(point defects in hindi) बिंदु दोष किसे कहते है | बिन्दु दोष की परिभाषा क्या है ? प्रकार अर्थ मतलब meaning ?
क्रिस्टलों (ठोसों) में अपूर्णताएं (defects or imperfections in solids or crystals) : आदर्श क्रिस्टलीय ठोसों में अवयवी कणों की व्यवस्था पूर्णतया नियमित होती है अर्थात अवयवी कण क्रिस्टल जालक में निश्चित बिन्दुओं पर उपस्थित होते है। आदर्श क्रिस्टलीय ठोसों की शून्य परम ताप पर एंट्रोपी शून्य होती है। लेकिन ऐसा आदर्श क्रिस्टल प्राप्त करना संभव नहीं है। साधारणतया ठोस अत्यधिक संख्या में छोटे छोटे क्रिस्टलों का समूह होता है। इन छोटे क्रिस्टलों में दोष होते है। इन दोषों के कारण ही ठोसों में अपूर्णता आ जाती है।
क्रिस्टलों में दोष , अवयवी कणों की अव्यवस्था या अपना निश्चित स्थान छोड़ने या अशुद्धि की उपस्थिति के कारण उत्पन्न होते है।
अवयवी कणों की आदर्श व्यवस्था में अनियमितता या विचलन द्वारा जो दोष उत्पन्न होते है उन्हें बिंदु दोष (point defects) कहते है।
जालक बिन्दुओं की पूर्ण पंक्तियों की आदर्श व्यवस्था में अनियमिततायें या विचलन द्वारा जो दोष उत्पन्न होते है उन्हें रेखीय दोष (line defects) कहते है। यहाँ हम केवल बिन्दु दोषों का ही अध्ययन करेंगे।
बिन्दु अपूर्णता (point defects)
क्रिस्टल में यह दोष अवयवी कण (धनायन अथवा ऋणायन अथवा परमाणु) के अपने नियमित स्थान से लुप्त हो जाने अथवा अपने निश्चित स्थान को छोड़कर क्रिस्टल जालक में अन्य स्थान पर चले जाने के कारण उत्पन्न होता है। इसे बिंदु दोष कहते है।
बिन्दु दोष निम्नलिखित प्रकार के होते है –
- स्टाइकियोमीट्री दोष
- अशुद्धि दोष
III. नॉन स्टाइकियो मीट्री दोष
- स्टाइकियोमीट्री दोष (stoichiometric defects): जिन दोषों के कारण क्रिस्टल की स्टाइकियोमीट्री में कोई परिवर्तन न हो स्टाइकियोमीट्री दोष कहलाते है। आधारभूत रूप से ये दोष दो प्रकार के होते है।
(अ) रिक्तिका दोष
(ब) अन्तराकाशी दोष
(अ) रिक्तिका दोष (vacancy defects) : जब किसी जालक में जालक बिंदु अथवा जालक स्थल रिक्त हो अर्थात अवयवी कण निर्धारित स्थान से बाहर जाए तो उत्पन्न दोष रिक्तिका दोष कहलाता है।
चित्र में इस प्रकार का दोष दर्शाया गया है। इस दोष से पदार्थ का घनत्व कम हो जाता है। पदार्थो को गर्म करने पर इस प्रकार के दोष उत्पन्न हो जाते है।
(ब) अन्तराकाशी दोष (interstitial defects) : क्रिस्टलीय संरचना में जब कुछ अवयवी कण (परमाणु या अणु) अंतराकाशी स्थानों में आ जाते है तो उत्पन्न दोष अन्तराकाशी दोष कहलाता है। जैसा कि चित्र में दिखाया गया है। इस दोष के कारण पदार्थ का घनत्व बढ़ जाता है।
सामान्यतया रिक्तिका दोष तथा अंतराकाशी दोष जैसा कि ऊपर समझाया गया है अनआयनिक ठोसों में संभव है। आयनिक ठोसों में भी इस प्रकार के दोष पाए जाते है लेकिन आयनिक ठोसों में विद्युत उदासीनता बनी रहना आवश्यक है अत: इन दोषों को फ्रेंकेल तथा शॉटकी दोषों के रूप में वर्गीकृत करते है।
(i) शॉट्की दोष (schottky defect) : यह आधारभूत रूप से आयनिक ठोसों का रिक्तिका दोष है। 1930 में वैज्ञानिक शॉटकी ने बताया की क्रिस्टल निर्माण के समय , कुछ आयन अपना निश्चित स्थान छोड़कर क्रिस्टल जालक से बाहर निकल जाते है , जिससे जालक में रिक्तिका रह जाती है , जिसे छिद्र कहते है। इसे शॉट्की दोष कहते है। क्रिस्टल जालक को छोडने वाले धनायनों और ऋणायनों की संख्या समान रहती है , इसलिए क्रिस्टल की विद्युत उदासीनता बनी रहती है।
चित्र में एक आयनिक यौगिक M+X– दिखाया गया है। एक M+ आयन तथा एक X– आयन अपने निर्धारित स्थान से निकल गए है।
धनायन तथा ऋण आयन के इस युग्म को शॉटकी युगल कहते है।
यह दोष उन आयनिक यौगिकों के क्रिस्टलों में पाया जाता है , जिनमें आयनों की समन्वयी संख्या अधिक होती है तथा आयनों का आकार लगभग समान होता है।
जैसे – NaCl , KCl , CsCl , KBr आदि।
सामान्य ताप पर NaCl क्रिस्टल में लगभग 106 शॉटकी युगल प्रति cm3 होते है। एक cm3 में लगभग 1022 आयन होते है। इस प्रकार 1016 जालक स्थानों में एक शॉटकी युग्म दोष होता है।
इस दोष के कारण क्रिस्टल का घनत्व कम हो जाता है और अधिक छिद्र होने पर क्रिस्टल का स्थायित्व तथा जालक ऊर्जा घट जाती है। इस दोष के कारण क्रिस्टल की विद्युत चालकता बढ़ जाती है क्योंकि विद्युत धारा प्रवाहित करने पर आयन अपने स्थान से छिद्र में चला जाता है और नया छिद्र बन जाता है जो कि आगे से आगे गति करता रहता है। ताप में वृद्धि होने पर शॉट्की दोष में वृद्धि होती है।
(ii) फ्रेन्केल दोष (frenkel defects) : 1926 में वैज्ञानिक फ्रेंकेल ने बताया की आयनिक क्रिस्टल में कोई आयन अपने निश्चित स्थान छोड़कर , अन्तराकाशी स्थान में चला जाता है। जिससे उस आयन का स्थान रिक्त हो जाता है , जिसे छिद्र कहते है। इसे फ्रेन्केल दोष कहते है। आधारभूत रूप से यह दोष अंतराकाशी दोष है। सामान्यतया यह दोष धनायन के द्वारा उत्पन्न होता है क्योंकि इसका आकार ऋण आयन से छोटा होता है। इस दोष में क्रिस्टल में धनायनों तथा ऋण आयनों की संख्या तथा इनका आवेश बराबर रहता है , अत: क्रिस्टल उदासीन होता है।
यह दोष उन आयनिक यौगिकों के क्रिस्टलों में पाया जाता है जिनमें आयनों की समन्वयी संख्या कम होती है और ऋणायनों का आकार , धनायनों से काफी बड़ा होता है। उदाहरण – AgCl , AgBr , ZnS आदि। इस त्रुटी के कारण छिद्र बन जाता है। अत: एक छिद्र , पूर्ण क्रिस्टल में गति कर सकता है। इस कारण क्रिस्टल विद्युत चालकता प्रदर्शित कर सकते है। छिद्रों की संख्या बढने पर क्रिस्टल का स्थायित्व घटता है लेकिन घनत्व अपरिवर्तित रहता है क्योंकि प्रति इकाई आयतन में आयनों की संख्या में कमी नहीं होती है। इस त्रुटी में समान आवेशित आयनों के परस्पर समीप आ जाने के कारण , यौगिक का पैरावैद्युतांक बढ़ जाता है।
नोट : कुछ क्रिस्टलों में शॉटकी एवं फ्रेंकेल दोनों दोष पाए जाते है जैसे – AgBr में।
नोट : फ्रेन्केल दोष की अपेक्षा , शॉट्की दोष बनने के लिए , फ्रेंकेल दोष की अपेक्षा बहुत कम ऊर्जा की आवश्यकता होती है।
फ्रेन्केल और शॉट्की दोष में अन्तर
फ्रेन्केल दोष | शॉट्की दोष |
1. अन्तराकाशी दोष है। | रिक्तिका दोष है। |
2. छोटे धनायन तथा बड़े ऋण आयनों से बने यौगिकों में होते है। | लगभग समान आकार के धनायन तथा ऋण आयन से बने यौगिकों में होते है। |
3. इस दोष में आयन , अन्तराकाश में चले जाते है। | इस दोष में आयन , क्रिस्टल जालक को छोड़ देते है। |
4. क्रिस्टल का घनत्व अपरिवर्तित रहता है। | क्रिस्टल का घनत्व घट जाता है। |
5. पैरावैद्युतांक का मान बढ़ जाता है। | पैरावैद्युतांक के मान में परिवर्तन नहीं होता है। |
6. यह दोष निम्न समन्वयी संख्या वाले क्रिस्टलों में पाया जाता है। | यह दोष उच्च समन्वयी संख्या वाले क्रिस्टलों में पाया जाता है। |