JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

हिंदी माध्यम नोट्स

Categories: BiologyBiology

प्राथमिक फ्लोएम और द्वितीयक फ्लोयम में अंतर (difference between primary and secondary phloem in hindi )

(difference between primary and secondary phloem in hindi) प्राथमिक फ्लोयम और द्वितीयक फ्लोयम में अंतर क्या है बताइये ? किसे कहते हैं

द्वितीयक फ्लोयम की संरचना (structure of secondary phloem) : संवहनी कैम्बियम में परिनतिक विभाजनों के परिणामस्वरूप बाहर की तरफ द्वितीयक फ्लोएम अवयवों का निर्माण होता है। सामान्यतया द्वितीयक फ्लोयम की मात्रा द्वितीयक जाइलम की तुलना में काफी कम होती है। अधिकतर द्विबीजपत्री तनों में प्राथमिक फ्लोयम प्राय: कुचल जाता है और निष्क्रिय हो जाता है और द्वितीयक फ्लोयम लम्बे समय तक कार्यिकी क्रियाएं संपन्न करता है। 

द्वितीयक फ्लोयम में भी प्रारंभिक फ्लोयम की तरह चालनी तत्व , सहकोशिकाएँ , रेशे और फ्लोयम मृदुतक पाए जाते है। अक्सर प्राथमिक फ्लोयम में रेशे कम मात्रा में लेकिन द्वितीयक फ्लोयम में बहुतायत से पाए जाते है और इन्हें बास्ट रेशे कहते है।

द्वितीयक जाइलम की तरह ही फ्लोएम में भी अक्षीय और अरीय तंत्र होते है। अक्षीय तंत्र में चलनी नलिकाएँ , फ्लोयम मृदुतक और फ्लोयम तंतु शामिल है जबकि अरिय तंत्र में फ्लोयम किरण मृदुतक आता है। अक्षीय तन्त्र की कोशिकाएं तर्कुरुपी प्रारंभिक से बनती है जबकि अरीय तंत्र का निर्माण रश्मि प्रारंभिक कोशिकाओं से होता है।

1. चलनी नलिकाएँ (sieve tubes)

चलनी नलिका अवयवों की श्रृंखला होती है जो एक के ऊपर एक श्रृंखला में लगी रहती है। इनकी अनुप्रस्थ भित्ति में छिद्र होते है , जिसकी वजह से यह भित्तियां चालनी के समान दिखाई देती है। इसी कारण इन अनुप्रस्थ भित्तियों को चालनी पट्टिका कहते है। चालनी पट्टिका सरल या संयुक्त प्रकार की होती है।

सरल चालनी पट्टिका में केवल एक चालनी क्षेत्र पाया जाता है जबकि संयुक्त चालनी पट्टिका में एक से अधिक चालनी क्षेत्र उपस्थित होते है।

कभी कभी चालनी पट्टिका क्षेत्र अपेक्षाकृत अल्पविभेदित और पाशर्वी भित्ति पर पाए जाते है। इस प्रकार के चालनी क्षेत्रों को पाशर्वीय चालनी क्षेत्र कहते है। चालनी पट्टिका की उपस्थिति फ्लोयम का एक विशिष्ट लक्षण कही जा सकती है। प्रत्येक चालनी पट्टिका के चारों तरफ एक विशेष प्रकार के कार्बोहाइड्रेट केलोस की एक पतली परत पायी जाती है। शरद ऋतु में केलोस की यह परत मोटी हो जाती है। इन संरचनाओं को केलोस पट्टिकाएँ कहते है। इनकी उपस्थिति से चालनी क्षेत्र अवरुद्ध हो जाते है और शरद ऋतु में फ्लोयम की क्रियाशीलता कम हो जाती है अथवा ख़त्म हो जाती है। लेकिन बसंत ऋतू में कैलोस की मात्रा घट जाती है। ऐसा केलोस के संवहनी रस में घुल जाने के कारण होता है। परिणामस्वरूप फ्लोयम फिर से सक्रिय हो जाता है और इसमें खाद्य पदार्थों का स्थानान्तरण फिर से प्रारंभ हो जाता है।

जिम्नोस्पर्म्स और द्विबीजपत्री पौधों में लगातार द्वितीयक वृद्धि के परिणामस्वरूप जाइलम और फ्लोयम ऊतकों का निर्माण होता रहता है। अत: निश्चित रूप से इन ऊतकों की सक्रियता की अवधि की गणना नहीं की जा सकती। फिर भी यह अनुमान लगाया जा सकता है कि फ्लोयम और जाइलम ऊतक 2 से 10 वर्ष की अवधि तक सक्रीय रहते है क्योंकि एकबीजपत्री पौधों में द्वितीयक वृद्धि नहीं पायी जाती। फिर भी इनमें 50 वर्ष की आयु के पौधों में भी चालनी कोशिकाओं की सक्रियता देखी जा सकती है।

2. सहकोशिकाएँ (companion cells)

चालनी तत्वों और सहकोशिकाओं का सम्बन्ध अटूट और घनिष्ठ होता है। केम्बियम द्वारा बाहर की तरफ निर्मित मृदुतकी कोशिकाएं जो चालनी तत्व के रूप में विभेदित होती है , उनके द्वारा सहकोशिकाएं बनती है। चालनी तत्व और सहकोशिका का निर्माण करने वाली मृदुतकी कोशिकाओं को फ्लोयम आद्यक अथवा मातृ कोशिका भी कहते है। मातृ कोशिका में एक असमान लम्बवत विभाजन होता है जिसके परिणामस्वरूप दो असमान साइज की अर्थात एक बड़ी और एक छोटी कोशिका बनती है। बड़ी कोशिका में अंतिम सिरे पर चालनी पट्टिका का निर्माण होता है और यह चालनी नलिका में रूपान्तरित हो जाती है जबकि छोटी कोशिका सहकोशिका के रूप में विकसित होती है। इन दोनों कोशिकाओं के बीच विभाजन भित्तियाँ अत्यन्त पतली और गर्तमय होती है। सहकोशिका का केन्द्रक सदैव क्रियाशील रहता है लेकिन चालनी कोशिका अथवा नलिका का केन्द्रक कुछ समय तक सक्रीय रहने के बाद निष्क्रिय हो जाता है। ऐसी अवस्था में संभवत: चालनी तत्वों की विभिन्न गतिविधियों का नियंत्रण सहकोशिका के केन्द्रक के द्वारा ही किया जाता है।

3. फ्लोयम दृढोतक (phloem sclerenchyma)

प्राथमिक और द्वितीयक दोनों प्रकार के फ्लोयम ऊतकों में रेशे पाए जाते है। प्राथमिक फ्लोयम में यह परिधि की तरफ व्यवस्थित रहते है लेकिन द्वितीयक फ्लोयम में यह अक्षीय तंत्र में अनेकों प्रकार से फैले हुए पाए जाते है।

फ्लोयम रेशे पटयुक्त अथवा पटरहित और परिपक्व अवस्था में जीवित या मृत कोशिकाओं के रूप में विद्यमान होते है। कुछ पौधों लाइनम , हिबिस्कस और केनाबिनस में द्वितीयक रेशे लम्बी कोशिकाओं के रूप में पाए जाते है जिनकी भित्तियां अत्यधिक स्थुलित होती है। यह फ्लोयम रेशे विभिन्न मानवोपयोगी कार्यो में जैसे रस्सी अथवा सूतली बनाने में काम में काम में लिए जाते है इसलिए आर्थिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण होते है।

कुछ दृढ कोशिकाएँ फ्लोयम रेशों के साथ अथवा एकल रूप में प्राय: द्वितीयक फ्लोयम ऊतक में पायी जाती है। सम्भवतः इनका निर्माण फ्लोयम के परिपक्व ऊतकों में उपस्थित मृदुतक कोशिकाओं की भित्तियों के लिग्नीभवन अथवा सुदृढीकरण के कारण होता है जिससे अंततः यह दृढ़ कोशिकाओं में रूपान्तरित हो जाती है।

4. फ्लोयम मृदुतक (phloem parenchyma)

फ्लोयम में मृदुतक कोशिकाएँ काफी मात्रा में पायी जाती है और स्टार्च , टेनिन और विभिन्न प्रकार के क्रिस्टलों के संचय का कार्य करती है। द्वितीयक फ्लोएम में मृदुतक कोशिकाएँ दो क्षेत्रों में क्रमशः अक्षीय मृदुतक कोशिकाओं और रश्मि मृदुतक कोशिकाओं के रूप में विभेदित रहती है।

यह एक सुविदित तथ्य है कि विभिन्न पौधों के संवहन बंडलों में द्वितीयक फ्लोयम की मात्रा द्वितीयक जाइलम की तुलना में कम होती है और प्राथमिक फ्लोयम अधिकांश पौधों में नष्ट हो जाता है। लेकिन कुछ पौधों जैसे टिलिया में यह फ्लोयम रेशों में रूपान्तरित होकर लम्बे समय तक जीवित रहते है। निष्क्रिय फ्लोयम परित्वक द्वारा तने के अक्ष से अनुपयोगी तत्व के रूप में अलग कर दिया जाता है। यही कारण है कि तने में द्वितीयक जाइलम की मात्रा तो बढती जाती है लेकिन फ्लोयम की मात्रा हमेशा सिमित रहती है और यह छाल के सबसे भीतरी भाग का निर्माण करती है।

प्राथमिक फ्लोयम और द्वितीयक फ्लोयम में अंतर (difference between primary and secondary phloem)

प्राथमिक फ्लोएम (primary phloem) प्राथमिक फ्लोएम (secondary phloem)
1. इसका निर्माण प्राकएधा से होता है। इसका निर्माण संवहन एधा के द्वारा होता है।
2. इसमें प्राकपोषवाह पाए जाते है। इसमें प्रौटाफ्लोयम और मेटाफ्लोयम का स्पष्ट विभेदन नहीं होता।
3. फ्लोयम रेशे अल्प मात्रा में होते है और तने के परिधीय भागों में पाए जाते है। फ्लोयम रेशे अधिक मात्रा में होते है और तने के विभिन्न भागों में फैले हुए रहते है।
4. चालनी नलिकाएँ अधिक लम्बी होती है और इनकी कोशिका गुहा अपेक्षाकृत संकड़ी होती है। चालनी नलिकाएं छोटी और चौड़ी होती है। इनके अन्दर ल्युमन भी अधिक चौड़ा होता है।
5. फ्लोयम मृदुतक कम मात्रा में पाया जाता है और फ्लोयम रेशे अनुपस्थित होते है। फ्लोएम मृदुतक काफी अधिक मात्रा में पाया जाता है और इसकी कोशिकाएं कुछ पौधों में स्त्राव का कार्य करती है।
6. चालनी पट्टिकाओं के मध्य कैलोस या तो कम मात्रा में होता है या पूर्णतया अनुपस्थित होता है। कैलोस स्पष्टत: उपस्थित होता है।
Sbistudy

Recent Posts

मालकाना का युद्ध malkhana ka yudh kab hua tha in hindi

malkhana ka yudh kab hua tha in hindi मालकाना का युद्ध ? मालकाना के युद्ध…

4 weeks ago

कान्हड़देव तथा अलाउद्दीन खिलजी के संबंधों पर प्रकाश डालिए

राणा रतन सिंह चित्तौड़ ( 1302 ई. - 1303 ) राजस्थान के इतिहास में गुहिलवंशी…

4 weeks ago

हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ? hammir dev chauhan history in hindi explained

hammir dev chauhan history in hindi explained हम्मीर देव चौहान का इतिहास क्या है ?…

1 month ago

तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच हुआ द्वितीय युद्ध Tarain battle in hindi first and second

Tarain battle in hindi first and second तराइन का प्रथम युद्ध कब और किसके बीच…

1 month ago

चौहानों की उत्पत्ति कैसे हुई थी ? chahamana dynasty ki utpatti kahan se hui in hindi

chahamana dynasty ki utpatti kahan se hui in hindi चौहानों की उत्पत्ति कैसे हुई थी…

1 month ago

भारत पर पहला तुर्क आक्रमण किसने किया कब हुआ first turk invaders who attacked india in hindi

first turk invaders who attacked india in hindi भारत पर पहला तुर्क आक्रमण किसने किया…

1 month ago
All Rights ReservedView Non-AMP Version
X

Headline

You can control the ways in which we improve and personalize your experience. Please choose whether you wish to allow the following:

Privacy Settings
JOIN us on
WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now