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rajahmundry social reform association in hindi was founded by राजमुंदरी सोशल रिफॉर्म एसोसिएशन

राजमुंदरी सोशल रिफॉर्म एसोसिएशन की स्थापना कब और किसने की rajahmundry social reform association in hindi was founded by ?

प्रश्न: राजमुंदरी सोशल रिर्पोम एसोसिएशन
उत्तर: 1881 में वीरे सलिंगम पंतुलु ने तेलगु प्रदेश में ब्रह्म समाज की एक शाखा राजमुंदरी सोशल रिर्पोम एसोसिएशन की स्थापना की जिसने सामाजिक क्षेत्र में सराहनीय कार्य किए।

प्रश्न: ब्रह्म समाज
उत्तर: यह हिन्दु धर्म में पहला सुधार आंदोलन था। इसका प्रर्वतक राजा राममोहन राय था इसकी स्थापना 1828-29 में कलकत्ता में की।
प्रश्न: साधारण ब्रह्म समाज
उत्तर: केशव चन्द्र सेन अनुयायियों द्वारा 1878 में साधारण ब्रह्मसमाज की स्थापना की गई। जिसके प्रमुख नेता थे – आनन्द बोस (बोस), शिवनाथ शास्त्री, विपिन चन्द्र पाल, द्वारिका नाथ गांगुली।
प्रश्न: शिवनाथ शास्त्री
उत्तर: शिवनाथ शास्त्री एक प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी एवं समाज सुधारक था। इन्होंने अन्य लोगों के साथ मिलकर 1878 में साधारण ब्रह्म समाज की स्थापना की।

प्रश्न: 20वीं सदी के दौरान बाल विवाह को रोकने तथा महिलाओं को अधिकार देने के लिए कौन-कौनसे कानून बनाए गए?
उत्तर: हरविलास शारदा द्वारा बाल विवाह निषेध अधिनियम शारदा एक्ट 1930 पारित करवाया गया। जिसे उन्हीं के नाम से शारदा एक्ट कहा जाता है।
ऽ हिन्दू विवाह अधिनियम- (1955) (15 वर्ष की लड़की -18 वर्ष का लड़का)।
ऽ बाल विवाह निरोधक संशोधित अधिनियम- (1978) (18 वर्ष की लड़की – 21 वर्ष का लड़का)
ऽ हिन्दु स्त्री सम्पत्ति अधिकार अधिनियम- (1937)।
ऽ अलग रहने व भरण पोषण हेतु स्त्रियों का अधिकार अधिनियम- (1946)।
ऽ विशेष विवाह अधिनियम- (1954)।
ऽ अस्पृश्यता अधिकार अधिनियम- (1955)
ऽ संशोधित नागरिक अधिकार सुरक्षा नियम- (1976)
ऽ हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम- (1956)
ऽ हिन्दू दत्तक ग्रहण एवं भरण पोषण अधिनियम- (1956)
ऽ महिलाओं का अनैतिक व्यापार निरोधक अधिनियम- (1956)
दहेज निरोधक अधिनियम- (1961)

भाषा एवं साहित्य
भाषा एवं संस्कृति एक-दूसरे से इस तरह जुड़ी हुई हैं कि उन्हें उस जुड़ाव से अलगाना एक असंभव कार्य है। स्पष्ट है वे अविच्छिन्न हैं। तथापि दो भिन्न अवधारणाएं होते हुए भी वे एक-दूसरे को समृद्ध करती हैं, यह निर्विवाद है। प्रत्येक भाषा एक सांस्कृतिक इकाई की उपज होती है। किंतु कालांतर में प्रत्येक भाषा अपनी एक अलग संस्कृति का निर्माण करती चलती है।
भाषा और संस्कृति राज्य और सभ्यताओं की तरह जड़ और मरणशील नहीं होते। राज्य राजनीतिक कारणों से समाप्त हो सकते हैं या भौगोलिक विस्तार पा सकते हैं, ठीक यही स्थिति सभ्यताओं की है कि सभ्यताएं प्राकृतिक तथा मानव निर्मित आक्रोश से समाप्त हो सकती हैं किंतु भाषाएं एवं संस्कृतियां जो लोक में गहरे जमीं होती हैं अपने रूपों में विकास या रूपांतरण कर सकती हैं किंतु समूल रूप से नष्ट नहीं होतीं।
संस्कृति या संस्कृतियों से अनेक भाषाओं का विकास होता है। इस आधार पर हम कह सकते हैं कि संस्कृतियों की अनेक भाषाएं होती हैं। यह निर्विवाद है कि भाषा संस्कृति की महत्वपूर्ण संवाहिका है और इसी बिंदु से भाषा और संस्कृति के अंतर्संबंधों की पड़ताल की जा सकती है।
कुल मिलाकर भाषा संस्कृति की ऐसी इकाई है जो स्वयं में, अपने भाषिक निर्माणों में, एक किस्म की रचनात्मकता को प्रश्रय देती है। संस्कृति का यही सकारात्मक पक्ष भाषा को संस्कृति के साथ एकमेक किए रहता है।
भारत की साहित्यिक परंपरा 4000 वर्षों से भी अधिक पुरानी है और इस दौरान संस्कृत की प्रधानता थी पहले वैदिक और बाद में शास्त्रीय रूप में। करीब चार हजार वर्ष पहले, हड़प्पा के निवासी लिखना जागते थे, लेकिन दुर्भाग्यवश उस लिपि को अभी तक पढ़ा नहीं जा सका है। इसीलिए उनकी भाषा के बारे में हम कुछ नहीं जागते। पाणिनी के व्याकरण ने संस्कृत को जब तक मानकीकृत किया तब तक (लगभग 5वीं ईसा पूर्व), अन्य भाषाएं विकसित हो चुकी थीं आम आदमी की भाषा, प्राकृत या मध्य भारतीय-आर्य भाषाएं (हालांकि ये शब्द बाद में प्रचलन में आए)। प्राकृत भाषाएं भौगोलिक और क्षेत्रीय कारकों पर आधारित विभिन्न स्थानीय बोलियों में लिपिबद्ध की गईं। मध्य भारतीय-आर्य भाषाओं को तीन चरणों में बांटा गया है, जो 500 ई.पू. से 1000 ई. तक का है। पहले चरण में पाली है और अशोक के शिलालेख हैं। अपने संकुचित अर्थ में प्राकृत दूसरे चरण में लागू होती है और इसकी कई बोलियां हैं महाराष्ट्री,शौरसेनी, मगधी, अर्धमगधी। तीसरे चरण में अपभं्रश है।
आधुनिक भारतीय-आर्य भाषाओं का उदय 1000 ई. के बाद हुआ, जब क्षेत्रीय भाषाओं का विभाजन एक निश्चित स्वरूप अख्तियार कर रहा था। यही स्वरूप आज भी विद्यमान है। इन भाषाओं का प्रमुख समूह उत्तर भारत से मध्य भारत तक फैला है। इन भाषाओं में साहित्यिक विकास अलग-अलग समयों पर हुआ। मुस्लिम प्रभाव से परे आधुनिक भारतीय-आर्य भाषाएं भी उसी तर्ज पर विकसित हुईं। मध्य कालीन भाषाओं के विपरीत इन आधुनिक भाषाओं की एक अलग विशेषता थी तत्सम शब्दों का व्यापक प्रयोग 18वीं शताब्दी के बाद अंग्रेजी हुकूमत और यूरोपीय संपर्क के प्रभाव से और मुद्रण के आविष्कार से साहित्यिक विषयों का क्षेत्र विस्तृत हुआ और उसमें आधुनिकता आई। यही प्रक्रिया आज भी चली आ रही है।
द्रविड़ भाषाओं में तमिल, तेलुगू, कन्नड़ और मलयालम हैं, जिनमें साहित्यिक विधा के लिए सबसे पहले तमिल का विकास हुआ। विद्वानों के अनुसार द्रविड़ भाषाएं भारतीय-आर्य भाषाओं से पहले अस्तित्व में आईं। इसकी तीन शाखाएं थीं (i) बलूचिस्तान में बोली जागे वाली ‘ब्रहूई’ की उत्तरी शाखा, बंगाल और ओडिशा में बोली जागे वाली कुरुख और मल्तो; (ii) तेलुगू और कुई, खोंड इत्यादि जैसी देसी बोलियों सहित केंद्रीय शाखा, तथा; (iii) तमिल, कन्नड़ और मलयालम के अलावा तुलु, बडगा, टोडा, कोडागु इत्यादि जैसी देसी बोलियों सहित दक्षिणी शाखा। तमिल भाषा संस्कृत या प्राकृत से बिना किसी प्रतियोगिता के विकसित हुई क्योंकि तमिल क्षेत्र आर्यों के विस्तार के केंद्र से काफी दूर था। अन्य तीनों द्रविड़ भाषाओं की तुलना में तमिल पर ही संस्कृत का सबसे कम प्रभाव पड़ा।
8वीं अनुसूची की भाषाएं
भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में (2011-12 में) 22 भाषाएं सूचीबद्ध की गईं। ये हैं असमिया, बंगाली, बोडो, डोगरी, गुजराती, हिंदी, कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, मैथिली, मलयालम, मणिपुरी, मराठी, नेपाली, ओडिया पंजाबी, संस्कृत, संथाली, सिंधी, तमिल, तेलुगू एवं उर्दू।

संस्कृत और अन्य भारतीय-आर्य भाषाओं के सबसे कम शब्द इसमें हैं। कन्नड़ और तेलुगू के विकास में बाधा आई क्योंकि उनका क्षेत्र आंध्र साम्राज्य के अधीन था, जिसकी प्रशासनिक भाषा प्राकृत थी। लेकिन, 9-10वीं सदी तक दोनों भाषाओं में पर्याप्त साहित्यिक कार्य किए गए।
दो अन्य विभिन्न भाषाएं, निषाद या आॅस्ट्रिक (सबसे पुरानी और देशज) और किरात या हिंद-चीन 3000 से भी अधिक वर्षों से विद्यमान थीं। भारत में कोई आम भाषा नहीं रही। जब संस्कृत की प्रमुखता थी और उसका व्यापक प्रयोग होता था, तब भी यह सिर्फ विद्वानों एवं शिक्षितों की भाषा थी। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद आम भाषा का सवाल पैदा हुआ और बहुत ही कम अंतर से हिन्दी को भारत की राष्ट्रीय भाषा बनाने का गिर्णय लिया गया।
भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में 22 भाषाएं सूचीबद्ध की गई हैं। साहित्य अकादमी ने सांवैधानिक रूप से मान्यताप्राप्त भाषाओं के अतिरिक्त अंग्रेजी, डोगरी, मैथिली और राजस्थानी को अपने क्रियाकलापों के लिए अनुमोदन दे रखा है। भारतीय भाषाएं, उनके विकास, लेखक व उनकी कृतियों की विस्तारपूर्वक व्याख्या आगे की गई है