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अवसादीकरण किसे कहते हैं ? Sedimentation in hindi के आधार पर पृथ्वी की आयु ज्ञात करना
जानकारी अवसादीकरण किसे कहते हैं ? Sedimentation in hindi के आधार पर पृथ्वी की आयु ज्ञात करना ?
परिभाषा : जल द्वारा लाये गए गाद या अवसाद के जमा होने को अवसादीकरण कहा जाता है |
पृथ्वी की आयु व उत्पत्ति संबंधी सिद्धान्त
(AGE AND THEORIES OF ORIGIN OF THE EARTH)
पृथ्वी की आयु
(Age of the Earth)
पृथ्वी की उत्पत्ति किस प्रकार हुई ? कब हुई ? यह प्रश्न प्राचीनकाल से मानव के जिज्ञासा केन्द्र रहा है। विभिन्न धार्मिक ग्रन्थों में इसकी उत्पत्ति और स्वरूप का भिन्न-भिन्न वर्णन मिलता है। विभिन्न दार्शनिकों, ज्योतिष के ज्ञाताओं व धर्मगुरुओं ने अलग-अलग अनुमान प्रस्तुत किये। जैसे भारतीय धर्म के आधार पर पृथ्वी की आयु लगभग 2 अरब वर्ष मानी जाती है। यहूदियों के अनुसार पृथ्वी की रचना ईसा से 40000 वर्ष पूर्व हुई है। ईरानी विद्वान पृथ्वी की आयु 12000 वर्ष पूर्व मानते हैं।
सितम्बर 1959 में रूसी रॉकेट ने सौरमण्डल में प्रवेश कर बहुत-सी समस्याओं का हल ढूँढ निकाला। रूसी विद्वानों के पृथ्वी की आयु ज्ञात करने के प्रयत्न किये, परन्तु वास्तव में मानव के पास पृथ्वी की आय की ठीक ठीक गणना करने का कोई विश्वसनीय साधन नहीं है। पृथ्वी की रचना के करोड़ों वर्ष बाद धरातल पर मानव का जन्म हुआ था। इस कारण पृथ्वी के इतिहास का ज्ञान अत्यंत सीमित है। प्रकृति के विविध रूपों के अध्ययन तथा तर्क एवं गणना का सहारा लेकर पृथ्वी की आयु ज्ञात करने का प्रयत्न किया गया है। चट्टानों का अध्ययन, जीवाशेष व सागरीय निक्षेप पृथ्वी की आयु ज्ञात करने के मुख्य आधार है।
प्रमुख आधार निम्न हैं –
(1) जमाव (निक्षेप) के आधार पर। (According to sedimentation),
(2) सागर की लवणता के आधार पर (Salanity of seawater),
(3) जीव अवशेषों के आधार पर (Fossils),
(4) भौतिक नियमों के आधार पर,
(5) रेडियो एक्टिव खनिजों के आधार पर (Radioactivity),
(6) खगोलीय साक्ष्य के आधार पर (Astronomical Evidence)
(1) अवसादीकरण (Sedimentation) के आधार पर – सतह पर पायी जाने वाली अवसादी चट्टानों का निर्माण अपरदन से प्राप्त अवसादों से हुआ है। अनेक विद्वानों ने अवसादी चट्टानों की आयु ज्ञात करने की चेष्टा की। आर्थर होम्स के अनुसार भूपटल पर अवसादों की अधिकतम मोटाई 112 कि.मी. पायी जाती है। वैज्ञानिकों ने वर्तमान में प्रतिवर्ष जमा होने वाले अवसादों की मात्रा का अनुमान लगाया। होम्स के अनुसार महासागरों में प्रतिवर्ष 10-20 लाख टन निक्षेप जमा होते है। इस आधार पर अवसाद चट्टानों की आयु 130 करोड़ वर्ष मानी जाती है। पृथ्वी पर भूपृष्ठ का निर्माण व विभिन्न अपरदनकारी तत्वों के विकास के बाद अवसादों का निक्षेप शुरू हुआ होगा अतःपृथ्वी की आयु इससे दुगनी होनी चाहिया परन्तु यह अनुमान सही मानने में कई विद्वानों ने आपत्तियाँ उठायी क्योंकि हर जगह अवसादों की माटार भिन्न-भिन्न है तथा अपरदन की दर समान नहीं रहती। अतःअनुमान लगाना कठिन है। अवसादी चट्टाना से पूर्व आग्नेय चट्टानों के निर्माण में कितना समय लगा होगा कहा नहीं जा सकता।
(2) महासागरों की लवणता (Salanity) के आधार पर- ऐसा माना जाता है कि उत्पत्ति के समय महासागरों का जल खारा नहीं था। बाद में नदियों के निक्षेप एवं वर्षा द्वारा इसमें लवणता आयी। पृथ्वी पर सबसे खारा सागर मृत सागर (क्मंक ेमं) ंहै। इस समुद्र में 2000 मिलियन टन पोटेशियम क्लोराइड की मात्रा है। जोली ने 1899 ई. में गणना करके बताया कि नदियों से प्रतिवर्ष 15.6 करोड़ में टन लवण सागर में पहुंचता है और समस्त महासागरों में लवण की कुल मात्रा 1260 करोड़ मे.टन है। इतनी लवणता के जमा होने में 80 मिलियन वर्ष लगे होंगे। इससे पूर्व पृथ्वी ठडी हुई होगी व नदियों तथा अन्य प्रक्रमों का विकास हुआ होगा। यदि हम यह मान लें कि सागरों की आयु के 1/4 वर्ष पूर्व पृथ्वी का जन्म हुआ होगा, तो लगभग 187 श्स 200 करोड़ वर्ष पृथ्वी की आयु मानी जा सकती है, परन्तु यह प्रमाणिक विधि नहीं है क्योंकि सागरों में लवणता सिर्फ स्थल से नदियों द्वारा प्राप्त नहीं होती। ज्वालामुखी उद्गार जीव-जन्तु अवशेषों से भी प्राप्त होती है। यह आकलन कि महासागरों में कितना लवण है, करना अत्यंत कठिन है।
(3) जीव अवशेषों (Fossils) के आधार पर- भौतिक भूगोल की प्रमुख संकल्पना है- ‘‘शैल भूगर्भिक इतिहास के पृष्ठ है तथा जीवाश्म अक्षर है’’ अतः अनेक विद्धानों ने जीवाश्म के आधार पर पृथ्वी की आयु की गणना की चेष्टा की है।
डारविन के विचारों के अनुसार मनुष्य एक प्रगतिशील जीव विकास की चरमसीमा है। पृथ्वी तल पर जीवन का विकास उसके ठंडे हो जाने पर वायुमण्डल व जलमण्डल के निर्माण के बाद हुआ होगा। अतः चट्टानों के बीच जो जीवाश्म पाये जाते है उनमें सबसे पुराने पेड़-पौधे व स्पंज के है जो 50 करोड़ वर्ष पूर्व के हो सकते है। इससे पूर्व पृथ्वी का जन्म कम से कम 100 करोड़ वर्ष पूर्व हुआ होगा। केल्विन इसका समर्थन करते है। कुवियर व अन्य विद्वान इस आधार पर पृथ्वी की आय 200 करोड वर्ष मानते है।
(4) भौतिक गणनाओं (Physical laws & calculation) के आधार पर – भौतिकी के विभिन्न नियमों के आधार पर पृथ्वी का आयु की गणना करने की चेष्टा की गयी है। केल्लिन ने गणना के आधार पर स्पष्ट किया कि पूर्व में पृथ्वी की गति तीव्र थी व आकार भी बड़ा था। ध्रुवों व भूमध्य रेखा के व्यास में बहुत कम अन्तर था। वर्तमान आकार को प्राप्त करने के लिये पृथ्वी लगभग 100 मिलियन वर्ष पूर्व ठोस रूप् में परिवर्तित हो गयी होगी। केल्विन ने सूर्य के वर्तमान स्वरूप का अध्ययन करके बताया कि पृथ्वी की आयु से पूर्व सूर्य सौरमण्डल में था। सौर्यिक शक्ति एवं विकिरण की गति जितनी आज है यह पहले बहुत अधिक थी। सूर्य निरन्तर सिकुड़ रहा है। इसकी सिकुड़ने की गति के आधार पर सूर्य का पूर्व आकार का अनुमान केल्विन ने निकाला तथा निष्कर्ष निकाला कि पृथ्वी पर केवल 100 मिलियन वर्ष से ही सूर्य चमक रहा है। आज यह समय 50 मिलियन वर्ष माना जाता है।
केल्विन ने पृथ्वी के भीतर ताप बढ़ने की दर के आधार पर पृथ्वी की तरल अवस्था का तापक्रम 4500°ब् माना। तापक्रम के ठंडा होकर पृथ्वी को ठोस अवस्था में आने में केल्विन के अनुसार 100 मिलियन वर्ष लगेंगे। इसमें यह माना गया कि पृथ्वी में तापक्रम बढ़ता नहीं है।
(5) रेडियोएक्टिव तत्वों के आधार पर -(According to radio active elemenants)- 1896 में सर्वप्रथम ‘बैकरेल‘ ने रेडियो सक्रियता की खोज की थी। यह पता चला कि भूर्गीा में रेडियो एक्टिव तत्व पाये जाते हैं जो स्वतः टूटते हैं व ऊर्जा उत्पन्न करते है। अधिक ताप के कारण एक तत्व दूसरे तत्व में बदल जाता है। चट्टानों में मिलने वाला सीसा रेडियो एक्टिव तत्वों के क्षय से उत्पन्न होता है। अतः चट्टानों में मिलने वाले सीसे से उसकी आयु की गणना की जा सकती है। पृथ्वी के चट्टानों में यूरेनियम, थोरियम मुख्य रेडियो एक्टिव तत्व हैं जिनका अन्तिम उत्पाद चट्टान की आयु निर्धारित करता है। विभन्न युगों में निर्मित आग्नेय चट्टानों में रेडियों रूपान्तरण का अध्ययन कर शैलों की आयु 200 करोड़ वर्ष बातायी जाती है। पृथ्वी पर सबसे पुरानी चट्टान 170 करोड़ वर्ष की पायी गयी है। नवीन खोज के अनुसार स्वीडियम् तत्व का रूपान्तरण 43 करोड़ वर्ष में स्ट्रान्शियम (Strontium) में होता है। अतः पृथ्वी की आयु 300 करोड़ से अधिक मानी जाती है।
(6) खगोलीय साक्ष्य (Astronomical Eviden) – ब्रह्माण्ड में पाये जाने वाले विभिन्न सूर्य, चन्द्रमा एवं उनकी गतियों के अध्ययन के आधार पर श्री पथ्वी की उत्पत्ति के रहस्य व समय का जानने की चेष्टा की जाती है। सूर्य व अन्य तारों के अध्ययन से स्पष्ट होता है कि प्रारम्भ में ये प थे और अब उनमें दूरी बढ़ती जा रही है व आकार भी घट रहा है। सूर्य में ऊष्मा व ऊर्जा स्रोत है जो स्वतः जलकर हीलियम में बदल जाता है। गैमो (ळंउवू) के अनुसार वर्तमान दर से सूर्य की हा 4700 करोड़ वर्ष में समाप्त हो जाएगी। सूर्य ने अभी केवल 6ः हाइड्रोजन का उपभोग किया है अतः यह 300 करोड़ वर्ष की आयु का है। इसी रूप के साथ पृथ्वी का जन्म हुआ होगा।
नीहारिकाओं के दूर हटने व पृथ्वी से चन्द्रमा की दूरी बढ़ने के आधार पर जार्ज डारविन का है कि चन्द्रमा को पृथ्वी से वर्तमान दूरी प्राप्त करने में 400 करोड़ वर्ष का समय लगा होगा। चन्द्रमा 13सेमी प्रतिवर्ष की दर से दूर हट रहा है। पृथ्वी से चन्द्रमा की कुल दूरी 3.84 लाख किमी है। चन्द्रमा व की उत्पत्ति लगभग साथ-साथ हुई होगी। अतः पृथ्वी की आयु 400 करोड़ वर्ष मानी जाती है।
अतः विभिन्न आधार पर पृथ्वी की आयु भिन्न-भिन्न बताते हैं। आधुनिक वैज्ञानिक पृथ्वी की 460 करोड़ वर्ष मानते हैं, परन्तु 200 करोड़ वर्ष के इतिहास को ही प्रमाणित कर पाते हैं।
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