(sclerenchyma tissue in hindi) पौधों में लचीलापन किस उत्तक के कारण होता है ? दृढ़ोतक क्या है ? दृढ़ ऊत्तक किसे कहते है ?
दृढ़ोतक (sclerenchyma tissue) : दृढोतक शब्द की उत्पत्ति ग्रीक भाषा के एक शब्द स्क्लेरोस (दृढ अथवा मजबूत) से हुई है। जैसा कि नाम से ही स्पष्ट होता है दृढोतक कोशिकाओं की कोशिका भित्ति अत्यंत सख्त , मोटी और मजबूत होती है।
इनकी भित्ति पर लिग्निन जैसे स्थूलन पदार्थों का जमाव इतना अधिक होता है कि यह कोशिका गुहा को पूर्णतया अवरुद्ध कर लेते है और कोशिका गुहा अत्यंत संकरी हो जाती है। जीवद्रव्य पूरी तरह समाप्त हो जाती है जिसके परिणामस्वरूप यह कोशिकाएं मृत हो जाती है।
दृढोतक कोशिकाएँ प्राय: बहुत लम्बी , संकड़ी और दोनों सिरों पर नुकीली होती है। इनकी कोशिका भित्ति मोटी और लिग्निन युक्त होती है और भित्ति में अनेक सरल गर्त पाए जाते है। यहाँ ध्यान रखने योग्य बात यह है कि भित्ति स्थूलन में लिग्निनका जमाव केवल स्क्लेरेनकाइमा उत्तकों में ही पाया जाता है।
दृढोतक कोशिकाएँ पूरी तरह वृद्धि करने के बाद परिपक्व अवस्था में अपना एक निश्चित आकार ग्रहण कर लेती है। तत्पश्चात प्राथमिक भित्ति पर लिग्नन का द्वितीयक निक्षेपण प्रारंभ होता है और यह परतों के रूप में स्तरीत होता जाता है। यह विशेषकर समान मोटाई का होता है। परिणामस्वरूप कोशिका गुहा घटती जाती है।
लिग्निन जल के प्रति अपारगम्य होता है। निक्षेपण के कारण बढ़ते हुए जलाभाव के द्वारा कोशिकाद्रव्य मृत हो जाता है। अत: दृढोतक की कोशिकाएँ पूर्णतया परिपक्व अवस्था में मृत और निर्जीव होती है।
दृढोतक के प्रकार (types of sclerenchyma tissue)
दृढोतकों के अंतर्गत मुख्यतः दो प्रकार की कोशिकाएँ शामिल की गयी है –
- दृढ़ोतक तन्तु (sclerenchymatous fibers)
- अष्ठिल/दृढ़ कोशिकाएँ (stone cell or sclereids)
- दृढ़ोतक तन्तु (sclerenchymatous fibers): ये कोशिकाएँ लम्बी , पतली और दोनों सिरों पर क्रमशः नुकीली होती है। कभी कभी कोशिका भित्ति इतनी अधिक मोटी हो जाती है कि कोशिका गुहा बहुत छोटी हो जाती है अथवा बिल्कुल समाप्त हो जाती है। कोशिका भित्ति में छोटे छोटे गोल और सरल गर्त पाए जाते है। दृढोतक तंतुओं की लम्बाई सामान्यतया 1-3 मिमी. तक की होती है लेकिन जूट और बोहमेरिया में तन्तुओं की लम्बाई 20-550 मिमी. तक हो सकती है।
दृढोतक तन्तु अधिकतर पौधों के वल्कुट , परिरंभ , जाइलम और फ्लोएम में पाए जाते है। एकबीजपत्री पौधों में यह दृढोतक तन्तु संवहन बंडलों के चारों तरफ समूह में पाए जाते है तथा एक आच्छद के रूप में मौजूद रहते है अथवा संवहन बण्डल के नीचे और ऊपर समूह में पाए जाते है। पादप अक्ष में तंतुओं की उपस्थिति के अनुसार इनको दो श्रेणियों में विभेदित किया गया है। यह है –
(i) काष्ठीय तन्तु (wood fibres) : यह दृढोतक जाइलम विशेषकर द्वितीयक जाइलम की वाहिनियों के साथ पाए जाते है। इनकी द्वितीयक भित्ति लिग्नीकृत होती है। यह पर्याप्त लम्बे और संकरे होते है और इनके सिरे छेनी के समान संकरे और नुकीले होते है।
(ii) फ्लोयम रेशे (bast fibres) : यह अनेक पौधों जैसे सन और जूट में पाए जाते है। संवहनी उत्तकों के बाहर यह वृत्ताकार पट्टिकाओं में या फिर समूह में व्यवस्थित होते है। इनकी उत्पत्ति प्राथमिक फ्लोएम कोशिकाओं से होती है। इनको परिरम्भ तन्तु भी कहते है। यह तंतु लम्बे अपेक्षाकृत कोमल तथा अधिक नुकीले सिरों के होने से अपने नुकीले सिरों द्वारा संलग्न तन्तुओं के मध्य मजबूती से फँसे रहते है। इनको पृथक करना अत्यंत कठिन होता है और पूरी पट्टिका के तंतु केवल एक साथ समूह में ही पृथक किये जा सकते है। इन तन्तुओ का उपयोग रस्सी , बोरे , चटाइयाँ , सूतली आदि अनेक मानव उपयोगी और आर्थिक महत्व की वस्तुओं के बनाने में किया जाता है।
2. अष्ठिल/दृढ़ कोशिकाएँ (stone cell or sclereids)
इनको अष्ठिल कोशिकाएँ (दृढ़क) भी कहते है। यह कोशिकाएँ पौधों में सामान्य और व्यापक रूप से पायी जाती है। इनकी द्वितीयक भित्ति अत्यधिक मोटी होती है। कोशिका गुहा संकरी और आयतन में बहुत कम होती है। नाशपाती के गुदे की समव्यापी अष्ठिल कोशिकाओं को समव्यापी दृढ़क , नारियल की कठोर अन्त: फलभित्ति की छडाकार अथवा स्तम्भाकार कोशिकाओं को गुरुदृढोतक कहते है जबकि मटर की बाह्यचोल में मिलने वाली खम्भाकार दृढ कोशिकाओं को अस्थिदृढ़क कहते है और चाय की पत्तियों में उपस्थित ताराकार अष्ठिल कोशिकाओं को ताराकृति दृढ़क कहते है। वही दूसरी तरफ जैतून की पर्ण के शाखित रोम सदृश दृढक को तन्तुमय दृढ़क कहते है।
वितरण : स्क्लेरिड्स विभिन्न पौधों के शरीर में अलग अलग हिस्सों में पाए जाते है। प्राय: सभी अंगो में लेकिन विशेषकर पत्तियों में यह एकल अथवा समूह के रूप में पाए जाते है। एकल स्क्लेरिड्स को इडियोब्लास्ट कहते है। यह प्याज की बाह्यत्वचा , होया के भरण उत्तक और मध्योतक में इधर उधर बिखरे हुए अथवा शिराओं के अंतिम सिरों पर पाए जाते है। अनेक अष्ठिल फलों की कठोर फलभित्ति और कठोर बीजों का बाह्यचोल स्क्लेरिड कोशिकाओं की परतों का बना होता है। फलों के गुदे में उपस्थित एकल स्क्लेरिड को ग्रिट कोशिकाएँ भी कहते है , जैसे नाशपाती में।
दृढोतक के कार्य (function of sclerenchyma)
- दृढ़ोतकी तंतुओं का प्रमुख कार्य पौधों के विभिन्न अंगों को यांत्रिक दृढ़ता प्रदान करने का होता है जिससे कि पौधे दबाव और खिंचाव आदि को सहन कर सकते है।
- एकबीजपत्रियों में उपयोगी दृढ़ोतकी तन्तु उनकी पत्तियों से प्राप्त होते है। इनकी लिग्नीकृत भित्ति अपेक्षाकृत अधिक मोटी होने से यह बास्ट तन्तुओं की तुलना में छोटे , अधिक खुरदरे और कड़े होते है। इन्हें कठोर तन्तु कहते है। मनीला हेम्प और अगेव इसके उपयुक्त उदाहरण है। यह मोटे रस्से , चटाई , कागज बनाने और वस्त्र उद्योग में प्रयुक्त किये जाते है।
- स्क्लेरिड कोशिकाएँ पौधों के यांत्रिक दृढ़ता प्रदान करने वाले प्रमुख उत्तक है। यह वायु वेग और गुरुत्वाकर्षण आदि के बल के विरुद्ध प्रतिरोध उत्पन्न करते है।
- बीज और फलों के आवरणों में दृढ कोशिकाएं बहुतायत में पायी जाती है और यह आंतरिक संरचनाओं की रक्षा करती है।
स्थूलकोणोतकक और दृढोतक में अंतर (difference between collenchyma and sclerenchyma)
स्थूलकोणोतकक (collenchyma) | दृढोतक (sclerenchyma) |
1. यह जीवित कोशिकाएं होती है | | यह मृत कोशिकाएं होती है | |
2. कोशिका भित्ति पेक्टिन के द्वारा अनियमित रूप से स्थुलित होती है | | भित्ति लिग्निन द्वारा नियमित रूप से स्थुलित होती है | |
3. कोशिका भित्ति में सरल गर्त नहीं पाए जाते | | सरल गर्त पाए जाते है | |
4. कोशिकाओं की आकृति बहुभुजीय अथवा अण्डाकार होती है | | कोशिकाओं की आकृति गोल , अण्डाकार लम्बवत अथवा तन्तुरुपी हो सकती है | |
5. अधिकांशत: यह द्विबीजपत्री पौधों के तने की अधोत्वचा में पायी जाती है | | यह प्राय: सभी प्रकार के पौधों के कठोर भागों में पायी जाती है | |
6. कोशिकाओं के कोणों पर भित्ति स्थूलन के कारण यह पादप अंग का यांत्रिक दृढ़ता के साथ साथ लचीलापन भी प्रदान करते है | | चूँकि कोशिका भित्तियां समान रूप से चारों ओर लिग्निन द्वारा स्थुलित होती है | अत: यह पादप अंग को केवल यांत्रिक दृढ़ता और शक्ति प्रदान करती है लचीलापन नहीं देती | |