JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

हिंदी माध्यम नोट्स

Categories: sociology

धार्मिक बहुलवाद क्या है |  भारत में धार्मिक बहुलवाद किसे कहते है (Religious Pluralism in India in hindi)

(Religious Pluralism in India in hindi) धार्मिक बहुलवाद क्या है |  भारत में धार्मिक बहुलवाद किसे कहते है ? 

भारत में धार्मिक बहुलवाद (Religious Pluralism in India)
भारतीय समाज में अनेक संस्कृतियाँ, लोगा, भाषाएँ और धर्म शामिल हैं। हमारे देश की विभिन्न धार्मिक विश्वासों की प्रकृति को समझने के लिए हमें अपने समाज में पाए जाने वाले विभिन्न धार्मिक समूहों के पूर्व इतिहास के संबंध में जानना आवश्यक है।

भारत के लम्बे इतिहास के दौरान समूह बाहर से आकर लगातार यहां बसते गये, इसलिए भारत में धार्मिक विविधताएं पहले से ही मौजूद हैं। यहां विभिन्न प्रांतों के सांस्कृतिक समूह अपने विशिष्ट धर्मों का पालन करते हैं, साथ ही साथ बाहर से आने वाले लोग भी अपने-अपने धर्म, प्रथाओं और संस्कृतियों को लेकर यहां आये । इसी कारण यहां कई धर्मों के अनुयायी साथ रहने लगे और धीरे धीरे धार्मिक बहुलवाद की नींव भारतीय समाज में पड़ी। इसी प्रक्रिया को हम ‘‘धार्मिक बहुलवाद‘‘ कहते हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि विविधता और अनेकता धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है। इस तरह से धार्मिक बहुलवाद के दो अर्थ हैं:

प) तथ्यों से पता चलता है कि भारत किसी एक धर्म की भूमि नहीं है, बल्कि प्राचीन काल से ही यह अनेक धर्मों की भूमि रही है, और
पप) प्रत्येक धर्म की अपनी प्राथमिक विशेषताएं होती हैं, पर साथ-साथ अनेक सामाजिक, सांस्कृतिक और व्यावहारिक तत्व सारे धर्मों में समान रूप से पाये जाते हैं। ये समानताएं आपसी संबंधों और समायोजन का परिणाम हैं, जो लंबे समय से चलते आ रहे प्रांतीय, भाषिक और सामाजिक निकटता पर आधारित हैं।

जैसा कि हम पहले कह चुके हैं कि धार्मिक बहुलवाद न सिर्फ वास्तविक तथ्य है, बल्कि भारत के विभिन्न धर्मों की मान्यताओं, मूल्यों और सामाजिक स्वरूप का अभिन्न अंग भी है। भारत में धार्मिक बहुलवाद के संदर्भ में आप निम्नलिखित मुद्दों के विषय में अध्ययन करेंगे।

क) संख्यात्मक, क्षेत्रीय और भाषाई श्रेणियों के आधार पर भारत में धर्मों का वितरण अथवा फैलाव,
ख) पंथों अथवा संप्रदायों के आधार पर किसी विशिष्ट धर्म के अंदर विभेदीकरण,
ग) जाति या जातिगत विभाजनों के आधार पर धर्म के अंदर सामाजिक विभेदीकरण होना और
घ) ऐतिहासिक कड़ियों, पारिस्थितिकीय और आर्थिक आवश्यकताएं, भाषाई और सांस्कृतिक समानताएं और प्रव्रजन की प्रक्रिया के आधार पर विभिन्न धर्मों द्वारा सांस्कतिक मूल्यों की साझी धरोहर।

 धार्मिक बहुलवाद: एक तथ्य के रूप में (Religious Pluralism as Fact)
प्राचीन काल से ही भारत विभिन्न संस्कृति समूहों और अनेक धर्मों को मानने वाले लोगों की भूमि रहा है। यह वह भूमि है, जहां पर बाहर से विभिन्न नृजातीय और धर्मों के लोगों ने लगातार प्रवर्जन किया है। इसलिए यहां पर पहले से बसे लोग और प्रव्रजन करने वाले लोगों के बीच यहां पर बसने और एक-दूसरे के साथ अन्योन्यक्रियाओं के दौरान थोड़े समय के लिए टकराव भी हुए हैं। परंतु अंततः विभिन्न धर्मों में विश्वास रखने वाले लोग घुल-मिल गए और वे यहां पर स्थायी रूप से बस गए। भारत में इस सहयोग के कारण धार्मिक बहुलवाद एक तथ्य के रूप में उभरकर सामने आया है।

समय बीतने के पश्चात् विभिन्न धर्मों में विश्वास रखने वाले लोग भारत में बस गए तथा साझी भौगोलिक स्थिति की समानताएं, समान या अन्योन्याश्रित आर्थिक संबंधों तथा ग्रामीण और शहरों में बसने वाले लोग निकटतम सम्पर्क के कारण विभिन्न धर्मों में विश्वास करने के बाद भी उन्होंने अनेक समान या सांस्कृतिक विशेषताओं के साझे तत्वों और विश्वास पद्धतियों को विकसित किया है। कभी-कभी लोगों ने अपने धर्म को दूसरे के दबाव के कारण छोड़ा है और कभी उन्होंने अपनी स्वेच्छा से भी धर्म परिवर्तन किया है। ऐसा करते समय अधिकतर मामलों में धर्म परिवर्तन करने वाले लोग अपनी पुरानी संस्कृति तथा सामाजिक व्यवहार, यहाँ तक कि अपने विश्वास या मूल्यों को पूरी तरह से छोड़ नहीं पाते हैं, जबकि वे लोग एक अलग धार्मिक समूह को अपना चुके होते थे। यही तत्व भारत में धार्मिक बहुलवाद को बल प्रदान करता है।

भारत विश्व के प्रमुख धर्मों का मूल स्थान रहा है, जैसे कि हिन्दू, इस्लाम, ईसाई, जैन, सिक्ख इत्यादि । भारत में राज्य, धर्म द्वारा दिखाए जाने वाले मार्ग और उसके नियंत्रण में काम करता रहा है, यहां तक कि राज्य भारतीय इतिहास के अधिकतर हिस्सों में धर्मों का संरक्षण और उसकी सुरक्षा करता रहा है।

इसलिए धार्मिक बहुलवाद भारतीय संस्कृति का मूल सिद्धांत है और धार्मिक सहिष्णुता भारतीय धर्मनिरपेक्षता का मूल आधार है। धार्मिक धर्मनिरपेक्षता इस विश्वास पर टिकी है कि सभी धर्म समान रूप से अच्छे हैं और सभी धर्मों का एक ही लक्ष्य है- ईश्वर की प्राप्ति करना। श्री एस. आर. भट्ट (192ः 261-271) के अनुसार, धार्मिक बहुलता का लक्ष्य धर्मनिरपेक्षवाद है जो मिश्रित व्याख्यात्मक प्रक्रिया पर आधारित है। जिसमें धर्म का उत्कर्ष तत्व निहित है और जो कि बहुत से धर्मों का एकीकरण है। बहुत से धार्मिक समाज में धर्मों के बीच यह सेतु का कार्य करता है जिसके माध्यम से प्रत्येक धर्म अपनी विभिन्नताओं की सीमाओं को लांघ कर एक-दूसरे के आत्मसात होने में समर्थ होते हैं। यही प्रमुख विशेषता है, जिसे हम धार्मिक बहुलता के नाम से जानते हैं।

इस भाग में भारत के विभिन्न धर्मों के तथ्यों के बारे में कुछ ठोस जानकारी दी गई है। भारत की जनगणना के रिकॉर्ड से हमें विभिन्न धर्मों की संख्यात्मक और सांख्यिकीय तथा सामाजिक विशेषताओं के बारे में जानकारी मिलती है। समाजशास्त्रीय दृष्टि से सबसे अधिक व्यापक और विस्तृत जनगणना 1931 में की गई थी, जब भारत और पाकिस्तान का बँटवारा नहीं हुआ था। किंग्सले डेविस ने अविभाजित विशेषताओं का वर्णन अपनी पुस्तक ‘‘द पॉप्यूलेशन ऑफ इंडिया एंड पाकिस्तान‘‘ (1951) में किया। 1931 की जनगणना में शामिल धर्म इस प्रकार है- हिन्दू, मुस्लिम, जनजातीय, ईसाई, सिक्ख, जैन, बौद्ध, पारसी और यहूदी धर्म। 1981 की जनगणना के अनुसार इन धर्मों की जनसंख्या इस प्रकार थी: हिन्दू 82.64 प्रतिशत (550 मिलियन), मुस्लिम 11.35 प्रतिशत (76 मिलियन), ईसाई 2.43 प्रतिशत (16 मिलियन), सिक्ख 1.6 प्रतिशत (13 मिलियन) बौद्ध 0.71 प्रतिशत (5 मिलियन), पारसी 0.48 प्रतिशत (72.000) मिलियन और यहूदी 18,000 जनजातियां जो हिन्दू या ईसाई धर्म में शामिल नहीं थीं, को ‘‘अन्य‘‘ माना गया, जो कुल जनसंख्या का 0.42 प्रतिशत भाग था।

वस्तुस्थिति यह है कि भारत की धरती पर विश्व के सबसे महत्वपूर्ण धर्म पल रहे हैं। इसके अतिरिक्त विभिन्न धार्मिक समुदाय एक लम्बे समय से यहां पर बसे हुए हैं। उदाहरण के लिए इस्लाम ने 650 ई. में भारत में प्रवेश किया और पश्चिमी प्रांतों में फैल गया। 1000 ई. के बाद उसने भारत में ठीक से अपनी जड़ जमाई और मुस्लिम शासन के दौरान इस्लाम धर्म पूरे भारत में फैल गया। इसी प्रकार ईसाई धर्म ब्रिटिश या पुर्तगालियों के आगमन से सदियों पहले भारत में प्रवेश कर चुका था। इससे पहले, मेसोपोटेमियाई चर्च की शाखा के रूप में ईसाई धर्म भारत के दक्षिण-पश्चिम क्षेत्र में मौजूद था। तीसरी शताब्दी में इसने प्रवेश किया और 16वीं शताब्दी में पुर्तगाली शासकों ने उसे और अधिक प्रभावशाली बनाया। जब मुस्लिम अरबियों ने पर्शिया पर विजय पाई तो पारसी धर्म के अनुयायी वहां से भागकर भारत में आए और वे गुजरात में बस गये और पारसी कहलाए।

बॉक्स 17.1
जरतुश्त धर्म पारसियों का एक ऐसा धर्म है, जो विश्व के सबसे पुराने जीवित धर्मों में से एक है। जरतुश्त नाम जाराथुस्ट्र (जोरास्टर) से बनता है जिसका जीवन काल लगभग 1000 साल ईसापूर्व की शुरुआत में था । इस धर्म का तीन हजार साल पुराना इतिहास है। प्राचीन पूर्व-इस्लामी ईरान का यह सबसे महत्वपूर्ण और जाना-माना धर्म है। इसका उद्गम पशुचारी समाज में हुआ। इस धर्म को माजदा धर्म भी कहा जाता है। “माजदा‘‘ या अहूरा माजदा को माजदा (अर्थात, ज्ञानी) परमात्मा कहा जाता है।

पारसी लगभग 766 ई. में भारत आये उनकी पहली टुकड़ी दियु तट पर पहुंची थी। परंतु इस जगह को पारसियों ने छोड़ दिया और गुजरात में शरण ली। 1881-1981 की जनगणना से पता चलता है कि भारत में इनकी जनसंख्या 80,000 से 82,000 के बीच में है।

फिलहाल भारत में अधिकतर पारसी समाज महाराष्ट्र और विशेष रूप से मुंबई, गुजरात और दक्षिण में बसा हुआ है। उनके सामाजिक संगठन पर और अधिक जानकारी पाठ्यक्रम ESO-12 ‘‘भारत में समाजष्, खंड 4 की इकाई 19 में दी गई है।

यहूदी एक अन्य समुदाय का धर्म है, जिसका विशेष चरित्र है। ये लोग सदियों से भारत में रहे हैं तथा अपनी मूल परम्पराओं का पालन करते आ रहे हैं। भारत में इनकी संख्या बहुत ही कम है। 1981 की जनगणना के अनुसार भारत में यहूदियों की कुल जनसंख्या मात्र 18,000 है।

बॉक्स 17.2
भारत में यहूदी
यहूदियों के धर्म ‘‘यहूदीवाद‘‘ का एक लम्बा इतिहास है। भारत में हम दो प्रकार के यहूदियों को देखते हैंः (प) कोचीन के यहूदी और (पप) बेने इजाइल यहूदी। ये दोनों तरह के यहूदी इसके बाद ‘‘अश्वेत” यहूदी और ‘‘श्वेत” यहूदियों में विभाजित हो गए हैं। भारत में रहने वाले यहूदी इस अनुश्रुति पर विश्वास करते हैं कि उनके पूर्वज भारत में उस समय आए जब सोलोमन का शासन था। उसके शासन काल में ही यहूदी धर्म का दूसरा मंदिर तोड़ा गया था।

कोचीन के यहूदी यह मानते हैं कि वे भारत में लगभग 1000 ई. में आए थे। तुदेला के यात्री बिनयामिन ने अपने विवरण में उल्लेख किया है कि 1170 ई. में मालाबार के तट पर हजारों अश्वेत यहूदी मौजूद थे। उसके अनुसार “बे भद्र लोग थे जो कानून का पालन करते थे तथा मोसिस के तोराह, पैगम्बरों व तालमूद और अलारवा के विषय में भी जानते थे।‘‘

मोसिसपेरेरिया दि पेवोस (जैम्स्टरडैम 1687) के विवरण से पता चलता है कि उस समय ‘‘सिनेगाग” (यहूदियों का प्रार्थना करने का स्थान) था, जिनके वे सदस्य थे और उस समय कुल 465 श्वेत यहूदी परिवार थे जो जगनोर, वास्टील, एल्जियर्स जेरूसलम आदि नगरों से कोचिन आये थे। अश्वेत यहूदी श्वेतों से पहले भारत में आये, स्थानीय श्याम रंग की भारतीय औरतों से संबंधों के परिणामस्वरूप उनके रंग में परिवर्तन आया । अश्वेत और श्वेत यहूदी एक-दूसरे से दूर रहते थे और इनके बीच विवाह संबंधों पर सख्त प्रतिबंध था। इन समुदायों पर जाति व्यवस्था का प्रभाव साफ दिखाई देता है। वे अलग “सिनेगाग” में प्रार्थना करते थे। श्वेत ‘‘मिन्यान‘‘ (दस पुरुषों की कारेम/कियत्ता) में अश्वेत यहूदियों की गिनती नहीं की जाती थी और न अश्वेतों की मिन्यान में गोरों कीं। इनमें इतनी दूरी थी कि श्वेतों का “कोहिमा‘‘ या पंडित अश्वेतों की सेवा नहीं करता था और न अश्वेतों का “कोहिमा” श्वेत की। नृवैज्ञानिक डेविड जी मैंडलबॉम ने 1937 में कोचीन के यहूदियों का अध्ययन किया जिसमें उसने पाया कि अश्वेत यहूदियों का जीवन श्वेतों से भी अधिक ‘‘सिनेगांग‘‘ पर केंद्रित‘‘ था। 1948 में भारत में 2,500 अश्वेत और 100 श्वेत ‘‘कोचिन‘‘ यहूदी थे। पर उसके बाद सारे अश्वेत यहूदी इज्राइल चले गये। श्वेत गोरे यहूदी यहीं रहे, क्योंकि वे अपनी संपत्ति को देश के बाहर नहीं ले जा सके।

भारत में सबसे बड़ा यहूदी समुदाय बेने इजाइली यहूदियों का है। बेने इजाइल का मतलब है ‘‘इज्राइल की संतान‘‘ अर्थात् सोलोमन के पुत्र रहोबोम के वंशज, इज्राइल की दस जनजातियाँ हैं। इनकी लोक कथाओं में कोंकण तट पर हुई नाव दुर्घटना का वर्णन है जिसमें सिर्फ सात हीब्रू दम्पत्ति जीवित बचे थे। वे तट तक पहुचे और नबगांव (मुंबई के 26 मील दक्षिण में) में बस गये । वे अन्य यहूदी अनुयायियों से इतने लम्बे समय से अलग रहे कि वे अपनी हीब्रू भाषा भूल गए और अपने पड़ोसियों की भाषा (मराठी), तौर-तरीके, पोशाक और नाम भी अपनाने लगे । यद्यपि कुछ रीति-रिवाजों का पालन उन्होंने नहीं छोड़ा, जैसे कि खतना, खान-पान, “साबथ‘‘ और त्योहार। अपनी ‘‘शैमा” प्रार्थना को भी वे नहीं भूले। उनका मुख्य व्यवसाय तेल उत्पादन था। उनके पड़ौसी उन्हें ‘‘शनवार तेली‘‘ कहते थे (शनवार “साबथ” का दिन है) तेली निम्न जाति के माने जाते हैं। अतः ऊँची जातियां उनसे दूर रहती थीं। 18वीं शताब्दी के अंत तक बेने इजाइली अन्य यहूदी समुदायों से संपर्क नहीं कर सके। एर्जीकियल डेविड रहबी (1694-1771) जो डच ईस्ट इंडिया कम्पनी में काम करता था, उनमें दिलचस्पी लेने लगा और उन्हें हीब्रू प्रार्थनाएं सिखाई। मध्य 18वीं शताब्दी में बने इजाइली मुंबई में बसने लगे, जहाँ उन्हें व्यावसायिक अवसर दिखाई दिये । मुंबई में पहले सिनेगाग की निर्माण 1796 ई. में हुआ। 1833 तक 2000 बेने इज्राइली मुंबई में बस गए, अर्थात जो उनकी कुल संख्या का एक तिहाई हिस्सा था।

वे ‘‘श्वेत और अश्वेत‘‘ उपजातियों में विभाजित थे। श्वेत पहले सात दंपत्तियों के वंशज माने जाते थे और अश्वेत बेने इज्राइली पुरुषों और स्थानीय स्त्रियों की संतान माने जाते थे। श्वेत को अश्वेत उच्च मानते थे और दोनों एक-दूसरे से दूरी बनाए रखते थे। सह-भोजन और विवाह संबंधों पर पाबन्दी थी।

इसी प्रकार, बगदाद के यहूदी, श्वेतों ओर अश्वेतों दोनों को अपने से छोटा मानते थे। यह जाति भेद 1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद बदल गया, जब जाति व्यवस्था को कानूनी मान्यता नहीं दी गई। फिर भी, श्वेतों, अश्वेतों और बगदादियों के बीच विवाह संबंध कम ही देखने को मिलते हैं। (पटाई, राफेल 1987: 164-172)।

मुस्लिम, ईसाई, पारसी और यहूदी धर्मों का उद्गम भारत से बाहर हुआ । मुस्लिम और ईसाई धर्मों को मुसलमानों और ब्रिटिश शासन के दौरान अलग-अलग समय में राजनीतिक समर्थन प्राप्त हुआ। इन दोनों धर्मों का प्रसार इसलिए हुआ कि स्थानीय लोग, विशेषतः निम्न वर्ग के हिन्दू और जनजातीय लोग इनसे प्रभावित हुए और इनके अनुयायी बन गए। अपनी विशिष्ट विशेषताओं के कारण पारसी और यहूदी धर्म के लोगों ने अपनी सदस्यता को अपने आप में सीमित रखा अथवा इसे यूँ भी कह सकते हैं कि अन्य लोगों ने इसे नहीं अपनाया ।

 भौगोलिक फैलाव (Geographical Spread)
भारत में धर्मों का भौगोलिक फैलाव धार्मिक बहुलवाद की एक और विशेषता है। हिन्दू धर्म, जिसके अनुयायी अधिकांश भारतवासी हैं, सम्पूर्ण भारत में फैला हुआ है, पर मध्य और दक्षिण राज्यों में और कुछ उत्तरी राज्यों और पूर्वी असम में हिन्दुओं की जनसंख्या सबसे अधिक है।

मुस्लिम, जिनकी संख्या दूसरे स्थान पर है, सबसे अधिक तादाद में केरल, कर्नाटक जैसे दक्षिण-पश्चिम राज्यों में, उत्तर प्रदेश, बिहार असम जैसे उत्तर व पूर्वी राज्यों में और मध्य प्रदेश और गुजरात के कुछ हिस्सों में पाए जाते हैं। हिन्दुओं की तरह वे भी पूरे भारत में फैले हुए हैं।

ईसाई सबसे अधिक तादाद में दक्षिण राज्यों- केरल, कर्नाटक और आन्ध्र प्रदेश के कुछ हिस्सों में और मिजोरम और नागालैण्ड, मेघालय जैसे उत्तर-पूर्वी राज्यों में निवास करते हैं। मध्य प्रदेश, बिहार और उत्तरी राज्यों के कुछ हिस्सों में भी ईसाई पाए जाते हैं। महत्वपूर्ण बात यह है कि ईसाई उन राज्यों में अधिक पाए जाते हैं, जिनमें जनजातीय लोग अधिक रहते हैं। इसका कारण धर्म परिवर्तन का प्रभाव माना गया है।

सिक्ख जो एक महत्वपूर्ण धार्मिक समूह है, अधिकतर पंजाब और उत्तरी राज्यों में बसे हुए हैं। वे राजस्थान व उत्तर प्रदेश में भी कहीं-कहीं बसे हुए हैं। अत्यंत गतिशील और अच्छे उद्यमी होने के कारण सिक्ख अनुयायी भारत के लगभग हर भाग में पहुंच गए हैं।

एक समय में बौद्ध धर्म भारत में अत्यंत प्रभावशाली धर्म था, पर अब यह लद्दाख, अरूणाचल प्रदेश और दार्जिलिंग, पश्चिमी बंगाल आदि कुछ पर्वतीय क्षेत्रों के कुछ भागों तक ही सीमित है। महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में भी बौद्ध धर्म के अनुयायी हैं, जहाँ अनुसूचित जातियों के हिन्दुओ ने यह धमे अपनाया। जैन राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात और उत्तर प्रदेश के शहरों में रहते हैं। शहरी और व्यापारिक समह होने के नाते वे भी भारत के सभी हिस्सों में फैले हुए हैं।

भारत के धर्मों के भौगौलिक विभाजन की मुख्य विशेषता यह है कि प्रत्येक किसी विशिष्ट ‘जगह से जुड़ा हुआ है। फिर भी वह देश के अन्य भागों में भी पाए जाते हैं। इससे विभिन्न धर्मों के बीच जीवन के तौर-तरीकों, भाषा और सांस्कृतिक प्रथाओं का आदान-प्रदान व्यापक पैमाने पर हुआ है। इससे भारत के धर्मों का बहुलवादी स्वरूप और अधिक मजबूत हुआ है, जो प्रत्येक धर्म की विशेषता से भी परे हैं इससे प्रत्येक धर्म के सांस्कृतिक उप-समूहों के बीच विभेदीकरण को प्रोत्साहन मिला है। बहुत से दृष्टिकोणों से आन्ध्र प्रदेश के मुसलमानों और कश्मीर के मुसलमानों में सांस्कृतिक विविधता है। इनमें बहुत कम समान लक्षण पाए जाते हैं। अल्पसंख्यक धर्मों (पारसी, यहूदी) को छोड़कर यह बात लगभग सभी धर्मों पर लागू होती है।

कार्यकलाप 1
अपने गांव या शहर के किसी स्थानीय क्षेत्र के निवासियों का चयन कीजिए और उनसे निम्नलिखित बातों का पता लगाइये:
प) उनका धर्म कौन-सा है,
पप) क्या वे यहां के मूल निवासी हैं या बाहर से आए हैं, और
पपप) यदि वे बाहर से आए हैं, तो कितने साल पहले आए थे।

इस जानकारी के विषय में दो पृष्ठों का लेख लिखिए और यदि संभव हो तो, अपने अध्ययन केन्द्र के अन्य छात्रों के लेखों से तुलना कीजिए।

 धर्म एवं पंथ (Religion and Sect)
भारत में धर्मों का पंथों में विभाजन बहुलवाद का एक महत्वपूर्ण तत्व है। मैक्स वेबर ने पंथ की विशेषताओं को परिभाषित किया है और विशेषकर ईसाई धर्म के संबंध में पंथ और चर्च में अंतर दिखाया है। उनका कहना है कि चर्च (मुख्य धर्म) की सदस्यता अनिवार्य है। यह सामूहिक मानदंडों और नियमों से संचालित होता है और धार्मिक कार्यकर्ताओं द्वारा संपन्न किया जाता है। किंतु पंथ की सदस्यता स्वैच्छिकता के आधार पर निर्भर करती है। यह व्यक्तिगत निर्णय पर आधारित है और चर्च के कार्यकर्ताओं का अनिवार्य अनुपालन जैसी मान्यताएं पंथ के मानने वालों में नहीं होती हैं। वे पंथ में स्वतंत्र होते हैं।

वेबर ने पंथ शब्द का प्रयोग सापेक्ष रूप से निश्चित अर्थ में किया है और जो सभी धर्मों में लागू नहीं होता है । यद्यपि पंथ सामान्यरूप से सभी धर्मों में है जैसे कि हिन्दु धर्म, इस्लाम धर्म, ईसाई धर्म, बौद्ध धर्म, जैन धर्म, सिक्ख धर्म आदि। सामान्यतः उप-विभाजन और पंथ के सामान्य अर्थ का धर्म में धार्मिक सिद्धांतों, अनुष्ठानों और धार्मिक व्यवहारों की व्याख्याओं की आंतरिक विविधताओं के अर्थ में प्रयोग किया जाता है। धार्मिक कानूनों की नई व्याख्या या धार्मिक नेताओं की गुटबाजी के कारण धर्म में विभाजन भी हो सकता है। फिर भी पंथ जिस विशिष्ट धर्म से संबंध रखता है, तो उसी धर्म की सीमाओं के अंदर वह कार्य भी करता है। लेकिन विशिष्टीकरण की प्रक्रिया के कारण प्रथाओं, अनुष्ठानों तथा धर्म के व्यवहारों और इनका आपसी सान्निध्य या विभिन्न धर्मों के विश्वास या आपसी निकटता भी, इस प्रक्रिया के कारण संभव बनाई गई है।

उदाहरण के लिए, हम देख सकते हैं कि इस्लाम में सूफीवाद और सिक्ख धर्म के बीच गहरे संबंध देखने को मिलते हैं। हिन्दू धर्म में भक्ति आन्दोलन और इसके साथ रहस्यवाद के रूपों को ईसाई धर्म में देखा जा सकता है। अतः अंतः धार्मिक परस्पर प्रभावों को अधिकतर भारत में कुछ ऐसे धर्म भी हैं, जो पंथ के आधार पर विभाजित नहीं है। हिन्दू धर्म का स्वरूप बहुलवादी है। वैदिक धर्म के लेकर पुराणों और धर्मशास्त्रों तक हिन्दू धर्म ने अनेक मान्यताओं और अनुष्ठानों को आत्मसात कर लिया। इसके दौरान अनेक पंथ और परंपराएं विकसित हुई। हिन्दू धर्म के मुख्य पंथ वैष्णव (विष्णु की आराधना पर आधारित) और शैव (शिव की आराधना) पर आधारित पंथ हैं। इन दो पंथों के विभिन्न रूप हैं। वैष्णव पंथ शाकाहारी भोजन, सामाजिक और सांस्कृतिक व्यवहारों में संयम पर जोर देता है। बौद्ध और जैन धर्मों की सरह यह पंथ भी अहिंसा के प्रति प्रतिबद्ध है। शैव पंथ इन मूल्यों के पालन के प्रति इतना सख्त नहीं है। माँस और शराब का सेवन मना नहीं है। खासतौर पर शैव पंथ की तांत्रिक शाखाओं में इस तरह की शिथिलताएं हैं।

भारत में समय-समय पर अनेक धार्मिक आंदोलन हुए जो इन पंथों की मान्यताओं और प्रथाओं पर आधारित थे। भक्ति आन्दोलन खासतौर पर वैष्णव पंथ से प्रभावित था। इसी प्रकार, कर्नाटक में लिंगायत आंदोलन ने शैव पंथ से प्रेरणा ली। इन पंथों ने हिन्दुओं में विविधता और नवीनता को प्रोत्साहित किया और अन्य धर्मों से आदान-प्रदान संभव नहीं बनाया। हिन्दू धर्म में “चर्च‘‘, अर्थात मान्यताओं और अनुष्ठानों की अखंड व्यवस्था के अभाव के कारण अनुष्ठानों और नियमों से अधिक महत्वपूर्ण उसका सामाजिक और सांस्कृतिक स्वरूप रहा है। इसलिए इसे ‘‘जीवन का एक तरीका” कहा गया है। एम. एन. श्रीनिवास और ए. एम. शाह लिखते हैं: “केन्द्रीय चर्च‘‘ के अभाव के कारण हिन्दू धर्म और हिन्दू समाज एक-दूसरे से इतनी गहरी तरह जुड़े हैं कि इन्हें अलग करना बहत कठिन है।‘‘ (श्री निवास एवं शाह 1968: 358)। अनेक पंथों और अपनी मान्यताओं के कारण धार्मिक बहुलवाद हिन्दू धर्म की नैसर्गिक विशेषता है।

इस्लाम और ईसाई धर्म भी अनेक पंथों में विभाजित हैं। इस्लाम धर्म में शिया और सुन्नी सम्प्रदायों से आप परिचित हैं। जब पंथ को समाज में स्वीकृति मिलती है और उसकी नवीनता घटती है, तब वह सम्प्रदाय बन जाता है। (इस विषय पर और अधिक जानकारी के लिए समाज और धर्म पर इसी पाठ्यक्रम की खंड 3 की इकाई 12 पढ़ें) बहुत सारे पंथ ऐसे भी हैं, जो न सिर्फ धार्मिक परम्पराओं की नयी व्याख्या के माध्यम से विभाजन उत्पन्न करते हैं, बल्कि अनुष्ठानों और मान्यताओं से सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव के आधार पर भी विविधता लाते हैं। इसका प्रमुख उदाहरण है इस्लाम में सूफी पंथ, जो नवीनता और व्यक्तिगत मतों पर जोर देता है जबकि इस्लाम की विशेषता सामूहिकता है। सूफियों में भी अनेक विभाजन देखे जा सकते हैं। पंथ और उप-पंथ लगभग सारे धर्मों में मौजूद हैं क्योंकि मान्यताओं और प्रथाओं की नई व्याख्याएं ऐतिहासिक परिस्थितियों से जुड़ी हुई हैं।

ईसाई धर्म के मुख्य पंथ हैं – रोमन कैथोलिक और प्रोटेस्टैंन्ट पंथं प्रोटेस्टैन्टवाद लूथर और कैल्विन के नेतृत्व में किए गए सुधारवादी आंदोलन का परिणाम था। इस विषय पर मैक्स वेबर ने काफी कुछ लिखा है। भारत में ईसाई पंथ की इन दोनों शाखाओं के तहत काफी सारे पंथ आते हैं। रोमन कैथोलिकवाद के अंतर्गत रोमो-सिरियन जकोबाइट, रिफाई आदि पंथ हैं। प्रोटेस्टैन्ट के कैल्विनवाद के अंतर्गत एंग्लिकन कॉम्बिनेशन, बैपटिस्ट, प्रेसबिटेरियन, लूथरनं, मथोडिस्ट, कॉग्रिगेशनलिस्ट, सैल्वेशनलिस्ट जैसे पंथ शामिल हैं।

बौद्ध, जैन धर्म और सिक्ख धर्म, जिन्हें कभी-कभी हिन्दू धर्म का ही हिस्सा माना जाता है, पंथों में विभाजित है। बौद्ध धर्म हीनयान और महायान और जैन धर्म श्वेतांबर और दिगंबर पंथों में विभाजित हैं। (इन धर्मों के विषय में आप अगले खंड ‘‘धार्मिक बहुलवाद- प्प् में हिन्दू धर्म, इस्लाम धर्म, जैन धर्म, बौद्ध धर्म और सिक्ख धर्म के बारे में पढ़ेंगे) सिक्ख भी विभिन्न सैद्धांतिक और अनुष्ठानिक मुद्दों के आधार पर विभाजित हैं। धर्मों का पंथों में विभाजन धार्मिक अनेकवाद को गहरे रूप में प्रभावित करता है। इससे धर्मों की कट्टरता और रूढ़िवादिता कम होती है और धर्मों में नवीनता और सामाजिक और ऐतिहासिक परिवर्तन का सामना करने की क्षमता बढ़ती है। धार्मिक भाव को बढ़ाने के साथ-साथ पंथ दूसरे धर्मों और समाज के साथ बहुलवादी आदान-प्रदान को प्रोत्साहित करते हैं। मैक्स वेबर के अनुसार पंथ सामाजिक जीवन में धर्म की भूमिका को और अधिक महत्वपूर्ण बनाते हैं। भारत में विभिन्न धर्मों के पंथों ने न सिर्फ धर्म के दायरे को बढ़ाया है, बल्कि अनेक धर्मों, विचारों, मान्यताओं और प्रथाओं को एक-दूसरे से जोड़ा है।

बोध प्रश्न 1
1) धार्मिक बहुलवाद से आप क्या समझते हैं ? आठ पंक्तियों में अपने विचार प्रकट कीजिए।
2) सोदाहरण धर्म और पंथ के बीच के अंतर को स्पष्ट कीजिए। अपना उत्तर लगभग दस पंक्तियों में लिखिए।
3) रिक्त स्थान भरिए।
क) मुस्लिम, ईसाई, पारसी और यहूदी धर्मों के उदगम का मुख्य स्रोत भारत के .था।
ख) भारत में ईसाइयों के भौगालिक फैलाव की विशेषता यह है कि वे उन राज्यों में पाए जाते हैं, जिनमें……………………..की बड़ी संख्या है। इसका कारण………… ……है।
ग) मुख्य धर्म में आंतरिक भेदीकरण के कारण विभिन्न धर्म अपने रीति-रिवाज, अनुष्ठान, प्रथाएं, मान्यताएं और मूल्य एक-दूसरे से बांट सकते हैं। इस्लाम………………………….पंथ धार्मिक आदान-प्रदान का उदाहरण है।

बोध प्रश्न 1 उत्तर
प) धार्मिक बहुलवाद का अर्थ है-एक ऐसा समाज जिसमें लम्बे समय के दौरान विभिन्न धर्मों के लोग अपने तौर-तरीकों, विश्वासों और संस्कृतियों का पालन करते हुए एक साथ रहते हैं। गहरे आपसी संबंधों के कारण कुछ समान मूल्य जन्म लेते हैं। आपसी संबंधों के कारण प्रथाओं, मूल्यों और विश्वासों को भी बाँटा जाता है। इसी को धार्मिक बहुलवाद कहते हैं।

पप) धर्म वह वृक्ष है, जिसकी शाखाएँ पंथ कहलाती हैं। धर्म के आंतरिक मतभेदों के कारण पंथ जन्म लेते है। उदाहरण के लिए ईसाई धर्म में चर्च में सदस्यता अनिवार्य है। यह सामूहिक नियमों पर आधारित है और इसका कामकाज धार्मिक कार्यकर्ताओं द्वारा संभाला जाता है। परंत पंथ में सदस्यता इच्छा पर निर्भर है। यह व्यक्तिपरक है और सदस्यों को धार्मिक कार्यकताओं के आधिपत्य से विमुक्त करता है।

पप) क) बाहर
ख) जनजातियों, धर्म परिवर्तन
ग) सूफी

Sbistudy

Recent Posts

मालकाना का युद्ध malkhana ka yudh kab hua tha in hindi

malkhana ka yudh kab hua tha in hindi मालकाना का युद्ध ? मालकाना के युद्ध…

4 weeks ago

कान्हड़देव तथा अलाउद्दीन खिलजी के संबंधों पर प्रकाश डालिए

राणा रतन सिंह चित्तौड़ ( 1302 ई. - 1303 ) राजस्थान के इतिहास में गुहिलवंशी…

4 weeks ago

हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ? hammir dev chauhan history in hindi explained

hammir dev chauhan history in hindi explained हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ?…

4 weeks ago

तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच हुआ द्वितीय युद्ध Tarain battle in hindi first and second

Tarain battle in hindi first and second तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच…

4 weeks ago

चौहानों की उत्पत्ति कैसे हुई थी ? chahamana dynasty ki utpatti kahan se hui in hindi

chahamana dynasty ki utpatti kahan se hui in hindi चौहानों की उत्पत्ति कैसे हुई थी…

1 month ago

भारत पर पहला तुर्क आक्रमण किसने किया कब हुआ first turk invaders who attacked india in hindi

first turk invaders who attacked india in hindi भारत पर पहला तुर्क आक्रमण किसने किया…

1 month ago
All Rights ReservedView Non-AMP Version
X

Headline

You can control the ways in which we improve and personalize your experience. Please choose whether you wish to allow the following:

Privacy Settings
JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now