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संस्कृतिकरण की अवधारणा क्या है परिभाषा किसे कहते है sanskritization in hindi अवधारणा किसने दी
sanskritization in hindi संस्कृतिकरण की अवधारणा क्या है परिभाषा किसे कहते है संस्कृतिकरण की अवधारणा किसने दी लेख निबंध का समालोचनात्मक परीक्षण कीजिए ?
शब्दावली
संस्कृतिकरण : इस संकल्पना को एम.एन. श्रीनिवास ने प्रवर्तित किया। उसके अनुसार ‘संस्कृतिकरण‘ उस प्रक्रिया को कहते हैं, जिसमें उच्च वर्ग अथवा द्विज जाति के लोगों के अनुकरण में नीची जाति के हिन्दू या जनजाति के लोग या दूसरे समूहों के लोग अपने रीति-रिवाजों, संस्कारों, विचारधारा और रहन-सहन की पद्धति को बदल देते हैं।
एककालिक समसामयिक संदर्भ में, ऐतिहासिक पृष्ठभूमि का उल्लेख किए बिना, किये जाने वाले समाज के अध्ययन को एककालिक (synchronic) अध्ययन कहते हैं।
अमूर्तीकरण यह शब्द वस्तु से अलग उसके गुण की अभिव्यक्ति करता है और उसके मूर्त रूप को बताने के बजाय उसके आंतरिक रूप की ओर संकेत करता है। इस इकाई के संदर्भ में इस शब्द का उपयोग मानव-व्यवहार के वर्णनात्मक विवरण की जगह सैद्धांतिक विचारों को अभिव्यक्त करने के लिए किया गया है।
आदिवासी जनजातियां किसी स्थान के मूल निवासी। ऑस्ट्रेलिया के जनजातीय लोगों को सामान्यतः आदिवासी (aborigines) कहा जाता है।
नृजाति विवरण (ethnography) विशेष विषय पर लिखा विवरण
कुछ उपयोगी पुस्तकें
मेयर, लूसी, 1984. एन इंट्रोडक्शन टु सोशल एन्थ्रोपोलॉजी आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेसः नई दिल्ली
मलिनॉस्की और रैडक्लिफ – ब्राउन के विचारों की समालोचना
इकाई की रूपरेखा
उद्देश्य
प्रस्तावना
प्रकार्यात्मक पद्धति – मिथक अथवा वास्तविकता
समाज का विज्ञान बनाम समाजशास्त्र
सामाजिक नृशास्त्र का विशिष्ट स्थान
रैडक्लिफ-ब्राउन का क्षेत्रीय शोधकार्य
रैडक्लिफ-ब्राउन का सैद्धांतिक योगदान
मलिनॉस्की और रैडक्लिफ-ब्राउन के मार्गदर्शन में नृशास्त्रीय शोधकार्य का विकास
मलिनॉस्की का प्रभाव
रैडक्लिफ-ब्राउन का प्रभाव
बीसवीं सदी के तीसरे-चैथे दशक के बाद नृशास्त्रीय शोध का विकास
सारांश
शब्दावली
कुछ उपयोगी पुस्तकें
बोध प्रश्नों के उत्तर
उद्देश्य
इस इकाई का अध्ययन करने के बाद आपके लिए संभव होगा
ऽ समाजशास्त्रीय सिद्धांत के विकास में मलिनॉस्की और रैडक्लिफ-ब्राउन की आपेक्षिक स्थितियों को समझना
ऽ नृशास्त्रियों की आने वाली पीढ़ियों पर मलिनॉस्की और रैडक्लिफ-ब्राउन के प्रभाव को आंकना।
प्रस्तावना
जहां यह इकाई इस खंड की पिछली चार इकाइयों का समालोचनात्मक विवरण है वहीं यह समाजशास्त्रीय विचारधारा में आने वाले आधुनिक विकास की झांकी भी है। समाजशास्त्रीय सिद्धांत में मलिनॉस्की और रैडक्लिफ ब्राउन ने जो योगदान किया, उसके बारे में इकाई 22, 23, 24 और 25 में विचार किया गया है। इन इकाइयों को पढ़ते समय आपने दोनों विद्वानों के विचारों के सशक्त और कमजोर पक्षों के बारे में अपनी सम्मति बनाई होगी। हमने भी इस इकाई में नृशास्त्रीय सिद्धांतों के इतिहास के संदर्भ में इन दोनों विद्वानों के योगदान का समीक्षात्मक मूल्यांकन प्रस्तुत किया है। इस प्रकार के मूल्यांकन से सम्पूर्ण समाजशास्त्रीय विचारधारा में उनकी आपेक्षिक स्थिति को समझने में आपको सहायता मिलेगी।
यह तो आपको मालूम ही है कि मानव-सभ्यता के इतिहास में रुचि रखने वाले सामाजिक विचारकों ने आदिम समाजों के अध्ययन को उपयोगी समझा। उनके विचार में आदिम समाज मानव विकास की आरंभिक अवस्थाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिसके अध्ययन से उन्हें मानव जाति की प्रगति के नियमों को खोजने में मदद मिली। इस विचार श्रृंखला में मलिनॉस्की ने मूलतः एक क्रांतिकारी दृष्टिकोण को हमारे सामने रखा। उसके अनुसार आदिम संस्कृतियों को समझने के लिए आवश्यक है कि हम देखें कि कोई भी रीति-रिवाज या विश्वास कैसे उस समाज के अनुरक्षण (maintenance) में काम आता है। इसी दृष्टिकोण को सामाजिक नृशास्त्र की प्रकार्यवादी विचारधारा के रूप में जाना जाने लगा। कुछ विचारकों ने, जिनमें रैडक्लिफ-ब्राउन (1971ः 188-9) भी एक है, इसके अस्तित्व पर भी संदेह किया और इसे केवल एक मिथक के रूप में माना लेकिन फट (1957) जैसे कुछ अन्य विचारकों ने सामाजिक वास्तटिता के प्रकार्यात्मक दृष्टि से विश्लेषण करने के मलिनॉस्की के प्रयास को समाजशास्त्रीय अध्ययन में एक नया मोड़ माना।
इस इकाई के भाग 26.2 में बताया है कि गहन क्षेत्रीय शोधकार्य की परंपरा इस विचार-पद्धति की विशेषता है, मानव-व्यवहार को समझने की कोशिश में क्षेत्रीय शोधकार्य से हमारे सामने चमत्कारी परिणाम आए। यही कारण है कि प्रकार्यात्मक पद्धति तथा क्षेत्रीय शोधकार्य दोनों को समाजशास्त्र में लाने का श्रेय मलिनॉस्की को दिया जाता है। क्षेत्रीय शोधकर्ता के रूप में मलिनॉस्की का स्थान सबसे आगे है। हाँ, सिद्धांतकार के रूप में वह पूर्णतया असफल रहा है। उसकी सैद्धांतिक असफलताओं की समीक्षा का फल हुआ कि अन्य विचारकों ने मलिनॉस्की के प्रकार्यात्मक दृष्टिकोण में कुछ नए तत्व जोड़े। भाग 26.3 में हमने मलिनॉस्की के सैद्धांतिक दृष्टिकोण की कमियों पर विचार करने के बाद रैडक्लिफ-ब्राउन के साहसपूर्ण प्रयासों के बारे में विचार किया है। उसके ये प्रयास हमें आदिम समाजों को, और उससे भी आगे मोटे-मोटे रूप से मानव-समाजों को समझने में मजबूत सैद्धांतिक आधार प्रदान करते हैं। रैडक्लिफ-ब्राउन ने समाज के विज्ञान की भाँति समाजशास्त्र को देखा और उसमें सामाजिक नृशास्त्र की विशेष जगह बनाई। साथ में उसने मलिनॉस्की द्वारा चलाई क्षेत्रीय शोधकार्य की परंपरा को भी आगे बढ़ाया।
मलिनॉस्की और रैडक्लिफ-ब्राउन दोनों के अनेक शिष्यों ने अनेक क्षेत्रीय शोधकार्य किये। दोनों विद्वानों के प्रत्यक्ष मार्गदर्शन में व्यापक स्तर पर हुए क्षेत्रीय शोधकार्यो से सामाजिक नृशास्त्र की अभूतपूर्व प्रगति हुई। इसकी संक्षिप्त समीक्षा भाग 26.4 में प्रस्तुत की गई है। मानव समाजों के अध्ययन के लिए हमने इस विषय में आगे चलकर विकसित हुए विचारों की ओर भी भाग 26.4 में संकेत किया है। स्पष्ट है कि प्रकार्यवादी विश्लेषण से मानव व्यवहार की वैकल्पिक व्याख्या प्रस्तुत करने में महती सफलता मिली। यही कारण है कि प्रकार्यवादी पद्धति का समाजशास्त्र में अभी भी अद्वितीय स्थान है, भले ही बाद में अन्य नई-नई पद्धतियों का विकास हुआ।
सारांश
इस इकाई में हमने मलिनॉस्की और रैडक्लिफ-ब्राउन के योगदान का मूल्यांकन किया। पहले हमने मलिनॉस्की की उपलब्धियों की समीक्षा की। उसके बाद हमने कुछ विस्तार से रैडक्लिफ-ब्राउन की विद्वत्ता की क्षेत्रीय शोधकर्ता और सिद्धांतकार के रूप में चर्चा की। हमने मलिनॉस्की और रैडक्लिफ-ब्राउन के प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष मार्गदर्शन में नृवैज्ञानिक अनुसंधान की समीक्षा की। इस इकाई के अंत में समाजशास्त्रीय सिद्धांत में मलिनॉस्की तथा रैडक्लिफ-ब्राउन के बाद हुए विकास का संक्षिप्त विवरण दिया।
संदर्भ ग्रंथ सूची
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वेस्टरमार्क, ई. 1906. दि ओरीजिन एण्ड डेवलपमेंट ऑफ दि मॉरल आइडियाज. जॉनसन रिप्रः लंदन
ब) हिंदी में उपलब्ध पुस्तकें
ब्रॉनिस्लाव, मलिनॉस्की, वन्य समाज में अपराध और प्रथा. मध्य प्रदेश हिंदी ग्रंथ अकादमीः भोपाल
शपीरा, हेरी एल. मानव, संस्कृति और समाज. मध्य प्रदेश हिंदी ग्रंथ अकादमीः भोपाल
मेयर, लूसी, सामाजिक नृविज्ञान की भूमिका. बिहार हिंदी ग्रंथ अकादमीः पटना
सत्यदेव, सामाजिक विज्ञानों की शोध पद्धतियां. हरियाणा हिंदी ग्रंथ अकादमीः चण्डीगढ़
शल्य, यशदेव, संस्कृति, राजस्थान हिंदी ग्रंथ अकादमीः जयपुर
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