Protein in hindi परिभाषा , प्रकार , प्रोटिन के कार्य , संरचना , पॉलीपेप्टाइड , लिस्ट , फायदे , प्रोटीन क्या है , sabse jyada protein kisme hota hai hindi , प्रोटीन युक्त आहार लिस्ट , sabse jyada protein kis dal me paya jata hai टाइप्स ऑफ़ प्रोटीन ?
प्रोटीन (Protein) : प्रोटिन अमीनो अम्ल का बहुलक है जो पेप्टाइड बन्धो (bonds) द्वारा श्रृंखला में जुडी रहती है , अनेक पेप्टाइड बंध बनने के कारण प्रोटीन को पोलीपेप्टाइड भी कहते है | अमीनो अम्लो की प्रकृति के आधार पर प्रोटीन दो प्रकार के होते है –
- समबहुलक प्रोटीन : ये प्रोटीन एक ही प्रकार के अमीनो अम्ल से निर्मित होती है |
- विषम बहुलक प्रोटीन : ये प्रोटीन भिन्न भिन्न अमीनो अम्ल के संयोजन से बनती है |
उपलब्धता के आधार पर अमीनो अम्ल दो प्रकार के होते है –
- अनानिवार्य : ये हमारे शरीर में निर्मित होती है , इन्हें बाहर से ग्रहण करने की आवश्यकता नहीं होती है |
- अनिवार्य : ये हमारे शरीर में निर्मित नहीं होती है , इनकी आपूर्ति खाद्य पदार्थो द्वारा होती है |
प्रोटीन के कार्य : प्रोटीन शरीर की वृद्धि के आवश्यक है |
प्रोटीन पोषक पदार्थो को कोशिका झिल्ली से अभिगमन में सहायक होते है |
कुछ प्रोटीन संक्रामक जीवों से सुरक्षा करती है |
एम्जाइम प्रोटीन के बने होते है जो उपापचय में सहायक है
प्रोटीन की संरचना : अमीनो अम्लों के संगठन व व्यवस्था के आधार पर प्रोटीन की संरचना चार प्रकार की होती है –
- प्राथमिक संरचना : इस संरचना में पेप्टाइड बंध के अतिरिक्त अन्य कोई बन्ध नहीं होता है , इसमें एक पॉलीपेप्टाइड श्रृंखला यह दर्शाती है की किसी प्रोटीन विशेष में अमीनों अम्ल किस अनुक्रम में जुड़े है |
- द्वितीयक संरचना : इस संरचना में पॉलीपेप्टाइड श्रृंखला कुकलित होकर लड़ी के रूप में व्यवस्थित होती है ,यह घुमती हुई सीडी की तरह प्रतीत होती है , इसमें पेप्टाइड बंध के अतिरिक्त हाइड्रोजन बंध भी पाये जाते है | कुकलित कुण्डलन के कारण अमीनों अम्ल एक दूसरे के पास / समीप आ जाते है तथा श्रृंखला नियमबद्ध पुनरावर्ती के रूप में पाये जाते है |
- तृतीयक संरचना : इस संरचना में पॉलीपेप्टाइड श्रृंखला मुड़कर कुंडलित होकर अपने ऊपर ही खोखले गोले निर्माण कर लेती है तथा त्रिआयामी संरचना प्रकट करती है , इसमें हाइड्रोजन बन्ध , डाई सल्फाइड बंध व आयनिक बंध भी पाये जाते है जैविक क्रिया कलापों के लिए प्रोटीन की तृतीयक संरचना आवश्यक है |
- चतुष्क संरचना : इस संरचना में एक से अधिक पॉलीपेप्टाइड श्रृंखलाए होती है , जो एक दूसरे के सापेक्ष व्यवस्थित होती है , जैसे – मनुष्य के हिमोग्लोबिन प्रोटीन |
पॉलीपेपटाइड : सजीव उत्तकों में पॉलीसेकेराइड भी वृहत जैव अणुओ के रूप में मिलते है , पोली सेकेराइड को कार्बोहाइड्रेट या शर्करा भी कहते है , ये मोनोसेकेराइड जैसे ग्लूकोज , गेलेक्टोस , राइबोज , लोक्टोज , मोनो फ्रक्टोज आदि की एक लम्बी श्रृंखला के रूप में जुड़ने से बनती है जैसे – सेलुलोज एक पोलीसेकेराइड है ,
जो ग्लूकोज नामक मोनो सेकेराइड से बना होता है | प्राणियों में ग्लूकोज के बहुलक को ग्लाइकोजन कहते है ये खाद्य भण्डार के रूप में संग्रहित होते है , मोनोसेकेराइड की प्रकृति के आधार पर पॉलीसेकेराइड है –
ये दो प्रकार के होते है –
- समबहुलक पॉली सेकेराइड : ऐसे पोली सेकेराइड जो एक ही प्रकार के मोनो सेकेराइड से बने हो जैसे सेलुलोज आदि |
- विषमबहुलक पॉलीसेकेराइड : ऐसे पोलीसेकेराइड जो भिन्न भिन्न मोनो सेकेराइड अणुओं से बना हो जैसे स्टार्च आदि |
मंड (स्टार्च) की संरचना कुण्डलीदार होती है जिसमें आयोडीन अणु जुड़े रहते है जिससे मंड का रंग नीला होता है |
प्रोटीन : प्रोटीन शब्द “बर्जिलियस” ने दिया था। प्रोटीन एमिनो अम्लो के बहुलक होते है। इन बहुलको में Z-एमीनो अम्ल एक दुसरे के साथ पेप्टाइड (CO-NH) द्वारा जुड़े रहते है। रुबिस्को सर्वाधिक पायी जाने वाली प्रोटीन है।
प्रोटीन एक विषमबहुलक होता है , समबहुलक नहीं। कोलेजन प्रोटीन जन्तु जगत में सर्वाधिक पाई जाती है और रुबिस्को (राइबुलोस डाइफास्फेट कार्बोक्सीलेज ऑक्सीजिनेज) जैव मण्डल में सर्वाधिक पाई जाने वाली प्रोटीन है।
प्रोटिन सर्वाधिक मात्रा में पायी जाती है। ये कोशिका के शुष्क द्रव्यमान का 50% घटक होते है। मानव में कुल 5000000 (पचास लाख) और E.coli में 3000 प्रकार की प्रोटीन पाई जाती है। एड्रीनोकोर्टीकोट्रोपिक हार्मोन (ACTH) , जिसका अणुभार 4500 है , सबसे छोटी प्रोटीन है। प्रोटीन जल में कम विलेय होती है और इसके साथ कोलाइड जटिल बनाते है। एक पोलीपेप्टाइड श्रृंखला वाली प्रोटीन को मोनोमेरिक प्रोटीन कहते है। उदाहरण : राइबोन्यूक्लिएस और मायोग्लोबिन जबकि दो या अधिक पोलीपेप्टाइड श्रृंखला वाले प्रोटीन ओलिगोमेरिक प्रोटीन कहलाते है। उदाहरण : इन्सुलिन।
प्रोटीन जो सभी प्रकार के एमीनो अम्ल सप्लाई करने योग्य होती है (एसेंशियल तथा सेमी-इंडीस्पेंसबल) , complete proteins तथा first class protein कहलाती है।
जंतुओं में पाई जाने वाली प्रोटीन सम्पूर्ण प्रोटीन होती है जबकि पादप प्रोटीन में एक या अधिक आवश्यक अम्लों की कमी होती है। आवश्यकता से अधिक एमिनों अम्लों का डीएमीनेशन हो जाता है और कार्बोहाइड्रेट , वसा में परिवर्तित हो जाते है।
प्रोटीन के गुणधर्म
1. संख्या : सभी जीवों में कई हजारों प्रकार के प्रोटीन होते है , ये विभिन्न प्रकार निम्न कारणों से सम्भव होते है –
- पोलीपेप्टाइड श्रृंखला की लम्बाई में विविधता
- प्रोटीन में पोलीपेप्टाइडो की संख्या और प्रकार
- पोलीपेप्टाइड श्रृंखला में एमिनों अम्लों के innumerable arrangement की सम्भावना।
एक पोलीपेप्टाइड श्रृंखला जिसमे केवल 40 एमिनो अम्ल लम्बाई में व्यवस्थित है उसमे 2040 तक अमीनों अम्ल क्रम की व्यवस्थाएं सम्भव होती है जिनमे से प्रत्येक व्यवस्था एक पृथक प्रोटीन समान कार्य करती है।
2. विशेषता : प्रत्येक जीव विशेष प्रोटीन रखता है , कुछ प्रोटीन सम्बंधित प्रजाति से मिलती जुलती होती है और कुछ प्रोटीन एक समूह में समान होती है। प्रोटीन की समानता और असमानता के आधार पर दो प्रजातियों की समीपता का पता लगने के लिए serum precipitation test किया जाता है।
3. अणुभार : प्रोटीन का निम्नतम अणुभार ACTH या एड्रीनोकोर्टिकोट्रोपिक हार्मोन (4500 डाल्टन) के बराबर होता है। बोवाइन इन्सुलिन का अणुभार 5733 , सर्वाधिक अणुभार पाइरुवेट डीहाइड्रोजिनेज का होता है , इसका अणुभार 4,600,000 डाल्टन होता है।
4. विलेयता : कुछ प्रोटीन जल में अविलेय होती है और कुछ इसके साथ कोलाइडी विलयन बनाती है। इनकी कोलाइड प्रकृति प्रोटीन के कई बड़े आकार के अणुओं के कारण होती है। हिस्टोन प्रोटीन जल में घुलनशील होती है।
5. उभयआयनिक प्रकृति : एक प्रोटीन अणु के एमिनो अम्लों के R-समूह में संख्या में कई धनात्मक और ऋणात्मक आवेश होते है।
6. क्रियाशीलता : एक प्रोटीन अणु में संख्या में कई क्रियात्मक समूह होते है।
7. डीनेचुरेशन : यह त्रिविमीय आयाम की हानि होती है यह स्थायी या अस्थायी हो सकता है। इसके कारक निम्न है –
- Ultraviolet विकिरण
- ऊष्मा और अवरक्त विकिरण
- प्रबल अम्ल
- प्रबल क्षार
- लवणों की अधिक सांद्रता
- भारी धातु
रीनेचुरेशन : जब तक की प्रोटीन का आकाशिक विन्यास पूर्णतया नहीं टूटता , तब तक टूटे हुए या अवलयित प्रोटीन अणु वापस वलयित होकर वास्तविक स्थिति में आ सकते है , इसे रीनेचुरेशन कहते है।
प्रोटीन की संरचना
प्रोटीन अणु संरचनात्मक संगठन के विभिन्न स्तर दर्शाते है। ये प्राथमिक , द्वितीयक , तृतीयक और चतुर्थक स्तर , संगठन स्तर है।
1. प्राथमिक संरचना : ये ट्रांसलेशन और ट्रांसक्रिप्शन से बनी प्रोटीन की आधारभूत संरचना को व्यक्त करते है। इसका क्रम कोशिका के केन्द्रक के डीएनए में न्युक्लियोटाइड त्रिक के क्रम से निश्चित किया जाता है परन्तु एक कोशिका में पोलीपेप्टाइड , क्रियात्मक नहीं होते है। इन्हें निश्चित परिवर्तित होकर क्रियात्मक होना होता है। (post transtitional changes ) ठीक तरह से कार्य के लिए इन्हें त्रिविमीय रूप में होना चाहिए। एक प्राथमिक प्रोटीन में कोई भी या सभी 20 अमीनों अम्ल किसी भी क्रम और मात्रा में हो सकते है। अमीनो अम्लों का क्रम प्रोटीन अणु में बंध वलयों और जुड़ाव बिन्दुओं को सुनिश्चित करता है। प्राथमिक संरचना पूर्णतया सहसंयोजक बंध (पेप्टाइड बंध) द्वारा निश्चित होती है।
एक प्रोटीन में एक कल्पनात्मक रेखा के रूप में बायाँ छोर प्रथम अमीनों अम्ल द्वारा दायाँ छोर अंतिम अमीनो अम्ल द्वारा प्रदर्शित होता है। प्रथम अमीनों अम्ल N-टर्मिनल अमीनो अम्ल कहलाता है और अंतिम एमिनो अम्ल C-टर्मिनल अमीनों अम्ल कहलाता है।
2. प्रोटीन संरचना : प्रोटीन को क्रियात्मक बनाने के लिए इनमे वलय और कुण्डली (पोलीपेप्टाइड श्रृंखला की) होती है जो त्रिविमीय संरचना प्रदान करने के लिए हाइड्रोजन बंध द्वारा जुडी होती है। बंध प्रोटीन की विभिन्न पोलीपेप्टाइडो के मध्य या एक पोलीपेप्टाइड श्रृंखला के अणुओं के मध्य बन सकते है। तीन आधारभूत प्रकार की हेलिक्स , द्वितीयक संरचना को प्रदर्शित करने में उपयोग की जाती है। उदाहरण : α-हेलिक्स , β-pleated sheet and collagen हेलिक्स
(i) α-हेलिक्स : जब एक पोलीपेप्टाइड श्रृंखला एक काल्पनिक अक्ष पर नियमित सर्पित और वलयाकार रूप में होती है तो यह α-हेलिक्स कहलाती है। उदाहरण : बाल , नाखुनो , पंजो में किरेटिन। α-हेलिक्स की coils संरचना हाइड्रोजन बंध द्वारा बनी रहती है। R-समूह α-हेलिक्स की बाह्य अवस्था की तरफ होता है। ग्लाईसीन और प्रोलिन हाइड्रोजन बंध नहीं बना पाते है हेलिक्स ब्रेकर कहलाते है। α-हेलिक्स की तीव्रता 5.4 A होती है। α-हेलिक्स के प्रत्येक टर्न में 3.5 एमिनों अम्ल होते है। α-हेलिक्स फाइब्रस और ग्लोबुलर दोनों प्रोटीन में पाया जाता है।
(ii) β-प्लेटेड शीट (β-pleated sheet) : जब दो या अधिक पेप्टाइड श्रृंखलाएं एक प्लेटेड शीट के समान संरचना बनाने के लिए हाइड्रोजन बंध द्वारा आपस में जुड़ जाती है , तो यह β-प्लेटेड शीट कहलाती है। यह श्रृंखलाएं समानांतर या असमानांतर हो सकती है। सामान्तर β-प्लेटेड शीट में पोलीपेप्टाइड बिंदु के समीप वाले Strands के N अणु समान दिशा में होते है। (उदाहरण : β-पंखो में β-किरेटिन) जबकि असमानांतर β-प्लेटेड शीट में विपरीत दिशा में होती है। (उदाहरण : सिल्क फ़ाइब्रोइन)
अधिकतम हाइड्रोजन बन्धुता असमानांतर संरचना में होती है β-प्लेटेड शीट 7.0A तीव्रता दर्शाती है। (कृत्रिम सिल्क एक पॉलीसैकेराइड है।)
(iii) कॉलेजन हेलिक्स (collagen helix) : कॉलेजन में बड़ी संख्या में ग्लाईसीन और प्रोलीन पाया जाता है इसके कारण यह α-हेलिक्स नही बना पाता , इनमे सामान्यतया α-हेलिक्स युक्त तीन पोलीपेप्टाइड श्रृंखलाएं परस्पर कुंडलित अवस्था में व्यवस्थित होकर दक्षिणावर्त सुपर हेलिक्स बनाती है। तीसरा सूत्र पुनः हाइड्रोजन बन्धो द्वारा व्यवस्थित होकर मजबूती प्रदान करता है , उदाहरण : कॉलेजन तन्तु।
3. तृतीयक संरचना (Tertiary structure or native state) : इसके अंतर्गत α-हेलिक्स अथवा β-प्लेटेड पेप्टाइड श्रृंखलाएं परस्पर वलित होकर एक जटिल और विशिष्ट संरचनाएँ जैसे शलाकाएँ , गोले या तन्तु जैसे प्रोटीन अणु बनाते है। इस संरचना में ध्रुवीय पाशर्व श्रृंखलाएं दिखाई देती है जबकि अध्रुवीय अमीनों अम्लो की पाशर्व श्रृंखलाएं वलनों के मध्य में छिपी रहती है। तृतीयक संरचना को विभिन्न प्रकार के असहसंयोजी बंध बनाये रखते है जैसे हाइड्रोजन बंध , आयनिक बंध , जल स्नेही जल विरागी बंध , डाइसल्फाइड बंध , वांडरवाल अभिक्रियाएँ आदि।
हाइड्रोजन बंध का निर्माण तब होता है जब दो ऋण विद्युती समूह हाइड्रोजन अणुओं के स्ट्रेंड में होकर परस्पर संयोजित होते है। आयनिक बंध का निर्माण दो विपरीत आवेशित समूहों के विध्रुवीय आकर्षण पर होता है। डाइसल्फाइड बंध सभी बन्धो में प्रबलतम होता है जो दो सिस्टीन के रूप में सल्फरयुक्त दो एमिनो अम्लों के मध्य बनता है। उदाहरण : दो सिस्टीन अवशेषों के मध्य S-समूह।
जलावरोधी आकर्षण में अध्रुवीय समूहों द्वारा जल निष्कासित किया जाता है जिससे ये जल के सम्पर्क में नहीं होते है। वांडरवाल बंध तभी बनते है जबकि दो अणु द्विध्रुव प्रदान करने के लिए आवेश अस्थिरता प्रेरित करने के लिए एक दुसरे के बहुत समीप आ जाते है। प्रोटीन की तृतीयक संरचना उच्च ऊर्जा विकिरणों , उच्च ताप , pH परिवर्तन , प्रबल लवणों और भारी धातुओं द्वारा आसानी से तोड़ी जा सकती है। ये कारक प्रोटीन डीनेचुरेशन के कारक हो सकते है। कभी कभी प्रोटीन निम्न ताप और विभिन्न रसायनों द्वारा स्कंदित किया जा सकता है। तृतीयक संरचना दर्शाने वाली प्रोटीन का उदाहरण मायोग्लोबिन है जो एक ग्लोब्युलर प्रोटीन है। तृतीयक संरचना हमे प्रोटीन का (त्रिविमीय) 3-dimensional दृश्य प्रदान करती है। यह संरचना प्रोटीन की कई जैविक क्रियाओ के लिए अत्यावश्यक होती है।
4. चतुर्थक संरचना : कुछ प्रोटीन एक से अधिक पोलीपेप्टाइड रखते है। जिस प्रकार से ये एकल उपइकाइयाँ आपस में व्यवस्थित होती है , इसे प्रोटीन की चतुर्थक संरचना कहते है। इसमें 2 या अधिक , दुर्बल बन्धो से जुडी Identical या non identical पॉलीपेप्टाइड श्रृंखला सममित है। उदाहरण : हीमोग्लोबिन चार पोलीपेप्टाइड से बनता है , 2 α और 2 β पोलीपेप्टाइड श्रृंखला
प्रोटीन को उनकी भौतिक संरचना , संगठन और उनके अणुओं की प्रकृति और कार्य के आधार पर भी वर्गीकृत किया जा सकता है –
(A) भौतिक संरचना के आधार पर प्रोटीन अणु
इस आधार पर ये तीन प्रकार के होते है –
(a) तंतुमय प्रोटीन : इन्हें स्कलेरोप्रोटीन भी कहते है। ये लम्बे तंतुओ के रूप में होती है जो शक्ति , दृढ़ता और लचीलापन (अंत: या बाह्य कोशिकीय पदार्थ के लिए) प्रदान करते है। यह जल में अविलेय तथा प्रकृति से संकुचनशील होते है। इसमें सफ़ेद संयोजी उत्तक के कॉलेजन तन्तु , त्वचा की एपिडर्मल स्तर में पाया जाने वाला किरेटिन (सिंग पंख तथा नाखूनों का कीरेटिन) , yellow संयोजी उत्तक में इलास्टिन रक्त थक्के में फाइब्रिन , सिल्क में फाइब्रिन और पेशियों में एक्टिन और मायोसीन शामिल होते है।
(b) गोलाकार प्रोटीन : येे असंकुचनशील और गोलाकार प्रोटीन होती है जो कि जल में विलेय होती है। ये ऊष्मा द्वारा स्कंदित नही होती है। उदाहरण : हिस्टोन।
बड़ी ग्लोब्युलर प्रोटीन अघुलनशील और ऊष्मा द्वारा स्कन्दित हो जाती है। और एंजाइम तथा प्लाज्मा झिल्ली के प्रोटीन इसमें सम्मिलित होते है। उदाहरण : ग्लूटेलीन , प्रोटेमीन , ग्लोब्युलिन।
एलब्युमिन जल में विलेय होते है लेकिन ऊष्मा द्वारा स्कंदित हो जाती है। उदाहरण : egg एल्बूमिन
(c) मध्यवर्ती प्रोटीन : ये न तो तंतुमय और न ही ग्लोब्युलर होती है। मायोसीन कुछ 17 एमिनो अम्लो के साथ (इसकी पोलीपेप्टाइड श्रृंखला में) तंतुमय नहीं होता है लेकिन विलयन में विस्तारित स्वरूप में होते है। फाइब्रिनोजन एक विलेय प्रोटीन है जो कि स्कंदित रक्त में अविलेय फाइब्रिन बनाती है।
(B) रासायनिक संरचना और घटकों के आधार पर प्रोटीन अणु
(C) व्युत्पन्न प्रोटीन
(D) प्रकृति के आधार पर प्रोटीन अणु
(E) कार्य के आधार पर प्रोटीन अणु
प्रोटीन (protein in hindi)
प्रोटीन अत्यन्त जटिल नाइट्रोजन युक्त पदार्थ ( कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन, नाइट्रोजन और सल्फर) से बनते हैं, जिसकी रचना 20 अमीनो अम्लों के भिन्न-भिन्न संयोगों से होती है। वैसे मानव शरीर में प्रोटीन का निर्माण कोशिकाओं में रैबोसोम्स करते हैं और निर्माण की सूचना डीएनए के पास होती है। हर कार्य के लिए अलग प्रोटीन की आवश्यकता होती है। इनको शरीर की छोटी आंत द्वारा नहीं तोड़ा जा सकता है। ये अमीनो अम्ल शरीर के उचित पोषण के लिए बहुत ही जरूरी होते हैं। इसकी कमी से शरीर का विकास रुक जाता है। इनके मुख्य स्रोत सोयाबीन, पनीर, दूध, अण्डा, मछली, दालें, मांस आदि हैं।
प्रोटीन के कार्य
* कोशिकाओं की वृद्धि एवं उनकी मरम्मत करना
* जटिल प्रोटीन मेटाबोलिक प्रक्रियाओं में एन्जाइम का कार्य करना
* हार्मोन का संश्लेषण करना
* हीमोग्लोबिन के रूप में शरीर में गैसीय संवहन का कार्य करना और आवश्यकता पड़ने पर या ग्लूकोज की कमी होने पर शरीर को ऊर्जा भी प्रदान करना
* एन्टीबॉडीज के रूप में शरीर की सुरक्षा करना। प्रोटीन जैव-उत्प्रेरक और जैविक-नियंत्रण के रूप में भी कार्य करता है
* प्रोटीन की कमी से क्वाशियार्कर एवं मरास्मस नामक रोग हो जाते हैं
* प्रोटीन कोशिकाओं, जीवद्रव और ऊतकों का प्रमुख घटक है।
* अमीनो अम्ल पेप्टाइड बॉन्ड द्वारा आपस में जुड़े होते हैं। जब दो अमीनो अम्ल एक पेप्टाइड बॉन्ड से जुड़ते हैं तब एक डाइपेप्टाइड बनता है।