JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

हिंदी माध्यम नोट्स

Class 6

Hindi social science science maths English

Class 7

Hindi social science science maths English

Class 8

Hindi social science science maths English

Class 9

Hindi social science science Maths English

Class 10

Hindi Social science science Maths English

Class 11

Hindi sociology physics physical education maths english economics geography History

chemistry business studies biology accountancy political science

Class 12

Hindi physics physical education maths english economics

chemistry business studies biology accountancy Political science History sociology

Home science Geography

English medium Notes

Class 6

Hindi social science science maths English

Class 7

Hindi social science science maths English

Class 8

Hindi social science science maths English

Class 9

Hindi social science science Maths English

Class 10

Hindi Social science science Maths English

Class 11

Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics

chemistry business studies biology accountancy

Class 12

Hindi physics physical education maths entrepreneurship english economics

chemistry business studies biology accountancy

संचयी कारक और विसंचयी कारक क्या है | Agglomeration economies in Hindi meaning definition

Agglomeration economies in Hindi meaning definition संचयी कारक और विसंचयी कारक क्या है ?

शब्दावली

संचयी कारक (Agglomeration) ः एक उद्योग के केन्द्रीकरण के कारण उत्पादन में लाभ अथवा उत्पादन का सस्ता होना।
विसंचयी कारक ः उद्योगों के विकेन्द्रीकरण के कारण उत्पादन लागत में कमी।

भौतिक सूची ः तैयार उत्पाद की तुलना में स्थानीय कच्चे माल के भार का अनुपात है।
स्थानीय परिमाण ः उत्पादन की पूरी प्रक्रिया के दौरान परिवहन किया जाने वाला भार है।
श्रम लागत सूचकांक ः उत्पाद के मूल्य में श्रम लागत का अनुपात है।

उद्देश्य
इस इकाई को पढ़ने के बाद आप:
ऽ औद्योगिक अवस्थिति की अवधारणा का अभिप्राय और महत्त्व समझ सकेंगे;
ऽ उद्योगों की अवस्थिति के संबंध में विभिन्न दृष्टिकोणों का विश्लेषण तथा उनके बीच भेद कर सकेंगे;
ऽ यह समझ सकेंगे कि किसी विशेष उद्योग का स्थान विशेष पर केन्द्रीकरण का कारण क्या है;
ऽ उन कारकों की व्याख्या कर सकेंगे जो अवस्थिति के चयन में उद्यमी को प्रभावित करती हैं; और
ऽ अवस्थिति की गत्यात्मकता की व्याख्या कर सकेंगे।

प्रस्तावना
ऐसा प्रतीत होता है कि मानव की ही भाँति उद्योगों की भी विशेष क्षेत्रों और स्थानों पर केन्द्रित होने की प्रवृत्ति है। यह मात्र संयोग नहीं है कि भारत में अधिकांश बड़े उद्योग बड़े शहरों, यातायात केन्द्रों और खानों तथा खनिजों से भरपूर क्षेत्रों में अथवा उसके समीप अवस्थित हैं। वस्त्र उद्योग जिसका संगठित क्षेत्र में सबसे पहले विकास हुआ, 1920 तक मुख्य रूप से मुम्बई क्षेत्र में अवस्थित था। समुद्र, रेल और सड़क मार्ग से सुचारू रूप से जुड़े होने, निकटवर्ती क्षेत्रों में कपास का उत्पादन होने, सस्ता और कुशल श्रमिकों की बहुतायत, बैंकिंग और साख सुविधाएँ, तकनीकी और व्यावसायिक सेवाएँ, आर्द्र जलवायु, विशाल बाजार और वित्तीय संसाधनों तथा अनुभव से संपन्न उद्यमी व्यावसायिक वर्गों की उपलब्धता के कारण मुम्बई ने संगठित क्षेत्र में वस्त्र और अन्य अनेक उद्योगों को अपनी ओर आकृष्ट किया। कोलकाता और चेन्नई को भी अवस्थिति संबंधी लाभ प्राप्त था और इसलिए इन स्थानों का औद्योगिकरण पहले हुआ। औद्योगिकरण के आरम्भिक चरणों में उत्तर प्रदेश और बिहार में चीनी उद्योग का केन्द्रीकरण गन्ना उत्पादन में इन राज्यों की विशिष्ट स्थिति के कारण हुआ था। बिहार और बंगाल में लौह और इस्पात मिलों की स्थापना इसलिए हुई कि इन राज्यों में लौह अयस्क और कोयला का प्रचुर भण्डार था। डिग्बोई में 1890 में तेल का प्रथम कुआँ खोदे जाने के बाद असम में पेट्रोलियम उद्योग का आरम्भ हुआ। इस समय बंगलौर और हैदराबाद में सॉफ्टवेअर उद्योग के केन्द्रीकरण की प्रवृत्ति एक स्थापित प्रघटना है, जैसा कि देश के विभिन्न भागों से उद्योगों का पलायन और अन्य स्थानों पर उनकी पुनर्स्थापना से भी स्पष्ट है।

अर्थशास्त्रियों को सदैव ही इस प्रघटना की व्याख्या करने में कठिनाई महसूस हुई है.। परिणामस्वरूप, कुछ ही समय पहले अनेक सिद्धान्तों, जिन्हें अवस्थिति का सिद्धान्त कहा जाता है, का विकास हुआ है।

 औद्योगिक अवस्थिति की गत्यात्मकता
एक विशेष अवधि में विशेष प्रदेश में औद्योगिक अवस्थिति उस विशेष समय में हो चुके आर्थिक विकास के विशेष चरण से संबंधित है। विभिन्न कारकों में परिवर्तन औद्योगिक गतिविधि की अवस्थिति में परिवर्तन ला सकते हैं।

ई.एम. हृवर ने अवस्थिति संबंधी परिवर्तन के कारणों को चार श्रेणियों में वर्गीकृत किया है (क) मौसम संबंधी, (ख) चक्रीय, (ग) धर्मनिरपेक्ष, और (घ) संरचनात्मक ।

मौसम संबंधी परिवर्तन
उत्पादक मौसम की परिवर्तनशील दशाओं से समायोजन के लिए अपनी गतिशीलता की सीमाओं के अंदर अवस्थितियों में परिवर्तन करते हैं।

चक्रीय परिवर्तन
चक्रीय परिवर्तनों का पूर्वानुमान लगाना मुश्किल है तथा ये मौसमी परिवर्तनों की अपेक्षा अधिक समय तक चलते हैं। यह व्यापारिक चक्रों के लहर का परिणाम होता है। चक्रीय उतार-चढ़ाव, निवेश, आय के वितरण, घटक उपयोग और सापेक्षिक मूल्यों को प्रभावित करते हैं।

 धर्मनिरपेक्ष परिवर्तन
धर्मनिरपेक्ष परिवर्तन से धीरे-धीरे परिवर्तन होते हैं जो दीर्घकाल तक जारी रहता है और व्यापार चक्रों अथवा मौसमी परिवर्तनों की भाँति स्वयं उल्टी दिशा में नहीं जाता है और नहीं दोहराता है।

 संरचनात्मक परिवर्तन
नए संसाधनों और तकनीकी के विकास से संरचनात्मक परिवर्तन होते हैं। इस प्रकार के परिवर्तन हस्तांतरण लागतों, श्रमिक आवश्यकताओं, सामग्री आवश्यकताओं और ऊर्जा लागतों में परिवर्तन के माध्यम से अवस्थिति को प्रभावित करते हैं।

सारांश
मानव की ही भाँति उद्योग की भी कुछ प्रदेशों और क्षेत्रों में केन्द्रीकृत होने की प्रवृत्ति होती है। संयंत्र को किसी स्थान विशेष पर अवस्थित करने का उद्यमी का निर्णय सबसे महत्त्वपूर्ण निर्णय होता है। वह विभिन्न विचारों से प्रभावित होता है। औद्योगिक अवस्थिति के निगमनात्मक सिद्धान्त के प्रतिपादन में वेबर का अग्रणी स्थान है। सार्जेण्ट फ्लोरेन्स ने इसी प्रघटना का आगमनात्मक विश्लेषण किया है। आधुनिक अर्थशास्त्रियों ने भी इस वाद-विवाद में अपना योगदान किया है। इस वाद-विवाद से वे कारक स्पष्ट रूप से प्रकट हुए हैं जो उद्योग की अवस्थिति संबंधी निर्णय को प्रभावित करते हैं। तथापि, अवस्थिति की अवधारणा एक गतिशील अवधारणा है। यह विभिन्न कारकों में परिवर्तन के साथ बदलती रहता है।

 कुछ उपयोगी पुस्तकें एवं संदर्भ
ए. के. मुखर्जी (1985). ए थ्योरी ऑफ लोकेशन ऑफ इण्डस्ट्रीज, में अल्फ्रेड वेबर, ‘‘इकनॉमिक्स ऑफ इण्डियन इण्डस्ट्री‘‘, एस.चंद. नई दिल्ली।
सार्जेण्ट फ्लोरेन्स (1948) इन्वेस्टमेंट, लोकेशन एण्ड साइज ऑफ प्लांट, कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस
अनिंद्य सेन (संपा ) (1998). इण्डस्ट्रियल ऑर्गेनाइजेशन, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, कलकत्ता
ई.ए.जी. रॉबिन्सन, (1932). दि स्ट्रक्चर ऑफ कम्पीटिटिव इंडस्ट्री, शिकागो यूनिवर्सिटी प्रेस, शिकागो

Sbistudy

Recent Posts

द्वितीय कोटि के अवकल समीकरण तथा विशिष्ट फलन क्या हैं differential equations of second order and special functions in hindi

अध्याय - द्वितीय कोटि के अवकल समीकरण तथा विशिष्ट फलन (Differential Equations of Second Order…

10 hours ago

four potential in hindi 4-potential electrodynamics चतुर्विम विभव किसे कहते हैं

चतुर्विम विभव (Four-Potential) हम जानते हैं कि एक निर्देश तंत्र में विद्युत क्षेत्र इसके सापेक्ष…

3 days ago

Relativistic Electrodynamics in hindi आपेक्षिकीय विद्युतगतिकी नोट्स क्या है परिभाषा

आपेक्षिकीय विद्युतगतिकी नोट्स क्या है परिभाषा Relativistic Electrodynamics in hindi ? अध्याय : आपेक्षिकीय विद्युतगतिकी…

5 days ago

pair production in hindi formula definition युग्म उत्पादन किसे कहते हैं परिभाषा सूत्र क्या है लिखिए

युग्म उत्पादन किसे कहते हैं परिभाषा सूत्र क्या है लिखिए pair production in hindi formula…

1 week ago

THRESHOLD REACTION ENERGY in hindi देहली अभिक्रिया ऊर्जा किसे कहते हैं सूत्र क्या है परिभाषा

देहली अभिक्रिया ऊर्जा किसे कहते हैं सूत्र क्या है परिभाषा THRESHOLD REACTION ENERGY in hindi…

1 week ago
All Rights ReservedView Non-AMP Version
X

Headline

You can control the ways in which we improve and personalize your experience. Please choose whether you wish to allow the following:

Privacy Settings
JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now