JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

हिंदी माध्यम नोट्स

Categories: indian

बालुका स्तूप किसे कहते है ? प्रकार Sand dunes in hindi types अनुदैर्ध्य बालुका स्तूप अनुप्रस्थ बालुका स्तूप

Sand dunes in hindi types अनुदैर्ध्य बालुका स्तूप अनुप्रस्थ बालुका स्तूप बालुका स्तूप किसे कहते है ?

वायु का निक्षेपण कार्य एवं स्थलाकृतियों का निर्माण
(Depositional work of Wind and Topography)
वायु के वेग में कमी आने पर या अवरोध आने पर इसके साथ उड़ने या बहने वाले धूल कण धरातल पर एकत्र हो जाते हैं। कभी यह निक्षेप अस्थायी होता है तो कभी स्थायी हो जाता है। वायु के निक्षेप में बनने वाली प्रमुख भू-आकृतियाँ निम्न हैं –
(1) उर्मिकाये (Ripples) – रेतीले मरुस्थलों में सागरीय लहरों की तरह रेत के उतार चढ़ाव देखेने को मिलता है। इनका निर्माण पवन की दिशा के समकोण पर महीन रेत के निक्षेपण से होता है। प्रभाव सिर्फ ऊपरी रेत की परत पर होता है। वायु की दिशा बदलने से ये मिट जाते हैं व पुनः नए बन जाते है।
(2) लोएस (Loess) – यह एक विशिष्ट प्रकार का वायोढ निक्षेप होता है। यह जर्मन शब्द एलसास (Alsace) से बना है जिसका अर्थ है सूक्ष्म पीले रंग के धलकण। अत्यन्त महीन धूल कणों को दूर से परिवाहित कर निक्षेपण को लोएस कहा जाता है। इसके कणों में विशिष्टता पाई जाती है। ये अत्यन्त महीन हो जाती है। इनका रंग पीला होता है तथा घुलनशील एवं प्रवेश्य होते हैं। इसमें मतिका, क्वार्टज, फेल्सफार, अभ्रक, केल्साइट के सूक्ष्म कण सम्मिलित होते है। हवाओं द्वारा बारीक मिट्टी का निक्षेप योरोप में जर्मनी, फ्रांस आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, मध्य एशिया में चीन, मंगोलिया, उत्तरी, अमेरिका में एरिजोना में देखने को मिलता है उ. चीनमें एक लाख वर्ग कि.मी. से अधिक क्षेत्र में लोएस निक्षेप देखे जा सकते हैं। ये काफी उपजाऊ होती है तथा नदियों द्वारा इसमें कटाव आसानी से होता है। गोबी मरुस्थलों से हवायें लोएस उठाकर चीन के उत्तरी मैदान में निक्षेपित करती है। अमेरिका व योरोप में ग्लेशियल लोएस (Glacial loess)के निक्षेप मिलते हैं। प्लीसपेसीन युग में हिम से अपरदित लोएस को हवाओं ने मध्य एशिया, जर्मनी, फ्रांस में निक्षेप किया है।
(3) बालका स्तूप (Sand dunes) – मरुस्थलीय क्षेत्रों में वायु द्वारा उडाकर लायी गयी रेत व बाल के निक्षेप से बने टीले बालुका स्तूप कहलाते हैं। ये आकार व प्रकार में कई प्रकार के पाये जाते हैंः-
(अ) अर्द्धचन्द्राकार बालुका स्तूप (Barkhan)ः– रेत के टीले जिनके सिरे नोंक की तरह आगे तक बढे होते हैं। मध्य में वायु के भंवर से रेत उड़ाकर ऊपर धकेल दी जाती है जिससे मध्य में नतोदर ढाल का निर्माण होता है। जबकि ऊपरी भाग में उन्नतोन्तर ढाल पाया जाता है। जबकि हवा की गति सामान्य होती है व बालू की मात्रा भी बहुत अधिक नहीं होती तब बरखान का निर्माण होता है। ये 150 मी. तक ऊँचे होते हैं व किनारे पर दूर तक सिरों के निकलने से अर्द्धचन्द्राकार रूपा धारण कर लेते हैं।
(ब) अनुदैर्ध्य बालुका स्तूप (Longitudinal dunes) – ये सर्वाधिक उपलब्ध बालुका स्तूप होते है। इनमें बालू का एकत्रीकरण श्रेणी की भाँति लम्बवत होता है। ये समानान्तर श्रेणी में मरुस्थल में पाये जाते है। इनकी लम्बाई 2 से 5 मीटर व ऊँचाई 20-50 मीटर तक होती है। सहारा में इन्हें सीफ (Seif) ,भारत में घोरे या चुरु कहा जाता है।

(स) अनुप्रस्थ बालुका स्तूप (Transverse sand dunes) – इनका विस्तार वायु की दिशा के लम्बचत होता है। इनकी आकृति अर्द्धचंद्राकार होती है। जब हवा दीर्घकाल तक एक ही दिशा में चलती रहती है तब इनका निर्माण होता है।


बालुका स्तूपों का निर्माण स्थल के आधार पर भी वर्गीकरण किया जाता है –
(1) तटीय बालुका स्तूप जो सागर तट पर पाये जाते हैं।
(2) मरुस्थलीय बालुका स्तूप जो विशाल मरुस्थलीय क्षेत्रों में पाये जाते हैं।
(3) नदी या झील तटीय बालुका स्तूप जो नदी के मैदानों में मिलते हैं। आकार बहुत छोटा होता है।
बालका स्तपों का स्थानान्तरण:- बालुका स्तूप स्थायी भू-आकृति नहीं होती है। बालुका स्तूपों की बालू जब तक स्वतंत्रतापूर्वक उड़ सकती है तब तक वायु इनको आगे सरकाती रहती है। हवा अपने सम्मख वाले स्तुप के ढाल की बाल आगे सरका लाती है तो विमुख ढाल पर गिरा दी जाती है। इस प्रकार स्तूप का एक ओर का पदार्थ दूसरी ओर पहुँचता रहता है। तेज वायु वेग से शिखर भी दूर कटकर गिर जाता है व नया शिखर आगे बनता है। धीरे-धीरे सम्पूर्ण स्तूप आगे बढ़ जाता है। सम्पूर्ण क्रिया इतने मंद गति से होती हैं कि मालूम नहीं पड़ता परन्तु तेज वायु वेग में बड़े-बड़े बालुका स्तूप वर्ष भर में 6-8 मीटर आगे बढ़ जाते हैं । स्तूप का आगे सरकना तब बंद होता है जब स्तूप में भूमिगत जल से संपर्क हो जाये या वायु के मार्ग में घास वनस्पति बाधा उत्पन्न करते हैं, या वायु की दिशा में परिवर्तन हो जाए। बालुका स्तपों के स्थानान्तरण से भारत में उत्तरप्रदेश व मध्यप्रदेश में रेगिस्तान का विस्तार हो रहा हैं। कई बार इनसे खेती-बाड़ी नष्ट हो जाती हैं। फ्रांस व अन्य यूरोपीय देशों में बालुका स्तूप की पंक्तियों के स्थानान्तरण से ऐसा कई बार हुआ है।
शुष्क मरुस्थलीय प्रदेशों में कभी-कभी अचानक वर्षा हो जाने से वायु व जल के सम्मिलित प्रभाव से विशेष प्रकार की स्थलाकृतियों का निर्माण होता है।
(1) पेडीमेन्ट (Pediment) – मरुस्थल के पहाड़ी ढालों पर व पठार पर निरन्तर अपक्षय से चूर्ण एकत्रित होता रहता है। अचानक वर्षा या तेज आँधी से ये पदार्थ ढालों से सरक कर निचले में जमा हो जाते हैं। पहाड़ी ढाल समतल मैदान की तरह बन जाते हैं, इन्हें पेडीमेन्ट कहा जाता है। इस पृष्ठभूमि में पहाड़ी या पर्वत कगार के रूपा में पाये जाते हैं।
(2) बजादा (Bajada) – पेडीमेन्टले के नीचे जहाँ चट्टान चूर्ण का निक्षेप होता है उसे बजादा कहा जाता है। इन अवासादों का निखेप जल व वायु दोनों के सहयोग से हाता है। यहाँ महीन भाग आगे बेसिन में व मोटे भाग ऊपर की तरफ ढालू क्षेत्र में क्रम से जमा होते हैं। सम्पूर्ण धरातल असंगठित पदार्थों से उबड़-खाबड़ रहता है।
(3) प्लाया (Playa) – मरुस्थलों में अचानक वर्षा से जो अस्थायी नदियाँ या जलधारायें उत्पन्न होती है उनका प्रवाह अन्तर्देशीय (Inland drainage) होता है। ये किसी निचले बेसिन या घाटी में चारों ओर से जल लाकर जमा करती है। पहाड़ियो से घिरे बेसिन को बॉलसन (Balson) कहा जाता है। इसमें अल्पकालिक झील का निर्माण होता है। जल के वाष्पीकरण के बाद वहाँ सिर्फ नमक व अन्य खनिजों का निक्षेप रह जाता है। ऐसी शुष्क झीलों का प्लाया कहा जाता है। इन झीलों को सहारा में ‘सेवचास‘,ईरान में ‘कीवामर‘, मेक्सिको में ‘सालार’ कहते है। ये कुछ वर्ग कि.मी. से लेकर सैकड़ों कि.मी. में फैली रहती है।
शुष्क प्रदेशों में अपरदन चक्र
गिलबर्ट, पैक व डेविस ने शुष्क प्रदेशों में भी सामान्य अपरदन चक्र संकल्पना के आधार पर भू-आकृतियों के विकास को स्पष्ट किया है। वायु का भी लक्ष्य मरुस्थलों की सभी असमानताओं को समाप्त कर समतल करना होता है। प्रारंभिक अवस्था में वायु क अपरदन से नवीन भूखण्ड असमतल व ऊबड़-खाबड़ हो जाता है। कहीं अवसादी चट्टानों में अपरदन अधिक व कहीं कम होता है। इससे धरातल विषम हो जाती है। धीरे-धीरे तेज हवा के साथ छोटे कण साथ में बहने लगते हैं जिससे अपरदन को गति मिलती है। प्रारम्भ में उत्पाप्का क्रिया अधिक होती है व फिर अपघर्षण क्रिया से ज्यूगेन, यारदंग, छत्रक शिला आदि का निर्माण होता है। वायु में जैसे-जैसे बालू, धूल-कंकड़ परस्पर बढ़ते जाते हैं निक्षेप की क्रिया प्रारंभ होने लगती। प्रौढावस्था में वायु अपरदन व निक्षेपण दोनों कार्य करती है। भूपृष्ठ पर इन्सलबर्ग व बालुका स्तपों का निर्माण होता है। इसी समय पीडमेन्ट बजाडा सँकरी घाटियों का निर्माण होता हैं। वृद्धावस्था में मरुस्थलों की विषमतायें समाप्त हो जाती हैं। सम्पूर्ण क्षेत्र में बालू व रेत के कणों का मोटा आवरण रह जाता है। ऐसा क्षेत्र कल्पना में ही बन पाता है। क्योंकि बालुका स्तूप का निर्माण शुष्क प्रदेशों में हवा की गति में परिवर्तन आने पर भी हो जाता है। हवा की परिवहन शक्ति पूर्णतः समाप्त नहीं होती अतः शुष्क प्रदेशों में अन्तिम अवस्था प्रायः देखने में नहीं आती।

Sbistudy

Recent Posts

सारंगपुर का युद्ध कब हुआ था ? सारंगपुर का युद्ध किसके मध्य हुआ

कुम्भा की राजनैतिक उपलकियाँ कुंमा की प्रारंभिक विजयें  - महाराणा कुम्भा ने अपने शासनकाल के…

4 weeks ago

रसिक प्रिया किसकी रचना है ? rasik priya ke lekhak kaun hai ?

अध्याय- मेवाड़ का उत्कर्ष 'रसिक प्रिया' - यह कृति कुम्भा द्वारा रचित है तथा जगदेय…

4 weeks ago

मालकाना का युद्ध malkhana ka yudh kab hua tha in hindi

malkhana ka yudh kab hua tha in hindi मालकाना का युद्ध ? मालकाना के युद्ध…

3 months ago

कान्हड़देव तथा अलाउद्दीन खिलजी के संबंधों पर प्रकाश डालिए

राणा रतन सिंह चित्तौड़ ( 1302 ई. - 1303 ) राजस्थान के इतिहास में गुहिलवंशी…

3 months ago

हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ? hammir dev chauhan history in hindi explained

hammir dev chauhan history in hindi explained हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ?…

3 months ago

तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच हुआ द्वितीय युद्ध Tarain battle in hindi first and second

Tarain battle in hindi first and second तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच…

3 months ago
All Rights ReservedView Non-AMP Version
X

Headline

You can control the ways in which we improve and personalize your experience. Please choose whether you wish to allow the following:

Privacy Settings
JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now