JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

हिंदी माध्यम नोट्स

Categories: BiologyBiology

कुटिल ससीमाक्षी शाखन (scorpioid cyme branching) | कुंडलिनी ससीमाक्षी शाखन (helicoid cyme branching)

शाखन प्रतिरूप (branching pattern in plants in hindi) : विभिन्न पौधों की बाह्य संरचना मुख्यतया तने पर निर्भर करती है। इसलिए पौधों के स्वभाव और इनमें शाखन के आधार पर विभिन्न पादपों को शाक (herbs) , झाड़ियों और वृक्षों में विभेदित किया गया है। शाकीय पौधों का तना कोमल होता है , काष्ठीय नहीं होता और पौधे की ऊँचाई भी अधिक नहीं होती। प्राय: अधिकांश शाकीय पौधे एक वर्षीय अथवा द्विवर्षीय होते है। झाड़ियाँ और वृक्ष बहुवर्षीय पादप होते है और इनका तना काष्ठीय होता है। इसके अतिरिक्त झाड़ियों की ऊंचाई वृक्ष से कम होती है और इनमें एक से अधिक मुख्य अक्ष अथवा तने होते है , जबकि वृक्षों में मुख्य तना केवल एक ही होता है।

शाखाओं की उत्पत्ति (origin of branches in plants)

अधिकांश पौधों में शाखाओं की उत्पत्ति दूसरी , तीसरी अथवा इनके बाद की पत्तियों के अक्ष में होती है। शाखाओं की उत्पत्ति के समय पत्तियों की कक्ष में मौजूद उत्तक विभाज्योतकी हो जाता है और शीर्षस्थ विभाज्योतक से इसकी निरन्तरता स्थापित होकर कलिका विकसित हो जाती है। कुछ समय के बाद यह अग्रस्थ विभाज्योतक से पृथक हो स्वतंत्र रूप से अक्षस्थ कलिका के रूप में वृद्धि करती है।

कलिका के निर्माण के पश्चात् इसके उत्तकों में परिनतिक और अपनतिक विभाजन होते है , जिससे इसकी आकृति में वृद्धि होती है। अनेक पौधों में जड़ , तने अथवा पत्तियों से अपस्थानिक कलिकाएँ भी विकसित होती है। कलिकाओं की उत्पत्ति और परिवर्धन को अनेक कारक जैसे भोज्य पदार्थों की मात्रा और वृद्धि हार्मोन्स की उपस्थिति और वातावरण आदि प्रभावित करते है। एक बीजपत्रियों के तने प्राय: (उदाहरण – बांस , ताड़ आदि) लम्बे , बेलनाकार स्तम्भाकार और अशाखित होते है। इनमें स्तम्भ के शीर्ष पर पत्तियों का एक गुच्छ उपस्थित होता है। इसके विपरीत जिम्नोस्पर्म्स और द्विबीजपत्रियों में स्तम्भ शाखित होता है।

शाखन के आधार पर वृक्ष सामान्यतया दो प्रकार के होते है –

(1) बहिर्वाही (excurrent)

(2) लीनाक्ष (deliquescent)

(1) बहिर्वाही (excurrent) : इस प्रकार के वृक्षों में मुख्य उधर्व अक्ष/तना आधारीय भाग में सबसे अधिक मोटाई लिए होता है और ऊपर की ओर क्रमशः धीरे धीरे पतला होता जाता है। इस उधर्व और वायवीय अक्ष से छोटी क्षैतिज शाखाएँ चारों ओर निकलती है। निचे की ओर की शाखाएं मोटी लम्बी और सबसे अधिक आयु की होती है , जबकि ऊपरी शाखाएँ तरुण , कोमल और छोटी होती है।

इसके परिणामस्वरूप वृक्ष की आकृति शंकु के समान दिखाई पड़ती है , जैसे केस्यूराइन।

(2) लीनाक्ष (deliquescent) : इस श्रेणी में उन वृक्षों को रखा गया है जिनमें तने जमीन से कुछ ऊंचाई तक तो शाखा रहित होते है। इसके बाद तने से अनेक शाखाएँ एक साथ उत्पन्न होती है , जो तने की मुख्य शाखाएं होती है। ये मुख्य शाखाएं बारम्बार विभाजित होती है , इस प्रकार कोई मुख्य स्तम्भ नहीं दिखाई पड़ता और पाशर्व शाखाएं मुख्य अक्ष से अधिक वृद्धि कर वृक्ष को गोलाकार अथवा गुम्बदाकार आकृति प्रदान करती है , जैसे – पीपल , बरगद और आम आदि।

शाखन प्रतिरूप (branching pattern)

उपर्युक्त विवरण के आधार पर यह कहा जा सकता है कि आवृतबीजी पौधों में शाखन पाशर्वीय कलिकाओं की सक्रियता के कारण होता है , क्योंकि ये कलिकाएँ अक्षस्थ कलिकाएँ होती है इसलिए इसे अक्षीय शाखान भी कह सकते है। पाशर्विय कलिकाओं की सक्रियता में अधिकता अथवा कमी के आधार पर तने का शाखन दो प्रकार का होता है।
(1) एकलाक्षी शाखन (monopodial) अथवा असीमाक्षी शाखन (racemose)
(2) संधिताक्षी शाखन (sympodial) अथवा ससीमाक्षी शाखन (cymose)
(1) एकलाक्षी शाखन (monopodial branching) : अनेक पौधों की शीर्षस्थ कलिका अनिश्चित काल के लिए सक्रीय रहती है , इससे तने की निरंतर वृद्धि होती रहती है और एक सीधा अक्ष अथवा पोडियम निर्मित हो जाता है। इस अक्ष से उत्पन्न पाशर्वीय कलिकाएँ अग्राभिसारी क्रम में विकसित होती है। इस प्रकार प्ररोह का एकमात्र मुख्य अक्ष होने के कारण इसे एकलाक्षी शाखन कहा जाता है , क्योंकि इन पादपों में शीर्षस्थ कलिका अनिश्चित काल तक सक्रीय रहती है , इसलिए यह असीमाक्षी शाखन भी कहलाता है। जैसे जैसे पौधे की आयु बढती जाती है तो उसके साथ ही शीर्षस्थ कलिका की सक्रियता भी धीरे धीरे कम होती जाती है। इस अवस्था में कुछ शाखाएं अधिक मोटी हो जाती है। प्राय: अचूड़ाक्ष अथवा बहिर्धी वृक्षों में एकलाक्षी शाखन पाया जाता है , जैसे चीड़ , अशोक और केस्यूराइना आदि। इसी श्रेणी के एक अन्य उदाहरण छटीन अथवा एल्सटोनिया में तने की पर्व संधि पर पत्तियां चक्र में उत्पन्न होती है और इसी के साथ शाखाएँ भी चक्र में ही विकसित होती है , मुख्य अक्ष की वृद्धि भी असिमित होती है।
(2) संधिताक्षी शाखन (sympodial branching) : अधिकांश ऊष्ण कटिबंधीय पौधों में यह देखा गया है कि इनमें जैसे जैसे पादप की वृद्धि होती है , तो इसके साथ ही शीर्षस्थ कलिका की सक्रियता में कमी आती है और पाशर्व कलिकाएँ परिवर्धित हो जाती है। इस प्रकार की प्रक्रिया से वृक्ष की आकृति गोलाकार और गुम्बदाकार अथवा लीनाक्ष हो जाती है। यहाँ हम यह कह सकते है कि शीर्षस्थ कोशिका एक प्रकार से विलीन हो जाती है। हमारे देश के मैदानी इलाकों में बहुधा इस प्रकार के वृक्ष पाए जाते है। वनों में पाए जाने वाले वृक्षों की निचली शाखाओं को क्योंकि समुचित मात्रा में प्रकाश नहीं मिल पाता है , अत: वनों में वृक्षों की ऊंचाई हमेशा अधिक होती है।
कुछ पौधों में तो शीर्षस्थ कलिका अल्प विकसित होती है , इसलिए इन पादपों में शाखन का क्रम शीर्ष के ठीक निचे उपस्थित पाशर्व कलिकाओं की सक्रियता पर निर्भर करता है। इस प्रकार के शाखन को ससीमाक्षी शाखन कहते है। इन पादपों की ऊंचाई अधिक नहीं होती क्योंकि इनमें शीर्षस्थ कलिका निष्क्रिय हो जाती है और ऊंचाई में वृद्धि भी सिमित होती है। इन पौधों में मजबूत या मोटी शाखाओं की संख्या के आधार पर ससीमाक्षी शाखन को भी अग्र श्रेणियों में बाँटा जा सकता है –
(i) एकलशाखी ससीमाक्षी (uniparous cymose branching) : इन पौधों में शीर्षस्थ सिरे के ठीक नीचे मात्र एक ही शाखा विकसित हो पाती है। तनो और शाखाओं पर पत्तियां सर्पिलाकार क्रम में व्यवस्थित होती है और एक शीर्षस्थ सिरे के निचे केवल एक ही अक्ष होता है। इस श्रेणी के पौधों में भी दो प्रकार का शाखन हो सकता है –
(a) कुटिल ससीमाक्षी शाखन (scorpioid cyme branching) : इन पौधों में प्रत्येक पर्व संधि से उत्पन्न होने वाली शाखाएँ दाई ओर और बायीं ओर एकांतर क्रम में विकसित होती है। इसके परिणामस्वरूप तने की आकृति टेढ़ी मेढ़ी हो जाती है परन्तु सामान्य तौर पर देखने में यह तना टेढ़ा मेढ़ा नहीं लगता अपितु सीधा दिखाई देता है। यहाँ तने का अक्ष उत्तरोतर से जुड़कर निर्मित होता है। अत: इसे संधिताक्षी अक्ष और शाखन को संधिताक्षी शाखन कहते है , जैसे अंगूर में शीर्षस्थ कलिका प्रतान में रूपांतरित हो जाती है , जो संधिताक्षी अक्ष के कारण पाशर्व में धकेल दी जाती है।
(b) कुंडलिनी ससीमाक्षी शाखन (helicoid cyme branching) : इन पौधों के अक्ष में शाखाएं केवल एक ओर ही उत्पन्न होती है और एक कुंडल जैसी संरचना बनाती है , लेकिन प्राकृतिक अवस्था में अक्ष सीधा दिखाई पड़ता है , इसे स्यूडोपोडियम कहते है। इस प्रकार मुख्य अक्ष पर शाखाएं एक ही तरफ निकलती हुई नजर आती है। यहाँ भी स्यूडोपोडियम एक प्रकार का संधिताक्षी अक्ष है , जिसमें प्रत्येक पर्ण के सम्मुख शाखा उत्पन्न होती है जैसे सराका इंडिका।
(ii) द्विशाखी ससीमाक्षी शाखन (biparous cyme branching) : इस प्रकार के शाखन में पौधे की प्रत्येक शाखा उत्पन्न करने वाली पर्व संधि से सामान्यतया दो शाखाएं निकलती है। अनेक पौधों की शीर्षस्थ कलिका अल्पजीवी होती है और शीघ्र ही नष्ट हो जाती है। इसके कारण ऐसा प्रतीत होता है , जैसे मुख्य अक्ष दो शाखाओं में विभाजित हो गया हो। इस प्रकार का शाखन कूट द्विशखन कहलाता है। प्राय: क्रिप्टोगम्स पौधों में वास्तविक द्विशाखन पाया जाता है। आवृतबीजियों में प्लूमेरिया रुबरा और मिराबिलिस जलापा आदि पौधों में कूट द्विशाखन पाया जाता है।
(iii) बहुलशाखी ससीमाक्षी शाखन (multiparous cyme branching) : इस प्रकार का शाखन कुछ पौधों जैसे निरियम में पाया जाता है। यहाँ प्रत्येक पर्व संधि पर दो से अधिक पत्तियां उत्पन्न होती है और इन पत्तियों के अक्ष से इसी के अनुरूप दो से अधिक शाखाएँ उत्पन्न होती है। इस प्रकार की अवस्था को बहुलशाखी ससीमाक्षी शाखन कहते है। जैसे क्रोटन और निरियम (त्रिशाखी शाखन) |
Sbistudy

Recent Posts

सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke rachnakar kaun hai in hindi , सती रासो के लेखक कौन है

सती रासो के लेखक कौन है सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke…

17 hours ago

मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी रचना है , marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the

marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी…

17 hours ago

राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए sources of rajasthan history in hindi

sources of rajasthan history in hindi राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए…

2 days ago

गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है ? gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi

gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है…

2 days ago

Weston Standard Cell in hindi वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन

वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन Weston Standard Cell in…

3 months ago

polity notes pdf in hindi for upsc prelims and mains exam , SSC , RAS political science hindi medium handwritten

get all types and chapters polity notes pdf in hindi for upsc , SSC ,…

3 months ago
All Rights ReservedView Non-AMP Version
X

Headline

You can control the ways in which we improve and personalize your experience. Please choose whether you wish to allow the following:

Privacy Settings
JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now