11th , 12th notes In hindi
rss
Skip to content
  • Home
  • Books
    • 10 class books
      • english
      • sanskrit
      • maths
      • science
      • social science
    • class 12 books
      • chemistry
      • maths
      • biology
      • physics
  • 12th Notes
    • 12th physics notes
    • 12th Biology notes
    • 12th chemistry notes
  • संपर्क करे
  • हमारे बारे में
  • 12th chemistry Notes
    • physics notes in hindi 12th Class
    • Biology notes in hindi class 12th
    • भौतिक विज्ञान कक्षा 11 वीं
  • जीव विज्ञान नोट्स कक्षा 11
  • computer notes in hindi
  • भूगोल नोट्स
  • B.SC (b sc) chemistry notes
  • 12th maths (mathematics)
  • c language notes
  • विज्ञान के कक्षा 9 वीं
  • विज्ञान के कक्षा 10 वीं के नोट्स
  • B.sc notes
  • digital electronics
  • RAS notes in english

भारत में गरीबी की परिभाषा क्या है , आशय अर्थ बताइए निर्धन गरीबी की न्यूनतम रेखा (Below Poverty Line)

By admin   April 17, 2022
0
सब्सक्राइब करे youtube चैनल

निर्धन गरीबी की न्यूनतम रेखा (Below Poverty Line) किसे कहते हैं भारत में गरीबी की परिभाषा क्या है , आशय अर्थ बताइए ? Poverty in india definition in hindi

भारत में निर्धनता का आशय क्या है ?
न्यनूत्तम मूल उपभोग का स्तर, जो कि जीवित रहने के लिए आवश्यक है, के आधार पर गरीबी को परिभाषित किया गया है। भारत के योजना आयोग (अब नीति आयोग) के द्वारा निर्धनता को केलोरी-लेने की क्षमता से परिभाषित किया गया है। अत्यंत निर्धनता वह अवस्था है जब ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्र में प्रति व्यक्ति क्रमशः 2400 और 2100 केलोरी ही प्राप्त हो रही हो।
विश्व बैंक ने वैश्विक स्तर पर मान्य अपनी परिभाषा देते हुए निर्धनता का पैमाना तय किया है कि यदि प्रति व्यक्ति की उपभोग क्षमता एक अमेरिकी डॉलर प्रतिदिन से कम हो तो उसे निर्धन माना जायेगा।
तुलनात्मक निर्धनता देश के धनी और तुलनात्मक रूप से निर्धन लोगों के बीच चहुं ओर काफी अंतर है। योजना आयोग द्वारा दी गयी अत्यंत निर्धनता की अपरिष्कृत परिभाषा के आधार पर एक अनुमान के अनुसार देश में लगभग 230 मिलियन निर्धन गरीबी की न्यूनतम रेखा (Below Poverty Line) से नीचे जीवन-यापन करने को मजबूर हैं। यदि विश्व बैंक के मानदंडों को आधार मानकर यह अनुमान लगाया जाय तो देश में अत्यंत गरीबों की संख्या और भी ज्यादा होगी। कहा जाता है कि भारत में गरीबी की न्यूनतम रेखा के नीचे रहने वाली जनसंख्या विश्व में सर्वाधिक है। वास्तव में गरीबी रेखा के नीचे रहने वाली जनसंख्या, अमेरिका की कुल आबादी से भी ज्यादा है। इस जनसंख्या का जमाव उत्तर प्रदेश, बिहार, ओडिशा, मध्य प्रदेश और पश्चिम बंगाल राज्यों में सर्वाधिक है और देश की कुल निर्धन जनसंख्या का लगभग 50% यहीं निवास करता है।
स्वतंत्रता प्राप्ति के छह दशकों के बाद भी देश में इतने गरीब क्यों है? इसके प्रमुख कारण हैं – कृषि क्षेत्र पर अत्यधिक निर्भरता, जीवन निर्वाह के परंपरागत तरीकों में ठहराव, जनसंख्या को रोजगार-अवसर न मिलना, प्रौढ़ अशिक्षा की ऊँची दर, भूमिहीनों की ज्यादा संख्या और सीमांत किसानों के लिए किसी भा प्रकार की आय का सहारा न होना। साथ ही अत्यधिक निर्धनता का एक और प्रमुख कारण है, आद्योगिक क्षेत्र में रोजगार के अवसरों का अभाव। यहां यह महत्त्वपूर्ण नहीं है कि निर्धनता को अशोधित तराक से या परिष्कृत रूप से केसे परिभाषित किया जा रहा है। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् के भारत का यह सबसे बड़ा अभिशाप है कि अच्छी नियत से बनायी गयी योजनाओं के बाद भी बड़े पैमाने पर गराबा उन्मूलन नहीं हो सका है। गरीबी उन्मूलन की इन योजनाओं को हम आगे के खंडों में देखेंगे।

सामाजिक परिक्षेत्र (Social Sector)
सामाजिक परिक्षेत्र और निर्धनता अंतर्संबधित हैं। इसमें सम्मिलित हैं- गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले था जनसंख्या का वह भाग जो विकास की मुख्यधारा से अछूता है; जैसे कि सुविधाहीन लोग, पिछड़ी जातियों का जातियों, अनुसूचित जातियाँ और कबीलों में रहने वाले लोग। इस जनसंख्या में भूमिहीन, छोटा और सीमांत किसान जोकि अनौपचारिक क्षेत्र में नित्य मजदूरी कर रोज-दर-रोज जीविकोपार्जन कर रहा है. शामिल है। यह निर्धन समाज का सबसे असुरक्षित वर्ग है, जिसका शोषण होता है. इनके उपर नियम थोपे जाते हैं और इनकी आवाज की कहीं सुनवाई नहीं होती है। इन्हें ‘‘मूक-सहनशील‘‘ और दर्शक-मात्र जैसे नामों से भी जाना जाता है। इनकी दयानीय अवस्था इस बात से अनजान है कि आज भारत विश्व की सबसे तेजी से बढ़नेवाली अर्थव्यवस्था है।
हम यह पहले ही देख चुके हैं कि निर्धनता की आज तक यथावत् स्थिति क्यों हैं। प्रश्न यह है कि अभी तक सरकारों ने इस संबंध में क्या कुछ किया है? सरकार ने इस दिशा में त्रिफलक रणनीति बनाकर सामाजिक परिक्षेत्र को इस प्रकार संबोधित किया है
1. वृहद् आधार पर लक्ष्य निर्धारण
2. संकुचित आधार पर लक्ष्य निर्धारण
3. सामाजिक सुरक्षा

1. वृहद् आधार पर लक्ष्य निर्धारण
इसके अंतर्गत सरकार ने दो महत्त्वाकांक्षी योजनाएँ तैयार की हैं। पहली योजना है, भारत-निर्माण (2005-2010) जिसके अंतर्गत निम्नलिखित छह उप-कार्य योजनाएँ हैं –
;पद्ध सिंचाई – एक करोड़ हेक्टेयर अतिरिक्त भूमि को सिंचाई सुविधा के अंतर्गत लाना।
;पपद्ध ग्रामीण सड़क संपर्क – 1000 से अधिक आबादी वाले समस्त गाँव तथा पहाड़ी एवं आदिवासी क्षेत्रों में 500 लोगों की आबादी वाले गांवों को सड़कों से जोड़ना।
;पपपद्ध इंदिरा आवास योजना – गरीबों के लिए 6 मिलियन घरों का निर्माण।
;पअद्ध पीने योग्य पानी – 55065 नयी बस्तियों में पेय-जल की व्यवस्था।
;अद्ध ग्रामीण विद्युतीकरण – 125 लाख गांवों का विद्युतीकरण, जिससे 223 मिलियन घर रौशन हो सके।
;अपद्ध ग्रामीण संचार – 66.822 गांवों में टेलीफोन सुविधा प्रदान करना।
संप्रग सरकार की दूसरी बड़ी योजना में आठ प्रमुख महत्त्वाकांक्षी योजनाएँ हैं –
;पद्ध सर्व शिक्षा अभियान – 6-14 वर्ष की आयु समूह के सभी बच्चों का स्कूल में दाखिला।
;पपद्ध मध्याह्न भोजन योजना – स्कूलों में बच्चों को एक सम्पूर्ण आहार। इसका उद्देश्य बच्चों को कुपोषण से बचाना और स्कूलों में बच्चों का नामांकन बढ़ाना है।
;पपपद्ध महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (MGNREGA)
;पअद्ध संपूर्ण स्वच्छता अभियान (Total Sanitation Campaign) (TSC)
;अद्ध जवाहरलाल नेहरू शहरी नवीनीकरण मिशन (JNURM)
;अपद्ध एकीकृत बाल विकास और सेवाएं (ICDS)
;अपपद्ध राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (NRHM)
;अपपपद्ध राजीव गाँधी पेय-जल योजना (RGNDWM)

उपरोक्त सभी योजनाओं में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना, सरकार की सबसे महत्त्वाकांक्षी योजना है और इतने बड़े स्तर का क्रियान्वयन दुनिया में और कहीं नहीं दिखाई देता। यह योजना बेल्जियम के अर्थशास्त्री जीन ड्रेज के दिमाग की उपज है। यह योजना देश में अधिनियमित कर दी गयी है और इसके अंतर्गत ग्रामीण क्षेत्र के हर परिवार के एक सदस्य को (अकुशल श्रमिक का) 100 दिन काम, न्यूनतम मजदूरी दर पर मिलने की गारंटी है। इस योजना के अंतर्गत 100 दिन रोजगार का आशय यह है कि कृषि कार्य से बचे समय का उपयोग हो सके। इस समय इस योजना का क्रियान्वयन देश के सभी जिलों में किया जा रहा है और साथ ही इसे रोजगार के अवसर पैदा करने और गरीबी उन्मूलन की दिशा में एक बहुत बड़ा कदम माना जा रहा है। योजना के अंतर्गत महिलाओं को मजदूरी देने में प्राथमिकता दी जाती है और बगैर किसी बिचैलिये या ठेकेदार के सीधे ग्राम पंचायतों के माध्यम से कियान्वयन होता है। इसमें मजदूरी सीधे श्रमिक के बैंक खाते में भेजी जाती है। राज्य सरकारें, किसी श्रमिक के पंजीकरण के बाद यदि 15 दिन के अंदर रोजगार नहीं दे सकती, उस स्थिति में निर्धारित मजदूरी का एक-तिहाई बेरोजगारी भत्ते के रूप में प्रभावित व्यक्ति को देगी। इस योजना को पूरे विश्व में सराहा गया है और सामाजिक क्षेत्र में सुधार के लिए सबसे अच्छे इरादे वाली योजना कहा गया है।
फिर भी इस योजना के आलोचकों का मत है कि दीर्घकाल में ऐसी योजनाएं नुकसानदायक हो सकती हैं क्योंकि कृषि क्षेत्र और शहरों में न्यूनतम मजदूरी की दर बढ़ जायेगी, उत्पादन-लागत पर असर पड़ेगा और श्रमिकों का देशांतर (migration) प्रभावित होने के साथ ही मुद्रास्फीति को भी बढ़ावा मिलेगा।

2. संकुचित आधार पर लक्ष्य निर्धारण
सरकार द्वारा सूक्ष्म आधार पर लक्ष्य निर्धारण इस प्रकार है –
i. मजदूरी रोजगार योजना – मूलतः मनरेगा।
ii. स्व रोजगार योजना – मूलतः ग्रामीण क्षेत्रों में स्वर्ण जयंती ग्रामीण स्व रोजगार योजना (SGSY) और शहरी क्षेत्रों में स्वर्ण जयंती शहरी रोजगार योजना (SJSRY) के माध्यम से।
iii. खाद्य सुरक्षा – मुख्य तौर पर TPDS और AAY, और वरिष्ठ नागरिकों के लिए अन्नपूर्णा योजना।

3. सामाजिक सुरक्षा
सरकार निम्नलिखित कार्यक्रमों के माध्यम से सामाजिक सुरक्षा प्रदान कर रही है –
i. आम आदमी बीमा योजना – इस योजना के अंतर्गत् ग्रामीण भूमिहीन परिवारों के एक सदस्य, (जीविकोपार्जन करने वाले) जिसकी आयु 18-59 वर्ष के बीच है, का बीमा 200 रु के प्रीमियम पर किया जाता है। इस राशि का 50% राज्य एवं 50% केंद्र सरकार वहन करती है। स्वाभाविक मृत्यु की स्थिति में 30,000/- और दुर्घटनावश मृत्यु होने पर 75,000/- का बीमा कवरेज है। एक अतिरिक्त प्रोत्साहन के रूप में बीमाशुदा व्यक्ति के, स्कूल में 9-12 में पढ़ने वाले बच्चों को 30 रुपया त्रैमासिक वजीफे का भी प्रावधान है।
ii. सार्वभौम स्वास्थ्य बीमा योजना (न्दपअमतेंस भ्मंसजी प्देनतंदबम ैबीमउम)- सरकार की इस योजना का क्रियान्वयन ओरियंटल इन्श्योरेंस कम्पनी द्वारा गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले परिवारों के लिए किया जा रहा है। इसके अंतर्गत 30,000/- की वार्षिक कवरेज प्रति व्यक्ति के अस्पताल में इलाज के खर्च के लिए लिए है। इसका वार्षिक प्रीमियम शुल्क 165 रु प्रति व्यक्ति और 248 रु पांच सदस्य वाले परिवार के लिए है। सात सदस्यीय परिवारों के लिए यह शुल्क 330/- प्रति वर्ष है।
iii. जनश्री बीमा योजना – इस बीमा योजना का क्रियान्वयन जीवन बीमा निगम द्वारा बी. पी. एल. परिवारों के लिए किया जा रहा है। यहां बीमा कवरेज प्रीमियम 200 रु प्रतिवर्ष है, जिसमें 50ः बीमा करवाने वाला देगा और शेष 50ः सामाजिक सुरक्षा फंड से दिया जायेगा। इसमें स्वाभाविक मृत्यु की दशा में 20,000/- और दुर्घटनावश मृत्यु के लिए 50,000/- का बीमा किया जाता है।
iv. स्वावलंबन योजना – जीवन बीमा निगम द्वारा सरकार के निमित 2010 में शुरू की गयी, इसमें असंगठित क्षेत्र में पेंशन योजना शुरू की गयी है।

स्वावलंबन योजना
यह सरकार द्वारा लागू नयी पेंशन-योजना है। पेंशन फंड रेगुलेटरी अथॉरिटी (DFRDA) द्वारा शासित दम नयी पेंशन व्यवस्था (NPS) का 18-55 वर्ष की बीच की आयु का कोई भी नागरिक सदस्य बन सकता है। इस योजना के अंतर्गत सरकार, 2010-11 में खोले गये प्रत्येक एकाउंट में 1000/रु० का वार्षिक योगदान, आगामी तीन वर्ष अर्थात वर्ष 2011-12, 12-13 और 2013-14 तक देगी। यह सविधा उन लोगों के लिए है जिन्होंने नयी पेंशन व्यवस्था (छच्ै) में न्यूनतम 1000/- रु. और अधिकतम 12000/- रु. प्रतिवर्ष अदा किया हो।

राजीव गाँधी श्रमिक कल्याण योजना
राज्य कर्मचारी बीमा योजना (ESI Scheme) के अंतर्गत उन बीमाशुदा कर्मचारियों के लिए एक बेरोजगारी भत्ते का प्रावधान किया गया है जो बिना स्वयं के किसी कारण अर्थात अनिच्छा से फैक्टरी या संस्थान के बंद हो जाने, छंटनी या दुर्घटना के कारण से बेरोजगार हो गये हों। 01 अप्रैल, 2005 की तिथि से प्रभावित ऐसे अनिच्छुक, बेरोजगार कर्मचारी और उनके परिवार इ एस आई औषधालयों से, बेरोजगारी भत्ते की अवधि में मुफ्त चिकित्सा के हकदार होंगे। यह बेरोजगारी भत्ता, उनके मूल-वेतन का 50% होगा और छः माह तक लागू रहेगा। इस योजना की पात्रता के लिए कर्मचारी को गत पाँच वर्षों से म्ैप् योजना का हिस्सा बन कर योगदान की अनिवार्यता है।

प्रधान मंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना
प्रतिवर्ष नवीनीकरण होने वाली यह योजना, किसी भी कारण से होने वाली मृत्यु तक जीवन बीमा की योजना है। इसका क्रियान्वयन भारतीय जीवन बीमा निगम एवं अन्य इच्छुक बीमा कंपनियों के माध्यम से होगा। उन बैंकों के सभी बचत खाता-धारक, जिनके बैंक इन कंपनियों से अनुबंधिन हैं, और जिनकी आयु 18 से 50 वर्ष के बीच है, वे 330/- रु. वार्षिक योगदान दे कर इसके सदस्य बन सकते हैं। ऐसे सदस्यों की किसी भी कारण मृत्यु होने की स्थिति में 2 लाख रु. की बीमा राशि प्राप्त होगी।

प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना
यह सरकार द्वारा पोषित दुर्घटना बीमा योजना है जो दुर्घटनावश मृत्यु की स्थिति में देय है। 18 से 70 वर्ष तक की आयु का कोई भी व्यक्ति 12/- रु. वार्षिक प्रीमियम राशि देकर इसमें शामिल हो सकता है। इस योजना का क्रियान्वयन सरकारी और निजी जनरल इंश्योरेंस कंपनियों के माध्मय से हो रहा है।

 सूक्ष्म आर्थिक प्रबंध (Micro Finance)
देखा गया है कि सामाजिक क्षेत्र, वित्त के संघटित क्षेत्रों (जैसे बैंकों) से अपनी धन की आवश्यकता पूरी नहीं कर पाते, ऐसा कई कारणों से होता है – अत्यधिक कागजी कार्रवाई, भारी-भरकम प्रणाली और बहुत-सारे कागजातों की जरूरत। इनके स्थान पर लघु-उधार-एजेंसिया, समस्या के एक हल के रूप में देखी जा सकती हैं जो कि सामाजिक क्षेत्र के साथ ही गरीबी उन्मूलन में भी सहायक सिद्ध होंगी। इन आर्थिक संस्थानों की अवधारणा के जनक बंग्लादेश के नागरिक, श्री मोहम्मद यूनुस हैं, जिन्हें इस कार्य के लिए नोवल पुरस्कार भी दिया गया है। उनकी सोच थी कि बैंक अर्थव्यवस्था की आखिरी इकाई तक नहीं पहुँच सकते और गरीबों के उत्थान, विशेषकर ग्रामीण महिलाओं के संदर्भ में, सहायक नहीं हो सकते।
भारत में ‘‘स्वयं सहायता समूह‘‘ (SHG) अभियान, नाबार्ड (NABARD) के तत्वावधान में बैंक के ले प्रयास से 1992 में प्रारंभ हुआ। इस योजना के अंतर्गत प्रदान किये जाने वाले ऋण को बचत के साथ जोडा गया है और इसका केंद्र-बिंदु है ‘क्षमता-निर्माण‘। इसमें कम ब्याज दर (8-10%) पर ऋण दिया जाता है और उसकी मासिक अदायगी की जाती है। इस योजना की एक खास बात और है कि इसमें ऋण अदायगी की जिम्मेदारी समूह की है, न कि व्यक्ति की। स्वयं-सहायता समूह अभियान के अंतर्गत देश के 90 मिलियन परिवारों को दायरे में लाया गया है और कुल 25 हजार करोड़ का ऋण बांटा जा चुका है।
लघु वित्तीय संस्थाएं (डपबतव थ्पदंदबम प्देजपजनजपवदे) गरीबों को ऋण देने वाली वे संस्थाएं हैं, जिनकी ब्याज दरें सामान्य से ज्यादा हैं, परंतु साहूकारों द्वारा लिये जाने वाली दरों से कम होती हैं। इन संस्थाओं की ओर सरकार का ध्यान ही 2003 में गया है और पिछले 7 वर्षों में इनका व्यापक प्रसार
या है। इनके द्वारा, इस दौरान 30 मिलियन गरीब परिवारों को लगभग 30 हजार करोड़ ऋण उपलब्ध कराया गया है। सूक्ष्म आर्थिक प्रबंध के अंतर्गत लघु-वित्तीय संस्थानों को स्वयं-सहायता समूहों के पार्टनर के रूप में देखा जा रहा है। साथ ही इसे आम-जन को वित्तीय व्यवस्था में ‘आर्थिक समावेश‘ (Financial Inclusion) का एक बड़ा कदम भी बताया जा रहा है। आर्थिक समावेश से आशय गरीबों को अर्थव्यवस्था के संगठित माध्यमों के उपयोग की सुविधा दिलाना है ताकि कर्ज देने वाले साहूकारों पर उनकी निर्भरता कम हो सके और उन्हें एक नियमित आय का साधन मिले, बेरोजगारी कम हो और वे गरीबी चक्र से बाहर निकल सकें।
तथापि, हाल के समय में लघु वित्तीय संस्थानों ने, विशेषकर आंध्र-प्रदेश में स्थित संस्थानों ने वित्तीय व्यवस्था का एक नया पहलू प्रस्तुत करके कुछ मूलभूत प्रश्न खड़े कर दिये हैं –
1. इन संस्थाओं का मुख्य इरादा ऊँचे लाभ कमाना है। ऐसा वे ऊँची ब्याज दरों पर ऋण देकर, (साहूकारों के ब्याज दर से थोड़ा ही कम) करते हैं।
2. लघु वित्तीय संस्थान जनसंख्या के उस हिस्से तक पहुंचे हैं जिन्हें बैंकों ने उपेक्षित कर रखा हैं, परंतु यह भी सत्य है कि वे बैंकों के प्रयास के पूरक के रूप में नहीं हैं। समाज के जिस क्षेत्र एवं वर्ग तक बैंक पहले से ही पहुंचे हैं, वहां पर इन लघु वित्तीय संस्थानों का भी जमावड़ा हो रखा है।
3. लघु वित्तीय संस्थाएं ऋण देने के लिए आसान विकल्प, जैसे कि स्वयं सहायता समूहों, का माध्यम तलाश करती हैं। इससे लेनदारों पर बहु-वित्त-प्रबंधन और ऋण के बोझ की समस्या आ पड़ती है।
4. लघु वित्तीय संस्थानों के काम करने की शैली आक्रमक है और वे उपभोक्ता उन्मुखी-ऋण ज्यादा देते हैं, बजाय कि उत्पाद-उन्मुखी ऋण के। इस कारण इनकी तुलना निजी बैंकों द्वारा ऋण देने तथा अमेरिकी बैंकों द्वारा प्रमुखता वाले ग्राहकों को ऋण देने से की जा सकती है।
इन हालातों को देखने के बाद सरकार लघु-वित्तीय संस्थानों के क्रिया-कलाप के बारे में पुनर्विचार के लिए विवश हुई है और आम-जन के आर्थिक-समावेश के इस मॉडल के लिए नियमन की आवश्यकता महसूस कर रही है।
यह कहा जा सकता है कि वृहद् स्तर पर राष्ट्रीकृत बैंक लघु वित्तीय संस्थानों के मुकाबले ज्यादा आम-जन को वित्तीय प्रबंधन में समाहित कर सकते हैं। इसके लिए उन्हें कुछ अनूठे तरीके जैसे आधुनिक टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करके घर बैठे बैंकिंग, पत्राचार के माध्यम में बैंकों के काम-काज आदि जिससे उन्हें अधिक शाखाएँ न खोलनी पड़ें, अपना सकते हैं। आवश्यकता है कि लघु वित्तीय संस्थाना को दुबारा इस प्रकार पुनर्संगठित किया जाय कि राष्ट्रीकृत बैंकों के साथ इनकी एकरूपता और वित्तीय प्रयासों के पूरक रूप में इनकी पहचान हो सके और इन्हें भारत में वित्तीय प्रबंधन वाली कारगर-संस्था का दर्जा मिल सके।
सामाजिक क्षेत्र अर्थव्यवस्था के प्रमुख क्षेत्रों में से एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्र है और इन्हें विकास की मुख्या धारा से जोड़ना किसी सरकार की सबसे बड़ी चुनौती है। ऐसा होने पर ही अर्थव्यवस्था का बड़ा कायापलट और चतुर्दिक समृद्धि संभव हो सकेगी।

Share on:
WhatsApp
Category: अर्थशास्त्र Tags: प्रधान मंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना क्या है, प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना के बारे में जानकारी, भारत में निर्धनता का आशय क्या है, वृहद् आधार पर लक्ष्य निर्धारण, संकुचित आधार पर लक्ष्य निर्धारण, सामाजिक परिक्षेत्र (Social Sector in hindi), सामाजिक सुरक्षा, सूक्ष्म आर्थिक प्रबंध (Micro Finance in hindi), स्वावलंबन योजना
Post navigation
« सासाराम का मकबरा किसने बनवाया था , शेरशाह सूरी का मकबरा कहाँ स्थित है किसका है द्वारा निर्मित सर्व प्रमुख इमारत कौन सी है दंड के निरोधात्मक एवं सुधारात्मक सिद्धांत की व्याख्या कीजिए , सुधारात्मक दंड सिद्धांत किसे कहते हैं »

हमारे youtube चैनल को सब्सक्राइब करे -

हमारी app download करो और बुक नोट्स , प्रश्न उत्तर पाओ

© 2018 &sbistudy; All Rights reserved
Forestly Theme | Powered by Wordpress
error: Content is protected !!