द्विगुणित (2n), त्रिगुणित ( 31 ) व चतुर्थगुणित ( 41 ) पौधों का अध्ययन किया तथा यह निष्कर्ष निकाला कि इन पादपों में लिंग निर्धारण हेतु X गुणसूत्रों व अलिंग गुणसूत्रों (autosomes) की संख्या का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है । केवल एक Y गुणसूत्र की उपस्थिति ही नर पादप उत्पन्न करने के लिए पर्याप्त होती है। मादा पादप Y गुणसूत्र की अनुपस्थिति में ही उत्पन्न हो सकते हैं। इसके अतिरिक्त स्त्रीत्व गुण तभी प्रदर्शित होते हैं, जब Y: X गुणसूत्रों का अनुपात 1 : 4 तक पहुँचता है। अलिंग गुणसूत्रों की भी लिंग निर्धारण में कोई दृश्य भूमिका नहीं होती है । द्विगुणित (2) जातियों में XX मादा तथा XY नर होते हैं । इसी प्रकार चतुर्थगुणित (4) XXXX मादा तथा XXXY नर होते हैं ।

  1. XY मादा (Female), XX नर (Male) — इस प्रकार का लिंग निर्धारण स्ट्राबेरी (Frageria) में होता है जिसमें मादा जनक में XY गुणसूत्र व नर में XX गुणसूत्र पाये जाते हैं। इसमें 50 प्रतिशत कोशिकाओं में X गुणसूत्र होते हैं तथा शेष 50% में Y गुणसूत्र होते हैं। इसके विपरीत नर के परागकणों में X गुणसूत्र पाये जाते हैं। निषेचन के बाद XX गुणसूत्र वाली संतति नर व XY वाला मादा उत्पन्न होती है (चित्र 3. 15 ) ।

चित्र 3.15 : स्ट्राबेरी में XY XX लिंग निर्धारण

  1. XX मादा (Female) XYY, नर (Male) – इस प्रकार का लिंग निर्धारण ह्यूमूलस जेपोनिका (Humulus japonica) व रूमेक्स एसिटोसा (Rumex accetosa) में होता है । इन पौधों की मादा में XX गुणसूत्र व नर में एक गुणसूत्र X व दूसरा YY, पाये जाते हैं। X गुणसूत्र वाली अण्ड कोशिकाओं को X गुणसूत्र वाले परागकणों द्वारा निषेचित करने पर XX गुणसूत्र वाली मादा संतति बनती है। किन्तु X गुणसूत्र वाली अण्ड कोशिका जब YY, गुणसूत्रों वाले परागकणों से निषेचित किया जाता है तो XYY, गुणसूत्र वाले नर पौधे उत्पन्न होते हैं। इसमें Y गुणसूत्र का कोई विशेष महत्त्व नहीं होता है। इन पौधों में X गुणसूत्र तथा अलिंग गुणसूत्र (autosomes ) ही लिंग निर्धारण के उत्तरदायी होते हैं ।
  2. XX मादा (Female, XO) नर (Male) – कुछ पादप जातियों जैसे- वेलिस्नेरिया स्पाइरेलिस (Vallisneria spiralis) तथा डायस्कोरिया सिनुएटा (Dioscorea sinuata) में नर पौधों में केवल X गुणसूत्र पाया जाता है, इनमें लिंग गुणसूत्र Y का अभाव होता है। नर पौधों में X गुणसूत्र, XO संयोजन तथा मादा पौधे XX संयोजन प्रदर्शित करते हैं, अतः इन पादपों में लिंग निर्धारण XO क्रिया विधि द्वारा होता है।

(c) जीनीय लिंग निर्धारण ( Genic sex determination)

कुछ पौधों जैसे पपीता (Carica papaya), अंगूर (Vitis cineria), एसपेरेगस ऑफीसिनेलिस (Asparagus officinalis), स्पाइनेसिया ऑलेरेसिया (Spinacea oleracia) आदि में लिंग निर्धारण एक जीन (m) द्वारा होता है। इस जीन के तीन विकल्प होते हैं- (1) अप्रभावी (recessive) m, (2) प्रभावी (dominant) M,, (3) प्रभावी ( dominant) M2 | जिन पौधों का जीनोटाइप (genotype ) mm होता है

वे मादा होता हैं । किन्तु Mm जीनोटाइप वाले पौधे नर तथा Mom जीनोटाइप वाले पौधे उभयलिंगी (Hermaphrodite) होते हैं। केवल प्रभावी जीन (M, M, M M2 व M2M) की उपस्थिति घातकता (Lethality) प्रदर्शित करती है।

जन्तुओं में लिंग निर्धारण की क्रियाविधि (Mechanism of Sex determination in animals)— जन्तुओं में लिंग निर्धारण की क्रियाविधि को निम्न उदाहरणों द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है- (1) ड्रोसोफिला मेलेनोगेस्टर (Drosophila melanogastor) – इसमें पाये जाने वाले गुणसूत्र निम्नानुसार हैं-

X तथा Y गुणसूत्र एक दूसरे से आकार में असमानता रखते है । ड्रोसोफिला में Y गुणसूत्र X गुणसूत्र से लम्बाई में बड़ा होता है। यह अधिक हेटरोक्रोमेटिक होता है। लिंग निर्धारण ( चित्र 3.16) में दिखाया गया है। चित्र 3.16 : ड्रोसोफिला में XX YY लिंग निर्धारण

(2) होमोसेपियन्स (मनुष्य) – मनुष्य में कुल द्विगुणित गुणसूत्रों की संख्या 46 होती है। इसमें

में 22 जोड़े अलिंगसूत्रों (Autosomes) के तथा एक जोड़े में एक X तथा एक Y गुणसूत्र पाये जाते हैं। इसी प्रकार स्त्री में भी 22 जोड़े अलिंगसूत्र (autosomes) तथा एक जोड़ा गुणसूत्र में XX गुणसूत्र पाये जाते हैं। मनुष्य में भी लिंग निर्धारण XY विधि द्वारा होता है ( चित्र 3.17)।

( 3 ) प्रोटेनर (Protener) कीट – प्रोटेनर कीट में मादा में लिंग गुणसूत्र XX पाये जाते हैं किन्तु नर में केवल X गुणसूत्र पाया जाता है । इसमें लिंग गुणसूत्र Y का अभाव होता है । नर कीट में X गुणसूत्र XO संयोजन तथा मादा कीट XX संयोजन प्रदर्शित करते हैं । अतः लिंग निर्धारण XO क्रियाविधि द्वारा होता है (चित्र 3.18 ) ।

नर कीट – 6 x 2 autosomes + XO = 13 गुणसूत्र ।

मादा कीट – 6 x 2 autosomes + XX = 14 गुणसूत्र ।