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विभाज्योतिकी क्षेत्र या मूल शीर्ष क्या है | (root apex or meristematic zone in roots in hindi) जड़ में विभाज्योतिकी क्षेत्र

(root apex or meristematic zone in roots in hindi) विभाज्योतिकी क्षेत्र या मूल शीर्ष क्या है , जड़ में विभाज्योतिकी क्षेत्र किसे कहते है , परिभाषा , प्रकार |

मूल शीर्ष या विभाज्योतिकी क्षेत्र (root apex or meristematic zone) : विशेष प्रकार की कोशिकाओं के द्वारा निर्मित जड का यह क्षेत्र , मूल गोप के ठीक पीछे अवस्थित होता है। अत: इस प्रकार , इसे हम जड़ का उपांतस्थ क्षेत्र (subterminal region) कह सकते है। इस क्षेत्र की कोशिकाएँ सघन रूप से व्यवस्थित (compactly arranged) , ससंहत , पतली कोशिका भित्ति युक्त , सघन कोशिका द्रव्य वाली , समव्यासीय और सक्रीय रूप से विभाज्योतिकी होती है। यह कुछ मिलीमीटर की लम्बाई वाला क्षेत्र होता है और निरंतर नयी कोशिकाओं के निर्माण द्वारा जड की लम्बाई में वृद्धि के लिए उत्तरदायी होता है।

दीर्घीकरण क्षेत्र (zone of elongation)

यह विभाज्योतिकी क्षेत्र के ठीक पीछे पाया जाने वाला क्षेत्र है और इसकी लम्बाई एक से दस मिमी तक की होती है। इस क्षेत्र में नवनिर्मित कोशिकाओं की लम्बाई में तेजी से बढ़ोतरी होती है , जिससे मूल का शीर्ष सिरा नीचे जमीन की गहराई में धकेला जाता है। यह क्षेत्र जड़ की लम्बाई में बढ़ोतरी के लिए उत्तरदायी होता है और इसकी कोशिकाएँ मिट्टी से खनिज लवणों का अवशोषण भी करती है।

मूल रोम क्षेत्र (root hair zone or zone of differentiation)

जड़ के दीर्घीकरण क्षेत्र के बाद मूल रोम क्षेत्र अथवा विभेदन क्षेत्र पाया जाता है , इसकी लम्बाई 2-3 मिमी से लेकर कुछ सेंटीमीटर तक की होती है। इस क्षेत्र की विवर्धित कोशिकाएँ परिपक्व होकर विभेदन प्रारंभ करती है और जड़ की विभिन्न प्रकार की प्राथमिक ऊतक संरचनाओं , जैसे वल्कुट , अन्तश्त्वचा , परिरंभ , जाइलम और फ्लोयम की आकृति ग्रहण करती है। इस क्षेत्र की सबसे बाहरी कोशिकाओं की पंक्ति , एक सुरक्षात्मक बाहरी परत का निर्माण करती है , जिसे मूलीय त्वचा कहते है। इस परत की अनेक कोशिकाओं के विस्तार के द्वारा पतली और महीन नलिकाकार कोमल और धागे जैसी संरचनाओं मूल रोम का विकास होता है। अत: मूल रोम क्षेत्र सघन रूप से मूल रोमों द्वारा ढका रहता है। मूल रोम सक्रीय रूप से जल के अवशोषण में भाग लेने वाली संरचनाएँ होती है और अपनी संरचना और कार्यप्रणाली के द्वारा ये जड़ के अवशोषण क्षेत्र में वृद्धि करती है।
जैसे जैसे जड़ की वृद्धि होती है और इसकी आयु बढती है तो इसके साथ ही पूर्व विकसित पुराने मूल रोम भी शीघ्र ही सिकुड़ने लगते है और अकार्यशील हो जाते है और क्रमिक रूप से इनको नवविकसित मूल रोमों के द्वारा शीघ्र की प्रतिस्थापित कर दिया जाता है। इस प्रकार जैसे जैसे जड़ जमीन में नीचे गहराई की तरफ वृद्धि करती जाती है तो नए मूल रोम विकसित होते जाते है और जीर्ण और पुराने मूल रोम अकार्यशील होकर अप्रासंगिक हो जाते है। इस प्रक्रिया के द्वारा जल के निरंतर अवशोषण का कार्य सक्रीय और कार्यशील मूल रोमों के माध्यम से जारी रहता है।

परिपक्व क्षेत्र (mature region)

मूल रोम क्षेत्र के ठीक बाद जड़ का पूर्णतया परिपक्व क्षेत्र दिखाई पड़ता है। इसकी आंतरिक संरचना में पूर्णतया विकसित , प्राथमिक ऊतक सुविभेदित दिखाई पड़ते है। जड़ का यह क्षेत्र इस मृदा में अच्छी तरह से स्थिर करने का कार्य करता है , इस क्षेत्र के द्वारा अन्त:जात रूप से पाशर्वीय जड़ों का निर्माण होता है और द्विबीजपत्री जड़ों में द्वितीयक वृद्धि का संचालन भी इसी क्षेत्र के द्वारा होता है।

मूल शीर्ष विभाज्योतक संगठन (root apical meristem organization)

संवहनी पौधों में प्ररोह शीर्ष और मूल शीर्ष दोनों संरचनाओं में कुछ आधारभूत अंतर पाए जाते है जो कि निम्नलिखित प्रकार से है –
  1. मूल शीर्ष अपेक्षाकृत अधिक छोटा अधिक छोटा होता है जिसके दीर्घीकरण क्षेत्र की लम्बाई इमी से भी कम होती है।
  2. मूल शीर्ष में पर्वसन्धियाँ और पर्व नहीं पायी जाती।
  3. मूल शीर्ष में मूलरोम क्षेत्र पाया जाता है।
  4. मूल शीर्ष में पर्ण आद्यक नहीं पाए जाते।
  5. तने के पर्णआद्यकों के विपरीत जड़ों में पाशर्व मूल की उत्पत्ति अन्तर्जात होती है।
  6. मूल शीर्ष पर मूल गोप पायी जाती है जिसकी वजह से यहाँ विभाज्योतक की स्थिति अंतिम सिरे से हटकर थोडा अलग हो जाती है।
वैसे प्ररोह शीर्ष की तुलना में मूल शीर्ष अपेक्षाकृत सरल और सुस्पष्ट होता है। अधिकांश द्विबीजपत्रियों की जड़ों में मूल गोप का विकास जड़ का निर्माण करने वाली आद्यक कोशिकाओं या विभाज्योतकों से होता है। इसके विपरीत अधिकांश एकबीजपत्री पौधों जैसे मक्का और अन्य घासों में मूल गोप का विकास अलग विभाज्योतकी कोशिकाओं के द्वारा स्वतंत्र रूप से होता है। प्राय: सभी प्रकार की जड़ों के अग्र सिरों पर सक्रीय रूप से विभाजनशील प्रारंभिक कोशिकाएं पायी जाती है जो कि प्राथमिक विभाज्योतकों का निर्माण करती है।
प्ररोह शीर्ष संगठन के समान ही जड़ों में भी विभाज्योतकों की गतिविधि को समझाने के लिए विभिन्न सिद्धांत प्रस्तुत किये गए है , इनमें से प्रमुख सिद्धांत अग्र प्रकार है –

1. अग्रस्थ कोशिका सिद्धांत (apical cell theory)

नजेली (1858) द्वारा प्रस्तुत इस सिद्धांत के अनुसार मूल शीर्ष का निर्माण केवल एक अग्रस्थ कोशिका से होता है। यह कोशिका चतुष्फलकीय आकृति की होती है। इसकी तीन ऊपरी विभाजनशील सतहों से मूल के विभिन्न ऊत्तक विकसित होते है अर्थात इससे सम्पूर्ण जड़ की वृद्धि होती है। मूल गोप का निर्माण आधारीय विभाजनशील सतह से होता है। वर्तमान वनस्पतिशास्त्रियों के अनुसार टेरिडोफाइट्स में तो इस प्रकार का मूल शीर्ष उपस्थित हो सकता है लेकिन आवृतबीजी पौधों में इस प्रकार का मूल शीर्ष नहीं पाया जाता। यहाँ विभाज्योतकी कोशिकाओं का समूह मूलशीर्ष का निर्माण करता है।
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