हिंदी माध्यम नोट्स
संथाली भाषा आंदोलन क्या है | santali language movement in hindi संथाली भाषा किस राज्य में बोली जाती है
संथाली भाषा किस राज्य में बोली जाती है संथाली भाषा आंदोलन क्या है santali language is spoken in which state of india in hindi ?
उत्तर : यह भाषा असम, बिहार, झारखंड, मिजोरम, ओडिशा, त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल आदि भारत के मुख्य राज्यों में बोली जाती है |
संथाली भाषा आंदोलन
संथाली पहचान. के आंदोलनों का सिलसिला 19वीं सदी में खेरवाड़ आंदोलन से शुरू हुआ था। दरअसल यह सामाजिक गतिशीलता का आंदोलन था जिसके जरिए संथाल लोग वृहत्तर हिंदू जनसंख्या के एक महत्वपूर्ण अंग के रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज कराना चाहते थे। उन्होंने हिंदू संस्कृति की विशेषताएं अपना ली और जनेऊधारी बन गए। जनेऊधारी संथालों ने अपने आपको गैर-जनेऊधारियों से अलग कर लिया और दोनों में आपस में विवाह बंद हो गए। मगर 1938 में आदाबासी आंदोलन ने संथाल परगना में मजबूत स्वरूप गृहण कर लिया। इस आंदोलन के तहत संथाल लोग छोटा नागपुर के मूल आदिवासियों के लिए एक पृथक प्रांत और स्कूलों में संथाली और अन्य मूल जनजातीय भाषाओं को शिक्षा का माध्यम बनाने की मांग की। रगना झारखंड आंदोलन के हिस्से के रूप में जनजातीय एकता को दर्शाने के लिए सरना धोर्मा समलेट शुरू किया था। यह संगठन मूल संथाली लिपि और धर्म ग्रंथों को प्रतिष्ठित करने में प्रयत्नशील रहा। अब एक महानायक भी खोज लिया गया जिसको गुरु गोमके कहा गया। ये गुरु खेरवाड़ बीर के मूल रचियता माने जाते हैं। खेरवाड़ बीर महाभारत के ही समान है। सिंधी और कश्मीरी जैसे भाषाई समूहों से बड़े संथाल लोग अपनी जातीय पहचान को प्रतिष्ठित करना चाहते हैं। मगर उनका आंदोलन भी दो गुटों में बंटा है। एक गुट ईसाई बने संथाल लोगों का है जो संथाली के लिए रोमन लिपि की मांग करता है। दूसरा गुट अल चिकि संथाली का समर्थक है। झारखंड आंदोलन के नेताओं ने इन मतभेदों को दबाए रखने की कोशिश की ताकि पृथक राज्य की मांग को मजबूती मिल सके । संथाली को अब प्राथमिक स्कूलों में शिक्षा का माध्यम बना दिया गया है लेकिन संविधान की छठी अनुसूची में उसे अभी तक स्थान नहीं मिल पाया है।
जनजातीय भाषाई आंदोलन
वर्ष 1961 की जनगणतना के अनुसार, भारत में प्रचलित 1965 मातृभाषाओं में लगभग 500 भाषाएं जनजातीय अंचलों में बोली जाती हैं । संथाली, गोंडी और खासी इनमें सबसे बड़ी भाषाई समूह हैं। भारत के जनजातीय भाषाई समूहों को तीन वर्गों में बांटा गया हैः (प) द्रविड़ (पप) ऑस्ट्रिक (पपप) तिब्बती-चीनी। राज्य के ढांचे के पुनर्गठन की प्रक्रिया में जनजातीय भाषाओं की विविधता दब जाती है। उड़ीसा में भाषा की स्थिति की विस्तृत व्याख्या से यह स्पष्ट किया जा चुका है। उड़ीसा राज्य में 1961 की जनगणना के अनुसार उड़िया बोलने वाले लोगों की संख्या मात्र 1.5 करोड़ थी। वर्ष 1981 में हुई जनगणना में उड़ियाभाषी लोगों की भाषा की संख्या बढ़कर 3 करोड़ हो गई थी। जबकि खाड़िया और भूमिजी भाषी लोगों की संख्या (1961 और 1971 जनगणना के अनुसार) 1.4 लाख ओर 91.000 से घटकर 198 जनगणना में क्रमशः 49,000 और 28,208 रह गई थी। यह आश्चर्यजनक है कि भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में एक भी आदिवासी भाषा को मान्यता नहीं दी गई है, हालांकि भारत की आबादी का एक बड़ा हिस्सा इन भाषाओं को बोलता है। जैसे संथाली को 36 लाख लोग, भीली भाषा को 12.5 लाख लोग, .
लाम्मी भाषा को 12 लाख लोग बोलते हैं । संविधान की आठवीं अनुसूची ने अनजाने में भाषाओं की जो क्रम-परंपरा स्थापित की है और त्रिभाषीय सूत्र के तहत राजकीय भाषा को राज्य से जो संरक्षण मिला है उसने हमारी मातृभूमि के मूल निवासियों को अलग-थलग कर दिया है । आदिवासियों में बढ़ती साक्षरता और शिक्षा से उनमें अपनी जातीय विशिष्टताओं को लेकर चेतना भी बढ़ रही है। इस जागरुकता के फलस्वरूप उनमें कुछ महत्वपूर्ण भाषाई-जातीयता के आंदोलन खड़े हुए हैं। हम यहां उनमें से सिर्फ तीन आंदोलनों के बारे में बता रहे हैं।
प्रधानमंत्री शास्त्री के आश्वासनों से संतुष्ठ होकर हिंदी विरोधी आंदोलकारियों ने अपना आंदोलन 22 फरवरी को वापस ले लिया। इसके बाद आंदोलन के नेताओं ने खेद प्रकट करते हुए कहा कि उनके एक शांतिपूर्ण प्रदर्शन को असमाजिक तत्वों ने अपने हाथ में ले लिया था। बहरहाल, इस आंदोलन ने राज्य में अपना राजनीतिक वर्चस्व बनाने के लिए डीएमके का रास्ता साफ कर दिया और 1967 में डीएमके चुनाव जीतकर राज्य में अपनी सरकार बना ली। डीएमके के शासनकाल में ही 27 नवंबर 1967 को लोकसभा में राजकीय भाषा अधिनियम 1963 की धारा 3 के लिए एक संशोधन विधेयक लाया गया। इस विधेयक में यह व्यवस्था की गई कि केन्द्र सरकार और गैर-हिंदी राज्य सरकारों के बीच कुछ खास कार्यों के लिए अंग्रेजी का प्रयोग होगा। इस विधेयक ने हिंदी भाषी राज्यों को अंग्रेजी के प्रयोग को समाप्त करने की स्वतंत्रता भी दे दी। डीएमके हालांकि चिंतित थी लेकिन उसने विधेयक को इस शर्त पर अपना समर्थन देने का निर्णय किया कि वह बिना किसी परिवर्तन के पारित किया जाए। जिसका मतलब यह था कि यह अंग्रेजी के प्रयोग को संवैधानिक अनुमति दे।
बोध प्रश्न 2
1) पंजाबी सूबा आंदोलन क्या था? इसके बारे में पांच से दस पंक्तियों में बताइए।
2) एक उदाहरण देकर पांच से दस पंक्तियों में जनजातीय भाषाई आंदोलनों के बारे में समझाइए।
बोध प्रश्न 2 उत्तर
1) पंजाबी सूबा आंदोलन एक पंजाबी भाषी राज्य की स्थापन के लिए हुआ था। इसकी मांग सबसे पहले 1919 में उठी थी और जो 1947 में भारत के स्वतंत्र होने के बाद भी जा रही। सिख राज्य के बजाए पंजाबी भाषी राज्य की सलाह डॉ. भीमराव अंबेडकर ने दी थी। उनका कहना था कि पंजाबी भाषा के जरिए पंजाबी सूबा के नाम से एक सिख राज्य बनाया जा सकता है। वर्ष 1966 में पंजाब राज्य को पंजाब और हरियाणा में विभाजित कर दिया गया।
2) जनजातीय लोगों में साक्षरता के बढ़ने से उनमें अपनी जातीय विशिष्टताओं की चेतना भी बढ़ी। उदाहरण के लिए जैंतिया लोगों ने 1975 से साहित्य गोष्ठियों और साहित्यिक कृतियों का प्रकाशन करके अपनी जातीयता को प्रतिष्ठित किया। साहित्यिक गतिशीलता और राजनीतिक भागीदारी के माध्यम से उन्होंने अपनी विशिष्ट जातीय पहचान को स्थापित किया।
संदर्भ
कोनर, डब्लू. (1978) “एथनो-नेशनल वर्सस अदर फार्स ऑफ ग्रुप आइडेंटिटीः द प्रॉब्लम ऑफ टर्मिनॉलजी‘‘, एन. रुडी (संपा.) इंटरग्रुप एकोमोडेशन इन प्लुरल सोसाइटीज, लंदन, मैकमिलन
कोर्नेल, स्टीफन और डगलस हटमैन, (1998) एथनिसिटी ऐंड रेस: मेकिंग आइडेंटिटीज इन ए चेंजिंग वर्ल्ड, नई दिल्ली, पाइन फोर्ज प्रेस
डोलार्ड जे. (1937) कास्ट ऐंड क्लास इन ए सदर्न टाउन,न्यू यार्क, डबलडे
आइजनस्टैड, एस.एन. (1973) कास्ट ऐंड क्लास इन ए सदर्न टाउन, न्यू यार्क, डबलडे
फर्निवाल, जे. एस. (1973) ट्रेडिशन, चेंज ऐंड मॉडर्निटी, न्यू यार्क, जॉन वाइले ऐंड ऐंस
फर्निवल,जे-एस., (1942) “द पॉलिटिकल इकोनॉमी ऑफ द ट्रॉपिकल फार ईस्ट,” जनरल ऑफ द रॉयल सेंट्रल एशियन सोसाइटी, 29, 195,210
गैस्टिल, आर.डी. (1978), ‘‘द राइट टु सेल्फडिटर्नमिनेशन: डेफिनिशन, रिएलिटी ऐंड आइज्यिल पॉलिसी‘‘ , एन. रूडी (संपा.) इंटरग्रुप एकोमोडेशन इन प्लुरल सोसाइटीज लंदन मैकमिलन
गीत्ज. सी., (संपा.) 1963 ओल्ड सोसाइटीज ऐंड न्यू स्टेटस, न्यू यॉर्क, फ्री प्रेस
गेलजर, अर्नेस्ट (1983) नेशंस ऐंड नेशनलिज्म इथैका, कोर्नेल यूनि० प्रेस
ग्लेजर, नैथन (1975) एफर्मेटिव डिस्क्रिमिनेशनः एथनिक इनइक्वैलिटी ऐंड पब्लिक पॉलिसी, न्यू यार्क, बेसिक बुक्स
हेडन, जी०, (1983) नो शॉटकट्स टु प्रोगेस, लंदन, हाइनमैन
केर, क्लार्क एट ऑल (1960) इंडस्ट्रियलाइजेशन ऐंड इंडस्ट्रियल मैनः द प्रॉब्लम ऑफ लेबर ऐंड मैनेजमैंट इन इकॉनमिक ग्रोथ, मैसाचुसेट्स, हारवर्ड यूनि० प्रेस
कूपर एल और एम. जी. स्मिथ (संपा.) 1969 प्लुरलिज्म इन अफ्रीका, बकेले, यूनि० ऑफ कैलिफोर्निया प्रेस
मैकक्रोन, आई. डी. (1937) रेस ऐटीट्यूड्ज इन साउथ अफ्रीकाः हिस्टोरिकल, एक्सपेरिमेंटल ऐंड साइकोलाजिकल स्टडीज, लंदन, आक्सफर्ड यूनि० प्रेस
मर्फी, एम. डब्लू. (1986) “एथनिसिटी ऐंड थर्ड वर्ल्ड डेवेलपमेंटः पॉलिटिकल ऐ ऐकेडेमिक कनटेक्ट्स‘‘ जे. रेक्स ऐंड डी. मेसन (संपा.) थ्योरीज ऑफ रेस ऐंड एथनिक रिलेशंस, कैम्ब्रिज, कैम्ब्रिज यूनि० प्रेस
ऊमेन, टी. के., (संप) 1990, स्टेट ऐंड सोसाइटी इन इंडियाः स्टडीज इन नेशन बिल्डिंग, नई दिल्ली, सेज पब्लिकेशंस
ऊमेन, टी. के. (संपा) 1997 सिटिजनशिप ऐंड नेशनल आइडेंटिटीः फ्रॉम कोलोनियलिज्म टु ग्लोबल्जिम, नई दिल्ली, सेज पब्लिकेशंस
पैटरसन, ओ. 1953, कलर ऐंड कल्चर इन साउथ अफ्रीका, लंदन, राउटलेज एंड केगन पॉल
रोस्टो, डब्लू.डब्लू (1960), द स्टेजेज ऑफ इकोनॉमिक ग्रोथ, कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस
सभरवाल, एस. (1992) “एथनिसिटीः क्रिटिकल रिव्यू ऑफ कनसेप्शंस ऐंड पर्सपेक्टिव्ज‘‘ सोशल साइंस रिसर्च जरनल (1 और 2) मार्च-जुलाई
शर्मा, एस. एल. (1990) “द सैलिएंस ऑफ एथनिसिटी इन माडर्नाइजेशनः एविडेंस फ्रॉम इंडिया‘‘ सोशियोलोजिकल बुलेटिन 30 (1 और 2) सितंबर
शर्मा, एस.एल. (1996) “ एथनिक सर्ज फॉर पॉलिटिकल ऑटोनॉमी: ए केस फॉर ए कल्चरल रेस्पोंसिव पॉलिसी,” ए. आर. मोमिन (संपा) ‘द लिगेसी ऑफ जी.एस. घुर्येः ऐ सेन्टिनियल फेस्ट स्क्रिफट, मुंबई, पॉपुलर प्रकाशन,
स्मिथ, एम. जी (1965), द प्लुरल सोसाइटी इन द ब्रिटिश वेस्ट इंडीज, केलिफोर्निया, कैलिफोर्निया यूनि० प्रेस
वालरस्टीन, आई. (1986)“सोसाइटल डेवेलपमेंट ऑफ डेवेलपमेंट ऑव द वर्ल्ड सिस्टम?‘‘ इंटरनेशनल सोशियॉलजी (1)
चानना, एस. 1994 अंडरस्टैंडिंग सोशियोलॉजी, कल्चर एंड चेंज, नई दिल्ली, ब्लेज पब्लिकेशन
चिब, एस.एस., 1984, कास्ट, ट्राइब्ज एंड कल्चर ऑफ इंडिया खंड 8, नई दिल्ली, एसएस पब्लिकेशंस
डी.आर. मांकेकर, 1972 ‘‘ए प्ली फॉर पॉलिटिकल मोबिलिटी‘‘ मृणाल मिरी (संपा.) कंटिन्यूइटी ऐंड चेंज इन ट्राइबल सोसाइटी, शिमला, इंडियन इंस्टीट्यूट फॉर एडवांस स्टडीज
जाजा वर्जीनिया, 1999, ट्रांसफॉर्मेशन ऑफ ट्राइब्ज इन इंडियाः टर्स ऑफ डिस्कोर्स, ईपीडब्लू, जून 12, पश्. 1520-1524
डोले, डी. 1998, ‘ट्राइबल मूवमेन्ट्स इन नॉर्थ-ईस्ट‘ के.एस. सिंह (संपा.) ट्राइबल मूवमेंट्स इन इंडिया, ट्राइबल स्टडीज ऑफ इंडिया सिरीज टी 183 एंटिक्विटी टु माडर्निटी इन ट्राइबल इंडिया, खंड प्ट
दुबे, एस.सी. (संपा.) 1977 ट्राइबल हेरिटेज ऑफ इंडिया, नई दिल्ली, विकास पब्लिकेशंस
एल्विन, वेरियर, 1959, ए फिलॉसफी फॉर नेफा, शिलांग, नेफा
गोस्वामी, बी.बी. और डी.पी. मुखर्जी, 1992 ‘‘मिजो पॉलिटिक मूवमेंट‘‘, के.एस. सिंह (संपा.) ट्राइबल मूवमेंट्स इन इंडिया (खंड प्) नई दिल्ली मनोहर (पृ. 129-150)
हैमनडॉर्फ, क्रिस्टोफर वॉन फ्यूरर, 1982 ट्राइब्ज ऑफ इंडियाः स्ट्रगल फॉर सरवाइवल, दिल्ली ऑक्सफोर्ड यूनि. प्रेस
कैबुई, गैंगुमेर, 1983 “इंसजेंसी इन द मणिपुर वैली‘‘ बी.एल. अब्बी (संपा.) नॉर्थ-ईस्ट रीजनः प्रॉब्लम्स एंड प्रॉस्पेक्ट्स ऑफ डेवलपमेंट, चंडीगढ़, सीआरआरआइडी पब्लिकेशंस
कैबुई, गैंगुमेर, 1982 “द जेलियाग्रांग मूवमेंटः ए हिस्टॉरिकल स्टडी” के.एस. सिंह (संपा) ट्राइबल मूवमेंट्स इन इंडिया (खंड प्) नई दिल्ली, मनोहर (पृ 53-67)
मुखर्जी, बाबानंद और के एस. सिंह 1982 ट्राइबल मूवमेंट्स इन त्रिपुरा” के.एस. सिंह (संपा.) ट्राइबल मूवमेंट्स इन इंडिया (खंड प्) नई दिल्ली, मनोहर (पृ 67-97)
पुरी, रक्षत 1972य टुवा सिक्योरिटी इन द नॉर्थ-ईस्टः ट्रांसपोर्टेशन ऐंड नेशनलिज्म (पृ. 72-97) के. एस. सिंह (संपा) ट्राइबल सिचुएशन इन इंडिया
राव, सी. नागार्जुन, 1983 ऋ ‘‘क्राइसिस इन मिजोरम” बी.एल. अब्बी (संपा.) नॉर्थ-ईस्ट रीजनः प्रॉब्लम्स ऐंड प्रॉस्पेक्ट्स ऑफ डेवलपमेंट, चंडीगढ़, सीआरआरआइडी पब्लिकेशंस (पृ. 240-248)
सिन्हा, ए.सी. 1998 भूपिंदर सिंह (संपा.) “सोशल स्ट्रैटिफिकेशन एमंग द ट्राइब्ज ऑफ नॉथ-ईस्टर्न इंडिया” में (पृ. 197-221)
श्रीनिवास, एम.एन., और आर.डी० सनपाल 1972य “सम आस्पेक्ट्स ऑफ रोहसेल डेवलपमेंट इन नार्थ-ईस्ट हिल एरिया ऑफ इंडिया‘‘
थंगा, एल.बी. 1998, “चीफशिप इन मिजोरम‘‘ भूपिंदर सिंह (संपा.) ट्राइबल सेल्फ-मैनेजमेंट इन नॉर्थ-ईस्ट इंडिया, ट्राइबल स्टडीज इन इंडिया सिरीज टी. 183 एंटिक्विटी टु मॉडर्निटी, ट्राइबल इंडिया खंड प्प् (पृ. 247-274)
वर्गीज, बी.जी. 1994, इंडियाज नॉर्थ-ईस्ट रिसर्जेट, नई दिल्ली, कोनार्क
जोशी, सी. (1984) भिंडरांवाले मिथ ऐंड रियलिटी, दिल्ली, विकास
समीउद्दीन, ए. (1985) पंजाब क्राइसिसः चेलैंज ऐंड रेस्पांस
शर्मा, एस.एल., (1996) ‘‘एथनिक सर्ज फॉरं पॉलिटिकल ऑटोनॉमीः ए केस फॉर कल्चर-रस्पांसिव पॉलिसी ए.आर. मोमिन (संपा) द लीगेसी ऑफ जी.एस. घुरयेः ए सेन्टीनियल फेस्टस्क्रिफ्ट, मुंबई, पॉपुलर प्रकाशन में सोलोर, डब्लू. (1996) थ्योरीज ऑफ एथिनिसिटीः ए क्लासिकल रीडर, लंदन, मैकमिलन
Recent Posts
सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke rachnakar kaun hai in hindi , सती रासो के लेखक कौन है
सती रासो के लेखक कौन है सती रासो किसकी रचना है , sati raso ke…
मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी रचना है , marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the
marwar ra pargana ri vigat ke lekhak kaun the मारवाड़ रा परगना री विगत किसकी…
राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए sources of rajasthan history in hindi
sources of rajasthan history in hindi राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों की विवेचना कीजिए…
गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है ? gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi
gurjaratra pradesh in rajasthan in hindi गुर्जरात्रा प्रदेश राजस्थान कौनसा है , किसे कहते है…
Weston Standard Cell in hindi वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन
वेस्टन मानक सेल क्या है इससे सेल विभव (वि.वा.बल) का मापन Weston Standard Cell in…
polity notes pdf in hindi for upsc prelims and mains exam , SSC , RAS political science hindi medium handwritten
get all types and chapters polity notes pdf in hindi for upsc , SSC ,…