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sargent florence theory of industrial location in hindi सार्जेंट फ़्लोरेंस का औद्योगिक सिद्धांत क्या है
सार्जेंट फ़्लोरेंस का औद्योगिक सिद्धांत क्या है sargent florence theory of industrial location in hindi ?
सार्जेण्ट फ्लोरेन्स का आगमनात्मक विश्लेषण
अल्फ्रेड वेबर की अवस्थिति के सिद्धान्त की आलोचक सार्जेण्ट फ्लोरेन्स ने औद्योगिक अवस्थिति का एक बिल्कुल ही अलग उपागम प्रतिपादित किया है। उनकी दृष्टि में, उद्योगों का भौगोलिक क्षेत्र से उतना महत्त्वपूर्ण संबंध नहीं है जितना कि कुल मिलाकर बसी हुई जनसंख्या के वितरण से है।
फ्लोरेन्स ने उत्पादन गणना से अलग औद्योगिकरण के स्थानीयकरण की मात्रा का सांख्यिकीय माप निकाला है। उन्होंने औद्योगिक अवस्थिति के सिद्धान्त की शब्दावली में दो नई अवधारणाओं का प्रतिपादन किया है।
क) अवस्थिति कारक
ख) स्थानीयकरण का गुणांक
अवस्थिति कारक
अवस्थिति कारक एक विशेष स्थान में एक उद्योग के केन्द्रीकरण की मात्रा का सूचकांक है।
यह सूचकांक किसी निश्चित क्षेत्र में पाई जाने वाली विशेष उद्योग में सभी श्रमिकों के प्रतिशत को लेकर और उसे देश में कुल औद्योगिक श्रमिकों के उस विशेष क्षेत्र में अनुपात द्वारा विभाजन करके निकाला जाता है।
यह क्षेत्र देश के राजनीतिक विभाजनों के अनुरूप है। इस तरह के सूचकांक के पीछे यह विचार है कि अवस्थिति की व्याख्या उद्योग के भौगोलिक वितरण और देश की जनसंख्या के बीच विषमता की मात्रा के रूप में की जा सकती है।
यह सूचकांक निम्नवत् निकाला गया हैः
प) यदि एक उद्योग का पूरे देश में समरूप वितरण है प्रत्येक क्षेत्र के लिए अवस्थिति कारक इकाई (=1) होगा क्योंकि उस क्षेत्र में कुल औद्योगिक श्रमिकों का अनुपात एक विशेष उद्योग में श्रमिकों के अनुपात के बराबर होगा।
पप) यदि एक उद्योग का पूरे देश में विषम वितरण है, तो अवस्थिति कारक या तो इकाई से अधिक (झ1) अथवा इकाई से कम (ढ1) होगा।
जब अवस्थिति कारक इकाई से अधिक है तब यह माना जाता है कि उस क्षेत्र में उद्योग का हिस्सा क्षेत्र के लिए यथोचित उद्योग के हिस्सा से कहीं अधिक है।
यदि अवस्थिति कारक इकाई से कम है तो यह मानना होगा कि उस क्षेत्र में उद्योग का हिस्सा क्षेत्र के लिए यथोचित उद्योग के हिस्से से कम है।
अवस्थिति का गुणांक
अवस्थिति गुणांक एक उद्योग की केन्द्रीकरण की प्रवृत्ति का सूचक है। एक उद्योग के लिए अवस्थिति का गुणांक निम्नलिखित सूत्र द्वारा निकाला जा सकता है। गुणांक, विशेष उद्योग में कर्मकारों का क्षेत्रीय प्रतिशत पूरे देश में कर्मकारों के तद्नुरूपी क्षेत्रीय प्रतिशत से जितना अधिक है उसका योग (100 से विभाजित) है।
प) सभी उद्योगों के साथ विशेष उद्योग का क्षेत्र-दर-क्षेत्र पूर्ण संपाति शून्य गुणांक देता है।
पप) अतिशय विभेदीकरण (अर्थात् एक विशेष क्षेत्र में श्रमिक एक क्षेत्र में ही केन्द्रकृत हैं) से 1 के निकट का अंक निकलता है।
इस तरह का सूचकांक निकालने का उद्देश्य उद्योगों का उनके विकेन्द्रीकरण अथवा केन्द्रीकरण की विशेषताओं के अनुरूप वर्गीकरण करना है। स्थानीयकरण के गुणांक के आधार पर, सभी उद्योगों को तीन परिमाणों में बाँटा जा सकता है।
प) अधिक गुणांक वाले उद्योग
पप) मध्यम गुणांक वाले उद्योग
पपप) निम्न गुणांक वाले उद्योग
स्थानीयकरण के उच्च गुणांक वाले उद्योग जैसे खनन उद्योग विशेष क्षेत्रों में केन्द्रीकृत हैं। इसके विपरीत स्थानीयकरण के निम्न गुणांक वाले उद्योग जैसे चर्म उद्योग, ईंट बनाना, भवन निर्माण इत्यादि अलग-अलग क्षेत्रों में विकसित हो सकते हैं और इस प्रकार विकेन्द्रीकृत हैं। इन दोनों के बीच वस्त्र, जूट, कागज, सीमेण्ट इत्यादि जैसे उद्योग हैं जिनके पास अवस्थिति के चयन का पर्याप्त विकल्प होता है।
आलोचनात्मक मूल्यांकन
सार्जेण्ट फ्लोरेन्स द्वारा तैयार इन दो सांख्यिकीय सूचकांकों का किसी भी देश में अवस्थिति संबंधी गति सिद्धान्त के अध्ययन के लिए अत्यधिक महत्त्व है। इस तरह की गत्यात्मकता के पीछे कारणों को निश्चित करने से पहले सैद्धान्तिक नियमों को लागू करने से पूर्व इस तरह के सूचकांकों को बनाना है।
तथापि, फ्लोरेन्स के आगमनात्मक उपागम की भी आलोचना की गई है। कुछ महत्त्वपूर्ण आलोचनाएँ इस प्रकार हैं:
एक, सांख्यिकीय सूचकांक सिर्फ उद्योगों के वितरण की विद्यमान दशा को प्रकट करता है। विशेष प्रकार के केन्द्रीकरण के कारणों की व्याख्या में वे सहायक नहीं हैं। इससे विभिन्न क्षेत्रों में उद्योगों की ठीक-ठीक अवस्थिति के प्रश्न पर कोई उपयोगी प्रकाश नहीं पड़ता है। संक्षेप में, सांख्यिकीय आँकड़े भविष्य में उद्योगों की अवस्थिति के लिए नीति तैयार करने में किसी प्रकार का मार्ग दर्शन नहीं करते हैं।
दो, स्थानीयकरण का गुणांक मुख्यतः देश में उद्योगों के वितरण के प्रकार पर आधारित है। गुणांक स्थानीय दशाओं के आधार पर एक देश से दूसरे देश में अलग-अलग होगा। दो देशों के गुणांक मूल्यों की तुलना करना अयथार्थवादी होगा।
तीन, अवस्थिति कारक प्रत्येक क्षेत्र में नियोजित औद्योगिक श्रमिकों की संख्या पर आधारित है। इसलिए यह किसी उद्योग के केन्द्रीकरण की मात्रा को सदैव ही ठीक-ठीक दर्शा सकता है। इससे भी बेहतर आधार प्रत्येक क्षेत्र में निर्गत की तुलना हो सकती है क्योंकि विभिन्न औद्योगिक केन्द्रों में उनके द्वारा नियोजित श्रम की भिन्न-भिन्न विशेषताओं के कारण उत्पादन की दक्षता में भिन्नता हो सकती है।
तथापि, कतिपय सीमाओं के रहने के बावजूद भी यह दो सांख्यिकीय सूचकांक देश में औद्योगिक विकास की प्रवृत्तियों के विश्लेषण में बहुमूल्य मार्गदर्शन करते हैं।
अवस्थिति के अन्य सिद्धान्त
जैसा कि पहले बताया जा चुका है अल्फ्रेड वेबर के अग्रणी कार्य ने औद्योगिक अवस्थिति के सिद्धान्त के क्षेत्र में और अधिक प्रयासों को प्रेरित किया। इस विषय में सार्जेण्ट फ्लोरेन्स के व्यापक शोध के साथ-साथ अन्य अर्थशास्त्रियों द्वारा भी उतना ही महत्त्वपूर्ण योगदान किया गया है।
अब हम इन योगदानों की संक्षेप में समीक्षा करेंगे:
प) आधुनिक सिद्धान्तकारों में, ई.एम. हूवर का महत्त्वपूर्ण स्थान है। उन्होंने परिवहन के आधुनिक साधनों की विशेषताओं पर विचार करते हुए वेबर के सिद्धान्त में कतिपय सुधारों का सुझाव दिया है।
हूवर के अनुसार, आज ट्रांसपोर्ट एजेन्सियों को पण्य वस्तुओं की लदाई-उतराई, लदाई के बिल, और यात्रा के दोनों अंतिम पड़ावों पर बीजक (प्छटव्प्ब्म्) इत्यादि तैयार करने के लिए उच्च एकशरू लागत (जमतउपदंस बवेज) व्यय करना पड़ता है और ये व्यय यात्रा में तय की गई दूरी से अलग हैं। इसके अतिरिक्त, अब परिवहन लागत वक्र और अधिक वक्र हो जाती है क्योंकि उपकरणों और रख-रखाव के लिए निर्धारित प्रभार उच्च हैं और अपेक्षाकृत लम्बी दुलाई में वाहनों और उपकरणों के उपयोग से अधिक दक्षता आती है। इसलिए उद्योगों, के रेलमार्गों, एवं जलमार्गों के बड़े-बड़े केन्द्रों और अन्य परिवहन केन्द्रों में केन्द्रीकृत होने की प्रवृत्ति रहती है।
पप) लियोन मोसेस ने अवस्थिति सिद्धान्त में एक और आयाम जोड़ दिया है। उनकी दृष्टि में अनुकूलतम निर्गत, आदानों के अनुकूलतम सम्मिश्र और अनुकूलतम अवस्थिति की समस्या एक दूसरे से जुड़े हुए हैं तथा इन सबका समाधान एक साथ किया जाना चाहिए। उनके विचार में बड़े पैमाने की मितव्ययिता और उत्पादन प्रक्रिया में अन्य चरों द्वारा न्यूनतम इकाई लागत कितना प्रभावित होगा उस पर विचार करने से पहले न्यूनतम लागत स्थान का निर्धारण नहीं किया जा सकता है।
पपप) हाल के कुछ सिद्धान्तों में अवस्थिति को प्रभावित करने वाले एक महत्त्वपूर्ण कारक के रूप में । बिक्री प्रदेशों के आकार पर विचार किया गया है। ग्रीनहट और फ्रेटर द्वारा प्रतिपादित क्रमशः माँग का विशेष वितरण और बाजार क्षेत्र उपागम वेबर के सिद्धान्त में माँग की अवास्तविक विवेचन की ओर इंगित करता है। नए उपागम में खरीदार के चयन या पसंद को महत्त्वपूर्ण स्थान दिया गया है। एक अर्थव्यवस्था में, यदि खरीदार के पास दो प्रतिस्पर्धी विक्रेताओं का विकल्प मौजूद है तो वह अपने समीप के विक्रेता से खरीदेगा। इसलिए, उत्पादक की सेवाएँ यथा संभव अधिक से अधिक भावी उपभोक्ताओं के समीप अवस्थिति पर निर्भर करती है। इन सिद्धान्तकारों के अनुसार, फर्म की अवस्थिति के चयन की सफलता का पैमाना बिक्री प्रदेश का वह आकार होगा जिसमें उसका एकाधिकार है क्योंकि उत्पादक का बिक्री के परिमाण से सीधा संबंध है। इसलिए प्रत्येक उत्पादक, अपने प्रतिस्पर्धियों की अपेक्षा कुछ अधिक लागत लाभ अर्जित करने का प्रयास करता है ताकि वह दूसरों के बिक्री क्षेत्र में अपने बिक्री क्षेत्र का विस्तार कर सके। बाजार क्षेत्र उपागम उन उद्योगों का अध्ययन करने में उपयोगी है जहाँ उत्पाद मानक हैं और परिवहन लागत पर्याप्त रूप से अधिक होना चाहिए जो कि वितरण मूल्यों को महत्त्वपूर्ण रूप से परिलक्षित करे। (पहले होटेलिंग के कारण)
पअ) कुछ सिद्धान्तकारों ने वेबर की न्यूनतम लागत उपागम और ग्रीनहट तथा फ्रेटर के बाजार क्षेत्र उपागम की इस आधार पर आलोचना की है कि अवस्थिति के कारणों पर विचार करते समय मानवीय कारकों की उपेक्षा की गई है। उनका विचार है कि उद्यमी के फैसले कभी-कभी जानबूझ कर अथवा कभी-कभी यूँ भी किसी एक अथवा दूसरी सामाजिक, सांस्कृतिक अथवा जातीय समूहों के प्रति व्यक्तिगत मोह से प्रभावित होता है। एक उद्योग की अवस्थिति उस स्थान पर नहीं भी हो सकती है जो उसके लिए सबसे उपयुक्त हो। एक औसत फर्म आर्थिक दृष्टि से सर्वोत्तम अवस्थिति पर नहीं होने के बावजूद भी चल सकती है।
बोध प्रश्न 2
1) फ्लोरेन्स के सिद्धान्त में अवस्थिति के कारक क्या हैं?
2) स्थानीयकरण के गुणांक की माप कैसे की जाती है? इसके क्या उपयोग हैं?
3) औद्योगिक अवस्थिति के सिद्धान्त के संबंध में ई.एम.हवर के विचारों को संक्षेप में प्रस्तुत करें।
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