ray optics class 12 notes in hindi , किरण प्रकाशिकी एवं प्रकाशिक यंत्र notes , कक्षा 12 भौतिकी एनसीईआरटी , प्रकाश किरण :-
किरण प्रकाशिकी :
प्रकाश का स्वरूप :प्रकाश की वह घटना जिसमे एक तरंग दूसरी तरंग के साथ अन्योन्य क्रिया करती है तब प्रकाश तरंग स्वरूप को प्रदर्शित करता है |
यदि प्रकाश तरंगो की किसी द्रव्य कण से क्रिया होती है तब प्रकाश कणीय स्वरूप को प्रदर्शित करता है |
प्रकाश किरण : प्रकाश स्रोत से उत्सर्जित तरंगाग्र के अभिलम्बवत खिंची गयी रेखा प्रकाश के पथ की दिशा को प्रदर्शित करती है। यह अभिलम्बवत रेखा प्रकाश किरण कहलाती है।
किरण पुंज : प्रकाश किरणों के समूह को किरण पुन्ज कहते है।
ज्यामितीय प्रकाशिकी : प्रकाशिकी की वह शाखा जिसमे दैनिक जीवन में होने वाली प्रकाश की घटनाओ का अध्ययन किया जाता है , ज्यामितीय प्रकाशिकी कहलाती है , इसे स्थुल प्रकाशिकी भी कहते है।
प्रकाश का परावर्तन : यदि प्रकाश को किसी पृष्ठ पर आपतित कराने से यह पृष्ठ से टकराकर पुनः उसी माध्यम में लौट आता है तब प्रकाश की यह घटना प्रकाश का परावर्तन कहलाती है।
प्रकाश के परावर्तन के नियम
1. परावर्तन की घटना में आपतन कोण तथा परावर्तन कोण बराबर होते है।
∠i = ∠r
2. परावर्तन की घटना में आपतित प्रकाश किरण , परावर्तित प्रकाश किरण तथा अभिलम्ब , तीनो एक ही तल में उपस्थित रहते है तथा तीनो एक बिंदु गामी होते है।
3. परावर्तन की घटना में परावर्तित प्रकाश की
तरंग दैर्ध्य चाल तथा आवृत्ति में कोई परिवर्तन नहीं होता है परन्तु परावर्तित प्रकाश की तीव्रता कम हो जाती है क्योंकि परावर्तक पृष्ठ द्वारा आपतित प्रकाश की
ऊर्जा का कुछ भाग अवशोषित कर लिया जाता है।
नोट : जब किसी परावर्तक सतह पर प्रकाश को अभिलम्बवत आपतित कराया जाता है तब प्रकाश किरण परावर्तन के पश्चात् उसी मार्ग से लौट जाती है क्योंकि परावर्तन नियम से आपतन कोण शून्य होने पर परावर्तन कोण भी शून्य होगा।
समतल दर्पण से बनने वाले प्रतिबिम्ब में प्रतिबिम्ब आभासी व सीधा होता है।
गुण :
- समतल दर्पण से परावर्तन के पश्चात् बनने वाले प्रतिबिम्ब का आकार वस्तु के आकार के बराबर होता है।
- किसी व्यक्ति की पूर्ण लम्बाई का प्रतिबिम्ब देखने के लिए दर्पण की लम्बाई आधी होना आवश्यक है क्योंकि सम्पूर्ण प्रतिबिम्ब के लिए प्रतिबिम्ब का आकार व्यक्ति के आकार के बराबर होता है।
- यदि किसी वस्तु को v वेग से दर्पण की ओर अथवा दर्पण से दूर ले जाया जाता है तब बनने वाला प्रतिबिम्ब 2v वेग से दर्पण की ओर अथवा दर्पण से दूर गतिमान होता है।
- यदि दो दर्पण परस्पर θ कोण पर झुके हो तब बनने वाले प्रतिबिम्बों की संख्या निम्न दो नियमों सूत्रों द्वारा ज्ञात होती है –
(i) n = 360/θ – 1
यदि 360/θ एक समपूर्णांक हो –
उदाहरण : 360/60 = 6
n = 6 – 1 = 5
(ii) n = 360/θ
यदि 360/θ एक विषमपूर्णांक हो –
उदाहरण : n = 360/40 = 9
n = 9
किसी काँच के खोखले गोले का कटा हुआ वह भाग जिस पर एक तरफ पोलिस कर दी जाए तब इस प्रकार का बना दर्पण , गोलीय दर्पण कहलाता है।
या
जब किसी गोलीय पारदर्शी कांच की एक सतह पर पोलिस कर दी जाए तो प्राप्त व्यवस्था को गोलीय दर्पण कहते है।
यह दो प्रकार के होते है –
2. उत्तल दर्पण
1. अवतल दर्पण : यदि गोलीय दर्पण के उभरे हुए भाग पर पोलिस कर दी जाए तब इस प्रकार बना दर्पण , अवतल दर्पण कहलाता है।
2. उत्तल दर्पण : यदि गोलीय दर्पण के दबे हुए पृष्ठ पर पोलिस कर दी जाए तब इस प्रकार बना गोलीय दर्पण उत्तल दर्पण कहलाता है।
गोलीय दर्पण से सम्बंधित महत्वपूर्ण परिभाषाएं
(i) ध्रुव (p) : गोलीय दर्पण के परावर्तक का मध्य बिंदु दर्पण का ध्रुव कहलाता है , इसे P से दर्शाते है।
(ii) वक्रता केंद्र (C) : गोलीय दर्पण जिस खोखले गोले का कटा हुआ भाग होता है , उस गोले का केंद्र गोलीय दर्पण का वक्रता केन्द्र कहलाता है। इसे c से प्रदर्शित करते है।
(iii) वक्रता त्रिज्या (R) : दर्पण के ध्रुव तथा वक्रता केंद्र के मध्य की सीधी दूरी ही दर्पण की वक्रता त्रिज्या कहलाती है। इसे R से प्रदर्शित करते है।
(iv) मुख्य फोकस (F) : गोलीय दर्पण में परावर्तन के पश्चात् प्रकाश किरणें जिस बिंदु पर मिलती है अथवा किसी बिंदु से आती प्रतीत हो , वह बिंदु गोलीय दर्पण का मुख्य फोकस कहलाता है।
इसे F से दर्शाते है।
(v) दर्पण की अक्ष : गोलीय दर्पण के वक्राकार पृष्ठ के किसी बिंदु को दर्पण के वक्रता केंद्र से मिलाने वाली रेखा दर्पण की अक्ष कहलाती है।
गोलीय दर्पण की अक्षो की संख्या अनंत होती है तथा दर्पण के ध्रुव व वक्रता केन्द्र को मिलाने वाली रेखा दर्पण की मुख्य अक्ष कहलाती है।
(vi) फोकस दूरी (f) : दर्पण के ध्रुव तथा मुख्य फोकस को मिलाने वाली रेखा की सीधी लम्बाई गोलीय दर्पण की फोकस दूरी कहलाती है। इसे f से प्रदर्शित करते है।
(vii) दर्पण का द्वारक (MN) : दर्पण के परावर्तक पृष्ठ के क्षेत्रफल वाले भाग का व्यास दर्पण का द्वारक कहलाता है।
दर्पण के एक सिरे से दुसरे सिरे के मध्य की सीधी दूरी द्वारक कहलाती है।