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सास बहू का मंदिर कहां स्थित है | सास बहू का मंदिर किसने बनवाया Sas Bahu Temple in hindi
where is Sas Bahu Temple in hindi and who build this saas bahu temple सास बहू का मंदिर कहां स्थित है | सास बहू का मंदिर किसने बनवाया ?
प्रश्न: सास-बहू का मंदिर, नागदा
उत्तर: नागाद्वितीय ने छठी शताब्दी में मेवाड़ की राजधानी के रूप में नागदा नगर बसाया था और यहाँ अनेक मंदिरों का निर्माण करवाया था। इस समय उनमें से दो संगरमरमर के बने हुए मंदिर विद्यमान हैं जिन्हें सास-बहू के मंदिर कहते हैं। यह मंदिर मुख्यतः भगवान सहस्त्रबाहु (विष्णु) का मंदिर माना जाता है। सास के मंदिर की खुदाई बड़ी ही सुन्दर है। पास ही एक और मंदिर जैन तीर्थकर शान्तिनाथ का है जिन्हें अद्बदजी बाबा कहते हैं। सास बहु के मंदिर में बड़ा मंदिर (सास का मंदिर) दस सहायक देव मन्दिरों से घिरा हुआ है, जबकि छोटा मंदिर (बहू का मन्दिर) पंचायतन प्रकार का है। ये मन्दिर विष्णु को समर्पित है तथा दसवीं सदी के बने हुये है।
प्रश्न: एकलिंकजी, कैलाशपुरी
उत्तर: इस मंदिर का निर्माण 8वीं शताब्दी में मेवाड़ के शासक बप्पा रावल द्वारा करवाया गया था। तथा इसे वर्तमान स्वरूप महाराणा रायमल ने दिया था। गुहिल वंशीय राजाओं के श्रीएकलिंगजी इष्टदेव माने जाने लगे। इस मंदिर की पूजन पद्धति पहले पाशुपत पद्धति के अनुसार रही, क्योंकि यहाँ हारीतराशि, महेश्वरराशि, शिवराशि आदि आचार्य पीठासीन रहे जो पाशुपत थे। यहाँ त्रिकाल पूजा विधि-पूर्वक होती है और भोग बड़ी श्रद्धा की दृष्टि से चढ़ाया जाता है। मुख्य मंदिर मे पार्वती, कार्तिकेय, गंगा, यमुना और गणेश की प्रतिमाएं भी हैं। ऐसी मान्यता है कि जब औरंगजेब की फौज मंदिर को तोड़ने के लिए यहाँ पहुँची तो इसमें से भौरे (मधुमक्खी) बड़ी संख्या में निकल पड़े और उन्होंने मुगल फौजों को तितर-बितर कर दिया।
प्रश्न: गणेश मंदिर, रणथम्भौर
उत्तर: रणथम्भौर दुर्ग स्थित इस मंदिर में श्री गणपति के मात्र मुख की पूजा होती है। गर्दन, हाथ, शरीर, आयुध व अन्य अवयव इस प्रतिमा के नहीं हैं। भाद्रपद शुक्ल की चतुर्थी -गणेश चतुर्थी को यहाँ प्रतिवर्ष ऐतिहासिक और संभवतः देश का सबसे प्राचीन गणेश मेला भरता है। रणथम्भौर के गणेशजी त्रिनेत्री हैं। गणेशजी की ऐसी मुखाकृति अन्यत्र किसी मंदिर में देखने को नहीं मिलती है।
प्रश्न: तलवाड़ा का त्रिपुरा सुन्दरी का मंदिर
उत्तर: तलवाड़ा कस्बे के पास स्थित भव्य प्राचीन त्रिपुरा सुन्दरी का मंदिर है जिसमें सिंह पर सवार भगवती की 18 भुजा की मूर्ति है। मूर्ति की भुजाओं में 18 प्रकार के आयुध हैं। पैरों के नीचे प्राचीनकालीन कोई यंत्र बना हुआ है। इसे श्रद्धालु श्त्रिपुरा सुन्दरीश्, तरतैयी माता एवं त्रिपुरा महालक्ष्मी के नाम से भी सम्बोधित करते हैं। इस मंदिर की गिनती प्राचीन शक्ति पीठों में होती है। मंदिर के उत्तर भाग में कुषाण सम्राट कनिष्क के समय का एक शिवलिंग आज भी विद्यमान है। जिससे यह विदित होता है कि त्रिपुरा सुन्दरी की यह शक्तिपीठ कुषाण काल से पूर्व की है।
प्रश्न: किराडू के मंदिर (राजस्थान का खजुराहो)
उत्तर: बाड़मेर में स्थित किराडू में ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्त्व के पाँच मंदिर विद्यमान है जिनका मूर्तिशिल्प काबिले तारीफ है। वीर रस, श्रृंगार रस, युद्ध, नृत्य, कामशास्त्र की भावभंगिमा युक्त मूर्तियां शिल्प कला की दृष्टि से अनूठी हैं। किराडू का प्राचीन नाम किरातकूप था जो किसी समय परमारों की राजधानी थी। यहाँ स्थित प्रत्येक मंदिर पर शिल्प कला के बेजोड़ नमूने देखने को मिलते हैं। इन पाँच मंदिरों में चार भगवान शिव को और एक भगवान विष्णु को समर्पित है। सबसे बड़ा मंदिर ‘सोमश्वर‘ का है जो पंचायतन शैली का है तथा उत्तरप्रतिहार कालीन मंदिर है। किराड मंदिर परिसर के सामने एक ऊँची पहाड़ी पर महिषासुरमर्दिनी की एक त्रिपाद मूर्ति है। कला की दृष्टि से तीन पैरों वाली यह मूर्ति बहुत ही महत्त्वपूर्ण है।
प्रश्न: बाड़ोली का शिव मंदिर
उत्तर: चित्ताड़ का कस्बा (कोटा के पास) स्थित इस मंदिर का निर्माण- 6ठीं सदी में हण शासक मिहिरकल (तोरमाण पत्र) द्वारा करवायां गया। मिहिरकुल शिव का परम भक्त था। यह नागर शैली तथा पंचायतन शैली का मिश्रित रूप है। यहाँ मंदिरों का समूह है। इनमें मुख्य घटेश्वर महादेव का शिवालय है। इसके अलावा यहाँ गणेश, नारद, सप्तमातका, त्रिमर्ति और शेषशायी आदि के मंदिर भी हैं। सभी मंदिरों का मूर्ति शिल्प बेहद आकर्षक है। इस मन्दिर को प्रकाश में लाने का श्रेय जेम्स टॉड को दिया जाता है।
प्रश्न: कैला देवी का मंदिर
उत्तर: कैला मैया का भव्य मंदिर कालीसिंध नदी के किनारे स्थित है। इस मंदिर से आधा किलोमीटर पर्व में नदी के किनारे चरणचिहन अकित हैं। मंदिर में स्थापित मूर्ति 1114 ई. की है तथा मंदिर संगमरमर से बना हआ है जिसका निर्माण राजा गोपालसिंह द्वारा करवाया गया था। मंदिर के मुख्य कक्ष में महालक्ष्मी, कैला देवी और चामुण्डा की मूर्ति विराजमान हैं। कैला देवी अपनी आठ भुजाओं में शस्त्र लिए हुए है और सिंह पर सवार है। कैला देवी हनुमान जी की माता अंजना देवी का ही रूप है। चूंकि हनुमान जी अग्रवालों के कुल देवता हैं। अतः अग्रवाल लोग अंजना माता को अपनी कुल देवी मानते हैं। अंजना के पुत्र हनुमान जी को यहाँ लांगूरिया कहा जाता है। यहाँ रात्रि जागरण का विशेष महत्त्व है। कैला देवी के मंदिर में लांगुरिया गीत गाये जाते हैं। राजा अर्जुन देव द्वारा पास की पहाड़ी पर महारानी अजंना देवी का मंदिर स्थापित करवाया गया था।
प्रश्न: द्वारकाधीश का मंदिर, कांकरोली
उत्तर: राजसमंद के ही उपनगर कांकरोली में भगवान द्वारकाधीश (कृष्ण) का भव्य मंदिर है। यह पुष्टीमार्गीय वल्लभ सम्प्रदाय का सुप्रसिद्ध मंदिर है। यहाँ स्थापित प्रतिमा 1669 ई. में औरंगजेब के आतंक से भयभीत वल्लभ संप्रदाय के पुजारियों द्वारा मथुरा से लाई गई थी। मेवाड़ के राणा राजसिंह ने 1671 प्र. में उन्हें मेंवाड़ में आमंत्रित किया। पहले यह मूर्ति कांकरोली के निकट आसोतियां ग्राम में स्थापित की गई थी। बाद में 1719 ई. में भगवान कृष्ण की मूर्ति कांकरोली के वर्तमान मंदिर में स्थापित की गई।
प्रश्न: श्रीनाथद्वारा
उत्तर: राजसमंद से 16 किलोमीटर दक्षिण में वल्लभ सम्प्रदाय का सुप्रसिद्ध तीर्थ स्थल, नाथद्वारा स्थापित है। पुष्टिमार्गीय सम्प्रदाय के प्रवर्तक वल्लभाचार्य जी द्वारा पूजित यह मूर्ति पहले मथुरा में थी। वहाँ से 1519 ई. में यह गोवर्धन लाई गई। लगभग 150 वर्षों के पश्चात् मुगल बादशाह औरंगजेब के व्यवहार से क्षुब्ध होकर वल्लभाचार्य जी के वंशज गोस्वामी दामोदरजी तथा उनके चाचा गोविन्दजी श्रीनाथजी की मूर्ति सहित गोवर्धन छोड़कर मेवाड़ के महाराणा राजसिंह के आमंत्रण पर मेवाड़ के सिहाड़ ग्राम में आ गये जहाँ एक हवेली में मूर्ति को प्रतिष्ठित कर दिया गया। श्रीनाथजी की मूर्ति जिस स्थान पर स्थापित की जाती है उसे द्वारा कहते हैं। इसलिए यह स्थान श्रीनाथद्वारा कहलाया। श्रीनाथद्वारा का मंदिर ‘हवेली संगीत‘ का मुख्य केन्द्र है। हवेली संगीत ध्रूपद की एक विद्या है जो कीर्तन से प्रभावित है तथा जो वल्लभ सम्प्रदाय के मंदिरों में गायी जाती है।
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