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द्वितीयक सेल किसे कहते हैं के उदाहरण कौन-कौन से हैं Secondary Cell in hindi examples names

Secondary Cell in hindi examples names definition meaning द्वितीयक सेल किसे कहते हैं के उदाहरण कौन-कौन से हैं ?

द्वितीयक सेल (Secondary Cell) : प्राथमिक सेलों में होने वाली रासायनिक क्रियायें अनुत्क्रमणीय (non reversible) होती हैं। अतः सेल के पदार्थ धीरे-धीरे समाप्त होते रहते हैं। इनके अतिरिक्त एक अन्य प्रकार के सेल होत हैं जिनकी क्रिया उत्क्रमणीय (reversible) होती है। इन सेलों को श्द्वितीयक सेलश् अथवा संचायक सेल (storage celor accumulator) कहते हैं। इन सेलों में पहले बाह्य वैद्यत स्रोत से वैद्यत धारा भेजकर इन्हें आवेशित (charged) किया जाता है। यह वैद्युत ऊर्जा सेल में जाकर रासायनिक ऊर्जा के रूप में संचित हो जाती है (इसीलिये इन्हें संचायक सेल कहते हैं) अब सेल से यह ऊर्जा पुनः वैद्युत धारा के रूप में ली जा सकती है। जब सेल में संचित सम्पूर्ण ऊर्जा पुनः वैद्युत धारा के रूप में मिल जाती है तब सेल विसर्जित (discharged) हो जाता है। अब इसे पुनः आवेशित कर लिया जाता है। संचायक सेल दो प्रकार के होते हैं:
(I) सीसा संचायक सेल (Lead Accumulator),
(II) क्षारीय संचायक सेल (Alkali Accumulator)

साधारण वोल्टीय सेल के दोष और उनका निवारण
इसमें दो प्रकार के दोष होते हैं जिनके कारण सेल से अधिक समय तक धारा नहीं ली जा सकती। ये दोष है स्थानीय क्रिया तथा धुवण।
(ं) स्थानीय क्रिया (Local Action) – सेलों में प्रयोग की जाने वाली साधारण जस्ते की छड़ में अन्य धातुयें जैसे कार्बन, लोहा तथा सीसा आदि अपद्रव्य (पउचनतपजल) के रूप में मिले रहते हैं। जब छड़ को गन्धक के अम्ल में डूबाते है। तो उसमें स्थित लोहे तथा सीसे के कण धन (+) छड़ की तरह तथा जस्ते के कण ऋण (-) छड़ की तरह कार्य करते है। इस प्रकार गन्धक के अम्ल की उपस्थिति में छोटे-छोटे सेल बन जाते हैं जिनसे छड के तल पर वैद्युत धारा बहने लगती हैं। इन धाराओं को स्थानीय धारायें (local currents) कहते हैं। सेल से मुख्य धारा न लेने पर भी ये धारायें बहती रहती हैं तथा जस्ता व्यर्थ में घुलता रहता है। इस क्रिया को स्थानीय क्रिया कहते हैं।
स्थानीय क्रिया को रोकने के लिये जस्ते की छड़ पर पारे की एक पतली पर्त चढ़ा दी जाती है। इस पारे में कुछ शुद्ध जस्ता घुल जाता है तथा अन्य अपद्रव्य इस पर्त के नीचे ढक जाते हैं। जब सेल की दोनों छड़ें तार से जोड़ दी जाती हैं तो पारा-चढ़ी जस्ते की छड़ की ऊपरी सतह में स्थित जस्ते से जिंक सल्फेट बनता है। ज्यों-ज्यों इस तरह का जस्ता काम में आता है त्यों-त्यों उसके स्थान पर भीतर से शुद्ध जस्ता पारे की सतह के बाहर आता जाता है तथा अपद्रव्य अन्दर ही रह जाते हैं।
(इ) धुवण (Polarisation) – जब सेल से धारा लेते हैं तो धन-आवेश वाले हाइड्रोजन आयन (2 H़) ताँबे की छड़ के पास जाते हैं तथा अपना आवेश छड़ को दे देते हैं और स्वयं हाइड्रोजन गैस में बदल जाते हैं। यह हाइड्रोजन गैस ताँबे की छड़ के पास बुलबुले बनकर निकलने लगती है। गैस के कुछ बुलबुले ताँबे की छड़ पर चिपक जाते हैं तथा कुछ समय पश्चात् ताँबे की छड़ पर हाइड्रोजन की एक पर्त बन जाती है। चूँकि हाइड्रोजन गैस विद्युत की कुचालक, है, अतः नये आने वाले हाइड्रोजन आयन अपना आवेश ताँबे की छड़ को नहीं दे पाते तथा आवेश लिए हुये ही हाइड्रोजन गैस की परत के पास जमा होने लगते हैं। इससे वैद्युत धारा मन्द पड़ जाती है। इसके अतिरिक्त जब और नये आयन ताँबे की छड़ की ओर आते हैं तो समान आवेश के होने के कारण पहले आयन इनको वापस धकेल देते हैं जिसके कारण वे विपरीत दिशा में चलने लगते हैं। इस प्रकार सेल में विपरीत विद्युत-वाहक बल उत्पन्न हो जाता है। इसके फलस्वरूप कुछ देर में वैद्युत धारा शून्य हो जाती है। सेल का यह दोष श्ध्रुवणश् कहलाता है। यदि किसी प्रकार हाइड्रोजन गैस को ताँबे की छड़ पर एकत्रित न होने दिया जाये तो यह दोष दूर किया जा सकता है।
ध्रुवण को रोकने के उपाय –  ध्रुवण रोकने के लिये निम्न तीन उपाय हैं
(।) यान्त्रिक विधि – इस विधि में थोड़ी देर बाद ताँबे की छड़ को बाहर निकाल कर उस पर से हाइड्रोजन गैस के बुलबुलों को बु्रश से साफ कर देते हैं। परन्तु यह विधि असुविधाजनक है।
(ठ) विद्युत रासायनिक विधि – इस विधि में धन छड़ को ऐसे पदार्थ के घोल में रखते हैं जो हाइड्रोजन के साथ रासायनिक क्रिया करके उसी धातु के अणु (molecules) उत्पन्न करे, जिसकी धन छड़ बनी हुई है। इस प्रकार धन छड़ को हाइड्रोजन के बजाय अपनी ही धातु के अणु मिलते हैं। अतः धुवण नहीं हो पाता। उदाहरण के लिए डेनियल सेल में ताँबे की धन छड़ को नीले थोथे (CuSO4) के घोल में रखकर धु्रवण रोकते हैं।
(ब्) रासायनिक विधि – इस विधि में धन छड़ के पास चारों ओर कोई ऑक्सीकारक पदार्थ (modising agent) रख देते हैं जिससे हाइड्रोजन, ऑक्सीजन के साथ मिलकर जल में बदल जाती है। उदाहरण के लिए, लेक्लाशे सल में कार्बन की धन प्लेट के पास मैंगनीज डाइऑक्साइड आयन सरन्ध्र बर्तन में होकर कार्बन की छड़ की ओर जाते हैं। तथा अपना धन-आवेश छड़ को देकर, अमोनिया तथा हाइड्रोजन में टूट जाते हैं रू
2NH4 ⟶ 2NH3 ़ H2
अमोनिया गैस तो घुलती रहती है तथा हाइड्रोजन का मैंगनीज डाइऑक्साइड के द्वारा ऑक्सीकरण होकर जल बनता है:
H2 ़ 2MnO2 ⟶ Mn2O3 ़ H2O
इस प्रकार हाइड्रोजन गैस ध्रुवण नहीं कर पाती। Mn2O3 पुनः वायुमण्डल की ऑक्सीजन से मिलकर MnO2 में बदल जाती हैः
2Mn2O3 ़ O2 ⟶ 4 MnO2
लाभ रू लैक्लाशे सेल का विद्युत वाहक बल लगभग 1.5 वोल्ट है जोकि डेनियल सेल के विद्युत बल से अधिक है। यह सेल सस्ता पड़ता है तथा इसकी अधिक देख-भाल की आवश्यकता नहीं पड़ती।।
दोष रू इस सेल से हम लगातार अधिक देर तक वैद्युत-धारा नहीं ले सकते क्योंकि धारा लेने पर सेल का विद्युत वाहक बल शीघ्र ही कम हो जाता है। इसका कारण यह है कि इस सेल का विधुवक मैंगनीज डाइ-ऑक्साइड एक ठोस पदार्थ है, अतः वह हाइड्रोजन का उतनी शीघ्रता से ऑक्सीकरण नहीं कर पाता जितनी शीघ्रता से हाइड्रोजन बनती है। अतः इसमें आंशिक ध्रुवण होता है। यदि सेल को कुछ विश्राम मिल जाये तो विध्रुवक जमा हुई हाइड्रोजन को जल में परिवर्तित कर देता है तथा सेल का विद्युत वाहक बल फिर पूर्व अवस्था में आ जाता है। अतः इस सेल का उपयोग ऐसी जगह करते हैं जहाँ धारा रुक-रुक कर प्रवाहित करनी होती है जैसे टेलीफोन, विद्युत-घण्टी, टेलीग्राफ आदि में।

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