जाने quantasome concept in hindi , क्यान्टोसोम परिकल्पना क्या है Quantosome definition क्वांटासोम ?
क्यान्टोसोम परिकल्पना (Quantosome concept)
पार्क तथा पॉन (Park and Pon, 1963) ने अपने अध्ययनों के आधार पर यह बताया कि थाइलेकॉइड की आन्तर सतह पर सूक्ष्म, गोलाकार कणिकाएँ पायी जाती हैं, जिन्हें ‘क्वान्टोसोम’ (quantosome) कहते हैं। प्रत्येक क्वान्टोसोम 185 A लम्बा, 155 A चौड़ा तथा 100 A मोटा होता है। जिसका आण्विक भार 2×10′ होता है। ये थाइलेकॉइड कला पर अनियमित रूप से बिखरी रहती हैं । इन विलगित ( Isolated) कणों में थाइलेकाइड कला का हिस्सा भी होता है । प्रत्येक क्वान्टोसोम लगभग 230 क्लोरोफिल अणु तथा अन्य प्रकाशशोषी वर्णक व आवश्यक एन्जाइम्स पाये जाते हैं। इनके अनुसार ‘क्वांटोसोम’ प्रकाश संश्लेषण की क्रिया के लिए संरचनात्मक एवम् कार्यात्मक इकाइयाँ हैं क्योंकि प्रकाश रासायनिक अभिक्रिया (Phochemical reactions) का केन्द्र इन्हीं में स्थित होता है।
चित्र 2.31 B : क्लोरोप्लास्ट की आणविक संरचना
सॉसर तथा केल्विन (Saucer & Calvin, 1962) के अनुसार क्वांटोसोम चार उपइकाइयों (subunits) से मिलकर बनता है। इसमें क्लोरोफिल पाया जाता है ।
कोशिकांग एवं केन्द्रकीय पदार्थ
ब्रेन्टन तथा पार्क (Branton & Park, 1967) ने फ्रीज काट तकनीक सहायता से प्लास्टिड्स में क्वांटोसोम के आकार, प्रकृति तथा थाइलेकॉइड कला पर उनकी व्यवस्था के आधार पर तीन प्रकार की कलाओं के बारे में बताया-
(1) क्वान्टोसोम कण युक्त कलाएँ ।
(2) ये कलाएँ जिन पर 110 A° आकार के छोटे कण पाये जाते हैं ।
(3) खुरदरी सतह वाली कलाएँ जिन पर कण बहुत कम या अनुपस्थित होते हैं ।
उपरोक्त अध्ययनों द्वारा यह स्पष्ट हो चुका है कि क्वान्टोसोम्स तथा सूक्ष्म कण दोनों ही थाइलेकॉइड कला के अन्दर पाये जाते हैं। प्रकाश संश्लेषण की प्रकाशीय रासायनिक अभिक्रिया का केन्द्र बिन्दु क्वान्टोसोम्स ही होते हैं। इसके लिए इनमें लगभग 230 क्लोरोफिल अणु, अन्य वर्णक जैसे कैरोटिनॉइड्स तथा प्रकाश संश्लेषी उपकरण के अन्य आवश्यक घटक उपस्थित होते हैं । अब यह पूर्ण रूपेण ज्ञात हो चुका है कि सम्पूर्ण प्रकाशीय अभिक्रिया में दो वर्णक तंत्र (Pigment systems) काम करते हैं वर्णक तंत्र-I व वर्णक तंत्र – II ( सहायक तंत्र ) । वर्णक तंत्र-1 में क्लोरोफिल-a व वर्णक P 700 आवश्यक रूप से होता है । वर्णक तंत्र – II में कैरोटिनॉइड्स, फाइकोबिलिन, क्लोरोफिल a तथा b प्रकाशीय ऊर्जा के प्रारम्भिक अवशोषक होते हैं, अभिक्रिया केन्द्र में क्लोरोफिल – a कैरोटिनॉइड के कुछ अणु आवश्यक रूप से मौजूद रहते हैं। वर्णक तंत्र – II में पाये जाने वाले वर्णक प्रकाशीय ऊर्जा को अवशोषित कर अभिक्रिया या केन्द्र के मुख्य वर्णक तंत्र-I को स्थानान्तरित कर देते हैं। वर्णक तंत्र- के वर्णकों द्वारा अवशोषित ऊर्जा भी सम्मिलित होकर प्रकाशीय अभिक्रिया प्रारम्भ करती हैं।
रासायनिक संघटन (Chemical composition)
शुष्क भार के आधार पर क्लोरोप्लास्ट्स का रासायनिक संघटन निम्नानुसार होता है- (1) प्रोटीन्स (Proteins) — 30 – 55% प्रोटीन्स पाये जाते हैं। इनमें से 80% अघुलनशील होते हैं तथा लिपिड्स से मिलकर इकाई कलाएँ बनाते हैं। बचे हुए 20% प्रोटीन्स घुलनशील हैं। तथा एन्जाइम्स के रूप में पाये जाते हैं।
(2) लिपिड्स (lipids) – 20-30% लिपिड्स होते हैं। इनमें 50% वसा, 20% स्टीरोल्स, 16% मोम तथा 7 से 20% फास्फोलिपिड्स होते हैं । फास्फोलिपिड्स मुख्य रूप से पटलिकाएँ तथा प्लास्टिड भित्ति बनाते हैं ।
(3) क्लोरोफिल (a + b) (chlorophylls a+b) — ये शुष्कभार का केवल 9% होते हैं। इनमें Chl-a की मात्रा 75% तथा Chl-b 25% होती है। क्लोरोफिल की खोज सन् 1915 में विल्सटेटियर (Willstatier) ने की । प्रत्येक क्लोरोफिल अणु असममित होता है । जिसमें जलग्राही शीर्ष चार पायरोलिक केन्द्रकों के Mg अणु के चारों ओर स्थित होने से बनता है तथा एक लम्बी जल विरोधी श्रृंखला (Phytotail) होती है जो कि एक रिंग द्वारा जुड़ी रहती है। Chl-a का रासायनिक सूत्र CHO, N, Mg Chl-b का रासायनिक सूत्र- C55H0OgNqMg होता है ।
55 Chl-a में मिथाइल समूह (CH) पाया जाता है, जबकि Chl-b में CH, समूह के स्थान पर ऐल्डिहाइड (= CHO) समूह होता है।
(4) कैरोटिनॉइड्स (Carotenoids) (4.5%) ये हाइड्रोकार्बन होते हैं । तथा दो प्रकार के हो सकते हैं (a) कैरोटीन्स (carotenes) – C40H56. (b) जैन्थोफिल्स (Xanthophylls) C40H5gO2। कैरोटीन्स 25% नारंगी रंग के जबकि जैन्थाफिल्स 75%, पीले रंग के होते हैं ।
(5) RNA – शुष्क भार का 3-7% RNA पाया जाता है। क्लोरोप्लास्ट में RNA राइबोसोम्स में पाये जाते हैं। RNA दो प्रकार के होते हैं। 24S rRNA तथा 16S rRNA इनके अलावा क्लोरोप्लास्ट में अमीनों- एसाइल tRNA, अमीनों एसाइल tRNA सिन्थटेज तथा मिथायोनाइल
– tRNA पाये जाते हैं ।
(6) DNA – 0.5% DNA पाया जाता है। रिस तथा प्लॉट (Ris and Plaut. 1962) ने सर्वप्रथम क्लैमाइडोमोनास के क्लोरोप्लास्ट में DNA की उपस्थिति बतायी। क्लोरोप्लास्ट में पाया जाने वाला DNA जीवाणु DNA के समान वृत्ताकार नहीं होता। अभी तक क्लोरोप्लास्ट से केवल 150 लम्बा DNA का टुकड़ा अलग किया गया है (Wood cock & F. Morgan, 1968) यह DNA कोशिकाद्रव्यी वंशागति में भाग लेता है।
इनके अलावा क्लोरोप्लास्ट में Cytochrome – f – 0.1%, Vit-K 0.004%, Vit-E-0.008% तथा अन्य खनिज, जैसे- Mg, Fe, C, Mn, Zn तथा P सूक्ष्म मात्रा में पाये जाते हैं।
राइबोसोम्स-क्लोरोप्लास्ट में पाये जाने वाले राइबोसोम्स छोटे होते हैं। ये 70s प्रकार के होते हैं। इनमें 23s व 16s RNAs पाये जाते हैं। मटर के नवोद्भिद् के क्लोरोप्लास्ट में 62s प्रकार के राइबोसोम्स खोजे गये हैं ये दो उपइकाइयाँ 46s व 32s से मिलकर बनते हैं। राइबोसोम्स प्रोटीन संश्लेषण हेतु आपस में जुड़कर पॉलीसोम्स (Polysomes ) बनाते हैं । विलगित क्लोरोप्लास्ट में DNA, RNA तथा प्रोटीन संश्लेषण की क्षमता होती है।
कार्य (Functions)
(1) प्रकाश संश्लेषण (Photosynthesis ) – सभी प्लास्टिड्स में से क्लोरोप्लास्ट का कार्य सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि ये ही वे कोशिकांग हैं जो कि प्रकाशसंश्लेषण की क्रिया के केन्द्र हैं । इस क्रिया के दौरान क्लोरोप्लास्ट में उपस्थित क्लोरोफिल अणु सूर्य ऊर्जा को फोटोन्स (Photons) के रूप में अवशोषित करते हैं तथा रासायनिक ऊर्जा में परिवर्तित कर देते हैं । ये रासायनिक ऊर्जा नये संश्लेषित होने वाले खाद्य पदार्थों में ( 6-C शर्कराओं) रासायनिक बंधों में संचित हो जाती है। इस क्रिया में जल तथा कार्बनडाइऑक्साइड उपयोग में लिए जाते हैं। रासायनिक बंधों में संचित ऊर्जा बाद में विभिन्न प्रकार के बड़े अणुओं, जैसे- पॉलीसेकेराइड्स, लिपिड्स, प्रोटीन्स तथा न्यूक्लिक अम्लों को बनाने के काम में आती है ।
इस क्रिया में उत्पाद स्वरूप जीवनदायिनी ऑक्सीजन (O2) निकलती है जो सभी जीवों को जीवित रखती है। इसके अतिरिक्त CO2 के प्रयुक्त होने के कारण वातावरण में CO, की मात्रा को स्थिर रखने में सहायता मिलती है।
(2) भोज्य पदार्थों का संचय (Storage of food materials ) — विभिन्न प्रकार के अवर्णी लवकों का मुख्य कार्य भोज्य पदार्थों का संचय करना है। ये संचित भोज्य पदार्थ बीज अंकुरण व परिवर्धन के समय काम आते हैं ।
(3) प्रोटीन संश्लेषण (Protein synthesis ) – क्योंकि क्लोरोप्लास्ट में राइबोसोम्स तथा स्वयं का DNA पाया जाता है। यह DNA mRNA, rRNA तथा t-RNA को कोडित करता है तथा राइबोसोम्स में संरचनात्मक प्रोटीन्स व राइबोसोमल प्रोटीन का संश्लेषण होता है ।
(4) कोशिका द्रव्यी वंशागति ( cytoplasmic inheritance) – माइटोकॉन्ड्रिया के समान क्लोरोप्लास्ट्स में भी जीन्स (DNA) पाये जाते हैं। ये कोशिकांग वंशागत सूचनाओं को एक कोशिका से दूसरी कोशिका में पहुँचाते हैं। कोशिका विभाजन के दौरान प्लास्टिड्स सीधे ही पुत्री कोशिका में । उदाहरण-मिराबिलिस (Mirabilis) के प्लास्टिडस् की वंशागति, कोशिका स्थानान्तरित हो जाते
द्रव्यी वंशागति का उदाहरण है ।
(5) उत्प्रेरण (Mutation ) – कई बार क्लोरोप्लास्ट में पाये जाने वाले जीन (DNA) उत्प्रेरित हो जाते हैं। इसे प्लास्टिड उत्प्रेरण (Plastid mutation) कहते हैं जिसके कारण प्लास्टिड्स के कार्य बदल जाते हैं। प्लास्टिड्स में पाये जाने वाले जीन ‘प्लास्टोजीन’ (Plastogenes) कहलाते हैं ।
(6) क्लोरोप्लास्ट में क्रैब्स चक्र (श्वसन क्रिया) तथा वसा अम्ल संश्लेषण में काम आने वाले एन्जाइम्स पाये जाते हैं ।
प्लास्टिड्स की उत्पत्ति एवम् परिवर्धन (Origin & Development of Plastids)
प्लास्टिड्स हमेशा पूर्ववर्तीकायों (pre existing bodies) जिन्हें प्रोप्लास्टिड्स कहते हैं, उनसे बनते हैं। प्रोप्लास्टिड्स छोटी, गोलाकार, दोहरी झिल्ली आबद्ध काय हैं, जिनका व्यास लगभग 0.5u होता है। इनमें घना मैट्रिक्स भरा होता है । जब इन कायों को प्रकाश उपलब्ध होता है तो इनके आकार में वृद्धि होती है (1u diameter) तथा इनकी आन्तरिक कला कई स्थानों पर अंतर्वलित (invaginate) होकर मैट्रिक्स में छोटी-छोटी पुटिकाएँ बनाती हैं। ये पुटिकाएँ संगलित (fuse) होकर वयस्क प्लास्टिड कलाएँ थाइलेकॉइड कहलाती हैं । क्लोरोप्लास्ट में थाइलेकॉइड कुछ क्षेत्रों में ढेर के रूप में व्यवस्थित होकर ग्रेना बनाती हैं। कुछ थाइलेकॉइड आपस में एक-दूसरे से नलिकाओं द्वारा जुड़ जाती हैं। नलिकाओं को इंटर ग्रेनल थाइलेकॉइड अथवा स्ट्रोमा लैमिली कहते हैं ।
अन्धेरे में लैमिली फिर से पुटिकाओं में टूट जाती हैं, तथा विपरीत परिवर्तन होने शुरू हो जाते हैं। यह क्रिया इटिओलेशन (etiolation) कहलाती है जिसके परिणामस्वरूप झिल्लियों का विखण्डन हो जाता है ।
शैवाल, फर्न तथा एकबीजपत्री पौधों में परिपक्व प्लास्टिड्स विभाजित होकर नये प्लास्टिड्स बनाते हैं। असामान्य अवस्थाओं में परिपक्व प्लास्टिड्स से मुकुलन द्वारा भी नये प्लास्टिडस बनते हैं।