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Categories: BiologyBiology

रेंगने वाले कीटों के लिए प्रतिकर्षक | काठ पोषण (Wood-feeding) कीटों के लिए प्रतिकर्षक repellency in hindi

repellency in hindi रेंगने वाले कीटों के लिए प्रतिकर्षक | काठ पोषण (Wood-feeding) कीटों के लिए प्रतिकर्षक ?

ख. रेंगने वाले कीटों के लिए प्रतिकर्षक
छोटे अनाज से मक्का की ओर चिंच बग के प्रवासन के विरुद्ध मृदा अवरोधक के रूप में केसोल या 4, 6-डाइनाइट्रो-ओ-क्रेसोल का प्रयोग उत्प्रेरक प्रतिकर्षण (excito repellency) का एक व्यावहारिक उदाहरण है, जो कम पर्यावरणीय प्रदूषण या खलबली से अच्छा फसल संरक्षण प्रदान करता है।

ग. काठ पोषण (Wood-feeding) कीटों के लिए प्रतिकर्षक
मिट्टी में या उसके निकट रखी इमारती लकड़ी तथा संरचनाओं को दीमक तथा पाउडर पोस्ट भंगों के पोषण से भारी क्षति पहुंचती है। विभिन्न लकड़ी प्रजातियों में दीमक के आक्रमण के विरुद्ध पर्याप्त प्रतिरोधक क्षमता होती है जो अधिकांशतरू उनमें विद्यमान विशिष्ट रसायनों के कारण होती है जो पोषणरोधक का कार्य करते हैं। उदाहरणों में शामिल हैं – ताड़ (चपदम) में पिनोसिल्विन मोनोमेथिल ईथर, दुगलन चीड़ (क्वनहसें थ्पत) में टैक्सीफोलिन तथा भारतीय सागोन (प्दकपंद जमां) में बीटा-मेथिलेंन्ध्राक्विनोन।

पेंटाक्लोरोफेनोल तथा इसका सोडियम लवण जैसे संश्लिष्ट पदार्थ दीमक के आक्रमण के विरुद्ध पोषण अवरोधकों के रूप में कार्य करते हैं तथा दूरभाष खम्भों एवं आधारिक । इमारती लकड़ी के लिए दबाव संसेचकों या सतह उपचारों के रूप में इनका व्यापक प्रयोग किया जाता है। भवनों की नींवों के आस-पास क्लोरोपाइरिफॉस म्ब् मिट्टी का निरूपण भूमि के ऊपर की इमारती लकड़ी को दीमक के आक्रमण से बचाता है।

घ. कपड़ा खाने वाले कीटों के प्रतिकर्षक
कपड़ों की बरूथी और गलीचे के भंग, ऊनी वस्तुओं, रंग, फर्नीचर इत्यादि को व्यापक क्षति पहुंचाते हैं। सही उपयोग किए जाने पर पोषण प्रतिरोधकों का प्रयोग विभिन्न प्रकार के सामान को सम्पूर्ण संरक्षण प्रदान करता है। रंगहीन रंजक सामग्री म्नसंदे एवं डपजपद थ्थ् को रंजक प्रक्रिया के दौरान ऊन में दृढ़ता से चिपकाया जा सकता है तथा कपड़े के भार के 1-3ः मात्रा में उपयुक्त किए जाने पर कपड़े को आजीवन सुरक्षा प्रदान करता है। समान मात्रा में आर्द्रन कारक (ॅमजजपदह ंहमदज) सहित 0.5-0.7ः जल घोल में सोडियम एल्युमिनियम फ्लूओसिलिकेट कपड़ों के कीड़ों के लिए एक प्रभावी प्रतिकर्षक है, जब उन्हें ऊन पर छिड़काव से या ऊन पर डुबोकर उपयुक्त किया जाता है तथा इसे ड्राइक्लिनिंग द्वारा नहीं हटाया जा सकता।

ङ. रक्तचूषक कीटों के प्रतिकर्षक

प) मानवों की सुरक्षा के लिए प्रतिकर्षक
कीट प्रतिकर्षणीयता का एक प्रभावशाली उदाहरण रक्तचूषक मच्छरों, मक्खियों, किलनियों (ticks) एवं बरूथी (mites) के पोषण से बचने के लिए त्वचा या कपड़ों पर अनेक प्रकार के मंद वाष्पशील रसायनों का प्रयोग है। जहां ये जन्तु मानव एवं पशु रोगों के वाहक भी हैं, ऐसे प्रतिकर्षकों का प्रयोग पीड़क प्रबंधन कार्यक्रमों का एक संघटक बन जाता है। उदाहरण के तौर पर विश्वयुद्ध प्प् में दक्षिण प्रशांत में एनोफिलीज मच्छरों के लिए प्रतिकर्षकों के रूप में अमरीकी सशस्त्र बलों द्वारा डाइ-मेथिल थेलेट तथा 2-इथिल-1, 3. हेक्सानेडियोल का व्यापक प्रयोग सशस्त्र बलों के मलेरिया रोधी कार्यक्रमों का एक महत्वपूर्ण भाग था। इसी प्रकार, बरूथी, जो स्क्रब टाइफस (scrub typhus) के वाहक हैं, के आक्रमण को रोकने के लिए वस्त्र संसेचन (cloth impregnation) के लिए डाइ ब्यूटिल थेलेट तथा बेंजिल बेंजोएट का प्रयोग किया गया था।

डीट (Deet) अथवा डाइ इथिल-एम-टोलुमिड तथा बेंजिल (beæil) जैसे नवीन प्रतिकर्षकों के प्रयोग ने बाहर काम करने वालों और खिलाड़ियों को, नाशक मच्छरों (एडीस, क्यूलेक्स इत्यादि), काली मक्खी (सिम्युलियम प्र.), अन्य काटने वाली मक्खियों, बरूथी तथा किलनियों के काटने के मौसमों के दौरान अपेक्षाकृत अधिक आराम एवं शांति उपलब्ध कराई है।

पप) घरेलू (पालतू पशुओं के संरक्षण के लिए प्रतिकर्षक
पालतू पशुओं की संरक्षा के लिए प्रतिकर्षकों का पीड़क प्रबंधन में सीमित महत्व रहा है, क्योंकि त्वचा द्वारा तेजी से अवशोषण उनकी प्रभावात्मकता को 1-2 दिनों तक सीमित कर देता है तथा साथ ही विस्तृत क्षेत्र में अच्छे परिणाम प्राप्त करने की समस्याएं हैं। सीमित प्रयोग वाले रसायनों में शामिल हैं – ब्यूटोक्सीपोलीप्रोपेलीन ग्लाइकोल, डाइ-एन ब्यूटिल सक्सीनेट, डाइ-प्रोपिलपाइरिडिन-2, 5-डाइ कार्बोक्सीलेट, तथा 2-हाइड्रोक्सीथल आक्टिल सल्फाइड। योगवाहित पाइरेथ्रिन (synergçed pyrethrin) जो उत्प्रेरक प्रतिकर्षकों के रूप में कार्य करते हैं, का छिड़काव सभी काटने वाली मक्खियों के विरुद्ध पशुधन को व्यावहारिक संरक्षण प्रदान करता है, यदि उसका अनुप्रयोग प्रतिदिन दो बार किया जाए। तबेला मक्खी, हार्सफ्लाई, घरेलू मक्खी मच्छर, इत्यादि के आक्रमणों के विरुद्ध पशुओं के लिए व्यावहारिक विकर्षक संरक्षण निस्संदेह मांस उत्पादकों तथा ग्वालों के लिए निरंतर परेशानी एवं रक्त हानि के कारण दूध के उत्पादन में होने वाली हानि एवं कमी को रोकने में लाभकारी होगा।

 पोषणरोधी (Antifeedants)
किसी कीट के पोषण को अवरोधित करने वाले यौगिक, जिसके परिणामस्वरूप कीट की भुखमरी के कारण मृत्यु हो जाती है, पोषणरोधी कहलाते हैं। पोषणरोधी विकर्षक से भिन्न होता है, क्योंकि यह कीटों को स्रोत से न तो दूर भगाता है अथवा दूर रखता है बल्कि वस्तुतरू उस पौधे पर उसके पोषण को अवरुद्ध कर देता है। पोषणरोधी कीट के स्वाद अभिग्राहियों (tsate recepters) पर क्रिया करते प्रतीत होते हैं तथा परपोषक में विद्यमान आहार उद्दीपकों के प्रति उनके अवगम (perception) को अवरुद्ध कर देते हैं। पोषणरोधियों के रूप में अनेक रसायनों का प्रयोग किया जाता है अर्थात् ट्रेजीन (शाकनाशी) आर्गेनोटिन्स (कवकनाशी), कार्बामेट्स (पीड़क)। पोषणरोधी सतह पोषी चर्वक कीटों (chewing insects) के पोषण को प्रतिकर्षित करते हैं किन्तु चूषक कीट, जो उपचारित सतह को चीर देते हैं, प्रभावित नहीं होते क्योंकि अभी तक सर्वांगी पोषणरोधियों का पता नहीं चला है।

प्राकृतिक पोषणरोधी के सर्वाधिक सफल स्रोत में नीम वृक्ष है (भारतीय लिलक, एजेडिरेक्टा इंडिका)। नीम के अर्क में रोगाणुनाशी गुण पाए गए हैं। कृषि में प्रयुक्त सबसे पहला पोषणरोधी जिप था (एक सम्मिश्र यौगिक, जिंक लवण) जिसका प्रयोग कृन्तकों एवं हिरणों को पेड़ की छाल तथा टहनियों पर पोषण से रोकने के लिए किया जाता था। प्रतिकर्षक प्रलोभक तथा पोषणरोधी – सभी उन यौगिकों में पाए जाते हैं जिन्हें पौधों से प्राप्त किया जा सकता है तथा यदि आवश्यक हो, उन्हें संचारी विधियों द्वारा विभिन्न पौधों में समाहित किया जा सकता है।

समाकलित पीड़क प्रबंधन में सीमियोरसायनों (व्यवहारजन रसायनों) का अनुप्रयोग
पीडक प्रबंधन में सीमियोरसायनों का प्रयोग अनेक तरीकों से किया जाता हैरू

ऽ मॉनीटरनरू कीट पीडक प्रभाव (विस्तार) एवं प्रचरता का मॉनीटरन करने के लिए सेक्स फेरोमोन का व्यापक प्रयोग किया जाता है। सामान्यतरू सेक्स फेरोमोन वाले नर, को आकृष्ट करने के सेक्स फेरोमोन पाशों का रूपांकन किया जाता है। फेरोमोनों पर आधारित पाशों का प्रयोग मॉनीटरन के लिए भी किया जाता है। पाश विधि से वह सूचना प्राप्त होती है जो अन्य नियंत्रण विधियों के समय निर्धारण के लिए आवश्यक है।
ऽ सामूहिक रूप से फंसाना (आकर्षित करना तथा मारना)रू सामूहिक कूट विधि का प्रयास अनेक लक्षित पीड़कों को आकृष्ट करना तथा मारना है ताकि फसल को नुकसान से बचाया जा सके। किन्तु इसकी एक प्रमुख परिसीमा यह है कि पाश पर्याप्त सक्षम नहीं होते तथा चूंकि उनकी आवश्यकता भारी संख्या में होती है, अतरू वह लागत प्रभावी नहीं है। समुच्चयन फेरोमोनों के साथ छाल भंगों को सामूहिक रूप से फंसाने की विधि का प्रयोग बड़े पैमाने पर किया गया है।
ऽ सहवास विघटनरू नर शलभ मादा द्वारा निस्रावित सेक्स फेरोमोनों का अनुसरण कर मादाओं का पता लगाते हैं। किन्तु जब उस क्षेत्र को समुच्चयन फेरोमोन से संतृप्त (संसेचित) कर दिया जाता है तो नर भ्रमित हो जाते हैं जिसके परिणामस्वरूप सहवास में विघटन उत्पन्न होता है (चित्र 11.3)। इस विधि का प्रथम सफल प्रदर्शन गॉसीप्लयोर (Gosyplure) का प्रयोग कर पेक्टिनोफोरा गोसीपाइला. पर किया गया था। यह पाया गया कि नर फेरोमोन की ओर अभिमुख (orient) होकर मादा का पता लगाता है किन्तु फेरोमोन के संसेचन से भ्रमित होकर वह मादा का पता नहीं लगा पाता।

बोध प्रश्न 2
प) निम्नलिखित की परिभाषा बताइए रू
क) सीमियोरसायन
ख) एलोमोन
ग) कैरोमोन
घ) फेरोमोन
पप) समुचित वाक्यांशों से रिक्त स्थान पूरे करें रू
क) पीड़क प्रबंधन में प्रलोभकों (आकर्षकों) का प्रयोग………………………. तथा……………………….है।
ख) सीमियोरसायन अत्यंत……………………….मात्रा में सक्रिय होते हैं।
ग) उत्पादक प्रजाति को लाभ पहुंचाने वाले सीमियोरसायनों को……………………….कहा जाता है।
घ) अभिग्राही को अनुकूलन लाभ पहुंचाने वाले सीमियोरसायनों को कहा जाता है।
ङ) चार प्रमुख प्रकार के ज्ञात फेरोमोन………………………., ………………………., ……………………….तथा……………………….हैं।
पपप) खाद्य प्रलोभक क्या हैं?
पअ) अंडनिक्षेपक प्रलोभक क्या हैं?
अ) पीड़क प्रबंधन में आकर्षकों (attractants) के प्रयोग की तीन विधियों का उल्लेख करें रू
क)
ख)
ग)
अप) प्रतिकर्षकों की परिभाषा बताएं।
अपप) प्रतिकर्षकों से खाद्यरोधी (पोषणरोधी) किस प्रकार भिन्न हैं?

सारांश
ऽ भारत में सस्य नियंत्रण पद्धतियों के प्रयोग संबंधी प्रथम संदर्भ बेलफोर द्वारा 1887 मे लिखी गई श्दि एग्रीकल्चरल पेस्ट्स ऑफ
इण्डिया एण्ड ऑफ इस्टर्न एण्ड साऊथ एशियाश् (भारत तथा पूर्वी एवं दक्षिण एशिया के कृषि पीड़क) नामक पुस्तक में पाया जाता है।
ऽ सस्य नियंत्रण में वे पद्धतियां शामिल हैं जो परिवेश को पीड़क प्रजनन, विकीर्ण एवं उत्तरजीविता के लिए अपेक्षाकृत कम अनुकूल बना देती हैं। सस्य नियंत्रण तरीकों के अभिकल्पन एवं कार्यान्वयन के लिए पीड़कों के जीवन चक्रों में कमजोर सम्पर्कों को पहचानने पर विशेष ध्यान देने सहित फसल एवं जन्तु का ज्ञान, पारिस्थितिकी विज्ञान एवं ऋतु जैविकी का अच्छा ज्ञान होना आवश्यक है। इस में स्वच्छता, फसल आवर्तन, जोताई तथा ट्रैप (पाश) फसल पैदावार जैसी पद्धतियों का प्रयोग शामिल है।
ऽ सस्यावर्तन पीड़क परिसर तथा प्रबंधन पद्धतियों को आशोधित करता है जिससे फसल-विशिष्ट पीड़कों का संवर्धन कम हो जाता है। पाश फसलें वे पौधे हैं जिन्हें पीड़क को मुख्य फसल से दूर रहने के लिए आकृष्ट करने हेतु अथवा पीड़क को पाश फसल में रहने के लिए आकृष्ट करने हेतु उगाया जाता है ताकि उसका नाश किया जा सके।
ऽ पट्टीदार कृषि, अंतरफसल पैदावार तथा बहुविध पैदावार, कटाई, जोताई, पौधे को एक स्थान से उखाड़ कर दूसरे स्थान पर लगाना तथा स्वच्छता महत्वपूर्ण सस्य नियंत्रण विधियां हैं जो पीड़क आक्रमण को नियंत्रित करती हैं।
ऽ पीड़क के सहज व्यवहार का प्रयोग उनकी संख्या को घटाने तथा विनियमित करने के लिए किया जाता है, इन पीड़क प्रबंधन नीतियों को व्यवहारपरक नियंत्रण कहा जाता है।
ऽ व्यवहारपरक अथवा स्वभावगत नियंत्रण में व्यवहारजन रसायनों का प्रयोग शामिल है।
ऽ सीमियोरसायन अत्यंत अल्प मात्राओं में सक्रिय होते हैं तथा उनका प्रयोग कीटों की संख्या को कम तथा विनियमित करने के लिए किया जाता है।
ऽ उत्पादक प्रजाति को लाभ पहुंचाने वाले अंतराविशिष्ट सीमियोरसायनों (अर्थात् वे जो विभिन्न प्रजातियों के सदस्यों के बीच क्रिया करते हैं) को एलोमोन कहा जाता है । जबकि अभिग्राही को अनुकूलन लाभ पहुंचाने वाले व्यवहारजन रसायनों को कैरोमोन कहा जाता है।
ऽ अंतःविशिष्ट सीमियोरसायनों (अर्थात् वे जिनका प्रयोग एक ही प्रजाति के सदस्यों के बीच संचारण के लिए किया जाता है) को फेरोमोन कहा जाता है।
ऽ फेरोमोन वे पदार्थ हैं जो किसी जीव द्वारा बहिस्रावित किए जाते हैं और उसी प्रजाति के अभिग्राही जीव में एक विशिष्ट अनुक्रिया करते हैं। ये अनेक प्रयोजनों को पूरा करते हैं जैसे किसी संकट की सूचना, यौनाकर्षण, समुच्चयन अथवा अनुसरण या क्रियात्मक विकास में विशिष्ट परिवर्तन, जैसे लिंग निर्धारण या परिपक्वन इत्यादि।
ऽ खाद्य प्रलोभक अनेक पादप या पशु समुदायों में विद्यमान प्राकृतिक रसायनिक पदार्थ (कैरोमोन) हैं जो पीड़क. कीटों को आहार के लिए उपयुक्त स्थलों की ओर निर्देशित करते हैं।
ऽ अंडनिक्षेपण प्रलोभक व्यस्क मादा द्वारा अंडनिक्षेपण के लिए स्थलों के चयन को नियंत्रित करते हैं। प्रतिकर्षक वे रसायन हैं जो पौधों या पशुओं को अनाकर्षक, अस्वादिष्ट या दुर्गन्धकारी बनाकर उन्हें कीट क्षति से बचाते हैं।
ऽ अशनरोधी पदार्थ कीटों को पौधों का आहार करने से रोकते हैं। प्राकृतिक अशनरोधी का सर्वाधिक सफल स्रोत नीम वृक्ष है।

 अंत में कुछ प्रश्न
1. निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणियां लिखें रू
क) विभिन्न प्रकार के फेरोमोन
ख) खाद्य प्रलोभक
ग) प्रतिकर्षक
2. स्वच्छता क्या है? उपयुक्त उदाहरणों सहित समझाइए।
3. फसल आवर्तन कीटों के नियंत्रण में किस प्रकार सहायता करता है?
4. पाश फसल क्या है? कीट नियंत्रण में इसकी भूमिका पर उदाहरणों सहित व्याख्या कीजिए।

उत्तर

अंत में कुछ प्रश्न
1. क) तालिका 11.2 देखें।
ख) भाग 11.3.1 देखें।
ग) भाग 11.3.2 देखें।
2. भाग 11.2.1 देखें।
3. भाग 11.2.2 देखें।
4. भाग 11.2.4 देखें ।

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