हिंदी माध्यम नोट्स
कुटिल ससीमाक्षी शाखन (scorpioid cyme branching) | कुंडलिनी ससीमाक्षी शाखन (helicoid cyme branching)
शाखन प्रतिरूप (branching pattern in plants in hindi) : विभिन्न पौधों की बाह्य संरचना मुख्यतया तने पर निर्भर करती है। इसलिए पौधों के स्वभाव और इनमें शाखन के आधार पर विभिन्न पादपों को शाक (herbs) , झाड़ियों और वृक्षों में विभेदित किया गया है। शाकीय पौधों का तना कोमल होता है , काष्ठीय नहीं होता और पौधे की ऊँचाई भी अधिक नहीं होती। प्राय: अधिकांश शाकीय पौधे एक वर्षीय अथवा द्विवर्षीय होते है। झाड़ियाँ और वृक्ष बहुवर्षीय पादप होते है और इनका तना काष्ठीय होता है। इसके अतिरिक्त झाड़ियों की ऊंचाई वृक्ष से कम होती है और इनमें एक से अधिक मुख्य अक्ष अथवा तने होते है , जबकि वृक्षों में मुख्य तना केवल एक ही होता है।
शाखाओं की उत्पत्ति (origin of branches in plants)
अधिकांश पौधों में शाखाओं की उत्पत्ति दूसरी , तीसरी अथवा इनके बाद की पत्तियों के अक्ष में होती है। शाखाओं की उत्पत्ति के समय पत्तियों की कक्ष में मौजूद उत्तक विभाज्योतकी हो जाता है और शीर्षस्थ विभाज्योतक से इसकी निरन्तरता स्थापित होकर कलिका विकसित हो जाती है। कुछ समय के बाद यह अग्रस्थ विभाज्योतक से पृथक हो स्वतंत्र रूप से अक्षस्थ कलिका के रूप में वृद्धि करती है।
कलिका के निर्माण के पश्चात् इसके उत्तकों में परिनतिक और अपनतिक विभाजन होते है , जिससे इसकी आकृति में वृद्धि होती है। अनेक पौधों में जड़ , तने अथवा पत्तियों से अपस्थानिक कलिकाएँ भी विकसित होती है। कलिकाओं की उत्पत्ति और परिवर्धन को अनेक कारक जैसे भोज्य पदार्थों की मात्रा और वृद्धि हार्मोन्स की उपस्थिति और वातावरण आदि प्रभावित करते है। एक बीजपत्रियों के तने प्राय: (उदाहरण – बांस , ताड़ आदि) लम्बे , बेलनाकार स्तम्भाकार और अशाखित होते है। इनमें स्तम्भ के शीर्ष पर पत्तियों का एक गुच्छ उपस्थित होता है। इसके विपरीत जिम्नोस्पर्म्स और द्विबीजपत्रियों में स्तम्भ शाखित होता है।
शाखन के आधार पर वृक्ष सामान्यतया दो प्रकार के होते है –
(1) बहिर्वाही (excurrent)
(2) लीनाक्ष (deliquescent)
(1) बहिर्वाही (excurrent) : इस प्रकार के वृक्षों में मुख्य उधर्व अक्ष/तना आधारीय भाग में सबसे अधिक मोटाई लिए होता है और ऊपर की ओर क्रमशः धीरे धीरे पतला होता जाता है। इस उधर्व और वायवीय अक्ष से छोटी क्षैतिज शाखाएँ चारों ओर निकलती है। निचे की ओर की शाखाएं मोटी लम्बी और सबसे अधिक आयु की होती है , जबकि ऊपरी शाखाएँ तरुण , कोमल और छोटी होती है।
इसके परिणामस्वरूप वृक्ष की आकृति शंकु के समान दिखाई पड़ती है , जैसे केस्यूराइन।
(2) लीनाक्ष (deliquescent) : इस श्रेणी में उन वृक्षों को रखा गया है जिनमें तने जमीन से कुछ ऊंचाई तक तो शाखा रहित होते है। इसके बाद तने से अनेक शाखाएँ एक साथ उत्पन्न होती है , जो तने की मुख्य शाखाएं होती है। ये मुख्य शाखाएं बारम्बार विभाजित होती है , इस प्रकार कोई मुख्य स्तम्भ नहीं दिखाई पड़ता और पाशर्व शाखाएं मुख्य अक्ष से अधिक वृद्धि कर वृक्ष को गोलाकार अथवा गुम्बदाकार आकृति प्रदान करती है , जैसे – पीपल , बरगद और आम आदि।
शाखन प्रतिरूप (branching pattern)
Recent Posts
सारंगपुर का युद्ध कब हुआ था ? सारंगपुर का युद्ध किसके मध्य हुआ
कुम्भा की राजनैतिक उपलकियाँ कुंमा की प्रारंभिक विजयें - महाराणा कुम्भा ने अपने शासनकाल के…
रसिक प्रिया किसकी रचना है ? rasik priya ke lekhak kaun hai ?
अध्याय- मेवाड़ का उत्कर्ष 'रसिक प्रिया' - यह कृति कुम्भा द्वारा रचित है तथा जगदेय…
मालकाना का युद्ध malkhana ka yudh kab hua tha in hindi
malkhana ka yudh kab hua tha in hindi मालकाना का युद्ध ? मालकाना के युद्ध…
कान्हड़देव तथा अलाउद्दीन खिलजी के संबंधों पर प्रकाश डालिए
राणा रतन सिंह चित्तौड़ ( 1302 ई. - 1303 ) राजस्थान के इतिहास में गुहिलवंशी…
हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ? hammir dev chauhan history in hindi explained
hammir dev chauhan history in hindi explained हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ?…
तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच हुआ द्वितीय युद्ध Tarain battle in hindi first and second
Tarain battle in hindi first and second तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच…