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रामपुर रजा पुस्तकालय का इतिहास बताइए , rampur raza library history in hindi

rampur raza library history in hindi रामपुर रजा पुस्तकालय का इतिहास बताइए ?

रामपुर रज़ा पुस्तकालयः हमारे भारत की प्राचीन सभ्यता की महिमा दुनिया भर में फैली हुई थी और विश्व की अनेक सभ्यताओं को उसने प्रभावित एवं आकर्षित किया था। शुरू के जमाने से यवन एवं कुषाणएशक, हूण एवं मुसलमान बराबर आकर यहां बसते रहे।
1857 की स्वतंत्रता की पहली लड़ाई के पश्चात् मुगल पुस्तकालय लुट गए और अधिकांश बेजोड़ पाण्डुलिपियां एवं लघु चित्र के अलबम इत्यादि यूरोप एवं अमेरिका चले गए और वहां के संग्रहालयों एवं गिजी संग्रहों का हिस्सा बन गए। लेकिन सौभाग्यवश रामपुर, हैदराबाद, भोपाल और टोंक की रियासतें बची रहीं और उनके पुस्तकालय तबाही से बच गए। रामपुर रज़ा पुस्तकालय, इन्डो इस्लामी शिक्षा और कला का खाज़ाना है जो अब तत्कालीन रामपुर राज्य है। जो नवाब फैज़ उल्ला ख़ान द्वारा 1774 में स्थापित किया गया था। उन्होंने राज्य पर 1794 तक शासन किया, और उनकी विरासत संग्रह के माध्यम से पुस्तकालय के गठन द्वारा केन्द्रीय भाग में स्थापित कर दी गई। बहूमूल्य पांडुलिपियों के ऐतिहासिक दस्तावेज़ों, मुग़ल लघु-चित्रों, किताबों और कला के अन्य कार्यों को नवाबों के तोषाख़ाना में रखा गया उन्होंने इसे काफी हद तक अपने अधिग्रहण से जोड़ा।
नवाब यूसुफ अली ख़ान ‘नाज़िम’ एक साहित्यक व्यक्ति और उर्दू के प्रसिद्व कवि मिर्ज़ा ग़ालिब के शिष्य थे। उन्होंने पुस्तकालय में एक अलग विभाग बनाया और संग्रह कोठी के नवनिर्मित कमरों में स्थानांतरित कर दिया। नवाब ने जागे माने ज्ञात सुलेखकों, प्रकाश डालने वाले, जिल्द चढ़ाने वालों को कश्मीर और भारत के अन्य भागों से आमंत्रित किया। बाद में नवाबों द्वारा सग्रंह को लगातार समृद्ध किया जाता रहा।
नवाब फैजुल्लाह खान ने अपने पुरखों से प्राप्त की हुई पाण्डुलिपियों और दस्तावेजों को अपने महल के तोशे-खानों में रखा था। इनके बाद के नवाबों में से नवाब मुहम्मद सईद खान ने 1840 ई. के बाद इस पुस्तकालय की ओर विशेष ध्यान दिया। पुस्तकों के लिए अलग कमरे बनवाये और लकड़ी की अलमारियों में पुस्तकों को क्रमानुसार रखा गया। इसी जमाने में पुस्तकों की प्रतियां तैयार कराने के लिए कश्मीर से मिर्जा गुलाम रसूल और मिर्जा मुहम्मद हसन दोनों कैलीग्राफर भाइयों को बुलाया गया और सुलेख लिपि में प्रतियां तैयार करवाई गईं। कला एवं कैलीग्राफी के क्षेत्र में रामपुर उत्तरी भारत में एक बड़ा केंद्र बन गया।
रजा लाइब्रेरी के विचित्र एवं विशाल संग्रह में हजरत अली के हाथ का हिरन की खाल पर प्राचीन कूफी लिपि में लिखा हुआ सातवीं सदी का पूरा कुरान शरीफ दुनिया भर में बेमिसाल है। इसी तरह आठवीं सदी में कागज की कूफी लिपि में लिखा गया हजरत इमाम जाफर सादिख का लिखा हुआ कुरान शरीफ बेजोड़ है और कागज पर लिखी पाण्डुलिपियों में सबसे प्राचीन है।
रजा लाइब्रेरी के संग्रह में एक बेजोड़ चित्रित पाण्डुलिपि शाहनामा फिरदोसी है जिसे 1436 ई. में शूस्त्र (ईरान) में तैयार किया गया था। इसकी तस्वीरें भी ईरानी शैली का बेहतरीन नमूना है। सोलहवीं शताब्दी के शुरू का पंचतंत्र, कलीला व दिमना फारसी अनुवाद में सौ चित्रों के साथ है। फारसी पाण्डुलिपियों के संग्रह में अकबर के शासनकाल में तैयार करा, गए दिवाने उरफी के चित्र भी मुगल शैली के बेजोड़ नमूने हैं।
रजा लाइब्रेरी के संग्रह में संस्कृत की अमूल्य 450 पांडुलिपियां हैं, जिनका कैटलाॅग लाइब्रेरी द्वारा छापा गया है। संस्कृत भाषा की दुर्लभ पाण्डुलिपियों में प्रबोध चन्द्रिका, जो व्याकरण से संबंधित है, इसे बैजनाथ बंशी द्वारा सम्पादित एवं Ûिरिधर लाल मिश्र द्वारा लिखा गया है। इसी तरह एक पाण्डुलिपि ज्योतिष रत्न माला है जिसे श्रीपति भट ने लिखा है। इसी प्रकार एक महत्वपूर्ण एवं रोचक कृति नटराज दीप मिश्र द्वारा कर्मका.ड पर रची गई है। इसमें दृष्टि बढ़ाने के लिए कुछ मंत्रों का उल्लेख किया गया है। महिमा सूत्र एक प्रसिद्ध कृति है जो पुष्पदत्त द्वारा सम्पादित तथा मधुसूदन सरस्वती द्वारा समायोजित है।
रजा पुस्तकालय के संग्रह में हिंदी की बहुत सारी दुर्लभ पाण्डुलिपियां हैं जिनमें से अधिकांश फारसी लिपि में हैं। एक दुर्लभ पाण्डुलिपि मलिक मोहम्मद जायसी की ‘पद्मावत’ का फारसी अनुवाद नस्तालिख लिपिबद्ध है। एक और अमूल्य पाण्डुलिपि मलिक मंजन द्वारा रचित ‘मधुमालती’ है। इसके अलावा हिंदी के प्रसिद्ध कवि गुलाम नबी रसलीन बिलग्रामी की पाण्डुलिपियां ‘अंग दर्पण’ एवं ‘रस प्रबोध’ को जो 1741 ई. में फारसी लिपि में लिखी गई थी। रजा लाइब्रेरी के संग्रह में हिंदी की एक दुर्लभ पुस्तक ‘नीति प्रकाश’ उपलब्ध है।
रजा लाइब्रेरी के संग्रह में बहुत सारे पुरातात्विक अवशेष भी हैं जिनमें से खगोल विद्या से संबंधित कई यंत्र हैं जिनमें से एक सिराज दमिश्की द्वारा 1218 ई. में बनाया गया था। इस पुस्तकालय के संग्रह की बहुत सारी पाण्डुलिपियों पर बादशाहों और मनसबदारों की मोहरें, नोट्स और दस्तखत हैं, जिनमें बादशाह बाबर, अकबर, जहांगीर, अब्दुल रहीम खानखाना, सादुल्ला खां, जहांआरा बेगम, औरंगजेब, दक्खिन के अब्दुल्लाह कुतुब शाह, अली आदिलशाह, ईरान के बादशाह शाह अब्बास इत्यादि उल्लेखनीय हैं। सन् 1957 ई. में पुरानी बिल्डिंग से लाइब्रेरी को हामिद मंजिल में ला दिया गया और तब से यह इसी विशाल भवन में है। यह इमारत अत्यधिक सुंदर है।
पुस्तकालय अरबी, फ़ारसी, संस्कृत, हिन्दी, तमिल, पश्तो, उर्दू, तुर्की और अन्य भाषाओं में पांडुलिपियों का एक अनूठा संग्रह है। यहां, मगोंल, मुग़ल, तुर्कों, फ़ारसी, राजपूत, दक्खनी कांगड़ा, अवध, और कम्पनी स्कूलों से सम्बन्धित लघु चित्रों का एक समृद्ध संग्रह है और मूल्यवान लोहारू सग्रंह भी हासिल कर लिया है। पुस्तकालय में लगभग 17,000 पांडुलिपियों का एक संग्रह है, 60,000 मुद्रित पुस्तकें, लगभग 5000 लघु चित्रों, 3000 इस्लामी के दुर्लभ नमूनों, मुद्रित पुस्तकों, नवाबी पुराअवशेषों सदियों पुराने गोलीय उपकरणों के अलावा प्राचीन लगभग 1500 दुर्लभ सोने, और तांबे के सिक्कों के आंकड़ों 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व से 19वीं शताब्दी तक और पुस्तकालय मुग़ल पुराने दुर्लभ पुराअवशेषों से बहुत समृद्ध है। यहां तमिल, तेलुगू, कन्नड़ और मलयालम भाषाओं में ताड़ के पत्तों पर हस्तलिपियों का भी एक संग्रह है।
रामपुर रज़ा पुस्तकालय दुर्लभ पांडुलिपियों में विभिन्न स्कूलों के 5000 लघु चित्रों जैसे, मगोंल, मुगल, तुर्की, फ़ारसी, राजपूत, दक्खनी, कागंड़ा, अवध, पहाड़ी किशनगढ़ी, राजस्थानी, अवध और कम्पनी आंकडों का आधार 14 से 19वीं शताब्दी का एक उत्कृष्ट संग्रह है। दुर्लभ बडे़ आकार की सचित्र पांडुलिपियों के अलावा जमीउत-तवारीह जो रशिदुद-दीन फै़ज़ उल्ला के द्वारा रचित है। वह एक प्रतिष्ठित विद्वान, वैज्ञानिक, अपने समय के चिकित्सक और मध्य एशिया के ग़ाज़न सुलेमान के प्रधानमंत्री थे। पुस्तक को हिज़री 977 (सन 1569-70) में संकलित किया गया। इसमें मगोंल जगजातियों के जीवन और समय का 84 सचित्र चित्रण किया गया है।
रामपुर रज़ा पुस्तकालय दुनिया की एक शानदार, सांस्कृतिक विरासत और ज्ञान का खजागा रामपुर राज्य के उत्तरोगार नवाबों द्वारा निर्मित अद्वितीय भण्डार हैं। यह बहुत दुर्लभ और बहुमूल्य पांडुलिपियों,ऐतिहासिक दस्तावेज़ों, इस्लामी सुलेमान के नमूनों, लघुचित्रों, गोलीय उपकरणों, अरबी और फारसी भाषा में दुर्लभ सचित्र काम के अलावा 60,000 मुद्रित पुस्तकें संग्रह में शामिल हैं।
अब पुस्तकालय एक राष्ट्रीय महत्व की संस्था के रूप में भारत के सांस्कृतिक विभाग के अधीन एक स्वायत्त संस्था के रूप में हैं और पूरी तरह भारत सरकार की केंद्र सरकार द्वारा वित्त पोषित है।