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कॉकरोच में श्वसन किसके द्वारा होता है respiratory system of cockroach in hindi उत्सर्जी तन्त्र (Excretory System)

समझाइये कॉकरोच में श्वसन किसके द्वारा होता है respiratory system of cockroach in hindi उत्सर्जी तन्त्र (Excretory System) ?

श्वसन तन्त्र (Respiratory System)

कॉकरोच में श्वसन के लिए विशिष्ट संरचनाएँ पायी जाती है जिन्हें श्वसन नलिकाएँ (trachea ) कहते हैं। इसके रक्त में श्वसन वर्णक का अभाव होता है अतः यह ऑक्सीजन वहन का कार्य नहीं करता है। इसमें श्वसन तन्त्र स्वयं अपनी नलिकाओं द्वारा ऑक्सीजन ऊत्तकों तक पहुँचाता है। कॉकरोच का श्वसन तन्त्र, श्वसन रन्ध्र (spiracles) तथा श्वास नलिकाओं (trachea ) से मिलकर बना होता है।

श्वसन रन्ध्र (Spiracles) : कॉकरोच में दस जोड़ी श्वसन रन्ध्र पाये जाते हैं जो शरीर की अधर सतह पर पाये जाते हैं। इनमें से दो जोड़ी वक्ष भाग में तथा शेष आठ जोड़ी उदर भाग में स्थित होते हैं। प्रत्येक श्वसन रन्ध्र पर एक काइटिनी छल्ला (peritreme) पाया जाता है। श्वसन रन्ध्रों में रोम पाये जाते हैं जिनसे छन कर वायु श्वास नलिकाओं में जाती है। प्रत्येक श्वसन रंध्र एक फूले हुए प्रकोष्ठ में खुलता है जिसे एट्रियम (atrium) या श्वसन कोष्ठ (tracheal chamber) कहते हैं। श्वयन रन्ध्रों को कपाटों (valves) की सहायता से बन्द भी किया जा सकता है। प्रत्येक श्वसन रन्ध्र श्वास वाहिका (trachea) में खुलता है।

श्वास नलिकाएँ (Trachea) : कॉकरोच के शरीर में श्वास वाहिकाओं (trachea ) का एक जाल बिछा रहता है। प्रत्येक रन्ध्र महा श्वसन वाहिनियों (tracheal trunks) में खुलता है। कॉकरोच में तीन जोड़ी अनुदैर्घ्य महाश्वास वाहिकाएँ पायी जाती हैं। इनमें से एक जोड़ी पाश्र्वय, एक जोड़ी पृष्ठीय तथा एक जोड़ी अधरीय होती है। उदरीय श्वसन रन्ध्र मुख्य रूप से पाश्र्वय महाश्वास वाहिकाओं में खुलते हैं। ये महाश्वास वाहिकाएँ आपस में अनुप्रस्थ संधायिओं द्वारा जुड़ी रहती हैं। प्रत्येक महाश्वास वाहिका से अनेक श्वास वाहिकाएँ निकलती हैं जो अन्त में श्वास कोशिका (tracheal end cell) में समाप्त होती हैं। इन कोशिकाओं में से आगे की तरफ बहुत सूक्ष्म नलिकाएँ निकलती हैं जिन्हें श्वासनिकाएँ (tracheoles) कहते हैं। ये श्वासनिकाएँ अपने अन्ध सिरों द्वारा उत्तकों की कोशिकाओं में समाप्त होती है। इन नलिकाओं में ऊत्तक द्रव भरा रहता है।

श्वास वाहिका की आन्तरिक संरचना

श्वास वाहिका (trachea) चांदी के समान चमकदार संरचनाएँ होती हैं। श्वास वाहिकाओं का अध्यावरण के अन्तर्वलन की भांति निर्माण होता है। इनमें बाहर उपकला स्तर (epithelium layer) तथा भातर क्यूटिकल का अस्तर पाया जाता है। भीतरी क्यटिकल का अस्तर झन्टमा (intema) कहलाता है। यह सर्पिलाकार रूप से कुण्डलित या स्प्रिंगनुमा होता है जो श्वास वाहिका की भित्ति का पिचकने से रोकता है। इन्टिमा की छल्लेनमा धारियाँ टीनिडियम (taenidium) कहलाती है। उपकला स्तर में चपटी बहुकोणीय कोशिकाएँ पायी जाती हैं जो श्वास वाहिका का बाहरी स्तर बनाती हैं।

श्वसन की क्रिया विधि (Mechanism of Respiration) : कॉकरोच में श्वसन क्रिया, अन्तःश्वसन तथा बाह्य श्वसन, श्वसन रन्ध्रों द्वारा होती है। बाह्य श्वसन एक सक्रिय क्रिया है जबकि अन्तःश्वसन निष्क्रिय क्रिया होती है। श्वसन क्रिया उदरीय पेशियों के लयबद्ध संकुचन व फैलाव से नियंत्रित की जाती है। पेशियों के फैलाव से वायु भीतर प्रवेश करती है तथा संकुचन से वायु बाहर निकलती है। अन्तःश्वसन के दौरान वायु श्वसन रन्ध्रों में से होकर श्वास वाहिकाओं (trachea) तथा श्वास नलिकाओं (tracheoles) में पहुँच जाती है, जिनमें ऊत्तक द्रव भरा रहता है। . वायु में उपस्थित ऑक्सीजन इस द्रव में घुल जाती है तथा विसरित होकर ऊत्तक कोशिकाओं में पहुँच जाती है। श्वास नलिकाओं में जो द्रव भरा रहता है, वह परासरण दबाव के कारण आगे बढ़ता या पीछे हटता रहता है। उपापचयी पदार्थों के संघनन के कारण दाब अधिक बढ़ जाता है जिनके कारण श्वास नलिकाओं के अन्तिम सिरों पर द्रव बाहर विसरित होने लगता है और इसका स्थान ग्रहण करने के लिए बाहर के द्रव के साथ वायु भी नलिकाओं में अन्दर की तरफ विसरित हो जाती है।

उत्सर्जी तन्त्र (Excretory System)

कॉकरोच का उत्सर्जी तन्त्र हीमोलिम्फ में उत्सर्जी पदार्थों, जल व लवणों की मात्रा को नियंत्रित रखता है। कॉकरोच मुख्य रूप से यूरिकोटेलिक (uricotelic) प्राणी होता है अर्थात् यह अपने उत्सर्जी उत्पादों को यूरिक अम्ल के रूप में उत्सर्जित करता है। कॉकरोच में निम्नलिखित संरचनाएँ उत्सर्जन का कार्य करती है- (i) मेलपिघियन (Malpighian tubules) (ii) वसा काय (fat bodies), (iii) यूरिकोस ग्रन्थियाँ (uricose glands) (iv) क्यूटिकल (cuticale) (v) नेफ्रोसाइट्स (nephrocytes)।

  • मेलपिघियन नलिका की संरचना (Structure of Malpighian tubule) : मेलपिजियन नलिकाएँ आहार नाल की मध्यान्त्र व पश्चान्त्र के संगम स्थल पर स्थित होती है। ये महीन, लम्बी, पीले रंग की, अशाखित अन्ध नलिकाएँ होती हैं। इन नलिकाओं का एक सिरा बन्द होता है जबकि दूसरा सिरा आहार नाल में खुलता है। मेलपीजियन नलिकाएँ संख्या में 60 से 150 तक होती हैं। ये छ: समूहों में पायी जाती है। प्रत्येक नलिका 20 से 26 मि.मी. लम्बी तथा 0.5 मि.मी. व्यास की होती है। इन नलिकाओं की भित्ति बड़ी घनाकार ग्रन्थिल उपकला कोशिकाओं की इकहरी परत की बनी होती है। उपकला स्तर के बाहर की तरफ पेशीय तन्तुओं और लचीले संयोजी ऊत्तक का महीन खोल पाया जाता है। कोशिकाओं के स्वतन्त्र भीतरी तल पर छोटे-छोटे सूक्ष्मांकुर (microvilli) पाये जाते हैं जिससे यह तल ब्रुश सदृश्य (brush border) दिखाई देता है। पेशीय खोल के संकुचन एवं शिथिलन द्वारा तरंगित गति (peristaltic movement) उत्पन्न होती है।

उत्सर्जन का कार्यिकी (Physiology of Excretion) : कॉकरोच की शारीरिक कोशिकाएँ मुख्य रूप से पोटेशियम यूरेट उत्सर्जी पदार्थ के रूप में हीमोलिम्फ में मुक्त करती हैं। नलिकाएँ निरन्तर हीमोलिम्फ से कुछ तरल पदार्थों का अवशोषण करती रहती है। इस तरल पदार्थ में पोटेशियम यूरेट, जल, कुछ लवण, अमीनो अम्ल, Co2  आदि होते हैं। नलिकाओं के दूरस्थ भाग की कोशिकाएँ अवशोषी होने के साथ-साथ स्रावी भी होती हैं। ये कोशिकाएँ पोटेशियम यूरेट की जल तथा Co2  से प्रतिक्रियाएँ कर यूरिक अम्ल, जल तथा पोटेशियम बाइकार्बोनेट के रूप में बदल कर नलिकाओं में मुक्त कर देती हैं। सूक्ष्मांकुरों की गति एवं तरंगित गति के कारण नलिकाओं में तरल का बहाव . दूरस्थ भाग से समीपस्थ भाग की तरफ होता है। समीपस्थ भाग की कोशिकाएँ मुख्य रूप से अवशोषी होती हैं। ये तरल पदार्थ में से उपयोगी पदार्थों जैसे-पौटेशियम बाई-कार्बोनेट, लवणों, अमीनो अम्लों व जल को अवशोषित की पुनः हीमोलिम्फ में मुक्त कर देती है तथा उत्सर्जी पदार्थों को आहार नाल में मुक्त कर दिया जाता है। सामान्य ताप पर मेलपीजियन नलिका में एक मिनट में 5 से 15 बार तक क्रमांकुचन की गति होती है।

  • वसा काय (Fat bodies):कॉकरोच की हीमोसील के अधिकांश भाग में सफेद रंग का पालिदार ऊत्तक भरा रहता है, जिसे वसा काय कहते हैं। इसमें कितनी ही प्रकार की कोशिकाएँ पायी जाती हैं। इनमें एक विशेष प्रकार की उत्सर्जी कोशिकाएँ भी पायी जाती हैं जिन्हें यूरेट कोशिकाएँ (urate cells) कहते हैं। ये कोशिकाएँ जीवन पर्यन्त यूरिक अम्ल का उत्पादन एवं संग्रह करती रहती हैं। इस प्रकार के उत्सर्जन को संचयी-उत्सर्जन (storage excretion) कहते हैं।

(iii).यूरिकोस ग्रन्थियाँ (Uricose glands) : नर कॉकरोच जो छत्रक ग्रन्थि (mushroom gland) की परिधि पर लम्बी अन्ध नलिकाएँ पायी जाती हैं। इन्हें यूरिकोस ग्रन्थियाँ (Uricose glands) कहते हैं। इन नलिकाओं को यूट्रिकुली मेजोरस (utriculi majores) कहते हैं। ये नलिकाएँ उत्सर्जी पदार्थों का यूरिक अम्ल के रूप में संचय करती है। मैथुन के समय जब शुक्राणुधर (spermatophore) निक्षेपित किया जाता है तो शुक्राणुधर पर यूरिकोस ग्रन्थियों में संचित, यूरिक अम्ल विसर्जित कर दिया जाता है। इस तरह ये मैथन से पूर्व ये संचयी उत्सर्जी अंगों के रूप में कार्य करते हैं तथा मैथुन के समय सक्रिय उत्सर्जी अंगों की तरह कार्य करते हैं।

(iv) क्यूटिकल (Cuticle): कॉकरोच में क्यूटिकल भी संचयी उत्सर्जी अंग का कार्य करती है। क्यूटिकल में नाइट्रोजन युक्त अपशिष्ट पदार्थ जमा होते रहते हैं। जब त्वकपतन (moulting) के समय क्यूटिकल उतार कर गिरा दी जाती है तो उसके साथ अपशिष्ट पदार्थ भी उत्सर्जित हो जाते है

(v) नेफ्रोसाइट्स (Nephrocytes) : उपरोक्त संरचनाओं के अलावा हृदय की भित्ति से चिपकी नेफ्रोसाइट्स कोशिकाएँ भी उत्सर्जन का कार्य करती हैं। ये हृदय की भित्ति के साथ शृंखला बद्ध कोशिकाओं के रूप में व्यवस्थित रहती है। ये हीमोलिम्फ से उत्सर्जी पदार्थों को पृथक कर विघटित करती रहती है।

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