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प्रोटीन की प्राथमिक, द्वितीयक, तृतीयक कीजिए तथा चतुष्क संरचनाओं की विवेचना primary structure of protein in hindi

primary structure of protein in hindi प्रोटीन की प्राथमिक, द्वितीयक, तृतीयक कीजिए तथा चतुष्क संरचनाओं की विवेचना प्रोटीन की प्राथमिक एवं द्वितीयक संरचना को समझाइए वर्णन कीजिए ?

प्रोटीन संरचना (Structure of proteins)

प्रोटीन अमीनो अम्लों से बनी सीधी श्रृंखला (linear chain) से निर्मित होते हैं। विभिन्न प्रोटीनों में अमीनो अम्लों की संख्या में काफी भिन्नता होती हैं। उदाहरणतः इंसुलिन (insulin) में 51 अमीनो अम्ल होते हैं जबकि कुछ बृहताणु प्रोटीनों जैसे हीमोग्लोबिन (haemoglobin) में 574 अमीनो अम्ल होते हैं। सर्वाधिक सरल रैखिक प्रकार के प्रोटीन पॉलीपेप्टाइड होते हैं। हालांकि प्रकृति में उपलब्ध अधिकांश प्रोटीन जटिल पॉलीपेप्टाइड अथवा अन्य कार्बनिक पदार्थों के साथ संयुग्मित अवस्था में पाये जाते हैं।

प्रोटीन अमीनो अम्लों में रैखिक क्रम में पैप्टाइड बन्ध के फलस्वरूप बनते हैं किंतु पॉलीपेप्टाइड में अमिनो अम्ल के अवशेषों (residues) के विभिन्न समूहों के मध्य विभिन्न प्रकार के बन्धों के फलस्वरूप इनका त्रिआयामी स्वरूप (three dimensional) स्वरूप बनता है। प्रोटीन संरचना को चार स्तरों पर अध्ययन द्वारा समझा जा सकता है। (i) प्राथमिक संरचना, (ii) द्वितीयक संरचना (iii) तृतीयक संरचना एवं (iv) चतुर्थ संरचना ।

प्राथमिक संरचना (Primary Structure)

a-अमीनो अम्लों के मध्य सहसंयोजी बन्धों से निर्मित पॉलीपेप्टाइड सदैव सीधीश्रृंखला होती है एवं प्रोटीन की प्राथमिक संरचना (primary structure) कहलाती है। ये विशेष सहसंयोजी बन्ध पेप्टाइड बन्ध (peptide bonds) कहलाते हैं जिसके बारे में आगे दिया गया है।

प्रत्येक पॉलीपेप्टाइड श्रृंखला के एक छोर पर अमीनो (-NH2) समूह होता है तथा दूसरे छोर पर कार्बोक्सिल (- COOH) समूह होता है। अमीनो समूह वाला छोर अमीनो अथवा N छोर (Amino or N terminus) कहलाता है तथा आरंभिक सिरा होता है। पॉलीपेप्टाइड का अंतिम छोर कॉर्बोक्सी छोर अथवा C छोर (carboxy or C-terminus) कहलाता है। प्रोटीन श्रृंखला में अमीनो अम्लों की गिनती N छोर से प्रारंभ होती है। एक प्रोटीन विशेष में अमीनो अम्लों का सदैव एक निश्चित क्रम होता है। विभिन्न प्रकार के प्रोटीनों में अमीनो अम्लों के क्रम में भिन्नता होती है।

द्वितीयक संरचना (Secondary structure)

प्रोटीन की प्राथमिक संरचना मुख्यतः केवल अमीनो अम्लों के क्रम को दर्शाती है किन्तु प्रोटीन श्रृंखला की आकृति एवं आकार के बारे में कोई जानकारी नहीं मिलती। प्रोटीन की रैखिक श्रृंखलाएँ विभिन्न प्रकार के वलयन (folding) एवं विभिन्न प्रकार के बन्धों के फलस्वरूप द्वितीयक संरचना बनाती है जो सामान्यतः सर्पिलाकार होती है। द्वितीयक संरचना मुख्यतः में तीन प्रकार की संरचनाएँ देखी गई हैं-

(i) कुण्डलित संरचना (Helical structure) :- लाइनस पॉलिंग एवं आर. बी. कौरे (Linus Pauling and R. P Correy, 1951) ने कुछ प्रोटीनों की द्वितीयक संरचना का अध्ययन किया जिसे उन्होंने a हैलिक्स (a helix) नाम दिया। इन संरचनाओं के पक्ष में प्रमाण मुख्यतः X किरण विवर्तन चित्र (X ray diffraction pattern) तथा कुछ मॉडल प्रोटीनों के अ ययन से प्राप्त हुआ था। पॉलिंग एवं कोरे को उनकी खोज के लिए नोबल पुरस्कार प्रदान किया गया। इसमें श्रृंखला के एक अमीनो अम्ल के – NH2 समूह तथा निकट के अमीनो अम्ल के कार्बोनिल समूहों (-C=O) के ऑक्सीजन (0) ड़े मध्य हाइड्रोजन बन्ध का निर्माण होता है। श्रृंखला में ऐसे बन्ध थोड़ी-थोड़ी दूरी पर बनते रहते हैं अतः श्रृंखला व्यावर्तित (twisted) हो जाती है। इस संरचना में अधिकतम संख्या में H बन्ध बनते हैं जो कुण्डलित श्रृंखला को यथा स्थिति में बनाये रखने में मदद करते हैं। रामचन्द्रन (Ramachandran, 1960) के अनुसार एक कुण्डल में लगभग 3.6 अमीनो अम्ल होते हैं। एवं लगभग 5.4A की दूरी होती है। जो अपेक्षाकृत अधिक स्थायी रचना होती है।

ये हाइड्रोजन बन्ध कुण्डलित श्रृंखला के लम्ब अक्ष के लगभग समांतर बनते हैं समकोण पर नहीं बनते। इसके अतिरिक्त प्रोटीन के अमीनो अम्लों की पार्श्व श्रृंखलाओं की प्रकृति तथा विलयन में प्रयुक्त विलायक भी कुण्डलन की स्थिरता को प्रभावित करते हैं। प्रोलीन (proline) एवं हाइड्रॉक्सीप्रोलीन (hydroxyproline) में द्वितीयक अमीनो समूह (-NH2) हाइड्रोजन ब निर्माण में असमर्थता के कारण Q-कुण्डलन को बाधित करते हैं। अतः इनकी उपस्थिति में कुण्डलित रचना कहीं-कहीं पर खण्डन भी दर्शाती है। a कैरेटिन तथा मायोग्लोबिन &-कुण्डलित संरचना के कुछ उदाहरण हैं। कभी-कभी प्रोटीन संरचना के कुछ भाग ही कुण्डलित रचना प्रदर्शित करते हैं।

(ii) प्लीट शीट (Pleated sheet) :- इस प्रकार की संरचना में निकटस्थ पॉलीपेप्टाइड श्रृंखलाओं के मध्य हाइड्रोजन बन्ध बनते हैं। ये बन्ध एक श्रृंखला के अमीनो अवशेषों के अमीनो समूह (-NH2) तथा दूसरी श्रृंखला के अमीनो अवशेष के कार्बोनिल (- C=O) समूह के मध्य बनते हैं। इसे बीटा संरचना (B structure) भी कहते हैं। ये श्रृंखलायें एक दूसरे के समान्तर (parallel) हो सकती हैं अथवा विपरीत दिशा में समान्तर अर्थात् प्रत्सिमान्तर (antiparallel) हो सकती हैं। इस प्रकार की संरचना ग्लाइसीन एवं एलेनीन बहुल प्रोटीनों में अधिक होती है। रेशम के तथा मकड़ी के जाल (spider’sweb) से सम्बन्धित फाइब्रॉइन (fibroin) प्रोटीन इसी प्रकार के प्रोटीन होते हैं। सामान्यतः ३ प्लीट संरचना में अंतः अणुकी (intra chain) बन्ध नहीं पाये जाते। कुछ गोलाकार प्रोटीनों में एक ही पॉलीपेप्टाइड वलयित हो जाती है एवं प्लीट शीट का निर्माण करती है।

  • अनियमित (Random) संरचना :- इस स्वरूप में पॉलीपेप्टाइड की द्वितीयक संरचना का कोई निश्चित ज्यामितीय विन्यास नहीं होता अर्थात हाइड्रोजन बन्ध एवं अन्य बन्धों का निश्चित विन्यास नहीं होता। इनमें वलयन अमीनो अम्लों की पार्श्व शृंखलाओं में होता है। कुछ पॉलीपेप्टाइड विभिन्न परिस्थितियों में भिन्न-भिन्न स्वरूप प्रदर्शित करते हैं। उदाहरणत: पॉली लायसिन 5 से अधिक pH एवं 20°C से कम ताप पर नियमित वलयित (helix) संरचना होती है किंतु 35°C से अधिक ताप पर प्लीट शीट संरचना में बदल जाती है।

तृतीयक संरचना (Tertiary or 3° Structure)

जब द्वितीयक संरचनात्मक इकाइयां पुनः वलयित हो जाती है तथा दीर्घ वृत्ताकार (ellipsoid), वृत्ताकार (globular) अथवा अन्य विभिन्न प्रकार की आकृतियाँ बनाती हैं। ये संरचनाएँ अमीनो अवशिष्टों (amino residues) के पार्श्व समूहों अथवा श्रृंखलाओं के मध्य अन्योन्य क्रियाओं के फलस्वरूप बन्ध निर्माण के कारण बनती हैं। इनमें हाइड्रोजन बन्ध, डाइसल्फाइड बन्ध एवं लवण बन्ध सम्मिलित होते हैं। इसके अतिरिक्त वैद्युत स्थितिक आकर्षण एवं वॉन्डर वाल आकर्षण भी इस संरचना के निर्माण में सहायक है। अनेक जलविरागी R समूहों में भी एकत्रित होने की प्रवृत्ति होती है। जो प्रोटीन में भीतर की ओर धंस जाते हैं जब जलरागी समूह सतह की ओर रहते हैं एवं जल से क्रिया करते हैं। ये सभी प्रोटीन की तृतीयक संरचना में निर्माण में सहायक होते हैं। डाइसल्फाइड बन्ध एवं समूहों की अन्योन्य क्रियाएं प्रोटीन की त्रिविम अथवा तृतीयक संरचना को स्थिरता प्रदान करते हैं एवं प्रोटीन के विशिष्ट कार्यों में सहायक होते हैं। समान प्रकार के कार्य करने वाले प्रोटीनों की त्रिविम स्वरूप अथवा तृतीयक संरचना भी लगभग समान होती है, हालांकि उनकी प्राथमिक संरचना अर्थात अमीनों अम्ल संघटन में बहुत भिन्नता हो सकती है।

चतुर्थ संरचना (Quarternary or 4 structure)

जीवधारियों में पाये जाने वाले अनेक प्रोटीन एक से अधिक पॉलीपेप्टाइड श्रृंखलाओं से निर्मित होती हैं। ये पॉलीपेप्टाइड एक समान अथवा भिन्न हो सकती हैं। ऐसी प्रत्येक पॉलीपेप्टाइड उपइकाई एकलक (monomer) कहलाती है तथा उनसे निर्मित प्रोटीन इनकी बहुलक होती है एवं ऑलिगोमर (oligomer) कहलाती है। एकलक पॉलीपेप्टाइड एक समान होने पर चतुर्थ प्रोटीन संरचना समांगी ऑलिगोमर अथवा प्रोटीन (homogenous oligomer) तथा असमान होने पर विषमांगी ( heterog enous) प्रोटीन कहलाती है। इन पॉलीपेप्टाइडों में तृतीयक संरचना के समान ही बन्ध निर्माण एवं अन्योन्य क्रियाएँ (interactions) होती है किन्तु वे अंतरा अणुकी (intermolecular) होते हैं अर्थात दो भिन्न पॉलीपेप्टाइड श्रृंखलाओं के मध्य  होते हैं। एकलक इकाइयाँ के एकत्रित होकर त्रिविम स्वरूप निर्माण के बाद ही ऑलिगोमर उस विशिष्ट प्रोटीन से संबद्ध जैवरासायनिक गुण प्रदर्शित करती है।

रक्त में पायी जाने वाली हीमोग्लोबिन प्रोटीन विषमांगी प्रोटीन होती है जिसकी संरचना पेरूट्ज (Perutz) एवं साथियों ने 1960 में दी थी। यह दो प्रकार के कुल 4 पॉलीपेप्टाइडों से निर्मित (CO2 B2 ) होती है। इसी प्रकार प्रतिरक्षी ग्लोबुलिन भी विषमांगी प्रोटीन होते हैं।

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