स्त्रावी ऊतक secretory tissue in plants in hindi , प्रकार , उदाहरण , बाह्य स्त्रावी ऊतक आन्तरिक किसे कहते है ?

(secretory tissue in plants in hindi) स्त्रावी ऊतक क्या है ? प्रकार , उदाहरण , बाह्य स्त्रावी ऊतक आन्तरिक किसे कहते है ?

विशिष्ट ऊतक / स्त्रावी ऊतक (special tissue or secretory tissue) : वे कोशिकाएं जो मकरन्द , रेजिन , गोंद , तेल , म्सूसिलेज और रबड़क्षीर को स्त्रावित करती है , उनको स्त्रावी ऊतकों के अंतर्गत रखा जा सकता है। यह विशेष प्रकार के ऊतक होते है जिनकी कोशिकाएं पौधों में संपन्न होने वाली उपापचयिक गतिविधियों के परिणामस्वरूप रूपान्तरित हो जाती है और यह पौधों में एकल या सामूहिक रूप से पायी जाती है। स्थिति के आधार पर पौधों में स्त्रावी ऊतक दो प्रकार के होते है –

A. बाह्य स्त्रावी ऊतक (external secretory tissues in plants)
B. आन्तरिक स्त्रावी ऊतक (internal secretory tissues in plants)

A. बाह्य स्त्रावी ऊतक (external secretory tissues in plants)

इनकी उत्पत्ति बाह्यत्वचा अथवा अधोत्वचा (hypodermis) की सबसे ऊपरी परतों की कोशिकाओं द्वारा होती है। इनके कार्य और स्त्रावित पदार्थो के आधार पर यह निम्नलिखित प्रकार के होते है –
1. स्त्रावी रोम (secretory hairs) : ये सरल प्रकार की स्त्रावी संरचनाएं होती है। ये प्राय: अधिचर्म पर पाए जाते है और एककोशिक अथवा बहुकोशिक हो सकते है। इनमें अधारी वृन्त और ऊपरी भाग शीर्ष होता है जो स्त्राव का कार्य करता है। इन कोशिकाओं में माइटोकोन्ड्रिया , अन्त: प्रदव्यीजालिका और डिक्टयोसोम बहुतायत से पाए जाते है और इनके द्वारा स्त्रावित पदार्थ क्युटिकल की परत के नीचे एकत्र हो जाता है।
पिन्गीक्यूला नामक कीटभक्षी पौधे में दो प्रकार के रोम पाए जाते है – सवृन्त (stalked) और अवृन्त (sessile) |
अवृंत रोमों में ऊपरी सिरा 2 से 8 कोशिकाओं का बना होता है जो प्रोटियोलिटिक एंजाइम का स्त्राव करता है। सवृन्त रोम तीन प्रकार की कोशिकाओं का बना होता है –
(i) आधारीय भाग संचयी कोशिका (reservior cell)
(ii) मध्य स्तम्भी कोशिका (columnar cell)
(iii) ऊपरी सिरा (head)
जो श्लेष्मीय पदार्थो का स्त्राव करता है और 2-8 कोशिकाओं का बना होता है। म्यूसीलेज पदार्थ कीड़ों को पकड़ने में सहायक होते है और कीट के पकड़ लिए जाने के बाद अवृन्त रोम रोम एसिड फास्फेटेस , एस्टरेज और राइबोन्युक्लिएज का उत्पादन करते है जिससे किट का पाचन हो जाता है।
घटपर्णी (nepenthes) नामक किटाहारी पादप में अनेक प्रकार के ग्रंथिल रोम पाए जाते है। ये संरचना में समानता दर्शाते है लेकिन इनकी स्थिति और कार्य भिन्न होते है। इनकी बहुकोशिक काय में कुछ केन्द्रीय कोशिकाएँ होती है जो अनेक परिधीय कोशिकाओं से घिरी रहती है। घट के ढक्कन की भीतरी सतह पर उपस्थित ग्रंथियां मोहक ग्रंथि जबकि घट की भीतरी भित्ति में स्थित ग्रंथियाँ पाचक ग्रंथि कहलाती है।
ड्रोसेरा में पत्ती के उपान्तो पर अनेक संवृन्त ग्रंथियां होती है। इनके शीर्ष में कोशिकाओं की तीन चार परतें होती है और बाहरी परत छिद्रित क्यूटिकल द्वारा ढकी रहती है। इनके बहुकोशिक वृंत में अनेक वाहिनिकाएँ होती है जिनका विस्तार शीर्ष तक होता है।
2. जलरन्ध्र (hydathodes) : आर्द्र क्षेत्रों में पाए जाने वाले पौधों विशेषकर शाकीय पौधों की पत्तियों के किनारों पर विशेष प्रकार के जल स्त्राव करने वाली संरचनाएं पायी जाती है। इनको जलरन्ध्र कहते है। इनसे जल स्त्राव बूंदों के रूप में होता है। इस प्रक्रिया को बिन्दुस्त्रावण कहते है।
बिंदुस्त्राव की प्रक्रिया के अंतर्गत अधिक मूल दाब सक्रिय अवशोषण और आर्द्र स्थिति में निम्न वाष्प उत्सर्जन के कारण जल द्रवीय बून्द के रूप में पत्तियों के किनारों पर निकलता है। सवेरे के समय यह ओस की बूंदों के जैसा प्रतीत होता है।
विभिन्न पादपों में तीन प्रकार के जल रन्ध्र पाए जाते है –
(a) एककोशिक जलरन्ध्र : एनामिर्टा काकुलस , गोनोकेरियम पायरीफोर्मी आदि कुछ पौधों में एककोशिक जलरंध्र पाए जाते है। ये बाह्यत्वचा कोशिकाओं से छोटे छोटे श्लेष्मकीय पैपिला के रूप में निकलते है। पैपिला पर क्यूटिकल अनुपस्थित या एक छिद्रित परत के रूप में होती है।
(b) रोम जलरन्ध्र : फेसिओलस और पाइपर नाइग्रम आदि पौधों में रोम जलरंध्र पाए जाते है। ये समुंड शल्की बहुकोशिक संरचनायें है। इनका आधारी 16 कोशिक भाग फुट अधिचर्म में अन्त: स्थापित रहता है और फुट की दूरस्थ कोशिका पर दो कोशिकाकाय स्थित होती है। यह जलरन्ध्र बहुकोशिक रोम के समान प्रतीत होते है।
(c) संवहन ऊतक युक्त जलरन्ध्र : नम वातावरण में उगने वाले पुष्पी पादपों में पत्ती के किनारों पर इस प्रकार के जलरंध्र पाए जाते है। शिराओं के अन्तस्थ: छोर पर स्थित वहिनिकाओं के चारों स्थित ढीली ढाली पर्णमध्योतक कोशिकाओं का समूह एपिथम बनाती है। एपिथम के ऊपर बाह्य त्वचा कोशिका विभाजित होकर दो द्वार कोशिकाएं बनाती है। सामान्य रन्ध्रों की अपेक्षा ये जलरंध्र बड़े होते है और हमेशा खुले रहते है। आद्रता और मूल दाब के बढने पर जल वहिनिकाओं से निकलकर एपियम के अन्त: कोशिक अवकाशों में एकत्र हो जाता है और अंतत: जलरंध्र के छिद्र से बूंद के रूप में बाहर निकलता है।
3. मकरन्द कोष (nectary) : मकरंद स्त्रावित करने वाली ग्रन्थियों को मकरंद कोष कहते है। मकरंद कोष द्वारा स्त्रावित मकरंद कीटों को आकर्षित करता है जिसमें ग्लूकोज , फ्रक्टोज , सुक्रोज और अमीनों अम्ल आदि होते है। मकरन्द कोष सामान्यतया पुष्प (परिचक्र , दल , पुंकेसर , जायांग के आधार पर) में पाए जाते है , लेकिन कभी कभी ये कायिक अंगो (पर्णवृंत , पर्ण अथवा पुष्पवृंत) पर भी उपस्थित होते है। पुष्प में पाए जाने वाले मकरंद कोष पुष्पीय मकरंद कोष और कायिक अंगो में पाए जाने वाले मकरंद कोष पुष्प बाह्य मकरंद कोष कहलाते है।
मकरन्द कोशिकाओं में कोशिकाद्रव्य सघन होता है और इनमें माइटोकोन्ड्रिया और अन्त: प्रद्रव्यी जालिका बहुतायत से होते है। इनमें संवहन ऊतक नगण्य होता है। मकरंद कोष कोशिकाओं से मकरन्द का विसरण रन्ध्रों द्वारा होता है।

B. आन्तरिक स्त्रावी ऊतक (internal secretory tissues in plants)

यह एक या बहुकोशिकीय संरचनायें होती है। जो ऊतकों में धँसी होती है। इनका स्त्रावी पदार्थ कोशिका भित्ति के टूटने पर बाहर आता है। यह संरचनायें निम्नलिखित प्रकार है –
1. ग्रंथियां : यह ग्रंथिल ऊतक अनेक पौधों जैसे साइट्रस (निम्बू) की पत्तियों और फल की बाह्यभित्ति , यूकेलिप्टस की छाल द्वितीयक फ्लोयम और मज्जा में पाए जाते है और पौधों में कोशिकाओं के छोटे समूह के रूप में व्यवस्थित होते है। इनका जीवद्रव्य सघन होता है। ग्रंथिल ऊतकों की उत्पत्ति दो प्रकार की होती है –
(i) वियुक्तिजनन (schizogenosis) : यहाँ कोशिकाओं की मध्य भित्तियों के दूर हो जाने से एक बड़ी गुहिका बन जाती है और इनके बाहरी क्षेत्र में सम्पूर्ण कोशिकाएं पायी जाती है। जैसे यूकेलिप्टस को तेल ग्रन्थियां और पाइनस की राल वाहिका ग्रंथियां।
(ii) लयजात : यहाँ सम्पूर्ण कोशिकाएँ टूट जाती है और विघटित हो जाती है और एक बड़ी गुहिका बनती है। इनके बाहरी क्षेत्र में विघटित कोशिकाएँ दिखाई देती है , जैसे साइट्रस (संतरा अथवा निम्बू) की फल भित्ति की ग्रंथियां।
2. स्त्रावी कोशिकाएँ : यह अपने आस पास की शेष मृदुतकी कोशिकाओं से आकार , संरचना और कार्य में अलग होती है। अत: इनको विचित्र कोशिका अथवा इडियोब्लास्ट कहते है। यह विभिन्न प्रकार के तेलों , गोंद , रेजीन , श्लेष्मा , क्रिस्टल और टेनिन आदि के स्त्राव में सहायक होती है। पादप शरीर में यह कही पर भी उपस्थित हो सकती है जैसे फाइकस की पत्ती में उपस्थित केल्शियम कार्बोनेट के क्रिस्टल जिनकी सिस्टोलिथ कोशिकाएँ भी कहते है और मूंगफली के बीजपत्रों और अरण्डी के भ्रूणपोष में पायी जाने वाली तेल कोशिकाएँ।
3. क्षीर उत्पादक कोशिकाएँ (laticiferous cells) : यह विशेष प्रकार की मृदुतकी कोशिकाएं होती है , जिनमें श्यान द्रव अथवा रबड़क्षीर स्त्रावित होता है। रबड़क्षीर दूध जैसा सफ़ेद , रंगहीन या पीले रंग का गाढ़ा द्रव पदार्थ होता है जिसमें अनेक पदार्थ जैसे शर्करा एल्कलॉइड , रबड़  टेनिन , विकर प्रोटीन आदि उपस्थित होते है। आरजीमोन में यह पीले रंग का और युफोर्बिया में सफ़ेद रंग का होता है। पपीते के लेटेक्स में पेपेन नामक एंजाइम मौजूद होता है जबकि फाइकस और हीविया में रबड़ पाया जाता है। रबड़क्षीरी उत्तक की कोशिकाएं जीवित होती है। इस ऊतक को संरचना और विकास के आधार पर दो मुख्य वर्गों में बाँटा गया है –
(i) संधित (articulated laticifers) : इन्हें रबरक्षीरी वाहिकाएँ भी कहते है। ये अनेक रबरक्षीरी कोशिकाओं के सिरों पर जुड़ने और मध्य के अनुप्रस्थ पटों के घुलने से बनती है। अनुप्रस्थ पटों के अभाव में ये जाल सा बना लेती है। ये शाखित (कुल एस्टरेसी) या अशाखित (कुल सेपोटेसी) होती है। चूँकि ये वाहिकाएँ अनेक कोशिकाओं की संधि के कारण बनती है इसलिए संधित रबरक्षीरी कहलाती है।
(ii) असंधित (non articulated laticifers) : यह बहुकेंद्रकी , अशाखित या शाखित लम्बी कोशिकाएं होती है। ये कोशिकाएं स्वतंत्र रहती है या आपस में संयुक्त नहीं होती है और रबरक्षीरी वाहिकाओं की भाँती जाल नहीं बनाती है। असंधित रबरक्षीरी या रबरक्षीरी कोशिकाएँ एन्पोसाइनेसी , ऐस्किलेपियेडेसी और युफार्बियोयेसी में सामान्यतया पायी जाती है।